कहानी :पगली पतोहू जो कहानी नहीं कही गयी
Sudha Raje wrote a new note:
पगली पतोहू .
Sudha Raje
काली चौरे पर भीङ
जमा थी वरदी वाले
सिपाही और मैले
कपङों वाले किसान मजदूर
बीच बीच में झपलियाये
जाते बच्चे और कुत्ते
स्त्रियाँ लंबे लंबे घूँघट पर
तीन उँगलियों से दो अंगुल
का झरोखा बनाये दूर से
देख कर वापस घरों में लौट
लौट
जा रहीँ थी चारों ओर
कानाफूसी होते होते
आवाज़ तेज होने
लगती लाल फीते
वाला हवलदार जोर से
डंडा फटकारता और
सन्नाटा खिंच जाता एक
बङे से कच्चे पक्के घर के अंदर
एक झुंड में औरतों के रोने
की आवाज़ आ रही थी
इतने में दोहरे बदन
की मोटी सी प्रौढ़
स्त्री ने आकर सबको जोर
से डाँटा
का है रे!!! काहें इन्ना गटई
फाङ फाङ कै चिंचिंयावत
बाटू तुहन पचन????
जावा आपन आपन घरै
बुझात
बा कौनो महामारी आ
गईल बा
कौनो कार परोजन नाईँ
बा का तुहरे
घराँ उराँ का हो!!!!
तुरंत
बङबङाती हुयी अधिकाँश
औरतें उठ कर चलीँ गयीँ और
कुल चार औरतों के साथ
लीला मौसी एक
अँधेरी कोठरी में
घुसी जहाँ एक
स्त्री जमीन पर
पङी बुरी तरह
रो रही थी और करीब
ही दो नवयुवतियाँ बैठी कभी उसे
पानी तो कभी हवा कर
रहीँ थीँ
मौसी के आते ही बहुयें
भी उठकर बाहर निकल
आयीँ जैसे उन्हें
पता था कि अगर
नहीँ हटी तो डाँटकर
भगा दी जायेंगी
---का रे!! का भईल??? काहैँ
कौनो परानी मुअल
बा का तोहरे पीहर कै????
अरी ओ मंझरिया वाली
तनि सुरती देबू
हो गोङवा पिराये लगल
घुमले घुमले --
अब
रोती हुयी स्त्री चीखकर
लीला मौसी के पैरों में
जा पङी और एक बार फिर
दहाङ मारकर रोने लगी
लेकिन जब मौसी ने धीरे
धीरे थपकना शुरू
किया तो चुप होकर रह रह
कर सिसक उठती
मौसी चुपके से गीली आँखें
पोंछ रहीँ थी और
समझा रहीँ थी
--देख पतोहिया!!
तुहार भतार बा परदेश
मा सासू रहबै नाईँ
कईली
अरूर देवर बाङैंन लईके
कैसे तू कोरट कचहरी जाबू
कैसे थाना अस्पताल
सिपाही वकील करबू????
कपार फूटल नै होत त
इहि घरै नाई अऊती
जै जरि गईल फूटि गईल
टूटि गईल ऊ बतिया फिन
नाईँ आई
बकि ई हा कि फजीहत
जौन तुहार होई तू नाँई
बूझति आटू
हमार बतिया माना चुप
रहा और ऊ बोला जै में
तोहार
तमाशा छीछालेदर न
होखे
एक घंटे बाद
मौसी विजयी मुस्कान से
आँसू पोंछती हुयी बाहर
निकली
काली चौरे से
सिपाही और हवलदार
डंडा सिरहाने रखकर आम
के नीचे खाट पर सो रहे थे
दो आदमी पैर दबा रहे थे
और करीब ही आम के
छिलके ढेर में पङे थे कुछ
बोरियाँ बँधी रखीँ थीँ आम
चावल दाल शहद के डिब्बे
और जेबें
फूली फूली थीँ तभी एक
आदमी हाँफता आया
--मौसी बुलवली है सरकार
और चारों उठकर चल पङे।
एक पक्की दालान पर ऊँचे
तख्त पर
मौसी चेहरा थोङा ढँके
बैठी थी और बिना उस
और देखे
-बैठिये-
सुनते ही सब सामने पङे
मूँढ़ों पर बैठ गये पानी और
मिठाई के साथ
लस्सी दही और कई सारे
व्यञ्जन मेज पर एक
आदमी रख कर ज़मीन पर बैठ
गया दरवाजे के पास
--देखिये दरोगा साहेब
कौन रऊरे के खबर दिये
रहा ई तौ बताये कै परी ।
हमरै गऊँआ कै
नकिया कटौले
बाङा काम कईलस ओकरे
तौ बाद में देखब ई तफ़तीश
तुहार पूरा भईल
कि नाहीँ???
