गीत; अरे बावले क्यों रोता है
This is for whom are gave up hope to live
घोर घोर घनघोर तिमिर के बाद उदय होता है सूरज
दारुण दुख के बाद व्यक्ति का उदय मरण में से होता है ,
अरे बावले क्यों रोता है,
दुख में परम सृजन होता है
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1**चलो चलो चल पड़ो न रुकना लक्ष्य जरा बस तनिक दूर है
भय अवसाद निराशा दुख पर तुझे विजय पाना जरूर है
पथ के सारे घाव यात्रियों के उपहास भुलाता चल
दौड़ ना सके तो अंगुल-अंगुल भर पद खिसकाता चल
पीर प्रसव की सोच सृष्टि का जन्म रुदन में से होता है
अरे बावले क्यों रोता है!
दुख में परम सृजन होता है
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2** निन्दा व्यंग्य विनोद मात्र से आशा तोड़ पलायन मत कर
संघर्षों के बाद ही विजय मिलती है तू हिम्मत तो कर
गर्भवरण से देहमरण तक रो हँस गा बहलाता चल
किंचित भर मुस्कान बचे ना तो भी गा बतियाता चल
नए वृक्ष का जन्म जीर्ण के पतन मरण में से होता है
अरे बावले क्यों रोता है!
दुख में परम सृजन होता है!
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3**क्या कहते हैं लोग न सोचो, मत सोचो निंदक अशिष्ट है
एकाकी रह सके भीड़ में वो विरला सबसे विशिष्ट है
कोई नहीं तेरा तो क्या , तू सबको मीत बनाता चल
अहित भी करें सब तेरा तू गह देवत्व भुलाता चल
अनल विहग का जन्म स्वयं की भस्म दहन में से होता है
अरे बावले क्यों रोता है !!!
दु:ख में परम सृजन होता है! !
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4**हार कहाँ ये बस प्रयास था करो अभी अभ्यास प्रबल
ये प्रयत्न कुछ कम था फिर से बढ़े विजय की तृषा अटल
करो वार पर वार वार पर वार प्रहार बढ़ाता चल
चूर चूर लथ पथ हो श्रम से बाण प्रगाढ़ चढ़ाता चल
ध्वनिभेदी शर बहुत गहन अभ्यास परम में से होता है
अरे बावले क्यों रोता है !!
दु:ख में परम सृजन होता है! !
©®सुधा राजे
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(लक्ष्य, ,,,,निराशा डिप्रेशन आत्मघात नशे पलायन से बचाना)
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