ग़जल:मैं बे वफ़ा नहीं था दोस्त, बस ग़रीब था
Sudha Raje
मैं बेवफ़ा नहीं था दोस्त
बस ग़रीब
था।
मैं बेवफ़ा नहीं था दोस्त
बस ग़रीब
था।
वो मामला हुनर
का नहीं था नसीब
था ।
का नहीं था नसीब
था ।
ख़ुबसूरती से जिसने निभाई
थी दुश्मनी ।
वो ही क़रीब सबसे मग़र
हाँ रक़ीब
था ।
थी दुश्मनी ।
वो ही क़रीब सबसे मग़र
हाँ रक़ीब
था ।
था वो शहर
का चढ़ता सितारा बुलंद
ज़ां
ज़र बर्क था वज़ूद मगर
बदनसीब
था ।
का चढ़ता सितारा बुलंद
ज़ां
ज़र बर्क था वज़ूद मगर
बदनसीब
था ।
माँगा ज़हर जो तंग आके
कशम-क़श से
जब।
दे दी दुआयें पर दवा न
दी तबीब
था।
कशम-क़श से
जब।
दे दी दुआयें पर दवा न
दी तबीब
था।
था जिसपे
भरोसा कि समंदर में आ
गये ।
क़श्ती बदल ली उसने
किनारा क़रीब था।
भरोसा कि समंदर में आ
गये ।
क़श्ती बदल ली उसने
किनारा क़रीब था।
धरती शज़र
को खा रही चंदा को आसमां।
को खा रही चंदा को आसमां।
उङती हवा पै अज़्म वो मंज़र
अज़ीब
था।
अज़ीब
था।
यूँ शक्ल से
लगता था बादशाह
वो मग़र:
लगता था बादशाह
वो मग़र:
था नंगे बदन दर्द से काँधे
सलीब
था।
सलीब
था।
नालिश कराई भाई ने घर
मेरा गिराकर ।
मेरा गिराकर ।
हिस्से में शक़ था फर्क़
का बस इक
ज़रीब था।
का बस इक
ज़रीब था।
गूँजे थे जिसके मीठे तराने
बहार में ।
बहार में ।
रोता हुआ वो मैं
था ना कि अंदलीब
था।
था ना कि अंदलीब
था।
कैसे सुधा बतायें ज़माने
को क्या सहा।
को क्या सहा।
दीमक
सा चाटता वो अलम
ज़ां हबीब था।
©®¶
Sudha Raje
Apr 12 at
1:14pm 2007
सा चाटता वो अलम
ज़ां हबीब था।
©®¶
Sudha Raje
Apr 12 at
1:14pm 2007
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