कहानी बेचारा बूढ़ा
Sudha Raje wrote a new note: Sudha Raje27--06--2013-//1:51//
Pmकहानी****बेचारा बूढ़ा ******************************मीनल
प्लेट में...
Sudha Raje
27--06--2013-//1:51//Pmकहानी**
**बेचारा बूढ़ा **
****************************
मीनल प्लेट में रखे समोसे आराम से खाये
जा रही थी । जब समोसे खत्म हो गये
तो उसने इमरतियों पर हाथ साफ
करना शुऱू कर दिया ।
"छा किरी पई छोरी? छेती कर ।
(क्या कर रही है लङकी जल्दी कर)
तभी मीनल की सहेली गुर्रायी ।
""हेडे अच्च । काडे भंजयती?
(यहाँ आओ कहाँ जा रही हो)
मीनल अपनी सीनियर कॉलेज मेट छवि के
कमरे पर थी कमरा सङक पर
खुलता था और वहीं से कॉलेज जाते समय
लङकियाँ छवि को भी लिवाती हुयीं जात
मीनल और गोदावरी दोनों सिन्धी थीं ।
बाहर खङी गोदवरी ने जब
छवि को आवाज दी तो मीनल ने
उङका हुआ दरवाजा खोल दिया ।
अंदर आओ गोदवरी!
तुम तो हमेशा ही बस सङक से
ही साईकिल पर बैठे बैठे
घंटी बजाती रहती हो
!!!
अरे भई ऐसी कैसी दोस्ती!!
छवि तैयार हो रही है चलो दो मिनट
बैठ लो ।
नहीं अंकल मैं यहीं ठीक हूँ दो मिनट और
सही ।
मीनल तब तक गज़क चखने में लग गयी थी ।
इतने में छवि आ गयी नीचे ।
क्या डैडी?
जब नाश्ता बनाया है तो ये बाजार
का सामान फिर क्यों उठा लाये?
छवि गुस्से में थी और उसके डैडी ।
मिनमिना रहे थे ।
अरे बस मैंने
सोचा तुम्हारी सहेलियाँ भी कुछ
खा लेगी तुम्हारे साथ।
ये मीनल??
ये मेरी सहेली वहेली नहीं है ये तो बस
रोज नाश्ता उङाने और मेरी साईकिल
चलाके कॉलेज जाने आ धमकती है ।
मेरी सहेली तो आती होगी ।
लो वो आ गयी ।
आजा छवि की बच्ची पेट्रोल आज सात
रुपये लीटर हो गया । एक मिनट भी वेट
कराया तो कल से छोङ जाऊँगी ।
एक टॉमबॉय टाईप लङकी ने एम
एट्टी बाईक से हॉर्न बजाते हुये आवाज
लगायी ।
लो भाषण शुरू मुक्ति देवी के ।
बाय डैड ।
अच्च मीनल
गोदावरी ने हाँक लगायी।
छवि के डैडी ने मीठी आवाज में पुकारा
मीनल साईकिल ले जाओ और हाँ सँभल कर
चलाना ।
कॉमन रूम में सब लङकियाँ जाकर जब
तीसरे पीरियड के बाद बैठी तो मुक्ति ने
छवि को एक तरफ ले जाकर पूछा ।
""ये नाश्ते आजकल ज्यादा नहीं आने लगे?
तेरी कुठरिया में?
हाँ यार! मेरी माँ जो नहीं है ।दस साल
से हर जगह तबादला होते
ही डैडी का यही एटीकेट है ।
सहेलियाँ मेरी होती हैं सत्कार
डैडी करते हैं ।मैं
नयी नयी लङकियों को समझा भी नहीं प
क्या!!!!!और तेरे भैया भाभी?