अरे मौसी कैसन
बतिया
? रउरे कहलीँ हम
पूरा कईलीँ
हम तै अईबै नाई चाहत
रहलीँ बकि ई है
बङका साहिब बहूत कङक
बाङैं हुकुम दिहलैं तुरंत
जाबा तौ आयके
परी ऱाउर बतिया ठीकै
होई नै बस हमरै पीछे
कौनो बात
बङका साहिब लगे
नाहिँ जा पाये ई
हमका गारंटी चाहीँ
एक ठौ मजूर गईल लहल
कहलस
हमार मालिक ओकर पतोहू
कै बङा पीटत मारत बाङेँ
बुझात बा परान ले ले लेबेँ __
मौसी बोली
कौनो मुँहझौँसा दाङीजार
होयी जरै मरे वाला
बै तू लोगन! के
जा
एक
सिपाही बोला मौसी ई
मेहरारू लोगन काहेँ
इन्ना रोबत रहलिन???
मौसी से पहले ही हवलदार
बोल उठा
-चुप बुढ़बक
अरे पुलिस देख कै -
औरू काँहैं!!!!
देखला नाँही
मौसी डँटलीँ तै
ओरा गईलीँ सभ्भ!!!
और शाम मौसी फिर उस
कच्चे पक्के बङे से घर में खाने
का टोकरा उठाये पीछे
पीछे चली आ रही एक
स्त्री के साथ छङी उठाये
पहुँच गयीँ
कहाँ बाङू हे पतोहू हई
खयका धय ला हो
लईके भुखाईल बाँटेँ
पाँच बालक थोङी देर
बाद खाना खा रहे थे और
मौसी गरम पानी में काढै
डालकर उससे रह रह कर
सिसकती स्त्री को नहला रहीँ थी ।
गंगाजल पानी में था ।और
कपङों से लहू बह
बह कर नाली में
जा रहा था ।कि नयी धोती का रंग
मौसी की आँखेँ बहू की तरह सुर्ख थीँ
मौसी की भरी आँखें
बहती जा रहीँ थीँ और अब
मौसी धूँआधार
गालियाँ बक रहीँ थीँ
शैतान भी चार घर दिहल होते
किन्ना खसोटले बा हे! ददई
कलजुग आ गईल बा मोर
ईशुर!!!! केकर भरोसा करीँ हे
राम! पतोहू के छुअतैं रँडुआ कै
हथवा नाहीँ जरल हे
भवानी
।। राक्षस बसउले बा हे
महामाई!! तू काहे मेहरारू
बनउली हे काली माई!
बहू को कोरी साङी देकर
मौसी के इशारे पर साथ
आयी मजदूर स्त्री फटे
कपङों का कूङा समेटकर ले
जा रही थी दूर
गङहिया में फेंकने
बहू अचेत पङी थी ।
मौसी थपक
रहीँ रोती और बद्दुआयें दे
रहीँ थी
©®¶©®¶
कुछ दिन बाद
एक बङे खानदान की इज्जत
सही सलामत चमक
रही थी ।
जब चौपाल पर
एक भीमकाय
व्यक्ति बैठा मजदूरों पर
दहाङ रहा था ।
पुरानी बहू मायके
थी हमेशा को ।और
आज्ञाकारी बेटा नयी बहू
लाया था । पागल औरत
को छोङकर ।
Sudha Raje
©®¶©®¶
सुधा राजे
कहानियाँ जो नहीँ कही
Mar 19, 2013
पगली पतोहू .
