Friday 26 April 2019

दोहे: सुधा दोहावली

सुधा साँझ है मूक सी
तारे खा गये रात
बैरी है जो मीत थे ।
मीत करै ना बात।
सुधा चरौ बिरवार नै ।
हरौ भरौ सब खेत।
अब केवल बिरवार है।
खेतन ठाङी रेत।
सुधा जिन्हैं सौंपे मुकुट ।
बैई छील रये भाल
भाला जिनके हाथ दओ।
बैंच ऐंच रये माल।
सुधा कपट कैसो भरौ।
जा नृपनय में ठेठ।
सावन में उजङे सुआ।
चैतन उजङे पेट।
सुधा पाल कैं ब्याल खौं
विष दंतन खौं तोर।
तोर मोर फैलाऊत तै।
दे पुखरा में बोर।
सुधा काठ की देगची
बरू चढ़बै सौ बार।
जो नईयां निज देश को
बौ सत्तुर कौ यार।
सुधा कहौ घर घर जगैं
तरुण करुण रस छोङ।
रति रस छाँङो वारुणी।
वीर रौद्र पथ मोङ।
सुधा नीच सें कीच सें
मुंडा धर फिर बोल ।
काय नहीं रहे चौकसे।
तुपक धरैं कै ढोल??
©®Sudha Raje
बुंदेली
Jai Hind

No comments:

Post a Comment