बाग़ीगीत
Sudha Raje
Sudha Raje
Sudha Raje
नैतिकता की गिरती दीवारों पर
क्या कहते हो
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद
क्या करते हो
लहू हो गया पानी पानी
और नपुंसक नेता
भोग हो गया रोग भयंकर
लक्ष्य केन्द्र अभिनेता
नायक ही नालायक
हो गये
तुम किसपे मरते हो
नैतिकता की गिरती दीवारों पर
क्या कहते हो
©Sudha Raje
बोलो कहाँ छोड़कर
जाओगे अपनी संतानें
बोलो क्या प्रतिभूति तुम्हारे
घर जीवन की माने
क्या सोचा है तुम्हे
छोड़कर बाकी सब मर
जायें
क्या बल है तुममें जो तुमसे"
नर भक्षी" डर जायें
अपने बाद हवाले जर घर अब
किसके धरते हो
??
मत भूलो अब तुम्हें चबाकर
कोई खा सकता है
याद रखो आजाद देश है
जन की प्रभुसत्ता है
भूल न जाना घर के भीतर से
भी वे खींचेंगे
पाल रहे हो भय के भेड़िये
लहू शहर सींचेंगे
तुम संवेदन हीन हुये
विप्लव की ओर बहते हो
कौन खा रहा मुल्क बताओ
तुम खुद क्या करते
हो
©®Sudha Raje
Sudha Raje
घर के भीतर बहू
बेटियाँ हों तो विष
भी रखना
बाहर कहीं जाओ तो लुटने
का साहस भी रखना
बुरी लगी क्या??
खरी बात है,
अब चर्चायें छोड़ो
छल बल प्रबल
सबल हो लें ये
घूँघट दरपन तोड़ो
उठो अगर जो मरे नहीं हो
ज़ान ज़िग़र रखते हो???
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते हो
©®
Sudha Raje
कैसे सो जाते हो चैन से
गली गली जलती है
सरकारी भवनों में
केवल
लाठी की चलती है
धर्म
क्लीबता सिखलाता है
औ नेतृत्व पलायन
कुंद हो हो गये
मसि जीवी
मुहँ देखा कामुक गायन
नौजवान हैवान हो रहे
वृद्ध गीध मरते हो
कौन खा रहा मुल्क बताओ
तुम खुद क्या करते
हो
©®Sudha Raje
गाल बजाता फिरे
प्रशासन
लाशों पर संभाषण
हुये खबरची बस बिचौलिये
रिश्वत का अनुशासन
लक्ष्य हुये
गाड़ी बंगले,यंत्रों का जमघट
लिप्सा
शिक्षा हो गयी
महज दलाली
धिग् तन सुख्ख जुगुप्सा
राजनीति की गिरती मीनारों में
क्यों रहते हो
कौन खा रहा मुल्क़
बताओ तुम खुद क्या करते
हो ©®
Sudha Raje
क्यों न मार ही डालो चुन
चुन कोख छिपी हर माता
नारि देह को श्वान
झिंझोड़ें
मारो कन्या दाता
हा हा कार अपार
सुनो हर ओर गूँजकर रोता
कहाँ मर गया ईश्वर नर तू
काश
कि नारी होता
पुरूष राक्षस दैत्य हुआ
जगदीश!!! ये क्यों सहते हो
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते हो ©®
· Delete
Sudha Raje
आग लगी जी करता है
अब फिर शिकार सा खेलूँ
कोंच भून कर मारूँ नरपशु
फिर बंदूकें ले लूँ
बाँटो अब हथियार
प्यार की बोली
गाना छोड़ो
तोड़ो कारा
जननी खाते
असुर भाल अब फोड़ो
कायरता है तब विधान
जब
लज्जा पट दहते हों
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते
हो
©®Sudha
Sudha Raje
इन घावों की एक दवा है
भद्रकालि का नर्तन
प्रलय सन्निकट अहा!!!
विश्व आडंबर तेरा विसर्जन
रक्तबीज का रक्त पान
ही कर
करालिके नारी
जाग जाग अब जाग मृत्यु
भारत भू रो धिक्कारी
आज कलम ही नहीं
धरा भी जले आग धरते
हो
कौन खा रहा मुल्क
बताओ तुम खुद क्या करते
हो ©®Sudha raje
1
राजनीति के सर्प कुचल कर
राष्ट्र भक्त अब मारें
धिक्कारें दिल्ली से
विलायत तक
इनको धिक्कारें
सुविधा भोगी कोढ़ देश के
तख्तो ताज़ बदल दो
इंक़लाब की आवाजों से
अंधा राज बदल दो
बदलो आज विधायन झूठे
जो जन धन हरते हों
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते हो?