वो दोनों तो जॉब में हैं । मैं
तो डैडी को अकेला नहीं छोङ सकती न ।
करूँ तो क्या ।
मगर सब लङकियों को देर सवेर समझ में
आता नहीं क्या? मुक्ति ने आँखें फैलायीं ।
आता क्यों नहीं होगा । पर कोई इस
मीनल की तरह भी तो होता है । जब
देखो मुँह उठाये चली आती है । फिक्स
टाईम पता है मगर एक घंटा पहले आ
जायेगी । कुछ
कहो तो डैडी मधुरभाषी तो है ही ।अरे
बेटा पैदल आती है ठंड है । और चल पङेगे
बगल में कैंटीन है ही चाय और
बढ़िया नाश्ता।
तो तू साफ साफ मीनल को बता दे न
कि तेरे डैडी किस टाईप के हैं ।
कहा था । मुझे ही दौन्द दिया । कहने
लगी तेरी सोच घटिया है।
तो कट्टी कर ले ।
उससे कट्टी ही तो है । फिर भी आ
जाती है । कल तो डैडी उसके पूरे
परिवार को सिनेमा दिखाकर लाये ।
और तो और अब
तो उसकी भाभी दीदी बहिनेँ भी जब
चाहे तब चली आतीं हैं चाय
नाश्ता उङाती हैं और दो चार घरेलू काम
करके अहसान दिखा जातीं हैं ।
शी Ssssमीनल आ रही है । तभी एक
दूसरी लङकी ने दोनों को टोका ।
मीनल और गोदावरी दोनों एक कोने में
बैठ गयी । बीच में चौङा पाया स्तंभ
का होने से दूसरी तरफ
बैठी मुक्ति छवि और उसकी सहेलियों पर
दोनों का ध्यान नहीं गया ।
मीनल! तू रोज उस बूढ़े की बैठक में
क्यों पहुँच जाती है सवेरे भी शाम भी?
अब से मैं तुझे बुलाया ही नहीं करूँगी ।
तभी तीसरी लङकी बोली
।
तेरे रंग ढंग और उस बुड्ढे का हर कोशिश
गले कंधे पीठ गाल और बहाना लाकर सीने
तक हाथ छुआने की कोशिश!!
कितनी घिन आती है सोचकर ही ।
वो हमारे पापा से भी बङा है उमर में ।
उसकी सबसे छोटी औलाद भी हमसे
बङी क्लास में है।
छवि दीदी कितनी अच्छी और बाप
कैसा चालू ।
गोदावरी ने गुस्से से लाल पीली होते हुये
कहा ।
मीनल सब जानती समझती है छोरियो!!
मगर तुम्हें कैसे समझायें ।
मेरा परिवार शरणार्थी है ।
बाबा दादी सब कुछ छोङकर आ गये ।
माँ को टी बी है । भाई को फालिज है
और मुझसे छोटी तीन बहिने हैं ।
बङी दीदी बेवा है कि सुहागिन कुछ
पता नहीं उसका आदमी बिछुङ गया रेल में
। मेरी पढ़ाई बंद हो गयी थी । मैं
तो छवि के घर जब वे लोग किरायेदाप
बनकर आये तो काम माँगने गयी थी । बूढ़े
ने जो रंग दिखाया में समझ गयी । मगर
रोटी बनाने के साथ पगार
मोटी मिलती है ।
और अब तो घर का आधा खर्चा मैं
ही उठा रही हूँ । कुछ दिन से छवि ने मेरे
हाथ की रोटी खानी बंद कर दी ।
शाम को सिलाई करते हैं हम सब । सुबह
दो घरों की रोटी भाभी पकाती है
दो का दीदी । छोटी बहिने बङी पापङ
अचार बनाके पढ़ने जाती हैं ।
मैं जानती हूँ बूढ़े की नीयत खराब है । जब
देखो तब बेटी बेटी कहके
चिपकता रहता है ।
लिजलिजा पिलपिला साँप जैसे । मगर इस
साँप में जहर नहीं । मुझे पता है ।
क्योंकि एक बार नहीं कई बार मैं एकदम
अकेली थी उसके कमरे पर
रोटी बनाती सफाई करती। वह
दाङी बनाते । खाना खाते । कपङे पहनते
शीशे से मुझे घूरता तो रहता है । लेकिन
पास आता फिर लौट जाता पास
आता फिर लौट जाता ।
मैं ये लंबा चाकू बाँधे रहती हूँ उसके जैसे
दो को तो वश में नहीं आने वाली ।
झूलेलाल!! क्या कह रही है!!!
