कविता

Sudha Raje
सब स्त्रियों से कहना है एक बात
कोई नहीं आयेगा तब तक तुम्हें बचाने
जब तक तुम खुद नहीं चीखोगी
कोई नहीं सुनेगा तुम्हारी आवाज़ तक
तुम सबसे ऊँची और ऊँची और
ऊँची आवाज़ में नहीं बोलोगी
औरत को औरत के खिलाफ खङा करके
दो औरतों को नंगा करके
तमाशा बनाकर दो करोङ औरतो पर
ताने कसे जायेगे
देखो देखो ये औरत है ये औरत हर इंच
कपङा खोलने का पैसा लेती है औरत है
ये ये बदन बेचती है ।ये औरत है ये औरत
नाचती है पैसे के लिये
और शर्मिन्दा हो जायेंगी पचास
करोङ औरते
और निरूत्तर हो जायेगी वे
लाखो औरते जो सवाल उठाती है
अश्लीलता के खिलाफ
घर में कह
दिया जायेगा तेरी परवरिश
का नतीजा है जो बेटी बिगङ रही है
और कह दिया जायेगा कि बहू के
लगाम खीच कर रखो वरना
और फिर एक सामान्यीकरण करके
औरत को औरत के खिलाफ खङा कर
दिया जायेगा कि स्त्री ही स्त्री
की दुश्मन है
तब कोई नही सुनेगा उन मुट्ठी भर
औरतों के सवाल
जो पूछेगी कि कितने
पुरुषो को पुरुषो ने कत्ल किया???
कितने पुरुषों ने कितनी कौमे गैस चैंबर
में जलायी और एटम बम से धवस्त कर
दी कितनी बस्तियाँ
कितने इराक कुवेत इजरायल
जर्मनी अफगानिस्तान
हिरोशिमा वियतनाम काश्मीर और
हल्दी घाटी पानीपत तराईन
कुरुक्षेत्र कोरिया कांगो
कहा जायेगा स्त्री ही जब चाहती है
बिकना तो क्यों नहीं रोकती औरते
???
और बंद कर दिया जायेगा हर घऱ में
एक मशाल को चूङी पायल नकाब और
सिंदूर की कसमों से कोख पर दस
किलो का पत्थऱ टाँग कर दरवाजे पर
खीच कर लकीर कह देगा घर घर
देवता कि निकली तो वापस
नहीं आना
और टाँगों में लिपटे साँप जब
घर की तलाश में
निकली स्त्री को काटेगे तो
लोग मखौल उङायेगे
क्यों नहीं बचाने आतीं औरते औरतो को
औरतों के हाथ पर चंद रुपये धरने से
पहले माँगा जायेगा मुट्ठी भर गोश्त
और रख दिये जायेगे वे सब सामान
जिनकी जरूरत स्त्री को नहीं लेकिन
कहा जायेगा बेचो मीठी आवाज में
कहकर कि जो जो इस्तेमाल
करेगा उसको मिलेगी ऐसी ही नाजुक
कमसिन औरत
और फिर अट्टहास लगाये जायेगे
कि देखो ये औरत है ये
मरती मिटती फिदा होती है इन
सामानों पर
एक सुर से सब चीखेंगे नाजुक कोमल
कमजोर डरपोक
लजाती शरमाती पतली स्त्री ही
आदर्श है प्रेम मिलेगा
बनो कमजोर नाजुक पतली डरपोक
लजाती और बेसहारा परनिर्भर
फिर जब टूट पङेगे इसी समाज में से
निकल कर पिशाच
तब मजाक बनाया जायेगा अबला है
अबला है
जब तक खुद नहीं चल सकती तब तक
उत्पीङन सहो
कहो?? लङकियो क्या कहना है अब
कहो
माँ को महान बताकर लाद
दिया जायेगा सृजन का भार
और जब कमजोर हो जायेगे रक्त
मज्जा वसा मांस अस्थि
प्राण मन साहस संकल्प तब
कह दिया जायेगा
औरत एक कमजोर जानवर
ये चक्रव्यूह
जो समझकर
निकल पङेगी तोङने
उनको तोङने चलाये जायेगे निंदा के
ब्रह्मास्त्र
तुम समझ रही हो क्या?
©®सुधा राजे
Sudha Raje

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