Sunday 1 December 2013

(लेख श्रंखला)-- बच्चे समाज और बचपन।

आप से पूछा जाये कि घर में चूहे बढ़ गये हैं
प्लेग फैल सकता है तब आप क्या करेंगे??
ज़ाहिर है चूहों का खात्मा ही । और रैट
ट्रैप दवाईयाँ और बिलों को मूँदना और
घर के भीतर फर्श दीवारें पक्के करना और
सामान को बंद करके रखना ये भी करेंगे ।
आप और हम आये दिन पढ़ते रहते है अमुक
शहर में बच्चों को अपहरण करके विकलांग
बनाकर भीख मँगवाने वाला गिरोह
पकङा गया।
#स्लमडॉगमिलेनियर फिल्म से
बदनामी पूरे विश्व में भारत की हुई।
किंतु क्या बच्चों का भीख माँगना बंद
हुआ?????????
सवाल है कि ट्रेन बस रेलवे स्टेशन
बाईपास
ढाबों गलियों मंदिरों मस्जिदों मजारों श्मशानों तीर्थों कब्रिस्तानों के
आसपास भीख माँगते बच्चे और
स्त्रियाँ जब खुले आम पुलिस सीबीआई
आईबी और तमाम नेता प्रशासक एनजीओ
और सरकारी गैरसरकारी लीडर देखते हैं
तब :::::
ये उनके रिहाईश तक पीछा करके
पता क्यों नहीं लगाते कि बच्चे रहते
कहाँ हैं? और कौन कौन आता है उन
बच्चों से भीख के पैसे एकत्रित करने
वसूली करने????
हम बार बार निवेदन करते हैं
बच्चों को भीख मत दीजिये । जैसे
ही पता चले कि कहीं कोई बच्चा भीख
माँग रहा है तत्काल उसे निकटतम
अनाथालय तक पहुँचाईये और कोशिश
कीजिये कि भीख माँगने
वाला बच्चा कोई निसंतान दंपत्ति गोद
ले ले या किसी एन जी ओ की निगरानी में
अनाथालय में रहने लगे।
लेकिन ये बिना प्रशासनिक सक्रियता के
नहीं हो सकता । इस कैंसर को खत्म केवल
पुलिस ही कर सकती है क्योंकि हर
चौराहे बाईपास मंदिर तीर्थ मज़ार
कब्रिस्तान श्मशान रेल बस
टैक्सी रिक्शॉ गली मुहल्ले के इलाके
पुलिस की बीट के रूप में बँटे हुये है और
वहाँ चार से दस बीस तीस तक पुलिस
कर्मचारियों की ड्यूटी रहती है । पुलिस
पेट्रोलिंग वाहन हर रोज हर जगह से
गुजरते हैं । और हर निवासी का नाम
पता नंबर
थाना क्षेत्राधिकारी की फाईल पर
दर्ज़ होता है । वह दृढ़ संकल्पित होकर
चाहे तो सारे गैरभारतीय खोज निकाले
और सारे भिखारी बच्चे पहचान कर उन
लोगों को गिरफ्तार कर ले जो बच्चों से
भीख मँगवाते हैं । बच्चों को अपाहिज
बनाते हैं बच्चों को किडनाप करके बेचते
हैं। एक लङकी पिछले हरिद्वार कुंभ के
दौरान कोई चुरालाया कोई डेढ़ दो साल
की गोरी चिट्टी सुंदर बच्ची ।
हमारी संस्था की महामंत्री ने उस
बच्ची को पाल लिया पुलिस
मीडिया सब जगह विज्ञापित करने पर
भी पता नहीं चला बच्ची जाने
कितनी दूर के अभिभावकों की है न जाने
किस धर्म की है। किंतु जब
गाङी की आवाज सुनती थी तो चौककर
कहती थी पापा पापा पापा ।
आज वह सोलह साल की बच्ची एक
मामूली परिवार में पल रही है हाँ प्यार
दुलार ममता के लिये हृदय से हम
अपनी सखी को सलाम करते हैं। कई ठग
आये मेरी बच्ची कहके लेने किंतु झूठे साबित
हुये ।
ऐसी न जाने कितनी बच्चियाँ बच्चे
बिछुङकर न जाने कहाँ चले गये । बच्चे
कभी स्वीकार नहीं कर पाते नये
लोगों को अगर होश में हैं । और माँ बाप
कभी भूल नहीं पाते बिछुङी संताने नासूर
की तरह रिसते घाव लिये रोज रोते हैं।
कुछ परिवार तो भीख
को ही अपना पुश्तैनी धंधा समझते हैं।
एक #अलवी परिवार के दस बच्चे
जो सारा दिन दूसरे दूसरे नगर गाँव
जाकर भीख माँगते हैं। जब जवान हो जाते
हैं तो रेहङी ठेला लगा लेते हैं । बूढ़े और
बच्चे सब भीख माँगते हैं । चुनाव प्रचार
की कवरिंग के दौरान घर घर जाने
का मौका मिला तो देखा बढ़िया रहन
सहन है टीवी गैस और तमाम सामान ।
बस रहन -सहन गंदा है । किंतु भीख
उनका धंधा । एक मजदूर और किसान से
ज्यादा बङा घर ज्यादा सामान
ज्यादा पैसा खाने खरचने को । बस
भिखारी हैं ।
किंतु ये बच्चे भीख क्यों माँग रहे हैं? जब
फ्री पढ़ाई है फ्री भोजन और यूनिफॉर्म
है?
