Sunday 16 June 2013

कहानी **तुम्ही हो बंधुसखा तुम्हीं हो****

बाप की औक़ात
तो थी नहीं लौण्डिया पैदा करके बैठ
गया । लगाओ फोन नौटंकी बाज़ को । ले
के जाये अपना ये तौफ्फा!!!!!
जोर से गरजते पति को मोबाईल पर नंबर
लगाते देख मीरा दौङी और मोबाईल
मुठ्ठी में पूरी ताक़त से भींच लिया ।
""पापा को बीच में मत लाओ प्लीज ।
तुम्हें जो भी कहना है मुझसे कहो ।
पापा की उमर हो गयी । अब कितने
दिन के मेहमान हैं कुछ पता नहीं ।
उन्होंने क्या किया!!! तुम्हें दहेज चाहिये
था तो विवाह के पहले कहा होता!!!
या तो दहेज मिलता या मना कर देते ।
तुम्हें लङकियाँ बहुत मिल जातीं ।
पापा को अगर घर वर
नहीं मिलता तो मुझमें ताक़त थी मैं
पापा की देहलीज पर सारी उमर काट
देती । या कुछ भी करती तुम कौन होते
औक़ात तक पहुँचने वाले? ""
?
मीरा कहते कहते आक्रोश में भर उठी ।न
चाहते हुये भी आँसू और आवाज़ तेज हो गये ।
आहा हाहा जैसे दूध का धुला है
तेरा बाप!!!! ये क्या पता था कि कंगले
कबाङी भिखारी की औलाद साले
मख्खीचूस धोखा दे देंगे चार
सौ बीसी करेंगे!!!!
सोचा था अच्छा खासा परिवार है कुछ
तो अपने मन से देंगे ही । लेकिन
नहीं यहाँ तो बारात चढ़ावे और दावत
का भी खर्चा पूरा नहीं निकला । कपङे
भी ऐसे दिये कोई संगम पै
भिखारियों को भी नहीं देता!!! और
तुम्हारी कमाई क्या हुई । कॉन्वेन्ट में
पढ़ातीं थीं वो पैसा कहाँ गया मोटी तन
थी सब खा गये साले बेटी का धन
पापी कहीं के ।
मेरी मति मारी गयी थी जो मैं हाँ कर
बैठा ।धोखे बाज नीच कहीं के । ""
मीरा के लिये यह कोई नई बात
नहीं थी । हर बार जब कोई
शादी परिचितों में और लङकी वाले
मोटी रकम दहेज दे जाते । पारस
का माथा चढ़ जाता । उसे लगता वह
योग्य था सुंदर और परिवार
का इकलौता चिराग तो उसे तो इससे
ज्यादा दहेज मिलना चाहिये था ।
मामाजी के थोथे आदर्शवाद ने
उसका लाखों का नुकसान कर दिया । अब
रही मीरा तो एक ही बच्चा होने के
बाद एक दम देहातिन और अनाकर्षक
लगती है । करती भी क्या है दस बीस
रोटियाँ बनाने के सिवा । एक मैं हूँ
सारा दिन खटता रहता हूँ । एक एक
सामान खरीदने में दस कीमती साल
निकल गये । एक ये कल के छोकरे ट्रक भर
सामान बिजनेस को मोटी पूँजी एक झटके
में मिल गयी ।मैं झींकता रहूँगा एक एक
सामान को सारी उमर ।
नर्क हो जाते वे दिन जब पारस
किसी की शादी से आता ।
पढ़ी लिखी सुंदर
मीरा आदर्शों की बलि चढ़ गयी । उसने
चाहा था बिना दहेज विवाह करे ।
किया भी । तभी हाँ की जब पारस के
परिवार मामाजी और सब जिम्मेदार
रिश्तेदारों ने मना कर दिया कुछ भी लेने
से । साल भर मीरा घर सँभालती रही ।
शादी के कपङे पुराने हो चले । पारस के
पिता भयंकर भौतिकवादी । एक एक पैसे
का हिसाब माँगते । कपङे की दुकान पर
पारस जैसे नौकर बनकर रह गया था ।
निजी कोई व्यापार करने
को पूँजी नहीं । पढ़ाई जैसे तैसे बी ए
किया था आता कुछ नहीं था नकल और
गाऊडें सिफारिशे और
नेता जी का भांजा होने से पास
होता रहा ।
घर से ज्यादा मामा के संगठनों के प्रचार
में बॉडीगार्ड कम ड्राईवर ।
मामा जी शातिर राजनीतिक लाभ के
लिये बिना दहेज की शादियाँ उन
रिश्तेदारों की करानी शुरू कर
दीं जो ठलुये या बङी उम्र के बेरोजगार थे
। पिता से बाग़ी पारस को पुत्र समान
घोषित कर जमकर तारीफें ली और
मीरा के परिवार में भी महान् बन गये
मीरा की दूर की मौसी पारस
की मामी थीं ।
लेकिन मीरा का जीवन बरबाद
हो गया । पिता से वह कभी कह
नहीं सकती थी कि पारस और उसके
पिता एक एक पैसे यहाँ तक कि चाय तेल
साबुन तक को तरसाते हैं । और पारस
दिनों दिन उग्र होता जा रहा था ।
पिता का सारा गुस्सा वह मीरा पर
निकालता ।
"""पुत्र भी पैदा करके नहीं दिया मनहूस
ने ""
अक्सर बङबङाता । दोनों के बीच पहले
साल का रिश्ता हमेशा को खत्म
हो चुका था ।दिन भर नयी नयी ग्राहक
लङकियों से मीठी मीठी बातें
करता मधुरभाषी प्रसिद्ध पारस
सीधा सादा लगता । जबकि ट्यूशन पर
सख्ती से इंग्लिश साईन्स मैथ
पढ़ाती मीरा तेज लगती ।
अब तो हाथ भी छोङ देता ।बहस का अंत
