लेख :जल हाय जल जल छल छल कल कल
Sudha Raje
विश्व जल दिवस!!!!!
मनाने की जरूरत आ पङी!!!!
आगरा के पास रहने का अवसर
मिला कस्बे में तीन दिन में एक
बार सरकारी नल चलते कुओँ
का पानी सौ फीट से नीचे तीन
सौ तक
और तालाब एक भी नहीँ कोई बीस
मील दूर एक नदी बहुत गहरे
किनारे कि कोई नदी में उतर
ना सके
लोग बरतन को सूखी राख के तसले
में रगङते जब चमक जाते तो कपङे से
पोंछ देते ।
खाट पर बिना साबुन के नहाते
बेसन या आटा मलकर नीचे नाँद में
पानी इकट्ठा होता ढोर पीते
और पौधों में डालते
कपङे कम झाग वाले साबुन में खूब
फचीट कर धोते कम पानी में सब
कपङों का साबुन बारी से धोकर
निचोङते फिर दूसरी बार
पानी से धोते ये
पानी भी गली पर छिङक देते
सारी नालियाँ किसी ना किसी स
खेत को मुङती रहती
पीने को पानी उतना देते
जितना जरूरी होता गिलास
की बजाय लोग बिना जूठा किये
ऊपर से पानी डालकर पीते
तबसे एक आदत
पङ गयी
पानी व्यर्थ मत करो दोस्तो ।
अगर हमारे इलाके में
पानी की कमी नहीँ तो क्या ये
पानी ट्रांसपोर्ट के जरिये प्यासे
गुजरात राजस्थान बुंदेलखंड और
गढ़वाल को भेजा जा सकता है ।
कहीँ भी रहे पानी इतना रहे
कि हर इंसान तक पहुँचे ।
शावर । जेट । वाटर पार्क । घर
को रोज धोना । गाङी धोने में
पेयजल बरबाद करना । अपराध है
। आज नहीँ तो कल पानी पर ये
अंकुश लगेगा । इसी हिंदुस्तान में
पानी पर कत्ल और मुकदमे हो रहे
हैं चालीस मील तक सुबह जाकर
शाम तक लोग परिवार का एक
सप्ताह का पानी लाते हैं । टैंकर
ट्रेन से पानी राशन कार्ड पर
कतार में लग कर लेना पङता है ।
1980 का सूखा जब पङा तब हमारे
तमाम रिश्तेदारों ने पशु दान कर
दिये कि वहाँ पानी है
चिङियाँ और पशु
पानी कभी आवश्यकता से अधिक
बरबाद नहीँ करते । ये
धरती माँ का क्षीर है हम संताने
उतना पीये
जितना पुनः बनता रहे
नहीँ तो माँ नहीँ बचेगी
Happy water day
©®¶©®¶
Sudha Raje
एक समय में समाज जिन
कामों को स्वधर्म की तरह
निभाता था, आज वे
विशेषज्ञों की शोध का विषय बन
गए है।
Unlike · 1 · Delete · Mar 22
Sudha Raje
पहले किसान खेत को काटने के बाद
कई जगह खेत में
थोङी थोङी दूरी पर 4×8के गड्ढे
खोद डालते थे । बरसात में पूरे खेत
तर रहते गढ़ोँ में जल भर
जाता सतह सूखने पर जोत जेहल कर
बीज बो देते जो नमी से एक खास
ऊँचाई तक बढ़ जाते । जब
शुष्कता बढ़ती बारी बारी इन
गड्ढों का पानी सीँचने के काम
आता
आज बोरिँग तीन सौ फीट पर ले
जाकर आलसी हो रहा इंसान
धरती के खात्मे की तैयारी कर
रहा है
Like · Edit · Mar 22
Sudha Raje
नदियों का पानी माँस काटने
धोने बहाने और चमङा धोने
वाली फैक्ट्रियों में सबसे
ज्यादा जहरीला होकर
देह की धमनियाँ इन
नदियों का जल जहरीला करके
अपंग कर रहा है । वरना उद्गम से
समागम तक हर नदी अगर
ना लो और रिफानरियों माँस
कसाई खानो और
चमङा कपङा कागज मिलों के गंदे
पानी डाले जाने से एकदम रोक
दीं जायेँ तो
भारत आज से दस बरस में
ही हरा भरा और जल संपन्न होकर
पूरे विश्व की प्यास बुझा दे ।
Like · Edit · Mar 22
ै। किसी भी ठीक
जल प्रबंध का पहला काम
मिट्टी संरझण का होना चाहिए।
ज्यादा से ज्यादा पानी थामें
रखने के लिए धरती पर पूरी तरह
पेड़ पौधे होने चाहिए। और इसके
लिए मिट्टी उपजाउ होने
चाहिए। भूमिगत जल
की पुनः पूर्ति बराबर होते रहने
के लिए मुख्य जरूरत है अच्छे जंगल
और हरे भरे घास की।
पानी को जमा करना भी उतना ह
पानी के संग्रह के शायद सवसे
ज्यादा सक्षम और
किफायती साधन तालाब ही है।
अपने देश में जहाँ भी 50 सेंटीमी.
