स्त्री और समाज -4

स्त्री
के ऊपर जितने भी दैवत्व और
दैयत्यत्व के
नारे उपदेश कथक मिथक
लिखे गये
सब प्रायः नर ने लिखे
अब
लिखे यूँ कि
स्त्री को मातृत्व और
रसोई
भोजन परिरक्षण संरक्षण
में बाँध फाँस कर वंचित कर
दिया
धर्म से अध्ययन से अध्यापन
से
पर्यटन से
चिंतन से
जब एक पुरूष खा पी कर
दाँत
कुरेदता डकारता आराम
कर रहा होता
चूल्हा चक्की पानी सानी से
थकी स्त्री
पाँव दबाने पंखा झलने और
मालिश करने पर
लगा दी जाती
जब पुरूष सो जाता तो
सिलना पिरोना काढ़ना बुनना कातना
अटेरना रँगना धोना सुखाना फटकना
छानना पीसना कूटना
बच्चे
लोरी सफाई पालना
और
जब थक कर चूर चूर हो जाये
तब तक पुरूष
फिर तैयार सेवायें
शूद्र और स्त्री
समाज
के वे जीव रहे जिन्हें
गधे घोङे बैल बकरी से
भी गया बीता रखा गया
और
जहाँ किसी को होश
आया
मसलन
सवर्ण महिलाओं
को तो देवी की प्रतिमा बनाकर
आत्मोत्पीङन
की पराकाष्ठा तक
वीभत्स आत्माभिमान्
का शिकार किया इस
आतंक का परिणाम
बालविवाह
सती प्रथा ऑनर किलिंग
का सिलसिला बना
क्रमशः------
Sudha Raje
Jan
29

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