सुधा राजे की नज़्म : दर्द को दीवार
दर्द को दीवार पे
लिख दूँ तो ये गिर
जायेगी
आँख खोलूँगी तो
आँसू से नदी डर जायेगी
क्या लिखें कहदें सुनायें
इक सदी सैलाब है
आसमां भी रो भी रो पङेगा
छत्त ये झर जायेगी
जो जली हो बर्फ़ में
बेघर बिला दर उम्र भर
आग में रखो उसे तो
बस धुआँ बिखरायेगी
नर्म तिनको से बुने थे
जो बया ने घोंसले
बावङी बेआब हो गयी
वो बया डर जायेगी
क़ारफ़रमा थे वही फ़रज़ंद
ताने हैं कमां
खेत से आँगन बँटा तो
अबके माँ मर जायेगी
जिस सेहन में गूँजते रहते हैं
अब तक गीत वो
बेचकर भाई चले
बेटी भी रोकर जायेगी
जिसके चप्पे चप्पे पे
उंगली घिसी थी माई ने
जब वही घर ना रहा तो
क्यों शहर वो आयेगी
वो हवेली खंडहर हो गयी
किसी अरमान सी
फिर भी गौरैया वहीं पर
इक चहक कर जायेगी
नीम के पत्ते झरे तो
घर का पर्दा भी गया
डाल के झूला वो लङकी
कैसे कजरी गायेगी
बेतवा की धार रेगिस्तान
वाले ले गये
विंध्य प्यासा रह गया चंबल किसे
बहलायेगी
अर्थियों का डोलियों से
एक ही रिश्ता रहा
एक जल्दी एक को
तिल तिल जला दी जला दी जायेगी
लाश अम्माँ की उठी या मायका
भी उठ गया
अब बिना बोले वो किसकी
गोद में रो पायेगी
दूर तक सब अज़नबी बोली
अजब तहज़ीब है
फिर तो वो दुलहन कभी
नैहर भुला ना पायेगी
जो भी आता है परखता है
कि जैसे जिंस हो
साँवली लङकी में दिल है
ये किसे सँभलायेगी
टूट के जो तार बेसुर हो
सितारों के गये
एक मौक़ा तो दे क़िस्मत
बज़्म लूटी जायेगी
पाँव के छालों ने टोका
अब तो रुक जा दर्द है
एक ही ज़िद्दी है वो
लब भींच चलती
जायेगी
और कितने खंज़रो का वार
सहना है उसे
क्या बहारों ने दिया जो
ये ख़िजा ले जायेगी
मार दो दीवार पर ये सिर
तो होगी रौशनी
दिल जो रख दो काट के तो
शायरी हो जायेगी
बात जो दिल में जलाती
दर्द का आतश वही
चुप्पियों ज़ाम भर भर कर
छिपा ली जायेगी
जिस शहर की धूल
माथे पर लगे चंदन तिलक
कोई पूछे कौन हो???
कैसे'' सुधा ''"समझायेगी
©®Sudha Raje
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
9358874117
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
लिख दूँ तो ये गिर
जायेगी
आँख खोलूँगी तो
आँसू से नदी डर जायेगी
क्या लिखें कहदें सुनायें
इक सदी सैलाब है
आसमां भी रो भी रो पङेगा
छत्त ये झर जायेगी
जो जली हो बर्फ़ में
बेघर बिला दर उम्र भर
आग में रखो उसे तो
बस धुआँ बिखरायेगी
नर्म तिनको से बुने थे
जो बया ने घोंसले
बावङी बेआब हो गयी
वो बया डर जायेगी
क़ारफ़रमा थे वही फ़रज़ंद
ताने हैं कमां
खेत से आँगन बँटा तो
अबके माँ मर जायेगी
जिस सेहन में गूँजते रहते हैं
अब तक गीत वो
बेचकर भाई चले
बेटी भी रोकर जायेगी
जिसके चप्पे चप्पे पे
उंगली घिसी थी माई ने
जब वही घर ना रहा तो
क्यों शहर वो आयेगी
वो हवेली खंडहर हो गयी
किसी अरमान सी
फिर भी गौरैया वहीं पर
इक चहक कर जायेगी
नीम के पत्ते झरे तो
घर का पर्दा भी गया
डाल के झूला वो लङकी
कैसे कजरी गायेगी
बेतवा की धार रेगिस्तान
वाले ले गये
विंध्य प्यासा रह गया चंबल किसे
बहलायेगी
अर्थियों का डोलियों से
एक ही रिश्ता रहा
एक जल्दी एक को
तिल तिल जला दी जला दी जायेगी
लाश अम्माँ की उठी या मायका
भी उठ गया
अब बिना बोले वो किसकी
गोद में रो पायेगी
दूर तक सब अज़नबी बोली
अजब तहज़ीब है
फिर तो वो दुलहन कभी
नैहर भुला ना पायेगी
जो भी आता है परखता है
कि जैसे जिंस हो
साँवली लङकी में दिल है
ये किसे सँभलायेगी
टूट के जो तार बेसुर हो
सितारों के गये
एक मौक़ा तो दे क़िस्मत
बज़्म लूटी जायेगी
पाँव के छालों ने टोका
अब तो रुक जा दर्द है
एक ही ज़िद्दी है वो
लब भींच चलती
जायेगी
और कितने खंज़रो का वार
सहना है उसे
क्या बहारों ने दिया जो
ये ख़िजा ले जायेगी
मार दो दीवार पर ये सिर
तो होगी रौशनी
दिल जो रख दो काट के तो
शायरी हो जायेगी
बात जो दिल में जलाती
दर्द का आतश वही
चुप्पियों ज़ाम भर भर कर
छिपा ली जायेगी
जिस शहर की धूल
माथे पर लगे चंदन तिलक
कोई पूछे कौन हो???
कैसे'' सुधा ''"समझायेगी
©®Sudha Raje
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
9358874117
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
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