निर्गुन- रँगीली थोङा सबर तो कर।

काहे नैन रही मटकाय
रँगीली थोङा सबर
तो कर
मोरी दुलहन रोज बुलाय
रँगीली थोङा सबर
तो कर
जीवन दूल्हा
फूस का पूला
बालापन में झूला
यौवन के रँग रस में भूला
वय बजाय रणतूला
पन चार बराती बुलाय
रँगीली थोङा सबर
तो कर
दूखे नग नग
अँग अँग दूखे
रंग ढंग सब रूखे
भूखे रह गये
पाँच सँघाती
आश प्यास के सूखे
सारी नगरी बात बनाय
रँगीली थोङा सबर
तो कर
आऊँगा मैं महामिलन को
पांच प्रकाशित तन को
करूँ हवाले तेरे तन को
मन सुमिरन् जीवन को
चाहे कागद कोरे लिखाय
रँगीली थोङा सबर
तो कर
रस्ते गलियाँ हाट समंदर
नदी ताल वन झीलन
मौत दुलहनियाँ खोजे
पल पल प्राण
पियारी भीलन
मोरी बाट में हाट सजाय
रँगीली थोङा सबर
तो कर
सुधा सहेली मौ सँग खेली
करतब की अलबेली
संग चलेगी काज रहे कुछ
मरन जियन दुख झेली
ले ली वचन तो रही है
निभाय
©®Sudha Raje
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
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Bijnor
U.P.
9358874117
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।

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