कविता :प्रेम शाश्वत था है और रहेगा
Sudha Raje wrote a new note:
Sudha Rajeआज हो पहले प्रेम शाश्वत
हैथा और रहेगाप्रेम मुक्त था है और
रहेगाप्रेम सहस्त्र रूपा है था और...
Sudha Raje
आज हो पहले प्रेम शाश्वत है
था और रहेगा
प्रेम मुक्त था है और रहेगा
प्रेम सहस्त्र रूपा है था और
रहेगा
समाज कानून नियम
रिवाज और दंड
प्रेम को न पहले रोक पाये न
आज रोक पाते है
ना कभी रोक पायेंगे
विराट् है प्रेम
विकराल है प्रेम
असीम उद्दाम और
अपरिभाषित है प्रेम
प्रेम का होना
किसी पिंड अस्तित्व
आकार माप रूप रस शब्द गंध
स्पर्श स्वाद स्वर
का आश्रयित नहीं है
प्रेम हृदय की सीमा नही
मस्तिष्क का विस्तार
नहीं
चिंतन का गुंफन नहीं
ना ही गहराई है
अभिव्क्ति की ना उङान
है कल्पना की
यह है होना
बस होना
सर्वांग संपूर्ण का होना
प्रेम जिजीविषा है
प्रेम दुस्साहस है
प्रेम महाविस्फोट है
प्रेम महाविसर्जन है
प्रेम प्रसव पीङा है
प्रेम निरंतर संघर्ष है
जो
प्रेमी है
वो सोचे जाने अनुभूत करे
माने
वह प्रेमी ही जन्मा
पालने से हर प्रेम
ममता वात्सल्य की पुकार
पर किलकता प्रेमी
प्रेमी जन्म से ही प्रेमी है
घुटनों के
विहँसता पंछी शिशु
श्वान शावक सुमन
सुरभि मिट्टी माखन
मटकी मैया नदिया पानी बादल
गागर तितली भँवरे दीप
चंद्रमा सूरज तारे
हवा छौने खिलौने
सबको पाकर
किलकता बिछुङकर
बिलखता प्रेमी
रस विरह का
रस आनंद मिलन का
प्रेमी जन्मजात प्रेमी है
हाँ किसी सिद्ध
भविष्यवक्ता की तरह मैं
बता सकती हूँ कि ये बालक
ये बालिका
ये शिशु एक प्रेमी है
उसे प्यार होता है
खिलौनों से
सृजन से
वह जन्मजात कलाविज्ञ है
उसे किसी व्याकरण
की जरूरत नहीं
उसमें तो प्रेम है
औऱ हरबार
उसकी अभिव्यक्तियों को
वैयाकरणिक
पारिभाषित करने को नये
प्रमेय प्रतिमान रचेंगे
जब
एक जन्मजात
प्रेमी को दूसरा जन्मजात
प्रेमी मिल जाये तो वह
ईश्वर
की पूरी प्रतिमा हो जाता है
लेकिन ईश्वर
नही चाहता कि पूर्णता हो क्योंकि
प्रेम
की पूर्णता
ईश का विग्रह विलय
विसर्जन है
औऱ
ये प्रेमी ईश
की सत्ता की महाकृति
जिन्हें
मानव मन
ईश का अवतार कह दे क्या
प्रेम को हमेशा कोई पात्र
चाहिये जिसपर वो बरसे
मनुज हो या कविता
चित्र या कोई पत्थर
हाँ मैं प्रेम हूँ
प्रेमसुधा
ईश ने अमृत यूँ छिपाया
©®¶©®¶Sudha Raje
Datia**Bijnor
Jan
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Sudha Rajeआज हो पहले प्रेम शाश्वत
हैथा और रहेगाप्रेम मुक्त था है और
रहेगाप्रेम सहस्त्र रूपा है था और...
Sudha Raje
आज हो पहले प्रेम शाश्वत है
था और रहेगा
प्रेम मुक्त था है और रहेगा
प्रेम सहस्त्र रूपा है था और
रहेगा
समाज कानून नियम
रिवाज और दंड
प्रेम को न पहले रोक पाये न
आज रोक पाते है
ना कभी रोक पायेंगे
विराट् है प्रेम
विकराल है प्रेम
असीम उद्दाम और
अपरिभाषित है प्रेम
प्रेम का होना
किसी पिंड अस्तित्व
आकार माप रूप रस शब्द गंध
स्पर्श स्वाद स्वर
का आश्रयित नहीं है
प्रेम हृदय की सीमा नही
मस्तिष्क का विस्तार
नहीं
चिंतन का गुंफन नहीं
ना ही गहराई है
अभिव्क्ति की ना उङान
है कल्पना की
यह है होना
बस होना
सर्वांग संपूर्ण का होना
प्रेम जिजीविषा है
प्रेम दुस्साहस है
प्रेम महाविस्फोट है
प्रेम महाविसर्जन है
प्रेम प्रसव पीङा है
प्रेम निरंतर संघर्ष है
जो
प्रेमी है
वो सोचे जाने अनुभूत करे
माने
वह प्रेमी ही जन्मा
पालने से हर प्रेम
ममता वात्सल्य की पुकार
पर किलकता प्रेमी
प्रेमी जन्म से ही प्रेमी है
घुटनों के
विहँसता पंछी शिशु
श्वान शावक सुमन
सुरभि मिट्टी माखन
मटकी मैया नदिया पानी बादल
गागर तितली भँवरे दीप
चंद्रमा सूरज तारे
हवा छौने खिलौने
सबको पाकर
किलकता बिछुङकर
बिलखता प्रेमी
रस विरह का
रस आनंद मिलन का
प्रेमी जन्मजात प्रेमी है
हाँ किसी सिद्ध
भविष्यवक्ता की तरह मैं
बता सकती हूँ कि ये बालक
ये बालिका
ये शिशु एक प्रेमी है
उसे प्यार होता है
खिलौनों से
सृजन से
वह जन्मजात कलाविज्ञ है
उसे किसी व्याकरण
की जरूरत नहीं
उसमें तो प्रेम है
औऱ हरबार
उसकी अभिव्यक्तियों को
वैयाकरणिक
पारिभाषित करने को नये
प्रमेय प्रतिमान रचेंगे
जब
एक जन्मजात
प्रेमी को दूसरा जन्मजात
प्रेमी मिल जाये तो वह
ईश्वर
की पूरी प्रतिमा हो जाता है
लेकिन ईश्वर
नही चाहता कि पूर्णता हो क्योंकि
प्रेम
की पूर्णता
ईश का विग्रह विलय
विसर्जन है
औऱ
ये प्रेमी ईश
की सत्ता की महाकृति
जिन्हें
मानव मन
ईश का अवतार कह दे क्या
प्रेम को हमेशा कोई पात्र
चाहिये जिसपर वो बरसे
मनुज हो या कविता
चित्र या कोई पत्थर
हाँ मैं प्रेम हूँ
प्रेमसुधा
ईश ने अमृत यूँ छिपाया
©®¶©®¶Sudha Raje
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