अकविता :-हाँ तो कब कहा मैंने
Sudha Raje wrote a new note:
Sudha Rajeहाँ तो????कब कहाँ मैंने मुझे
प्रेमनहीं करना!!!!!करूँगी मैं तुमसे प्रेम
अनन्य और उसप्रेम मे...
Sudha Raje
हाँ तो????
कब कहाँ मैंने मुझे प्रेम
नहीं करना!!!!!
करूँगी मैं तुमसे प्रेम अनन्य और उस
प्रेम में स्वाहा होंगे मेरे सारे
स्वत्व भी अस्तित्व भी कब
कहाँ मैंने नहीं चाहती सृजन!!!!
हाँ रचूँगी मैं तुम्हें हर बार
जब तुम बिखरने लगोगे थाम
लूँगी समेटकर अपने सारे भस्मीभूत
अस्तित्व को उर्वर रहूँगी जन्म
दूँगी तुम्हें प्रचंड पीङा की चरम
यातना के चरमोत्कर्ष पर
महालीन होकर पुनर्यौवन
पुनर्जन्म और अमर कर दूँगी तुम्हें
कब कहाँ मैंने नहीँ करना पोषण!!!!
तुम मेरा रक्त
अस्थि मज्जा वसा माँस ग्रहण
करते बढ़ोगे मुझे खाकर रूप लोगे
और बल मेरा लहू पीकर मैं
दूँगी तुम्हें जीवन पोषण प्रेम और
वह सब जो तुम्हें चाहिये मनुष्य
होने अमर होने सुखी होने के लिये
लेकिन
अब और हमेशा
रहते आये हैं मेरी आँखों में पश्चाताप
के आँसू कि तुम काश मानव होते तुम
काश मेरे प्रेम को समझ पाते तुम्हें
सुखी खुश और अमर
देखना ही तो मुझे भाता रहा मुझे
प्रेम का ही तो विस्तार देने
को रहना था हर पल हर जगह हर
रूप में तुम्हारे साथ लेकिन
मैं इनकार करती हूँ उत्पीङन
यातना अपमान आक्रमण शोषण
सहने से
ये तुम्हारा अधिकार
नहीं ना ही मेरी विवशता है
यह है तुम्हारा स्वार्थ और है
तुम्हारी लिप्सा
मैं किसी भी यातना बंधन
संहिता अन्याय सहने
की बाध्यता से इनकार करती हूँ
मेरे चरम प्रेम ने सहा तो यूँ
कि मुझे लगा मैं सह लूँ तो तुम
सुखी होओगे पर नहीं
तुम न देव हुये न मानव तुम जीवन
सृष्टि और सृजन के शत्रु हो गये मुझे
विनाश रोकना है और अब तुम्हें
भी रोकना है रक्तबीज भक्षण
करना पङे तो भी न्याय
नैतिकता प्रेम सृजन
की रक्षा होगी
©®¶©®¶
sudha Raje
Dta♠Bjnr
Mar 8
Sudha Rajeहाँ तो????कब कहाँ मैंने मुझे
प्रेमनहीं करना!!!!!करूँगी मैं तुमसे प्रेम
अनन्य और उसप्रेम मे...
Sudha Raje
हाँ तो????
कब कहाँ मैंने मुझे प्रेम
नहीं करना!!!!!
करूँगी मैं तुमसे प्रेम अनन्य और उस
प्रेम में स्वाहा होंगे मेरे सारे
स्वत्व भी अस्तित्व भी कब
कहाँ मैंने नहीं चाहती सृजन!!!!
हाँ रचूँगी मैं तुम्हें हर बार
जब तुम बिखरने लगोगे थाम
लूँगी समेटकर अपने सारे भस्मीभूत
अस्तित्व को उर्वर रहूँगी जन्म
दूँगी तुम्हें प्रचंड पीङा की चरम
यातना के चरमोत्कर्ष पर
महालीन होकर पुनर्यौवन
पुनर्जन्म और अमर कर दूँगी तुम्हें
कब कहाँ मैंने नहीँ करना पोषण!!!!
तुम मेरा रक्त
अस्थि मज्जा वसा माँस ग्रहण
करते बढ़ोगे मुझे खाकर रूप लोगे
और बल मेरा लहू पीकर मैं
दूँगी तुम्हें जीवन पोषण प्रेम और
वह सब जो तुम्हें चाहिये मनुष्य
होने अमर होने सुखी होने के लिये
लेकिन
अब और हमेशा
रहते आये हैं मेरी आँखों में पश्चाताप
के आँसू कि तुम काश मानव होते तुम
काश मेरे प्रेम को समझ पाते तुम्हें
सुखी खुश और अमर
देखना ही तो मुझे भाता रहा मुझे
प्रेम का ही तो विस्तार देने
को रहना था हर पल हर जगह हर
रूप में तुम्हारे साथ लेकिन
मैं इनकार करती हूँ उत्पीङन
यातना अपमान आक्रमण शोषण
सहने से
ये तुम्हारा अधिकार
नहीं ना ही मेरी विवशता है
यह है तुम्हारा स्वार्थ और है
तुम्हारी लिप्सा
मैं किसी भी यातना बंधन
संहिता अन्याय सहने
की बाध्यता से इनकार करती हूँ
मेरे चरम प्रेम ने सहा तो यूँ
कि मुझे लगा मैं सह लूँ तो तुम
सुखी होओगे पर नहीं
तुम न देव हुये न मानव तुम जीवन
सृष्टि और सृजन के शत्रु हो गये मुझे
विनाश रोकना है और अब तुम्हें
भी रोकना है रक्तबीज भक्षण
करना पङे तो भी न्याय
नैतिकता प्रेम सृजन
की रक्षा होगी
©®¶©®¶
sudha Raje
Dta♠Bjnr
Mar 8
Comments
Post a Comment