तो छोङ दे ये नौकरी । कर ले कोई और
काम? कल को कुछ हो गया तो तू
या तो आबरू गँवायेगी या जेल जायेगी ।
नहीं गोदावरी नहीं छोङ सकती । ये छह
अपार्टमेन्ट हमारे बँधे हैं । जो आता है
उसका काम हमारा परिवार करता है ।
हमें दूसरी जगह इतनी पगार
नहीं मिलेगी ।
छवि की पुरानी साईकिल से कॉलेज आ
जाती हूँ तो पढ़ाई हो लेती है बस एक
साल और बचा ग्रेजुएशन हो लेगा । और
टाईप सीख रही हूँ कोई काम मिल
भी सकता है नहीं भी ।
और सबसे बङी बात गोदावरी ।इस बूढ़े
को तो मैं पहचान चुकी हूँ वह बुरी नीयत
का है लेकिन खतरनाक नहीं । पर ये कैसे
पता चलेगा दोस्त कि दूसरा बूढ़ा नीयत
का साफ शरीफ लगता खतरनाक
जहरीला साँप नहीं होगा?
झूलेलाल साईँ । कैसी बात
करती कहीं फैमिली में काम खोज ले न ।
हूँहहह फैमिली??
गोदावरी जवान सुंदर
गोरी चमङी की शरणार्थी लङकी को ग्र
तो मिल सकते हैं । किसी फैमिली में
अच्छी पगार पर इज्जत का काम नहीं ।
किया था फैमिली में काम । टोकरी भर
बर्तन धुलवाती और टब भर कपङे कूटती ।
एक दिन ग़ैरहाज़िरी तो सौ सौ ताने और
पगार काट ली । ऊपर से
बचा खुचा जूठा खाना देती ।पहने हुये
कपङे ।
कभी सस्ता ही सही नया दुपट्टा तक
नहीं दिया । एक रात खूब सारे मेहमान
थे तो मालकिन के देवर ने स्टोर रूम में बंद
कर लिया चावल साफ करते । छलनी मार
कर जान छुङा कर भागी तो मालकिन ने
छिनाल बताकर देवर को फँसाने
का इलज़ाम लगाया और उन्नतीस दिन
की पगार भी काट ली ।
गोदावरी जवान
लङकी को नौकरी कहीं भी मिलेगी न ये
लुटेरे कहीँ भी पहुँच जायेंगे ।
अरे जब लुटने बिकने का ही रिस्क़ लेके
काम करना है तो ये बुड्ढा क्या बुरा है ।
ये फूल खा नहीं सकता बस सूँघ सकता है देख
सकता है। फिर छवि है
मेरी रखवाली को इतनी अच्छी मालकिन
कि गुस्सा भी रहती है और जब देती है
साफ खाना और नया कपङा देती है ।
चार खोटी बातें कहती है तो क्या ।
चोट
लगी तो पट्टी भी की छुट्टी भी दी ।
तो बेटी के रूप में भी तो रहम कर
सकता है वो?
क्यों करे? ठेका है उसका?
ये ज़माना अपनी ही बेटी बहिन
नहीं निभाता । छवि को भाई भाभी।ने
खर्चे की वज़ह से तो विधुर बाप के साथ
भेज दिया!!
अब बोल??मैं तो बेचारे बूढ़े की दोस्त हूँ
बस उसे जवान होने का अहसास
होता हैऔऱ मुझे भेङियों से भरे समाज में
बिना सींग के बैल के साथ रहने
की तसल्ली ।
गोदावरी ने साँस भरी ।
बेचारा बूढ़ा!! सोचता होगा अब के
बहला लूँगा ।
छवि और मुक्ति । चुपचाप आँखें
पोंछती कॉमन रूम के दूसरे दरवाजे से
बाहर निकल गयी ।
किसी का स्वाभिमान न गिरने
देना भी तो जरूरी था । जानकर अनजान
रहना किसी की दयनीयता को करूण होने
से बचाना था ।
शाम को छवि ने कहा
"" डैड!!ये शहर अच्छा है सोचती हूँ पी एच
डी यहीं से कर डालूँ ।
औऱ लैटर पैड पर से ट्रांसफऱ
की एप्लीकेशन फाङ दी।
©®¶©®
Jun 27
Pmकहानी****बेचारा बूढ़ा ******************************मीनल
प्लेट में...
