""मुफतखोर भारतीय।"" सुधा राजे की व्यंग्य रचना।
राष्ट्राध्यक्ष।
एक किताब नहीं एक
संस्था हैं। उनका कथन सही है।
जाति मज़हब पर बंटी भारतीय
राजनीति एक
ही राजनीति करती नज़र आती है वोट
के बदले नोट वोट के बदले सबसिडी वोट
के बदले लैपटॉप वोट के बदले
वज़ीफ़ा वोट के बदले पट्टे वोट के बदले
प्लॉट वोट के बदले आरक्षण।।।यह
समझना होगा कि सरकार किसी अकेले
आदमी का नाम नहीं है।।।सरकार के
पास किसी राजा विक्रमादित्य
का खजाना नहीं है।।
सरकार है कौन?
गाँव सेक्रेटरी पटवारी से लेकर
राष्ट्राध्यक्ष और पंच प्रधान से लेकर
प्रधान मंत्री तक का समूह
ही तो मिलकर सरकार बनाते है ।
ये सरकार पैसा कहाँ से पाती है?
आयकर
भूमिकर
राजस्व
चंदे
विश्ववैंक के कर्ज
मित्र देशों के कर्ज
अनुदान
बिक्रीकर
वादव्यय
और अन्य जनप्राप्तियाँ।
ये एक मोटा आकलन है
सरकार कोई व्यक्ति नही जो सुबह
दुकान पर बैठे और शाम
को मोटी थैली लाकर बच्चों को बाँट दे
।
सरकार के नाम से शामिल हर
व्यक्ति एक इकाई है जो तनख्वाह भत्ते
वेतन भी लेता है ।
चाहे वह गाँव का सरपंच हो या देश
का राष्ट्राध्यक्ष ।
ये एक सरकारी खरचों की श्रंखला है
जो वेतन वाहन भवन सुरक्षा दवाई
भ्रमण और आयोजन सब का खरचा लेते हैं
सरकारी खजाने से ।
ये सरकारी खजाना जनता भरती है ।
वह जनता जिसे आरक्षण वजीफे छूट
सबसिडी नोट कंबल लैपटॉप साईकिल
चैक नहीं मिलते वह जनता भरती है।
भारतीय जनता का एक बङा वर्ग
निकम्मा आलसी और कामचोर तो है
भी नाज़ायज लाभ उठाने की फिराक में
भी लगा रहता है।
एक जरा दरवाजे पर गंदगी है
सरकार करे तो सफाई होगी ।
एक जरा गाँव में बाढ़ आ गयी
सरकारी मुआवजा हर आदमी को चाहिये
चाहे मकान पहले से
ही गिरा पङा था और परवार बरसों से
शहर के पक्के घऱ में रह रहा है।
एक सङक
दुर्घटना हुयी सरकारी मुआवजा चाहिये
चाहे बदतमीज नाबालिग मवाली लङके
स्टंटिग करते खुद जा टकराकर मारे गये
बस से।
कुछ लोग रातों को जानबूझकर सङक पर
सोने लगते हैं ताकि कंबल रजाईय़ाँ मिलें
।
कुछ लोग जानबूझकर आपदा प्रभावित
शिविरों में जाकर रहने लगते हैं
क्योंकि वे कामचोर आलसी नशाखोर
निकम्मे आवारा शराबी जुआरी और
निठल्ले हैं तो जहाँ जितना अपने
वोटर होने अपनी विशेष जाति होने
अपने विशेष मजहब होने के बदले
मुफ्त
पा सकें सङते रहते है मुफ्त पाने के लिये ।
सरकार
पैसा दो ।
फ्री में
सरकार कपङा दो फ्री में ।
सरकार पढ़ाओ
फ्री में
सरकार मकान दो
फ्री में
सरकार खाना दो
फ्री में
सरकार दवाई दो
फ्री में ।
सरकार हज करादो
फ्री में
सरकार तीर्थयात्रा करादो
फ्री में।
सरकार मंदिर मसजिद गिरजे गुरूद्वारे
को चंदा दे दो ।
बदले में तुम क्या करोगे?
मैं???
मैं क्या कर सकता हूँ?!!
मैं तो
फलां जात से हूँ
मैं तो अमुक मजहब से हूँ
मैं तो अमुक स्थान से हूँ
मैं अमुक की संतान हूँ
मुझे सबकुछ मुफ्त चाहिये ।
पैसा कहाँ से आयेगा?
सरकार देगी!
सरकार के पास कहाँ से आयेगा?
वे लोग देगें न जो मेहनत करते हैं
अगर ना दें मुफ्त सुविधायें बदले में
प्रतिदिन आठ घंटे मेहनत करनी पङे तो
??
ऐँ ऐँ ऐँ
तो फिर मैं वोट क्यों दूँ? ?
मेरे कन्ने सात वोट हैँ! !!!