मीरा के बाप को जी भर गालियाँ देने के
बाद ही होता ।मीरा का मन दुखता ।
पापा को कैसे कहे कि
""पैसे की वज़ह से रिश्ता टूट गया!!! वह
अपनी सारी साधना समर्पण के बाद
भी दिल नहीं जीत पायी पति का!!!
पापा कर भी क्या लेंगे!!!! अब सब
संपत्ति भाईयों में बँट गयी। एक
कमरा पापा के पास बचा है । पेंशन है
सो भाभी को न दें तो खिलाये पकाये
कौन!!! पापा को बँटवारा करने से पहले
बेटी का खयाल तक क्यों नहीं आया?
पापा केवल फोन पर ही सुनकर कैसे मान
लेते हैं कि मैं सही हूँ!!!
वहाँ थी तो कितना दुलार जताते थे ।अब
याद भी नहीं रहता कि बिना बिजली के
बेटी पर क्या गुजरती होगी जबकि खुद ए
सी में पङे रहते हैं । सैकङों चैनल
वाला टी वी देखते हैं बेटी को घर में रात
दिन काम में जुटे रहने से फुरसत ही नहीं!!!
पापा आप सचमुच स्वार्थी हो पारस
सही कहते है । एक पुत्र होने के नाते
उसका हक़ है अपने पिता की संपत्ति पर
तो मेरा भी पुत्री होने के नाते है ।
पारस जिस परेशानी से गुजर रहे हैं
उसका हल है पूँजी । और पूँजी जब आपने
भाईयों में बे ज़रूरत बाँटी वे सब जॉब में थे
मकान बनवा कर बैठ गये तब बेटी याद
क्यों नहीं आयी पापा ।न पारस ने
माँगा न मैंने । लेकिन आपको अपने घर और
बेटी के घर का अंतर
तो दिखता ही होगा न!!! आपसे
या भाईयों से दो दिन भी बिना ए
सी रौशनी फ्रिज और डिश टीवी के
रूका नहीं जाता । तब उसी माहौल में
पली बेटी कैसे रहती होगी आप
कभी क्यों नहीं सोचते ।
मीरा का दिमाग उबल रहा था । अपने
आदर्शों की लहू लहू होते
दोनों परिवारों से देख रही थी ।
पापा ने मामाजी की बातों पर यकीन
कर लिया कि कपङे की दुकान पारस
चलाता है!! जबकि असली मालिक पारस
के पिता थे पारस तो बस खरचा निकालने
जा बैठता । दुकान भी किराये
की थी जबकि मामाजी ने न बताया न
पापा ने पूछा बस
अंदाजा लगा लिया कि दुकान निजी है।
घर में एक बाईक और एक बेड के अलावा हर
चीज पर पारस के पिता का दखल था ।
पारस अब सँभलना चाहता था मगर देर
हो गयी थी । वंशनाशिनी के कलंक से
पीङित मीरा जानती थी दूसरे बच्चे
का खरचा ट्यूशन के दम पर
नहीं उठाया जा सकेगा । ससुर तो सब
कमाई अपनी दोनों बेटियों पर लुटाते
रहते जिनकी शादी को बीस बीस साल
हो गये । दीदियाँ चालू शातिर वज़ीर
की तरह सलाहकार भी थीं ससुर जी की ।
मीरा तकिये में मुँह गङाकर रो उठी ।
सारी हिम्मत ढह गयी ।
ये आपने धोखा दिया पापा मुझे
डुबो दिया आपने ।मैंने इतना प्यार
किया भरोसा किया और मेरे आदर्शों में
कहीं आपकी संपत्ति शामिल नहीं थी ।
परंतु आपने तो पैरों से ज़मीन सिर से
आसमान ही खींच लिया ।
चलो चाय पी लो ।
ये पारस था
हमेशा की तरह झगङा शुरू होता मीरा के
बाप को कोसने से । और इसी तरह बेबस
मीरा जब रोती तो पारस खुद चाय
बनाकर पिला देता । लेकिन प्यार
तो भाप बनकर उङ गया था ।
मीरा बिलख पङी पारस की गोदी में
सिर रखकर ।
मुझे जलाकर मार दो । मगर मुझे विवश
मत करो पारस!!!
मैं उस घर से कभी दो पैसे नहीं माँग
सकती ।
किस मुँह से कहूँगी कि वे सब
बङी बङी बातें हवा हो गयीं!!!
चलो शहर चलते हैं कोई
नौकरी मजदूरी करेगे ।
पारस भी भावुक हो उठा
मैं कितना बे वकूफ हूँ ।
गलती किसी की सज़ा किसी और
को देता हूँ ।
बरसों बाद दोनों एक दूसरे की बाँहों में
थे । पारस का हाथ गीला हो गया ।
उसने बत्ती जलाकर देखा तो मीरा के
सिर से खून बह रहा था ।
ये कैसे लग गयी!!!
फिर उसे याद आया कि मीरा ने जब
मोबाईल भींचा हाथों में तब उसने तेज
धक्का दिया था कि मीरा खिङकी की च
से जा टकरायी और वही बैठी रह
गयी छोङ गया था वह ।
मीरा कभी चोट लगने पर नहीं रोती ।
आज इतना रोयी तो कुछ सोच
रही होगी ।
उसने पट्टी बाँधकर मीरा को बाँहों में
भींच लिया ।
अब नहीं कभी नहीं । कसम से कभी नहीं ।
सॉरी ।मीरा!!
पारस ने कान पकङे ।
कसम मत खाओ पारस । तुम जिस बात
की क़सम खाते हो वही टूट जाती है सबसे
पहले ।
अँधेरा खामोशी और दर्द
का साझा दीवार पिघल गयी ।
एक दिन मीरा को फिर उलटियाँ हुयीं ।
अब???
वह सोच में पङ गयी । पारस ने
कहा अबॉर्शन नहीं । अब जो होगा देखेंगे