Sudha Raje
27--06--2013-//1:51//Pmकहानी**
**बेचारा बूढ़ा **
****************************
मीनल प्लेट में रखे समोसे आराम से खाये
जा रही थी । जब समोसे खत्म हो गये
तो उसने इमरतियों पर हाथ साफ
करना शुऱू कर दिया ।
"छा किरी पई छोरी? छेती कर ।
(क्या कर रही है लङकी जल्दी कर)
तभी मीनल की सहेली गुर्रायी ।
""हेडे अच्च । काडे भंजयती?
(यहाँ आओ कहाँ जा रही हो)
मीनल अपनी सीनियर कॉलेज मेट छवि के
कमरे पर थी कमरा सङक पर
खुलता था और वहीं से कॉलेज जाते समय
लङकियाँ छवि को भी लिवाती हुयीं जात
मीनल और गोदावरी दोनों सिन्धी थीं ।
बाहर खङी गोदवरी ने जब
छवि को आवाज दी तो मीनल ने
उङका हुआ दरवाजा खोल दिया ।
अंदर आओ गोदवरी!
तुम तो हमेशा ही बस सङक से
ही साईकिल पर बैठे बैठे
घंटी बजाती रहती हो
!!!
अरे भई ऐसी कैसी दोस्ती!!
छवि तैयार हो रही है चलो दो मिनट
बैठ लो ।
नहीं अंकल मैं यहीं ठीक हूँ दो मिनट और
सही ।
मीनल तब तक गज़क चखने में लग गयी थी ।
इतने में छवि आ गयी नीचे ।
क्या डैडी?
जब नाश्ता बनाया है तो ये बाजार
का सामान फिर क्यों उठा लाये?
छवि गुस्से में थी और उसके डैडी ।
मिनमिना रहे थे ।
अरे बस मैंने
सोचा तुम्हारी सहेलियाँ भी कुछ
खा लेगी तुम्हारे साथ।
ये मीनल??
ये मेरी सहेली वहेली नहीं है ये तो बस
रोज नाश्ता उङाने और मेरी साईकिल
चलाके कॉलेज जाने आ धमकती है ।
मेरी सहेली तो आती होगी ।
लो वो आ गयी ।
आजा छवि की बच्ची पेट्रोल आज सात
रुपये लीटर हो गया । एक मिनट भी वेट
कराया तो कल से छोङ जाऊँगी ।
एक टॉमबॉय टाईप लङकी ने एम
एट्टी बाईक से हॉर्न बजाते हुये आवाज
लगायी ।
लो भाषण शुरू मुक्ति देवी के ।
बाय डैड ।
अच्च मीनल
गोदावरी ने हाँक लगायी।
छवि के डैडी ने मीठी आवाज में पुकारा
मीनल साईकिल ले जाओ और हाँ सँभल कर
चलाना ।
कॉमन रूम में सब लङकियाँ जाकर जब
तीसरे पीरियड के बाद बैठी तो मुक्ति ने
छवि को एक तरफ ले जाकर पूछा ।
""ये नाश्ते आजकल ज्यादा नहीं आने लगे?
तेरी कुठरिया में?
हाँ यार! मेरी माँ जो नहीं है ।दस साल
से हर जगह तबादला होते
ही डैडी का यही एटीकेट है ।
सहेलियाँ मेरी होती हैं सत्कार
डैडी करते हैं ।मैं
नयी नयी लङकियों को समझा भी नहीं प
क्या!!!!!और तेरे भैया भाभी?
