अकविता:बारूद के आदमी3

Sudha Raje
हमने वह बचपन देखा है जब सैनिक गाँव
आता था तो गाँव वाले दावत पर बुलाते
थे ।
सैनिक सङक से निकलते थे तो शिक्षक
मातापिता खुद भी जयहिंद कहकर
अभिवादन करते अजनबी सैनिक का और
हम बच्चों को भी कहते
फौजी भैया जा रहे हैं जयहिंद कहो ।
वह संस्कार आज फिर चाहिये ।
जब कोई युवक सेना में भरती होने
को सबसे पहले आवेदन दे सबसे बाद में
नहीं ।
जब हर नौजवान तैयारी करे
सेना की फिटनेस पाने की ।
जब कोई युवा सेना में भरती हो तो लोग
उस परिवार को सिर आँखों पर बिठा लें

सैनिक के हर वाहन हर साईकिल बाईक
और मकान पर लिखा हो "सैनिक "और जब
सैनिक शहीद हो तो सारा गाँव एक
दिन शोक मनाये और सैनिक के परिवार
को आजीवन सम्मान दे ।
©®सुधा राजे
Yesterday at 10:20am

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