Sudha Raje
काली चौरे पर भीङ
जमा थी वरदी वाले
सिपाही और मैले
कपङों वाले किसान मजदूर
बीच बीच में झपलियाये
जाते बच्चे और कुत्ते
स्त्रियाँ लंबे लंबे घूँघट पर
तीन उँगलियों से दो अंगुल
का झरोखा बनाये दूर से
देख कर वापस घरों में लौट
लौट
जा रहीँ थी चारों ओर
कानाफूसी होते होते
आवाज़ तेज होने
लगती लाल फीते
वाला हवलदार जोर से
डंडा फटकारता और
सन्नाटा खिंच जाता एक
बङे से कच्चे पक्के घर के अंदर
एक झुंड में औरतों के रोने
की आवाज़ आ रही थी
इतने में दोहरे बदन
की मोटी सी प्रौढ़
स्त्री ने आकर सबको जोर
से डाँटा
का है रे!!! काहें इन्ना गटई
फाङ फाङ कै चिंचिंयावत
बाटू तुहन पचन????
जावा आपन आपन घरै
बुझात
बा कौनो महामारी आ
गईल बा
कौनो कार परोजन नाईँ
बा का तुहरे
घराँ उराँ का हो!!!!
तुरंत
बङबङाती हुयी अधिकाँश
औरतें उठ कर चलीँ गयीँ और
कुल चार औरतों के साथ
लीला मौसी एक
अँधेरी कोठरी में
घुसी जहाँ एक
स्त्री जमीन पर
पङी बुरी तरह
रो रही थी और करीब
ही दो नवयुवतियाँ बैठी कभी उसे
पानी तो कभी हवा कर
रहीँ थीँ
मौसी के आते ही बहुयें
भी उठकर बाहर निकल
आयीँ जैसे उन्हें
पता था कि अगर
नहीँ हटी तो डाँटकर
भगा दी जायेंगी
---का रे!! का भईल??? काहैँ
कौनो परानी मुअल
बा का तोहरे पीहर कै????
अरी ओ मंझरिया वाली
तनि सुरती देबू
हो गोङवा पिराये लगल
घुमले घुमले --
अब
रोती हुयी स्त्री चीखकर
लीला मौसी के पैरों में
जा पङी और एक बार फिर
दहाङ मारकर रोने लगी
लेकिन जब मौसी ने धीरे
धीरे थपकना शुरू
किया तो चुप होकर रह रह
कर सिसक उठती
मौसी चुपके से गीली आँखें
पोंछ रहीँ थी और
समझा रहीँ थी
--देख पतोहिया!!
तुहार भतार बा परदेश
मा सासू रहबै नाईँ
कईली
अरूर देवर बाङैंन लईके
कैसे तू कोरट कचहरी जाबू
कैसे थाना अस्पताल
सिपाही वकील करबू????
कपार फूटल नै होत त
इहि घरै नाई अऊती
जै जरि गईल फूटि गईल
टूटि गईल ऊ बतिया फिन
नाईँ आई
बकि ई हा कि फजीहत
जौन तुहार होई तू नाँई
बूझति आटू
हमार बतिया माना चुप
रहा और ऊ बोला जै में
तोहार
तमाशा छीछालेदर न
होखे
एक घंटे बाद
मौसी विजयी मुस्कान से
आँसू पोंछती हुयी बाहर
निकली
काली चौरे से
सिपाही और हवलदार
डंडा सिरहाने रखकर आम
के नीचे खाट पर सो रहे थे
दो आदमी पैर दबा रहे थे
और करीब ही आम के
छिलके ढेर में पङे थे कुछ
बोरियाँ बँधी रखीँ थीँ आम
चावल दाल शहद के डिब्बे
और जेबें
फूली फूली थीँ तभी एक
आदमी हाँफता आया
--मौसी बुलवली है सरकार
और चारों उठकर चल पङे।
एक पक्की दालान पर ऊँचे
तख्त पर
मौसी चेहरा थोङा ढँके
बैठी थी और बिना उस
और देखे
-बैठिये-
सुनते ही सब सामने पङे
मूँढ़ों पर बैठ गये पानी और
मिठाई के साथ
लस्सी दही और कई सारे
व्यञ्जन मेज पर एक
आदमी रख कर ज़मीन पर बैठ
गया दरवाजे के पास
--देखिये दरोगा साहेब
कौन रऊरे के खबर दिये
रहा ई तौ बताये कै परी ।
हमरै गऊँआ कै
नकिया कटौले
बाङा काम कईलस ओकरे
तौ बाद में देखब ई तफ़तीश
तुहार पूरा भईल
कि नाहीँ???