बारिश होती है वहां सब जगह
पानी को रोककर
उसका पूरा पूरा उपयोग करने
की रणनीति सरकार और पंयायत
की होनी चाहिए। पर दुर्भाग्य
से ऐसा हो नहीं सका
Unlike · 1 · Delete · Mar 22
Sudha Raje
पूँजीपतियोँ का नुकसान
ना हो इसीलिये
सरकारी और राजनीतिक भ्रष्ट
लोग विश्व और ब्रह्मांड के लिये
घातक और देश के लिये विनाशक
गुटखा सिगरेट शराब दुधारू पशुओं
गाय भैंसो की हत्या चोरी से
बरसो पुराने पेङ काटने के अपराध
पुराने
गङही तलैया तालाबों झीलों पर
आवासीय व्यवसायिक इमारतें
बनना रोक ही नहीँ पाते ।
क्योंकि कोई ईमानदारी से
धरती का भला नहीँ चाहता ।
दो साल पहले बिजनौर में बाढ़
आयी और भीषण
तबाही मचा गयी खेतों में रेत
ही रेत भर गयी जबकि ये सिर्फ
एक फुट पानी छोङा था ।
· Mar 22
Sudha Raje
एकदम सही घङे के तले में छेद करके
कपङे की बत्ती लगाकर गाँठ बाँधें
और हर पेङ के नीचे ग्रीष्म ऋतु में
रख दे सप्ताह में एक या दो बार
घङा भरने से
भी पूरा बागीचा हरा भरा रहेगा
Mar 22
, 2013
घरों में छत का पानी
पहले कच्चे आँगन थे
अब
वाटर लेबल रखना है
तो कानूनन
सब बहुमंजिली इमारतों का
आबे अर्श
बरसात मोङकर
टैंक द्वारा जो कंकङों से भरा हो
जमीन के भीतर
पहुँचाते हैं । तो वाटर लेबल
पूरी कॉलोनी का ही बढ़ जायेगा
विश्व जल दिवस!!!!!
मनाने की जरूरत आ पङी!!!!
आगरा के पास रहने का अवसर
मिला कस्बे में तीन दिन में एक
बार सरकारी नल चलते कुओँ
का पानी सौ फीट से नीचे तीन
सौ तक
और तालाब एक भी नहीँ कोई बीस
मील दूर एक नदी बहुत गहरे
किनारे कि कोई नदी में उतर
ना सके
लोग बरतन को सूखी राख के तसले
में रगङते जब चमक जाते तो कपङे से
पोंछ देते ।
खाट पर बिना साबुन के नहाते
बेसन या आटा मलकर नीचे नाँद में
पानी इकट्ठा होता ढोर पीते
और पौधों में डालते
कपङे कम झाग वाले साबुन में खूब
फचीट कर धोते कम पानी में सब
कपङों का साबुन बारी से धोकर
निचोङते फिर दूसरी बार
पानी से धोते ये
पानी भी गली पर छिङक देते
सारी नालियाँ किसी ना किसी स
खेत को मुङती रहती
पीने को पानी उतना देते
जितना जरूरी होता गिलास
की बजाय लोग बिना जूठा किये
ऊपर से पानी डालकर पीते
तबसे एक आदत
पङ गयी
पानी व्यर्थ मत करो दोस्तो ।
अगर हमारे इलाके में
पानी की कमी नहीँ तो क्या ये
पानी ट्रांसपोर्ट के जरिये प्यासे
गुजरात राजस्थान बुंदेलखंड और
गढ़वाल को भेजा जा सकता है ।
कहीँ भी रहे पानी इतना रहे
कि हर इंसान तक पहुँचे ।
शावर । जेट । वाटर पार्क । घर
को रोज धोना । गाङी धोने में
पेयजल बरबाद करना । अपराध है
। आज नहीँ तो कल पानी पर ये
अंकुश लगेगा । इसी हिंदुस्तान में
पानी पर कत्ल और मुकदमे हो रहे
हैं चालीस मील तक सुबह जाकर
शाम तक लोग परिवार का एक
सप्ताह का पानी लाते हैं । टैंकर
ट्रेन से पानी राशन कार्ड पर
कतार में लग कर लेना पङता है ।
1980 का सूखा जब पङा तब हमारे
तमाम रिश्तेदारों ने पशु दान कर
दिये कि वहाँ पानी है
चिङियाँ और पशु
पानी कभी आवश्यकता से अधिक
बरबाद नहीँ करते । ये
धरती माँ का क्षीर है हम संताने
उतना पीये
जितना पुनः बनता रहे
नहीँ तो माँ नहीँ बचेगी
Happy water day