वो दोनों तो जॉब में हैं । मैं
तो डैडी को अकेला नहीं छोङ सकती न ।
करूँ तो क्या ।
मगर सब लङकियों को देर सवेर समझ में
आता नहीं क्या? मुक्ति ने आँखें फैलायीं ।
आता क्यों नहीं होगा । पर कोई इस
मीनल की तरह भी तो होता है । जब
देखो मुँह उठाये चली आती है । फिक्स
टाईम पता है मगर एक घंटा पहले आ
जायेगी । कुछ
कहो तो डैडी मधुरभाषी तो है ही ।अरे
बेटा पैदल आती है ठंड है । और चल पङेगे
बगल में कैंटीन है ही चाय और
बढ़िया नाश्ता।
तो तू साफ साफ मीनल को बता दे न
कि तेरे डैडी किस टाईप के हैं ।
कहा था । मुझे ही दौन्द दिया । कहने
लगी तेरी सोच घटिया है।
तो कट्टी कर ले ।
उससे कट्टी ही तो है । फिर भी आ
जाती है । कल तो डैडी उसके पूरे
परिवार को सिनेमा दिखाकर लाये ।
और तो और अब
तो उसकी भाभी दीदी बहिनेँ भी जब
चाहे तब चली आतीं हैं चाय
नाश्ता उङाती हैं और दो चार घरेलू काम
करके अहसान दिखा जातीं हैं ।
शी Ssssमीनल आ रही है । तभी एक
दूसरी लङकी ने दोनों को टोका ।
मीनल और गोदावरी दोनों एक कोने में
बैठ गयी । बीच में चौङा पाया स्तंभ
का होने से दूसरी तरफ
बैठी मुक्ति छवि और उसकी सहेलियों पर
दोनों का ध्यान नहीं गया ।
मीनल! तू रोज उस बूढ़े की बैठक में
क्यों पहुँच जाती है सवेरे भी शाम भी?
अब से मैं तुझे बुलाया ही नहीं करूँगी ।
तभी तीसरी लङकी बोली
।
तेरे रंग ढंग और उस बुड्ढे का हर कोशिश
गले कंधे पीठ गाल और बहाना लाकर सीने
तक हाथ छुआने की कोशिश!!
कितनी घिन आती है सोचकर ही ।
वो हमारे पापा से भी बङा है उमर में ।
उसकी सबसे छोटी औलाद भी हमसे
बङी क्लास में है।
छवि दीदी कितनी अच्छी और बाप
कैसा चालू ।
गोदावरी ने गुस्से से लाल पीली होते हुये
कहा ।
मीनल सब जानती समझती है छोरियो!!
मगर तुम्हें कैसे समझायें ।
मेरा परिवार शरणार्थी है ।
बाबा दादी सब कुछ छोङकर आ गये ।
माँ को टी बी है । भाई को फालिज है
और मुझसे छोटी तीन बहिने हैं ।
बङी दीदी बेवा है कि सुहागिन कुछ
पता नहीं उसका आदमी बिछुङ गया रेल में
। मेरी पढ़ाई बंद हो गयी थी । मैं
तो छवि के घर जब वे लोग किरायेदाप
बनकर आये तो काम माँगने गयी थी । बूढ़े
ने जो रंग दिखाया में समझ गयी । मगर
रोटी बनाने के साथ पगार
मोटी मिलती है ।
और अब तो घर का आधा खर्चा मैं
ही उठा रही हूँ । कुछ दिन से छवि ने मेरे
हाथ की रोटी खानी बंद कर दी ।
शाम को सिलाई करते हैं हम सब । सुबह
दो घरों की रोटी भाभी पकाती है
दो का दीदी । छोटी बहिने बङी पापङ
अचार बनाके पढ़ने जाती हैं ।
मैं जानती हूँ बूढ़े की नीयत खराब है । जब
देखो तब बेटी बेटी कहके
चिपकता रहता है ।
लिजलिजा पिलपिला साँप जैसे । मगर इस
साँप में जहर नहीं । मुझे पता है ।
क्योंकि एक बार नहीं कई बार मैं एकदम
अकेली थी उसके कमरे पर
रोटी बनाती सफाई करती। वह
दाङी बनाते । खाना खाते । कपङे पहनते
शीशे से मुझे घूरता तो रहता है । लेकिन
पास आता फिर लौट जाता पास
आता फिर लौट जाता ।
मैं ये लंबा चाकू बाँधे रहती हूँ उसके जैसे
दो को तो वश में नहीं आने वाली ।
झूलेलाल!! क्या कह रही है!!!
