गीत: मेरी बेटी ये नगर~2~
जब वो खाली सी निगाहों के सवाहिल से परे ',
खोजते होंगे मुक्म्मिल से किनारों को डरे
जब वो अश्क़ों के समन्दर में नज़र धुँधली सी ',
बुन रही होगी वो ख़्वाबों की सुबह उजली सी ',
तब तेरे सुर्ख लबों पै ये तराना होगा ',
मेरी बेटी तुझे घर छोङ के जाना होगा ',
ये तो तय है कि तेरा घर वो ठिकाना होगा ',
©®सुधा राजे
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