अरे मौसी कैसन
बतिया
? रउरे कहलीँ हम
पूरा कईलीँ
हम तै अईबै नाई चाहत
रहलीँ बकि ई है
बङका साहिब बहूत कङक
बाङैं हुकुम दिहलैं तुरंत
जाबा तौ आयके
परी ऱाउर बतिया ठीकै
होई नै बस हमरै पीछे
कौनो बात
बङका साहिब लगे
नाहिँ जा पाये ई
हमका गारंटी चाहीँ
एक ठौ मजूर गईल लहल
कहलस
हमार मालिक ओकर पतोहू
कै बङा पीटत मारत बाङेँ
बुझात बा परान ले ले लेबेँ __
मौसी बोली
कौनो मुँहझौँसा दाङीजार
होयी जरै मरे वाला
बै तू लोगन! के
जा
एक
सिपाही बोला मौसी ई
मेहरारू लोगन काहेँ
इन्ना रोबत रहलिन???
मौसी से पहले ही हवलदार
बोल उठा
-चुप बुढ़बक
अरे पुलिस देख कै -
औरू काँहैं!!!!
देखला नाँही
मौसी डँटलीँ तै
ओरा गईलीँ सभ्भ!!!
और शाम मौसी फिर उस
कच्चे पक्के बङे से घर में खाने
का टोकरा उठाये पीछे
पीछे चली आ रही एक
स्त्री के साथ छङी उठाये
पहुँच गयीँ
कहाँ बाङू हे पतोहू हई
खयका धय ला हो
लईके भुखाईल बाँटेँ
पाँच बालक थोङी देर
बाद खाना खा रहे थे और
मौसी गरम पानी में काढै
डालकर उससे रह रह कर
सिसकती स्त्री को नहला रहीँ थी ।
गंगाजल पानी में था ।और
कपङों से लहू बह
बह कर नाली में
जा रहा था ।कि नयी धोती का रंग
मौसी की आँखेँ बहू की तरह सुर्ख थीँ
मौसी की भरी आँखें
बहती जा रहीँ थीँ और अब
मौसी धूँआधार
गालियाँ बक रहीँ थीँ
शैतान भी चार घर दिहल होते
किन्ना खसोटले बा हे! ददई
कलजुग आ गईल बा मोर
ईशुर!!!! केकर भरोसा करीँ हे
राम! पतोहू के छुअतैं रँडुआ कै
हथवा नाहीँ जरल हे
भवानी
।। राक्षस बसउले बा हे
महामाई!! तू काहे मेहरारू
बनउली हे काली माई!
बहू को कोरी साङी देकर
मौसी के इशारे पर साथ
आयी मजदूर स्त्री फटे
कपङों का कूङा समेटकर ले
जा रही थी दूर
गङहिया में फेंकने
बहू अचेत पङी थी ।
मौसी थपक
रहीँ रोती और बद्दुआयें दे
रहीँ थी
©®¶©®¶
कुछ दिन बाद
एक बङे खानदान की इज्जत
सही सलामत चमक
रही थी ।
जब चौपाल पर
एक भीमकाय
व्यक्ति बैठा मजदूरों पर
दहाङ रहा था ।
पुरानी बहू मायके
थी हमेशा को ।और
आज्ञाकारी बेटा नयी बहू
लाया था । पागल औरत
को छोङकर ।
Sudha Raje
©®¶©®¶
सुधा राजे
कहानियाँ जो नहीँ कही
Mar 19, 2013
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