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एक समय में समाज जिन
कामों को स्वधर्म की तरह
निभाता था, आज वे
विशेषज्ञों की शोध का विषय बन
गए है।
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Sudha Raje
पहले किसान खेत को काटने के बाद
कई जगह खेत में
थोङी थोङी दूरी पर 4×8के गड्ढे
खोद डालते थे । बरसात में पूरे खेत
तर रहते गढ़ोँ में जल भर
जाता सतह सूखने पर जोत जेहल कर
बीज बो देते जो नमी से एक खास
ऊँचाई तक बढ़ जाते । जब
शुष्कता बढ़ती बारी बारी इन
गड्ढों का पानी सीँचने के काम
आता
आज बोरिँग तीन सौ फीट पर ले
जाकर आलसी हो रहा इंसान
धरती के खात्मे की तैयारी कर
रहा है
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नदियों का पानी माँस काटने
धोने बहाने और चमङा धोने
वाली फैक्ट्रियों में सबसे
ज्यादा जहरीला होकर
देह की धमनियाँ इन
नदियों का जल जहरीला करके
अपंग कर रहा है । वरना उद्गम से
समागम तक हर नदी अगर
ना लो और रिफानरियों माँस
कसाई खानो और
चमङा कपङा कागज मिलों के गंदे
पानी डाले जाने से एकदम रोक
दीं जायेँ तो
भारत आज से दस बरस में
ही हरा भरा और जल संपन्न होकर
पूरे विश्व की प्यास बुझा दे ।
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ै। किसी भी ठीक
जल प्रबंध का पहला काम
मिट्टी संरझण का होना चाहिए।
ज्यादा से ज्यादा पानी थामें
रखने के लिए धरती पर पूरी तरह
पेड़ पौधे होने चाहिए। और इसके
लिए मिट्टी उपजाउ होने
चाहिए। भूमिगत जल
की पुनः पूर्ति बराबर होते रहने
के लिए मुख्य जरूरत है अच्छे जंगल
और हरे भरे घास की।
पानी को जमा करना भी उतना ह
पानी के संग्रह के शायद सवसे
ज्यादा सक्षम और
किफायती साधन तालाब ही है।
अपने देश में जहाँ भी 50 सेंटीमी.
बारिश होती है वहां सब जगह
पानी को रोककर
उसका पूरा पूरा उपयोग करने
की रणनीति सरकार और पंयायत
की होनी चाहिए। पर दुर्भाग्य
से ऐसा हो नहीं सका
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Sudha Raje
पूँजीपतियोँ का नुकसान
ना हो इसीलिये
सरकारी और राजनीतिक भ्रष्ट
लोग विश्व और ब्रह्मांड के लिये
घातक और देश के लिये विनाशक
गुटखा सिगरेट शराब दुधारू पशुओं
गाय भैंसो की हत्या चोरी से
बरसो पुराने पेङ काटने के अपराध
पुराने
गङही तलैया तालाबों झीलों पर
आवासीय व्यवसायिक इमारतें
बनना रोक ही नहीँ पाते ।
क्योंकि कोई ईमानदारी से
धरती का भला नहीँ चाहता ।
दो साल पहले बिजनौर में बाढ़
आयी और भीषण
तबाही मचा गयी खेतों में रेत
ही रेत भर गयी जबकि ये सिर्फ
एक फुट पानी छोङा था ।
· Mar 22
Sudha Raje
एकदम सही घङे के तले में छेद करके
कपङे की बत्ती लगाकर गाँठ बाँधें
और हर पेङ के नीचे ग्रीष्म ऋतु में
रख दे सप्ताह में एक या दो बार
घङा भरने से
भी पूरा बागीचा हरा भरा रहेगा
Mar 22
, 2013
घरों में छत का पानी
पहले कच्चे आँगन थे
अब
वाटर लेबल रखना है
तो कानूनन
सब बहुमंजिली इमारतों का
आबे अर्श
बरसात मोङकर
टैंक द्वारा जो कंकङों से भरा हो
जमीन के भीतर
पहुँचाते हैं । तो वाटर लेबल
पूरी कॉलोनी का ही बढ़ जायेगा
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