कविता

आधी दुनियाँ के रंगों की तसवीर
बदलनी ही होगी ।
औरत ज़िल्लत है ज़ुल्मो सितम तक़दीर
बदलनी ही होगी ।
उनवान बदलने ही होंगे जो जो कमतर
दिखलाते है
सामान बदलना ही होगा जंज़ीर
पिघलनी ही होगी ।
हर सहर खुली साँसें हर शब
मुट्ठी भर हँसी ख़ुशी हर घर ।
बाँहों भर अपना पन ज़ी भर ।तदबीर
बदलनी ही होगी ।
क्यों कहे सुधा बदक़िस्मत हूँ
औरत हूँ तो क्या ज़िंन्दा शै हूँ
क्यों हमें बनाया क़ुदरत ने
ये पीर बदलनी ही होगी
©®सुधा राज

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