स्त्री और समाज
दामाद के पाँव छूने और देवर और
छोटी ननद के भी पाँव छूने
की परंपरा ग़लत है ।
मामा द्वारा भांजों के पैर छूने
की परंपरा भी ग़लत है
कई प्रांतों में ये परंपरा है ।
कारण???
क्या आप अपने पिता दादा नाना और
माता नानी दादी से अपने पाँव छुआकर
उनको
आशीर्वीद
देंगे कि
जाओ खुश रहो?????
संगिनी अगर शरीर का आधा हिस्सा है
और
ससुर सास को पिता माता कहती है
तब जामाता या जँवाई या दामाद
केवल पुत्र ही है
बहू पुत्री है
father in law
mother in law
जो धर्म से पिता धर्म से माता हैं ।
इसी दुष्ट कुप्रथा में दबे है स्त्री के
अपमान के बीज
यानि बेटी पैदा करने पर एक
दंपत्ति को ।
एक तिगुनी छोटी आयु तक के युवक के पाँव
हर मुलाकात पर छूने पङेंगे?
जवान युवक के जूतों की धूल माथे पर
रगङनी पङेगी???
क्या आशीर्वाद देगा जामाता????
जाओ
धर्मपिता माता
डरो मत
आपकी पुत्री को दुख नहीं दूँगा???
स्त्री के ससुराल के सब
सुखो की गारंटी है कि सब लङकी वाले
लङकी के वर के पैरो पर नाक रगङते
रहें???
पूरे विश्व की किसी संस्कृति में
ऐसी अपमान जनक कुप्रथा नहीं है ।
मुसलिम वर निकाह के बाद सब
बङों को सलामी देता है और दुआयें लेता है
ईसाई वर भी सब बङो को समान रूप से
प्रणाम करके आशीर्वीद लेता है ।
राजस्थान पश्चिमी पूर्वी उत्तरप्रदेश
और सारे भारत में यही परंपरा है कि
जो भी आयु और रिश्ते में बङा है
वही आशीर्वाद देने का अधिकारी है ।
विवाह के बाद
लङकी का संगी आधा अंग होने से
आधा पुत्र तो सास ससुर
का भी हो जाता है
यही शास्त्रोचित भी है ।
जो जो युवक पढ़े लिखे होकर
भी अपनी सासमाता ससुरपिता ।
संगिनी के बङे भाई बङी बहिन
बङी भाभी मामा मामी चाचा चाची फू
मौसा मौसी दादा दादी नाना नानी
ताऊ ।
और
बङे पङौसियों तक
से पाँव छुआकर खुश होते है
वे गुजरात
बिहार
राजस्थान
दक्षिण भारत
महाराष्ट्र
पंजाब
हरियीणा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
पूर्वी उत्तरप्रदेश
झारखंड
और बंगाल
तक आ जा कर देखें पता करें
कि
विवाह के बाद स्त्री पुरुष
को
एक व्यक्ति ही माना गया है
यह
लैंगिक हिंसा का एक क्रूर रिवाज़ है
जहाँ जँवाई पुत्र नहीं ""दशवाँ ग्रह""
मान कर सब जँवाई के पाँव पूजते रहते है
अशिक्षित तो खैर बेबस हैं कि शिक्षित
लोग????
गलत तो गलत है न??
साठ साल की बूढ़ी माँ पच्चीस साल के
नौजवान के पाँवों में झुकती है तब
क्या युवक को नहीं महसूस होनी चाहिये
कि ये मेरी माँ है मैं इसे
माँ कहता भी तो हूँ!!!!
तब
नब्बे साल के बाबा पैरों में झुकते है
जिनको बब्बा कहता भी है परंतु शरम
नहीं आती कि मेरा कर्त्तव्य तो इन
बुजुर्गों के चरण दबाना आशीष
लेना है???
