कविता :-अमर होना चाहा
Sudha Raje wrote a new note: Sudha
Rajeअमर होना चाहा मन नेमानवीय आयु
सींमा परअंबर
की भ्रान्ति पालेअपनी ही कल्पना केविश्व
में कल्प...
Sudha Raje
अमर होना चाहा मन ने
मानवीय आयु सींमा पर
अंबर की भ्रान्ति पाले
अपनी ही कल्पना के
विश्व में कल्पित
सुखों का परिकल्पित
संसार बनाकर
सुख से रहना चाहा शरीर
ने
कल्पित
अपनी ही सोचो के
पार्श्व में सुख का वायुमंडल
रंग प्रकृति रचकर
अपनी ही परिकल्पना के
जीवित स्वर्ग में
न
अंबर
न
धरा
न
वातमंडल
न
स्वर्ग
कुछ भी नहीं था सत्य
सत्य था दुख
दुख से मुक्ति की छटपटाहट
लिये
दुख मुक्त होना चाहते मन
को
जकङता गया अंबर
धरती वायु और स्वर्ग
अंततः
स्वयं को हवाले कर दिया
दुख के
छोङ दी सुखेच्छा
अमरेच्छा
तब
लहलहा उठे करूणा के जंगल
और अमर दुख से सुख
ईर्ष्या करने लगे
GOOD
MORNING
शुभ प्रभात्
Feb
16
Rajeअमर होना चाहा मन नेमानवीय आयु
सींमा परअंबर
की भ्रान्ति पालेअपनी ही कल्पना केविश्व
में कल्प...
Sudha Raje
अमर होना चाहा मन ने
मानवीय आयु सींमा पर
अंबर की भ्रान्ति पाले
अपनी ही कल्पना के
विश्व में कल्पित
सुखों का परिकल्पित
संसार बनाकर
सुख से रहना चाहा शरीर
ने
कल्पित
अपनी ही सोचो के
पार्श्व में सुख का वायुमंडल
रंग प्रकृति रचकर
अपनी ही परिकल्पना के
जीवित स्वर्ग में
न
अंबर
न
धरा
न
वातमंडल
न
स्वर्ग
कुछ भी नहीं था सत्य
सत्य था दुख
दुख से मुक्ति की छटपटाहट
लिये
दुख मुक्त होना चाहते मन
को
जकङता गया अंबर
धरती वायु और स्वर्ग
अंततः
स्वयं को हवाले कर दिया
दुख के
छोङ दी सुखेच्छा
अमरेच्छा
तब
लहलहा उठे करूणा के जंगल
और अमर दुख से सुख
ईर्ष्या करने लगे
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