अरे ये बिजली पानी सङक पुल स्कूल
अस्पताल पुल नहरें तालाब """
वो सब मैं नहीं जानता
मेरा
वोट
उसे मिलेगा जो मुफत में सब देगा
ऊपर
से नोट भी देगा
©®सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
प्रकाशनार्थ रचना
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
7669489600
p.s. - प्रकाशनर्थ रचना।
एक किताब नहीं एक
संस्था हैं। उनका कथन सही है।
जाति मज़हब पर बंटी भारतीय
राजनीति एक
ही राजनीति करती नज़र आती है वोट
के बदले नोट वोट के बदले सबसिडी वोट
के बदले लैपटॉप वोट के बदले
वज़ीफ़ा वोट के बदले पट्टे वोट के बदले
प्लॉट वोट के बदले आरक्षण।।।यह
समझना होगा कि सरकार किसी अकेले
आदमी का नाम नहीं है।।।सरकार के
पास किसी राजा विक्रमादित्य
का खजाना नहीं है।।
सरकार है कौन?
गाँव सेक्रेटरी पटवारी से लेकर
राष्ट्राध्यक्ष और पंच प्रधान से लेकर
प्रधान मंत्री तक का समूह
ही तो मिलकर सरकार बनाते है ।
ये सरकार पैसा कहाँ से पाती है?
आयकर
भूमिकर
राजस्व
चंदे
विश्ववैंक के कर्ज
मित्र देशों के कर्ज
अनुदान
बिक्रीकर
वादव्यय
और अन्य जनप्राप्तियाँ।
ये एक मोटा आकलन है
सरकार कोई व्यक्ति नही जो सुबह
दुकान पर बैठे और शाम
को मोटी थैली लाकर बच्चों को बाँट दे
।
सरकार के नाम से शामिल हर
व्यक्ति एक इकाई है जो तनख्वाह भत्ते
वेतन भी लेता है ।
चाहे वह गाँव का सरपंच हो या देश
का राष्ट्राध्यक्ष ।
ये एक सरकारी खरचों की श्रंखला है
जो वेतन वाहन भवन सुरक्षा दवाई
भ्रमण और आयोजन सब का खरचा लेते हैं
सरकारी खजाने से ।
ये सरकारी खजाना जनता भरती है ।
वह जनता जिसे आरक्षण वजीफे छूट
सबसिडी नोट कंबल लैपटॉप साईकिल
चैक नहीं मिलते वह जनता भरती है।
भारतीय जनता का एक बङा वर्ग
निकम्मा आलसी और कामचोर तो है
भी नाज़ायज लाभ उठाने की फिराक में
भी लगा रहता है।
एक जरा दरवाजे पर गंदगी है
सरकार करे तो सफाई होगी ।
एक जरा गाँव में बाढ़ आ गयी
सरकारी मुआवजा हर आदमी को चाहिये
चाहे मकान पहले से
ही गिरा पङा था और परवार बरसों से
शहर के पक्के घऱ में रह रहा है।
एक सङक
दुर्घटना हुयी सरकारी मुआवजा चाहिये
चाहे बदतमीज नाबालिग मवाली लङके
स्टंटिग करते खुद जा टकराकर मारे गये
बस से।
कुछ लोग रातों को जानबूझकर सङक पर
सोने लगते हैं ताकि कंबल रजाईय़ाँ मिलें
।
कुछ लोग जानबूझकर आपदा प्रभावित
शिविरों में जाकर रहने लगते हैं
क्योंकि वे कामचोर आलसी नशाखोर
निकम्मे आवारा शराबी जुआरी और
निठल्ले हैं तो जहाँ जितना अपने
वोटर होने अपनी विशेष जाति होने
अपने विशेष मजहब होने के बदले
मुफ्त
पा सकें सङते रहते है मुफ्त पाने के लिये ।
सरकार
पैसा दो ।
फ्री में
सरकार कपङा दो फ्री में ।
सरकार पढ़ाओ
फ्री में
सरकार मकान दो
फ्री में
सरकार खाना दो
फ्री में
सरकार दवाई दो
फ्री में ।
सरकार हज करादो
फ्री में
सरकार तीर्थयात्रा करादो
फ्री में।
सरकार मंदिर मसजिद गिरजे गुरूद्वारे
को चंदा दे दो ।
बदले में तुम क्या करोगे?
मैं???
मैं क्या कर सकता हूँ?!!
मैं तो
फलां जात से हूँ
मैं तो अमुक मजहब से हूँ
मैं तो अमुक स्थान से हूँ
मैं अमुक की संतान हूँ
मुझे सबकुछ मुफ्त चाहिये ।
पैसा कहाँ से आयेगा?
सरकार देगी!
सरकार के पास कहाँ से आयेगा?
वे लोग देगें न जो मेहनत करते हैं
अगर ना दें मुफ्त सुविधायें बदले में
प्रतिदिन आठ घंटे मेहनत करनी पङे तो
??
ऐँ ऐँ ऐँ
तो फिर मैं वोट क्यों दूँ? ?
मेरे कन्ने सात वोट हैँ! !!!
अरे ये बिजली पानी सङक पुल स्कूल
अस्पताल पुल नहरें तालाब """
वो सब मैं नहीं जानता
मेरा
वोट
उसे मिलेगा जो मुफत में सब देगा
ऊपर
से नोट भी देगा
©®सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
प्रकाशनार्थ रचना
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
7669489600
p.s. - प्रकाशनर्थ रचना।
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