यानि ससुराल में जामाता को आशीष
नहीं मिलता बल्कि सब पूजते हैं कि पाँव
पङे है जँवाई ग्रह कभी बिटिया को दुख
मत देना ।बंद कीजिये जरा भी ज़मीर है
तो तत्काल बंद कीजिय
छोटी ननद के भी पाँव छूने
की परंपरा ग़लत है ।
मामा द्वारा भांजों के पैर छूने
की परंपरा भी ग़लत है
कई प्रांतों में ये परंपरा है ।
कारण???
क्या आप अपने पिता दादा नाना और
माता नानी दादी से अपने पाँव छुआकर
उनको
आशीर्वीद
देंगे कि
जाओ खुश रहो?????
संगिनी अगर शरीर का आधा हिस्सा है
और
ससुर सास को पिता माता कहती है
तब जामाता या जँवाई या दामाद
केवल पुत्र ही है
बहू पुत्री है
father in law
mother in law
जो धर्म से पिता धर्म से माता हैं ।
इसी दुष्ट कुप्रथा में दबे है स्त्री के
अपमान के बीज
यानि बेटी पैदा करने पर एक
दंपत्ति को ।
एक तिगुनी छोटी आयु तक के युवक के पाँव
हर मुलाकात पर छूने पङेंगे?
जवान युवक के जूतों की धूल माथे पर
रगङनी पङेगी???
क्या आशीर्वाद देगा जामाता????
जाओ
धर्मपिता माता
डरो मत
आपकी पुत्री को दुख नहीं दूँगा???
स्त्री के ससुराल के सब
सुखो की गारंटी है कि सब लङकी वाले
लङकी के वर के पैरो पर नाक रगङते
रहें???
पूरे विश्व की किसी संस्कृति में
ऐसी अपमान जनक कुप्रथा नहीं है ।
मुसलिम वर निकाह के बाद सब
बङों को सलामी देता है और दुआयें लेता है
ईसाई वर भी सब बङो को समान रूप से
प्रणाम करके आशीर्वीद लेता है ।
राजस्थान पश्चिमी पूर्वी उत्तरप्रदेश
और सारे भारत में यही परंपरा है कि
जो भी आयु और रिश्ते में बङा है
वही आशीर्वाद देने का अधिकारी है ।
विवाह के बाद
लङकी का संगी आधा अंग होने से
आधा पुत्र तो सास ससुर
का भी हो जाता है
यही शास्त्रोचित भी है ।
जो जो युवक पढ़े लिखे होकर
भी अपनी सासमाता ससुरपिता ।
संगिनी के बङे भाई बङी बहिन
बङी भाभी मामा मामी चाचा चाची फू
मौसा मौसी दादा दादी नाना नानी
ताऊ ।
और
बङे पङौसियों तक
से पाँव छुआकर खुश होते है
वे गुजरात
बिहार
राजस्थान
दक्षिण भारत
महाराष्ट्र
पंजाब
हरियीणा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
पूर्वी उत्तरप्रदेश
झारखंड
और बंगाल
तक आ जा कर देखें पता करें
कि
विवाह के बाद स्त्री पुरुष
को
एक व्यक्ति ही माना गया है
यह
लैंगिक हिंसा का एक क्रूर रिवाज़ है
जहाँ जँवाई पुत्र नहीं ""दशवाँ ग्रह""
मान कर सब जँवाई के पाँव पूजते रहते है
अशिक्षित तो खैर बेबस हैं कि शिक्षित
लोग????
गलत तो गलत है न??
साठ साल की बूढ़ी माँ पच्चीस साल के
नौजवान के पाँवों में झुकती है तब
क्या युवक को नहीं महसूस होनी चाहिये
कि ये मेरी माँ है मैं इसे
माँ कहता भी तो हूँ!!!!
तब
नब्बे साल के बाबा पैरों में झुकते है
जिनको बब्बा कहता भी है परंतु शरम
नहीं आती कि मेरा कर्त्तव्य तो इन
बुजुर्गों के चरण दबाना आशीष
लेना है???
यानि ससुराल में जामाता को आशीष
नहीं मिलता बल्कि सब पूजते हैं कि पाँव
पङे है जँवाई ग्रह कभी बिटिया को दुख
मत देना ।बंद कीजिये जरा भी ज़मीर है
तो तत्काल बंद कीजिय
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