मेम जी रोजग़ार एकबार
छूटा तो क्या मिलता है दुबारा?
ये सारा कारोबार है तो भीख के
ही दमखम से । कहकर वह चावल दाल और
बताशों का बोरा लेकर चल दी आढ़त पर
बेचने ।
यही बताशे खिचङी दुबारा खरीदकर
तीर्थयात्रियों से फिर भीख में मिलेगी।
सिक्कों का बोरा एकत्रित करने शाम
को एजेंट आकर तौलकर ले जायेगा और नब्बे
रुपये के सिक्के देकर सौ रुपये मिल जायेगे।
पुराने कपङे भी फङवाले लेकर जायेंगे और
बेच देगे चौकपर ।
पूरा सिस्टम है।
बार बार वही प्रक्रिया और बार बार
वही कारोबार । भिखारी बच्चे अचानक
गंगा में कूद पङे चढ़ाया गया सामान
तैरकर उठा लाये।
और दिन भर फूल फिर फूलवाले
को नारियल फिर नारियल वाले बेचकर
और कटे हुये बाल फिर बाल वालों को बेचे
जाकर पैसे कमाकर शाम को शराब के ठेके
पर ।
जी हाँ ये बच्चे शराब पीते हैं जुआ खेलते हैं
सिगरेट बीङी और कुकर्म की बाल
वेश्यावृत्ति तक करते हैं । किंतु किंतु किंतु
आप अकेले कैसे लङ सकते हो?????
एक अलग मंत्रालय बनाईये ।
भीख निवारण महकमा ।
और देखिये कि कहीं कोई
स्त्री बूढ़ा बच्चा भीख न माँगे।
भारत से भीख प्रथा सदा को खत्म
हो जायेगी।
तीर्थों पर अनाथालय और नारी निकेतन
विकलांग आश्रम के दानपात्र ट्रस्ट के
माध्यम से रखवा दीजिये बस
जो जिसको दान करना हो वह सिस्टम के
तहत हो।
पुलिस और बालविकास मंत्रालय जब तक
भीख माँग रहे बच्चे और बाल
वेश्यावृत्ति पर रोक नहीं लगा सकते तब
तक धिक्कार हर भारतीय को ।
हम सब क्यों नहीं अपने नगर के हर
भिखारी बच्चे और मालूम पङते ही हर
बाल वेश्या की सचित्र सूचना पुलिस और
बालविकास मंत्रालय तक देते??
क्योंकि सब जानते हैं कि कहीं लेने के देने न
पङ जायें लोग बहुत है जो समाज
को सुधारना चाहते है किंतु सिस्टम और
प्रशासनिक डिक्टेटरशिप
का रवैया बङा खतरनाक है ऐसा हम खुद
अनाथ बुजुर्गों की पेंशन बनवाने जब
तहसील से जूझे तब महसूस कर चुके हैं ।
हर नयी योजना नये घपले को अवसर
देती है और भ्रष्टों को नया आहार मिलने
लगता है । पुलिस ही वह एकमात्र
आशा है जो बच्चों को बचा सकती है और
वही अब सबसे ज्यादा लापरवाह
हो चुकी है ।
तो जब तक देश में बच्चे भीख माँग रहे हैं
और वेश्यावृत्ति कर रहे हैं हम
शर्मिन्दा है भारतीय होने पर और आप
भी रहिये ।
क्योंकि ये अनाथ बच्चे सरकार होते हुये
क्यों अनाथ हैं??????
