गीत
Sudha Raje wrote a new note:
प्रेम गीत भी लिख्खूँगी वनवास लिखूँगी .
Sudha Raje
हाँ मैं तुम पर प्रेमगीत भी
लिखे जाऊँगी
लेकिन पहले जीवन का
इतिहास लिखूँगी
तुम ने जो उपकार किये
वो शिरोधार्य हैं
खारे जल में सीपी की
मैं प्यास लिखूँगी
दानवस्तु थी मिली मुझे
अधिकार कहाँ थे
पोषण के शोषण अपने
उपवास लिखूँगी
शरण और ये वरण
प्रेम आवरण मरण भी
प्यासे सावन पतझङ के
मधुमास लिखूँगी
पारिश्रमिक मुझे क्या
मिलता
गृहचालन का
तन मन धन जो किया
उसे वनवास लिखूँगी
शब्द प्रेम के डूबे मधुर
गीत लिख्खूँगी
अक्षर अक्षर पीङा भय
दुःख त्रास लिखूँगी
कुछ पल के आलिंगन वे
उद्दाम अँधेरे
फिर वो रूका विरह
का सत्यप्रकाश लिखूँगी
लिख्खूँगी जो तुमने
मेरी देह पे लिख्खा
वो जो मेरे मन पर
लिखा प्रवास लिखूँगी
लिख्खूँगी वह स्वेद
बहाया बाहर तुमने
अपने बहते रक्त
हृदय का त्रास लिखूँगी
मुझ पर किये भरोसे
आशायें जो टूटीं
मैं अपना वो खण्ड
खण्ड विश्वास लिखूँगी
सुधा वारूणी गरल तरल
अहि छल लोचन जल
दुखते तन मन घाव
हर्ष निःश्वाँस लिखूँगी
वो निवास रक्षा जो दी
वो भी लिख्खूँगी
छीनी जो उङान
मेरा आकाश लिखूँगी
तुमने जो वरदान और
संतान दिये सब
मैंने जो दी है दुआये
सन्यास लिखूँगी
हाँ तुम मेरे हुये मुझे
चाहा अपनाया
मुझमें से जो जो काटा
वो ह्रास लिखूँगी
हाँ मैं थी मोहित
अनंत सपनों पर अपने
साहचर्य ये पथरोह
पटवास लिखँगी
©®¶©®¶SUDHA Raje
?
Jan 21
प्रेम गीत भी लिख्खूँगी वनवास लिखूँगी .
Sudha Raje
हाँ मैं तुम पर प्रेमगीत भी
लिखे जाऊँगी
लेकिन पहले जीवन का
इतिहास लिखूँगी
तुम ने जो उपकार किये
वो शिरोधार्य हैं
खारे जल में सीपी की
मैं प्यास लिखूँगी
दानवस्तु थी मिली मुझे
अधिकार कहाँ थे
पोषण के शोषण अपने
उपवास लिखूँगी
शरण और ये वरण
प्रेम आवरण मरण भी
प्यासे सावन पतझङ के
मधुमास लिखूँगी
पारिश्रमिक मुझे क्या
मिलता
गृहचालन का
तन मन धन जो किया
उसे वनवास लिखूँगी
शब्द प्रेम के डूबे मधुर
गीत लिख्खूँगी
अक्षर अक्षर पीङा भय
दुःख त्रास लिखूँगी
कुछ पल के आलिंगन वे
उद्दाम अँधेरे
फिर वो रूका विरह
का सत्यप्रकाश लिखूँगी
लिख्खूँगी जो तुमने
मेरी देह पे लिख्खा
वो जो मेरे मन पर
लिखा प्रवास लिखूँगी
लिख्खूँगी वह स्वेद
बहाया बाहर तुमने
अपने बहते रक्त
हृदय का त्रास लिखूँगी
मुझ पर किये भरोसे
आशायें जो टूटीं
मैं अपना वो खण्ड
खण्ड विश्वास लिखूँगी
सुधा वारूणी गरल तरल
अहि छल लोचन जल
दुखते तन मन घाव
हर्ष निःश्वाँस लिखूँगी
वो निवास रक्षा जो दी
वो भी लिख्खूँगी
छीनी जो उङान
मेरा आकाश लिखूँगी
तुमने जो वरदान और
संतान दिये सब
मैंने जो दी है दुआये
सन्यास लिखूँगी
हाँ तुम मेरे हुये मुझे
चाहा अपनाया
मुझमें से जो जो काटा
वो ह्रास लिखूँगी
हाँ मैं थी मोहित
अनंत सपनों पर अपने
साहचर्य ये पथरोह
पटवास लिखँगी
©®¶©®¶SUDHA Raje
?
Jan 21
Comments
Post a Comment