Tuesday 9 April 2019

उपन्यास: एक अधूरी गाथा, "सुमेधा"

9/4/13/
शराफत **कहानी**भागॆ**17**
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सुमेधा ने खुद को वक़्त और हालात के हवाले ना करके ज़ीने का फ़ैसला किया   । तो हालात मुस्कराये ओह तो इतना भरोसा खुद पर अब तो चक्रव्यूह रचना ही पङेगा ।

सुमेधा ने गुलाब बाग में पूरे एक हफ्ते बाद कदम रखा था   । आप्रवासी भारतीय मेहमान वहाँ मौजूद थे ।ये मुलाकात मामी सा ने फिक्स करायी थी सुमेधा की जिद पर।
बेंत की कुर्सियाँ गोल टेबल के चारों तरफ पङी थीं  ।  शाम की चाय की औपचारिकता के बीच बात सुमेधा ने शुरू की ।

आपको मेरे पिता माँ के बारे में पता है??
जी!  हालाँकि मेरे परिजनों को ऐतराज़ था मगर मुझे नहीँ । आपकी माँ पिता दोनो राजपूत थे यही काफी है     ।
लेकिन हम जातिवादी नहीं है ।

उससे क्या मैं भी नहीं हूं परिवार तो है    मेरे पिता के सामंत के पुत्र हैं राजपरिवार से नहीं ।

मेरी माँ भी किसान परिवार से थी चलेगा ।

मैं चाहती हूँ जीरो डावरी मैरिज ।

देखिये दहेज के मैं भी सख्त खिलाफ हूँ लेकिन रस्में नहीं तोङ सकता ।

तो ये शादी नहीं हो सकती कुँवर जी ।

लेकिन आपको कमी किस बात की है बाई सा राज?? ।
पिता क्लास वन ऑफिसर हैं । मामा का आलीशान कारोबार है !!!??

बात उसूल की है कुँवर जी   ।

कैसा उसूल,? विवाह के बाद वही घर आपका होगा!! आप की हर चीज के अलावा जो हमारा है वह भी आपका होगा??? कमी हो या माँगा गया हो तब तो कोई परेशानी है ।

आप यूँ समझ लीजिये जो हमें पाँच कपङों में जो हमने पहने हो ले जाये बस वही हमसे विवाह कर सकता है  
हमें बङों से बात करनी पङेगी ।

तो आप अपने निजी फैसले बङों से पूछकर लेते है?? ।

न नहीं पर ये निजी फैसला नहीं है ।

तब तो शायद इनकार की दूसरी वजह है कुँवर जी हमें केवल खुद फैसले लेने वाले लोग पसंद हैं ।

मंदिर की घंटियाँ बजने से दोनों उठ गये । भगवतीबाई के साथ सुमेधा तो ऊपर चली गयी लेकिन मेहमान बेचैन टहलता रहा बङी देर ।

दूसरी सुबह मेहमान रवाना होने की खबर मिली तो सुमेधा खुशी से उछल पङी । ग्रामोफोन पर माईकल जैक्सन बजाकर उसने अंधाधुंध डांस शुरू कर दिया । दोपहर को रसोङा में जाकर कुछ गरम बूँदी छाँटने का मैनू बनवाया     । जो उसे और मामा सा को भी पसंद था ।
उसने स्पेशली गुलाबी साङी पहनी और ताश की महफिल में पहुँच गयी। कुछ आर्मी वालों की पत्नियाँ भी थी । आज सारे ट्रम्प सुमेधा को मिल रहे थे और सबके पत्ते भद्द में जा रहे थे । नीहारिका के बच्चे ठिनके

मासी सा!!!! चीटिंग???
मामी ने भी शो करा ही लिया ।
ग़ज़ब बाईसा!!!?!!  तीन इक्के!?!

सुमेधा खिलखिला पङी   । भगवतीबाई ने बलायें लीं । रघुनाथ जी नजर न लगे ।

परंतु हालात हँसे नज़र तो लग चुकी थी ।

शाम को इंद्रपाल का फोन आया जिसे सुनने के लिये जनानी बैठक तक आना पङता था । वहाँ लंबा तार लिये पीतल का फोन लकङी की ट्रे में लिये दरबान आता । महल के सारे फोन मामा जी की रिशेप्सनिस्ट जयंती अटैण्ड करती ।
इद्रपाल बेहद घबराया हुआ था ।

दीदी!!!!  मुझे बचा लो दीदी । पुलिस मेरे पीछे है   । पापा तो उलटा मुझे पुलिस से मिलके खोजते फिर रहे हैं । मेरे सारे दोस्त पकङे गये । मैं मर जाऊँगा दीदी??!! 

व्हाट!!!  पुलिस??? फरार?, क्या किया तुमने इंद्रे!!!!

दीदी मैंने किसी को नहीँ मारा । मुझे कुछ पता नहीं । मैं नशे में था । सबेरे घर जाना चाहता था वहाँ पुलिस का पहरा था   ।

रात को हम लोग जिसके कमरे पर शराब पी रहे थे वो लङका मर गया  । लेकिन मैं तो वहाँ से क्रिस्टी के घर चला आया था ।

अब तुम कहाँ हो,,?  सुमेधा गुर्रायी

पहले बङी माँ की कसम खाओ किसी को नहीं कहोगी??

इंद्रुपाल!!!!!!!!!!

सुमेधा इतनी जोर से चीखी कि रिशेप्निस्ट कैबिन में आ गयी   ।

बाई सा राज कोई परेशानी हुकुम???

नही आप जाईये

कौन मदद करेगा???
सुमेधा चिंता से सोच रही थी   । कि शेखर की नीली आँखें गाजरी लाल होंठ सफेद गुलाबी चेहरा नजर में झूल गया   ।

जैसे कह रहा हो पुकार तो सही । मैं न आऊँ तो कहना   ।

वह राहत से साँस लेकर
इंद्रपाल का दिया पता याद करने लगी
फिर सोचा
शेखर पर इतना भरोसा क्यों??,???
©®¶¶©®
Sudha Raje
शेष फिर

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