राजतंत्र में राजा पिता था ।
आज राष्ट्राध्यक्ष सबका पिता है ।
तो जिस पिता के होते हुये संतान भीख
माँगे उसको शर्मिन्दा होना ही चाहिये

वो कौन लोग है जो नाबालिग
बच्चों को यौनानंद के लिये खरीदते बेचते
हैं????
इन वेश्याओं को ग़रीब नहीं खरीदता ।
इन वेश्याओं के घर पर शरीफों की संताने
पैदा होती और डी एन टेस्ट
करा सकना संभव हो तो ये मिल
मालिकों तक के बच्चे निकलें ।
बहरहाल हम सब इस पाप को जारी रखने
के दोषी है क्योंकि हम सब कोई
बग़ावती आंदोलन बाल वेश्यावृत्ति और
बाल भीख वृत्ति के खिलाफ अब तक
पुरज़ोर तरीके से नहीं चला सके हैं।
जब आपको अब कोई बच्चा भिखारी मिले
तो हमारी तरह सीने पर हाथ रखकर
ईश्वर हम लज्जित हैं जरूर कहना।
एक दिन अचानक पङौस के मकान से लङके
की आर्तनाद पूर्ण आवाज़ आयी चीखने
की । पङौसी अभी नये नये किरायेदार
आये थे मकान का सन्नाटा दूर होने से वह
खुश थी। किंतु ये लङका क्यों रो रहा है
इस तरह? वह तो बमुश्किल आठ नौ साल
का होगा? साथ में छोटी लङकी है और एक
नौजवान एक प्रौढ़ दंपत्ति ।
उसने एक मिनट इंतज़ार किया और फिर
मन समझाकर बैठ गयी क्योंकि भीतर से
बङों के बोलने की आवाज़ें आ रहीं थीं।
लेकिन ये सिलसिला दूसरे तीसरे दिन
भी जारी रहा । किराये दार दिन भर
दरवाज़ा बंद रखते और रात भर उनके
दरवाज़े खङकते रहते । कभी पैसों के
हिसाब पर दबी दबी बहस सुनाई देती ।
छोटी लङकी दरवाजे पर दिखती तो वह
बात करने की कोशिश करती किंतु
लङकी भीतर भाग कर दरवाज़ा बंद करके
छिप जाती।
कौन है ये लोग उसने
तो सोचा था कि बच्चों को औऱ
उसको भी मित्र मिल गये ।
वह हिम्मत करके एक दिन बगीचे से फल
सब्जी औऱ कुछ खानेपीने की चीज़ें ले
गयी ।
किंतु भीतर से लंबी महिला ने
आधा दरवाज़ा खोलकर सामान तो ले
लिया परंतु भीतर आने को नहीं कहा ।
द्वार पर ही एक तनाव पूर्ण मुसकराहट
से विदा कर दिया।
अज़ीब लोग है!!!!!
उसने सोचा फिर पूछा कि रात को दस
बजे बाद आपका बेटा इतनी जोर से
क्यों रोता है?
सकपका गयी लंबी महिला और
बोली नहीं तो!!! कहीं और से
आयी होगी आवाज या कोई टीवी पर
फिल्म चला रहा होगा। दरवाज़ा बंद
कर लिया ।
कुछ साल ऐसे ही निकल गये । एक रात
पुलिस गश्तीदल की जीप रूकी और कई
कदमों की आहट सङक पार वाले
पङौसी किरायेदार के आँगन में खङकी।
वे लोग दूसरे दिन बोरिया बिस्तर समेट
कर ले गये।
पता चला कि वह कोई आतंकी संगठन के
सदस्य थे जो शिक्षा की आङ में
बच्चों को आतंकवादी बनाते थे और भीषण
यातनायें उनकी ट्रेनिंग
का ही हिस्सा थी । वे लोग किस तरह
का प्रशिक्षण देते थे बच्चों को यह
सोचकर भी थरथरी उठती वह आर्तनाद
पता नहीं कैसी तकलीफ का था।
सोचिये और ग़ौर से सोचिये कि बच्चे
मानव बम और आतंकी तक बनाये जा रहे
हों जिस एशिया की धरती पर वहीँ पर
प्रशासन बच्चों को लेकर सबसे
ज्यादा सुस्त है।
©सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
7669489600
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।

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