कविता :-रही उमरिया थोङी
Sudha Raje
Feb 24 ·
मोती मोती पीर
पिरोयी सूत्र
रेशमी गोयी
स्मृतियों की मंजूषा में
मौन मखमली सोयी
ले जीवन ये मुक्तामाला
पहनी थी अब छोङी
रही उमरिया थोङी
सुधा सिंधु में बिंदु रही मैं
गरल वारूणी संग बही मैं
रही अनकही कही सही मैं
मथे सिंधु कोई तो ले ले
रस पीयूष निचोङी
रही उमरिया थोङी
कर जाती मैं पर्वत नीचे
रही वेदना नैना मींचे
करूण व्यथा ये कथा समेटी
बिखरी कवित् निगोङी
रही उमरिया थोङी
शिशुपन तैरे सरित जलाशय
कौन समझता मुझे सदाशय
जगत् स्वार्थ पर रखी प्रतिज्ञा
दिये प्राण ना तोङी
रही उमरिया थोङी
मैंने चाहा छाँव बसा दूँ
कहीँ प्रेम के गाँव बसा दूँ
पाँव काट ले गये अहेरी
रहे नयन इक जोङी
©®¶©®¶
Sudha Raje
Mar 12, 2013
Feb 24 ·
मोती मोती पीर
पिरोयी सूत्र
रेशमी गोयी
स्मृतियों की मंजूषा में
मौन मखमली सोयी
ले जीवन ये मुक्तामाला
पहनी थी अब छोङी
रही उमरिया थोङी
सुधा सिंधु में बिंदु रही मैं
गरल वारूणी संग बही मैं
रही अनकही कही सही मैं
मथे सिंधु कोई तो ले ले
रस पीयूष निचोङी
रही उमरिया थोङी
कर जाती मैं पर्वत नीचे
रही वेदना नैना मींचे
करूण व्यथा ये कथा समेटी
बिखरी कवित् निगोङी
रही उमरिया थोङी
शिशुपन तैरे सरित जलाशय
कौन समझता मुझे सदाशय
जगत् स्वार्थ पर रखी प्रतिज्ञा
दिये प्राण ना तोङी
रही उमरिया थोङी
मैंने चाहा छाँव बसा दूँ
कहीँ प्रेम के गाँव बसा दूँ
पाँव काट ले गये अहेरी
रहे नयन इक जोङी
©®¶©®¶
Sudha Raje
Mar 12, 2013
Comments
Post a Comment