तो छोङ दे ये नौकरी । कर ले कोई और
काम? कल को कुछ हो गया तो तू
या तो आबरू गँवायेगी या जेल जायेगी ।
नहीं गोदावरी नहीं छोङ सकती । ये छह
अपार्टमेन्ट हमारे बँधे हैं । जो आता है
उसका काम हमारा परिवार करता है ।
हमें दूसरी जगह इतनी पगार
नहीं मिलेगी ।
छवि की पुरानी साईकिल से कॉलेज आ
जाती हूँ तो पढ़ाई हो लेती है बस एक
साल और बचा ग्रेजुएशन हो लेगा । और
टाईप सीख रही हूँ कोई काम मिल
भी सकता है नहीं भी ।
और सबसे बङी बात गोदावरी ।इस बूढ़े
को तो मैं पहचान चुकी हूँ वह बुरी नीयत
का है लेकिन खतरनाक नहीं । पर ये कैसे
पता चलेगा दोस्त कि दूसरा बूढ़ा नीयत
का साफ शरीफ लगता खतरनाक
जहरीला साँप नहीं होगा?
झूलेलाल साईँ । कैसी बात
करती कहीं फैमिली में काम खोज ले न ।
हूँहहह फैमिली??
गोदावरी जवान सुंदर
गोरी चमङी की शरणार्थी लङकी को ग्र
तो मिल सकते हैं । किसी फैमिली में
अच्छी पगार पर इज्जत का काम नहीं ।
किया था फैमिली में काम । टोकरी भर
बर्तन धुलवाती और टब भर कपङे कूटती ।
एक दिन ग़ैरहाज़िरी तो सौ सौ ताने और
पगार काट ली । ऊपर से
बचा खुचा जूठा खाना देती ।पहने हुये
कपङे ।
कभी सस्ता ही सही नया दुपट्टा तक
नहीं दिया । एक रात खूब सारे मेहमान
थे तो मालकिन के देवर ने स्टोर रूम में बंद
कर लिया चावल साफ करते । छलनी मार
कर जान छुङा कर भागी तो मालकिन ने
छिनाल बताकर देवर को फँसाने
का इलज़ाम लगाया और उन्नतीस दिन
की पगार भी काट ली ।
गोदावरी जवान
लङकी को नौकरी कहीं भी मिलेगी न ये
लुटेरे कहीँ भी पहुँच जायेंगे ।
अरे जब लुटने बिकने का ही रिस्क़ लेके
काम करना है तो ये बुड्ढा क्या बुरा है ।
ये फूल खा नहीं सकता बस सूँघ सकता है देख
सकता है। फिर छवि है
मेरी रखवाली को इतनी अच्छी मालकिन
कि गुस्सा भी रहती है और जब देती है
साफ खाना और नया कपङा देती है ।
चार खोटी बातें कहती है तो क्या ।
चोट
लगी तो पट्टी भी की छुट्टी भी दी ।
तो बेटी के रूप में भी तो रहम कर
सकता है वो?
क्यों करे? ठेका है उसका?
ये ज़माना अपनी ही बेटी बहिन
नहीं निभाता । छवि को भाई भाभी।ने
खर्चे की वज़ह से तो विधुर बाप के साथ
भेज दिया!!
अब बोल??मैं तो बेचारे बूढ़े की दोस्त हूँ
बस उसे जवान होने का अहसास
होता हैऔऱ मुझे भेङियों से भरे समाज में
बिना सींग के बैल के साथ रहने
की तसल्ली ।
गोदावरी ने साँस भरी ।
बेचारा बूढ़ा!! सोचता होगा अब के
बहला लूँगा ।
छवि और मुक्ति । चुपचाप आँखें
पोंछती कॉमन रूम के दूसरे दरवाजे से
बाहर निकल गयी ।
किसी का स्वाभिमान न गिरने
देना भी तो जरूरी था । जानकर अनजान
रहना किसी की दयनीयता को करूण होने
से बचाना था ।
शाम को छवि ने कहा
"" डैड!!ये शहर अच्छा है सोचती हूँ पी एच
डी यहीं से कर डालूँ ।
औऱ लैटर पैड पर से ट्रांसफऱ
की एप्लीकेशन फाङ दी।
©®¶©®
Jun 27
Comments
Post a Comment