कविता :साल गया साल

साल गया साल
ज़ी का जंजाल
सपने मत पाल
मन को है काल
जन जन बेहाल
साल गया साल
जीवन की ढाल
तन को पौसाल
चलना हर हाल
साल गया साल
क्यों बजते गाल
दिल की निकाल
शब्दों के जाल
साल गया साल
कविता गुलाल
आखर सवाल
भावों के ताल
साल गया साल
वसुधा विकराल
नवधा मुहाल
नैतिक कंगाल
साल गया साल
चुभते मलाल
जलता कवाल
मुश्किल पुआल
साल गया साल
मिलके पर साल
खिलके इम्साल
बालों की खाल
साल गया साल
©®सुधा राजे
Sudha Raje
Dta-Bjnr

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