दस साल बाद फिर बच्चा!!!डॉक्टर ने
खतरे की चेतावनी दी ।
पापा किसी को भेज देंगे । भाभी बहिन
भतीजी नौकर कोई तो आ ही जायेगा तुम
चिन्ता मत करो ।
मगर कोई नहीं आया मीरा को दर्द शुरू
हुये तो अस्पताल जाते नौ साल
की बच्ची अकेली कहाँ छोङती मीरा ।
साथ ले आयी ।
महिला सरकारी अस्पताल
की तीमारदार औरतों और आशा ने टोका
""कोई औरत साथ नहीं?
चुप पारस क्या कहता मीरा के परिवार
ने फिर धोखा दिया था । आने को कहकर
कोई नहीं आया था । क्योंकि महानगर से
इस कस्बे की असुविधाओं में पंद्रह दिन
बिताना उन लोगों के लिये नरक से कम
नहीं था । वह हँस पङा बोला
--""सिस्टर मेरे माँ बाप भी मर गये इसके
भी माँ बाप ही नहीं भाई बहिन भी मर
गये """
दर्द से चीखती तङपती मीरा ने
देखा पारस मुस्करा रहा था वर्षों बाद
ये फ़िदाईन मुस्कुराहट उसके चेहरे पर
थी ।
ऑपरेशन थियेटर में ले जाने से
पहले पारस ने रिस्क फॉर्म पर हस्ताक्षर
किये तो दहशत थी चेहरे पर
बच्ची की उंगली पकङे
लुटा पिटा सा खङा था ।
स्ट्रेचर पर से टॉप्स मंगलसूत्र उतारकर
पारस को दाँत भींचकर मीरा ने थमाये
और हाथ दबाकर चूमते पारस से
बोली ----"""तुम्हीं हो बंधु
सखा तुम्हीं हो तुम्हीं हो माता पिता तु
वह बेहोश हो चुकी सी लंबी गैलरी में
स्ट्रेचर पर ले जायी जा रही थी ।
पारस लॉबी में बेटी को कमर में भींचे
मृत्युंजय शिव की तस्वीर के सामने अंदर
ही अंदर चीख
रहा था मेरी मीरा को बचा को बचा लो

प्रकट में
बुदबुदा उठा --"""तुम्हीं हो माता पिता
तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो °°°°°°°°°°
°°°°°°°°°°°
ऑपरेशन थियेटर तीन घंटे बाद नर्स
बाहर निकली गुलाबी कपङे में नरम
बच्चा थरथराते हाथों में थमाकर बोली
""मुबारक़ हो भाईसाब बेटी हुयी है
भाभी जी खतरे से बाहर हैं । शाम तक
होश आ जायेगा ।
पारस ने बेटी को सीने से चिपकाकर जेब से
पाँच पाँच सौ के कुछ नोट निकाले और
नर्स के हाथ में थमा दिये

बङी बेटी नन्हीं बहिन को देख
ताली बजाकर गाने लगी उसे गोद में
बैठाकर
--""तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो ।
तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो '''''
पारस ने दोनों को बाँहों में भींच
लिया ।
""मुझपर गयी है ""
©®¶©®¶
सुधा राजे
Sudha Raje

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