लेख: :सखा कृष्ण
कृष्ण आराध्य से अधिक वांछित पुरुष मित्र रहे हैं ,लगभग हर स्त्री पुरुष को एक कृष्ण सखा की आवश्यकता रही है ,जो मन का हर भेद समझे हर राज जाने परंतु कभी किसी एक मित्र तक का भेद दूसरे पर प्रकट न करे ,न कभी तन छुये न वासना का रंचमात्र भी आये हाव भाव बनाव चाव लगाव में फिर भी कोली भर सकें हूकते मन की पीर पर जिसके काँधे घुटने और गोद तक में सिर धर कर रो सकें ,जो चिढ़ाये खिजाये भी और समझाये बुझाये भी ,जो परायी समझे कि सीमा रेखा का पालन करे ,अपना हो इतना कि कोई विषय वस्तु ऐसी न हो कि उससे बतियायी न जा सके ,,,,,,
कृष्ण के रसिक रूप पर रीतिकाल के कवियों ने जमकर अपनी दरबारी हवसई भस थोपी परंतु कथासार तो यही है कि किशोरबालक कृष्ण जो एक बार बृज छोड़कर गये तो फिर राजकाज सुराज में ऐसे उलझे कि फिर मथुरा से हस्तिनापुर होते हुये द्वारिका जा बसे ,,,,
उस काल में विदेशी आक्रमण गौजयराष्ट्र के माध्यम से समुद्र पार से होने को रोका समुद्र पर नगरी बसाई ,,,,,
परॉंतु प्रशांत भूषण जैसे ,,,,,,,निहायत ओछी मानसिकता वालों को कृष्ण का बाल सखा कलाकार चपल बाल सेनानी रूप बालवीर रूप नहीं समझ आया न समाज सुधारक बालक दिखा ,,,ऐसों को कान्हा और सड़कछाप सीटी मारते नंगई करते तेजाब फेंकते पीछा करते बलात्कार अपहरण वीडियो बनाने वाले और पढ़ना लिखना बाहर घर छत कहीं रह पाना कठिन कर डालने वाले ,,,,,,वासना के अंधे नरपशु छिछोरों में कोई अंतर ही समझ नहीं आया ,,,,,!!!!!!!!
आयेगा भी कैसे अब कितने बचे हैं सचमुच के सखा कान्हावत नर ,जो नरत्व से परे हटकर मनुज रूप सखा हो सकें व्यक्ति रूप होकर परायी स्त्री या पराये पुरुष की सीमा भी मर्यादा में रख ले और लखन हनुमान की भाँति कृष्ण की भाँति पीडा़ सुख दुख भी समझ समझा बाँट लें ,,,,,,,
क्या प्रेम का यही रूप बचा है आज के लोगों के मस्तिष्क में ??? पीछा करो गालियाँ बको तेजाब फेंको जबरन वीडियो फोटो लेलो भद्दे अश्लील गंदे गीत गाओ फूहड़ इशारे करो रास्ता रोको ,नोचों खीचो रुलाओ ?????क्या ऐसा कोई उदाहरण कानाहा का है ?मीरा को कृष्ण चाहिये ,रुक्मणि को भी सुभद्रा को कुबजा को यशोदा को सत्यभामा को राधा को द्रौपदी को कुन्ती और गांधारी तक को कृष्ण चाहिये ,,,,,,
कृष्ण एक एक कृष्ण सबको चाहिये मुझे भी ,,,,,,,तुम नहीं समझोगे प्रशांतभूषण ,,,,क्योंकि तुम भीतर से रिक्त हो जो भरा है भीतर से वही पुकारता है मानता समझता है ,,,,,,,,©®सुधा राजे
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