कविता:- तृप्ति केवल एक भ्रम है
Sudha Raje wrote a new note:
Sudha RajeSudha Rajeतृप्ति केवल एक
भ्रम हैहै तृषा ही सत्य मानवमात्र
का जीवन स्वयम हैतीक्ष्णता की तीव...
Sudha Raje
Sudha Raje
तृप्ति केवल एक भ्रम है
है तृषा ही सत्य मानव
मात्र का जीवन स्वयम है
तीक्ष्णता की तीव्रता ही तो सृजन
का उच्चतम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
जानता है कौन मानव
जन्म से पहले कहाँ था???
लिख गये थे कौन
नर्कों स्वर्ग की कल्पित ये
गाथा!!
है
पुनर्जन्मों सा भी कल्पित
रहस्यों का ये तम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
कौन ईश्वर है किसी ने देख
पाया ही नहीँ है
भूर्जपत्रों पर
लिखा देखा वो आया कब
कहीँ है
प्रेम ही की प्यास में
जलता जलाता ये अहम् है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
शून्य से हर बार हुयी प्रारंभ
सारी यात्रायें
कब हुयीं अभिव्यक्तियाँ
सुर शब्द अक्षर मात्रायें
जो हुआ अनुभूत वो ही मधुर
पीङामय अगम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
प्राण के रहते शरीरों में
तृषायें हैं
बुभुक्षा
नीर भोजन वासना सुख से
परे कितनी ही इच्छा
चक्र है
उबलब्धि खोना खोज दुख
सुख शांति क्रम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
पा सका है कौन परमानंद
जो दुख में चरम था
तृप्ति का का अवगाह
पीङा सिंधु डूबा मन धरम
था
पंथ कोई हो तृषा का अंत
पीङा सिंधु शम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
सोच में अनुभूत गहरे देख ये
अस्तित्व क्या है
एक मुट्ठी धूल से ऊपर
तेरा व्यक्तित्व क्या है
गूढ़ मन से सोच
मिथ्या प्रार्थना पूजा स्वयम्
है
ढोंग हैं तेरे शिवालय तीर्थ
विग्रह जप हवन तप
सत्य से भागे हुये ये धर्म हैं
मंतव्य है कब
आरती पाठों अज़ानों में
कहाँ ये ब्रह्मयम् है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
©®¶©®¶
Sudha Raje
DTa★Bjnr
Mar
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Sudha Raje
सांसारिक लक्ष्य तेरे
नष्टप्रायित संचयी धन
खोज
हारा वानप्रस्थी ज्ञान
प्रस्थी विश्व कण कण
चेतना की ऊर्जा ही वस्तुमय
जग का परम् है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
रूप यौवन शक्ति वैभव
की अहंकृत झूठ लिप्सा
कुंभ जल में जल घङे में भ्रम हुये
उपलब्धि ईप्सा
क्या अभीप्सित है तुझे
कब ज्ञात लाभित शिव
शुभम् है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
©®¶©®¶
Sudha.Raje
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भ्रम हैहै तृषा ही सत्य मानवमात्र
का जीवन स्वयम हैतीक्ष्णता की तीव...
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है तृषा ही सत्य मानव
मात्र का जीवन स्वयम है
तीक्ष्णता की तीव्रता ही तो सृजन
का उच्चतम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
जानता है कौन मानव
जन्म से पहले कहाँ था???
लिख गये थे कौन
नर्कों स्वर्ग की कल्पित ये
गाथा!!
है
पुनर्जन्मों सा भी कल्पित
रहस्यों का ये तम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
कौन ईश्वर है किसी ने देख
पाया ही नहीँ है
भूर्जपत्रों पर
लिखा देखा वो आया कब
कहीँ है
प्रेम ही की प्यास में
जलता जलाता ये अहम् है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
शून्य से हर बार हुयी प्रारंभ
सारी यात्रायें
कब हुयीं अभिव्यक्तियाँ
सुर शब्द अक्षर मात्रायें
जो हुआ अनुभूत वो ही मधुर
पीङामय अगम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
प्राण के रहते शरीरों में
तृषायें हैं
बुभुक्षा
नीर भोजन वासना सुख से
परे कितनी ही इच्छा
चक्र है
उबलब्धि खोना खोज दुख
सुख शांति क्रम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
पा सका है कौन परमानंद
जो दुख में चरम था
तृप्ति का का अवगाह
पीङा सिंधु डूबा मन धरम
था
पंथ कोई हो तृषा का अंत
पीङा सिंधु शम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
सोच में अनुभूत गहरे देख ये
अस्तित्व क्या है
एक मुट्ठी धूल से ऊपर
तेरा व्यक्तित्व क्या है
गूढ़ मन से सोच
मिथ्या प्रार्थना पूजा स्वयम्
है
ढोंग हैं तेरे शिवालय तीर्थ
विग्रह जप हवन तप
सत्य से भागे हुये ये धर्म हैं
मंतव्य है कब
आरती पाठों अज़ानों में
कहाँ ये ब्रह्मयम् है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
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चेतना की ऊर्जा ही वस्तुमय
जग का परम् है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
तृप्ति केवल एक भ्रम है
रूप यौवन शक्ति वैभव
की अहंकृत झूठ लिप्सा
कुंभ जल में जल घङे में भ्रम हुये
उपलब्धि ईप्सा
क्या अभीप्सित है तुझे
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शुभम् है
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