®©Sudha Raje
December 18
Dec 26, 2012
Sudha Raje
Sudha Raje
नैतिकता की गिरती दीवारों पर
क्या कहते हो
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद
क्या करते हो
लहू हो गया पानी पानी
और नपुंसक नेता
भोग हो गया रोग भयंकर
लक्ष्य केन्द्र अभिनेता
नायक ही नालायक
हो गये
तुम किसपे मरते हो
नैतिकता की गिरती दीवारों पर
क्या कहते हो
©Sudha Raje
बोलो कहाँ छोड़कर
जाओगे अपनी संतानें
बोलो क्या प्रतिभूति तुम्हारे
घर जीवन की माने
क्या सोचा है तुम्हे
छोड़कर बाकी सब मर
जायें
क्या बल है तुममें जो तुमसे"
नर भक्षी" डर जायें
अपने बाद हवाले जर घर अब
किसके धरते हो
??
मत भूलो अब तुम्हें चबाकर
कोई खा सकता है
याद रखो आजाद देश है
जन की प्रभुसत्ता है
भूल न जाना घर के भीतर से
भी वे खींचेंगे
पाल रहे हो भय के भेड़िये
लहू शहर सींचेंगे
तुम संवेदन हीन हुये
विप्लव की ओर बहते हो
कौन खा रहा मुल्क बताओ
तुम खुद क्या करते
हो
©®Sudha Raje
Sudha Raje
घर के भीतर बहू
बेटियाँ हों तो विष
भी रखना
बाहर कहीं जाओ तो लुटने
का साहस भी रखना
बुरी लगी क्या??
खरी बात है,
अब चर्चायें छोड़ो
छल बल प्रबल
सबल हो लें ये
घूँघट दरपन तोड़ो
उठो अगर जो मरे नहीं हो
ज़ान ज़िग़र रखते हो???
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते हो
©®
Sudha Raje
कैसे सो जाते हो चैन से
गली गली जलती है
सरकारी भवनों में
केवल
लाठी की चलती है
धर्म
क्लीबता सिखलाता है
औ नेतृत्व पलायन
कुंद हो हो गये
मसि जीवी
मुहँ देखा कामुक गायन
नौजवान हैवान हो रहे
वृद्ध गीध मरते हो
कौन खा रहा मुल्क बताओ
तुम खुद क्या करते
हो
©®Sudha Raje
गाल बजाता फिरे
प्रशासन
लाशों पर संभाषण
हुये खबरची बस बिचौलिये
रिश्वत का अनुशासन
लक्ष्य हुये
गाड़ी बंगले,यंत्रों का जमघट
लिप्सा
शिक्षा हो गयी
महज दलाली
धिग् तन सुख्ख जुगुप्सा
राजनीति की गिरती मीनारों में
क्यों रहते हो
कौन खा रहा मुल्क़
बताओ तुम खुद क्या करते
हो ©®
Sudha Raje
क्यों न मार ही डालो चुन
चुन कोख छिपी हर माता
नारि देह को श्वान
झिंझोड़ें
मारो कन्या दाता
हा हा कार अपार
सुनो हर ओर गूँजकर रोता
कहाँ मर गया ईश्वर नर तू
काश
कि नारी होता
पुरूष राक्षस दैत्य हुआ
जगदीश!!! ये क्यों सहते हो
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते हो ©®
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Sudha Raje
आग लगी जी करता है
अब फिर शिकार सा खेलूँ
कोंच भून कर मारूँ नरपशु
फिर बंदूकें ले लूँ
बाँटो अब हथियार
प्यार की बोली
गाना छोड़ो
तोड़ो कारा
जननी खाते
असुर भाल अब फोड़ो
कायरता है तब विधान
जब
लज्जा पट दहते हों
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते
हो
©®Sudha
Sudha Raje
इन घावों की एक दवा है
भद्रकालि का नर्तन
प्रलय सन्निकट अहा!!!
विश्व आडंबर तेरा विसर्जन
रक्तबीज का रक्त पान
ही कर
करालिके नारी
जाग जाग अब जाग मृत्यु
भारत भू रो धिक्कारी
आज कलम ही नहीं
धरा भी जले आग धरते
हो
कौन खा रहा मुल्क
बताओ तुम खुद क्या करते
हो ©®Sudha raje
1
राजनीति के सर्प कुचल कर
राष्ट्र भक्त अब मारें
धिक्कारें दिल्ली से
विलायत तक
इनको धिक्कारें
सुविधा भोगी कोढ़ देश के
तख्तो ताज़ बदल दो
इंक़लाब की आवाजों से
अंधा राज बदल दो
बदलो आज विधायन झूठे
जो जन धन हरते हों
कौन खा रहा मुल्क़ बताओ
तुम खुद क्या करते हो?
®©Sudha Raje
December 18
Dec 26, 2012
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