नज़्म

एक तीली बस कि सब सामान जल गया ।

इक जरा सी भूल से ईमान जल गया।

हर तरह पुख्ता इमारत थी मगर लग़्जिश ।

कांपतो हाथों शमाँ नादान जल गया ।

जो जलाता था दिये सबके लिये हर दिन

अपने दिल की आग़ से इंसान जल गया ।

उफ सुधा कोई नहीं उस दर्द का साथी ।

सबको देकर ज़ान
ख़ुद बेज़ान जल गया ।
©सुधा राजे

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