Friday 28 June 2013

लेख***कब तक अनदेखी धमनियों की माँसपेश की **खंड प्रलय एक चेतावनी**

बाढ़ सूखा भूकंप बादल फटना भूस्खलन
अग्निकाण्ड तङित्पात् और
सुनामी आदि का होना बे वज़ह
कभी नहीं होता । कार्य कारण संबंध की
प्रत्येक दुर्घटना के पीछे एक
बङा लंबा सिलसिला मनुष्य के लालच और
ग़लतियों का चला आ रहा है ।
विज्ञान इतनी उन्नति कर चुका है कि व
सब विपदाओं की भविष्यवाणी पहले ही क
सकता है और करता भी रहता है । स्वार्थ
ऐसी चेतावनियों की अनदेखी की जाती है
लेकिन ये भविष्यवाणियाँ तभी काम की हैं
इनपर तत्परता से एक्शन लिया जाये और
ऐसा एक्शन लेने को चौकस और तैयार तंत्र
अभ्यास करता रहे ।
पिछली बिजनौर बाढ़ में गाँव डूबने का क
था कि पिछले पाँच सालों से हरेवली डैम के
कभी सूखी नहर पर भी खोलकर ग्रीस और
नहीं किये गये थे । जब फाटक नहीं खुला त
मैन गाँव छोङकर भाग गया और
आला अधिकारियों ने क्रेन से फाटक खिंचव
तो टूट गया फाटक और बे जरूरत बे
इंतिहा तबाही पानी ने मचा दी ।
विश्व के विविध वैज्ञानिक संगठनों रिस
सेन्टर्स ने धरती के विभिन्न पारिस्थित
तंत्रों ज्वाला मुखी सुनामी भूकंप उल्काप
अतिवृष्टि आँधी हरीकेन बवंडर और भूस्खल
क्षेत्र धरती के मानचित्र पर चिह्नित क
संबंधित सरकारों पर्यावरण और पर्यटन
पारिस्थितिक तंत्र विभागो मौसम
विभागों को सौंप रखीं हैं । समय समय पर
सूचनाये आज के तीव्र सेटेलाईट युग में अपडे
भी जायी जातीं रहती है ।
देश भले ही अलग अलग राजनैतिक
इकाईयाँ हों लेकिन कागज के नक्शे पर
नहीं पृथ्वी । वह एक जीती जागती गति
ब्रह्माण्वीय इकाई है । भूमि के एक हिस्
का परिवर्तन परोक्ष या प्रत्यक्ष पूरे
धरती ग्लोब पर प्रभाव डालता है । जैसे
ध्रुवीय हवायें और अल्ट्रवॉयलेट किरणें ।
जहाँ तक भारत का परिप्रेक्ष्य है ।
नदियाँ भारत रूपी देह की धमनियाँ और
शिरायें हैं जो हिमालय रूपी हृदय से समुद्
रूपी गुर्दों तक निर्बाध बहती रहें इसी
राष्ट्र रूपी देह का परिसंचरण तंत्र सही
करता रह सकता है । पहाङ पर्वत गिरि
इस राष्ट्र रूपी देह की अस्थियाँ और कंक
तंत्र हैं । मिट्टी माँस और पेङ व्वचा हैं ।
रोम कूप हैं तो खनिज विविध पुष्टिवर्धक
। हिमालय ही मस्तिष्क है निःसंदेह । औ
कृषि मैदान वक्ष और उदर है । पठार भुजदं
और तट पाँव पंजे । द्वीप अंगुलियाँ हैं ।
हिमाचल प्रदेश जम्मू कश्मीर उत्तराखंड
पश्चिमी उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब
का पूर्वी भाग और सात बहिनों का राज्
आसाम मेघालय मणिपुर त्रिपुरा सिक्किम
अरूणाचल प्रदेश तक का क्षेत्र । कच्चे नर
बेडोल भुरभुरे पत्थरों के छोटे बङे बोल्डरों
विश्रंखलित पहाङों से निर्मित है इनमें रे
मिट्टी का मलबा हिमालय के अपरदन वि
क्षरण और जलप्लावन के संयोग से किसी प
मक्के या बूँदी के लड्डू की तरह गठित भू
संरचना है । यहाँ पक्के शैल नहीं है ।
ना ही पठार हैं । मिट्टी जमकर पत्थर औ
पत्थर टूटकर मिट्टी बनते बिगङते रहते हैं
हिमालय से निकलने वाली सब नदियाँ जो
से होकर भूटान म्यनमार नेपाल चीन बांग
तक बहतीं हैं । वर्षा काल में जब उफनती
तो पहाङ के पानी की ही वजह से जो हर
बह कर इन नदियों नालों झरनों और झील
होकर बङी नदियों तक बहता चला आता
इस समय तङित्पात बादल फटने और अतिवृ
पहाङ भूस्खलन से गुजरते हैं । नये झरने और
नदी धारायें बन जाते हैं ।
नदी वर्षा के उपरान्त जगह कई बाद बद
लेती है । ये कटान वहाँ भयंकर रूप से दिख
जहाँ पहाङ खत्म होते हैं और
मिट्टी का डेल्टा पंक और जमी हुयी भूमि
क्षेत्र को नदी कगार बनाकर काट डालत
वनस्पति इस पर लेप का काम करती है ।
फूस कुश और छोटी झाङियाँ जहाँ मिट्टी
और गोंद का काम लेकर पत्थरों को लड्डू क
आपस में बाँधते हैं बङे पेङ बादल और नदी के
को धीमा कर डालते हैं । और इसतरह सदि
जमते रहते पहाङों पर हरियाली का कवच
चढ़ा रह कर पहाङ के कंकङ पत्थरों को बि
रोके रखता है ।
अफ़सोस की बात ये है कि ये सब समझते हुये
नौकरशाह नेता प्रशासक ठेकेदार भू
माफिया टिम्बर माफिया ट्रान्पोर्ट
माफिया । ट्रैवल एंड टूरिज्म माफिया ध
ठेकेदार और अय्याशी के शौकीन धनिक लो
सारे मानको की जानबूझकर अवहेलना
करते हुये जब बहुमंजिले भवन पापङ
सी पतली दीवारें बिना मजबूत इंफ्रास्ट्
के मिलावटी रेत सीमेन्ट और घटिया निर्
सामग्री से रातदिन एक करके पहाङ को
डालते हुये नदियों के किनारे खङे करते चले
तो ।सारा बँधा हुआ पहाङ हिल जाता है
भीतर ही भीतर खिसकन शुरू हो जाती है
नदियों पर बाँध जब बनाये जाते हैं तो पूरे
में पहाङ की दरारों से
पानी रिसता रिसता पूरे इलाके को नमी
देता है ।
यही कारण है कि उत्तर काशी से बिजनौ
मकानों में भयंकर शीलन रहती है ।
नदियों पर अत्याचार ये होता है कि हर
मार्च से जुलाई तक जब पहाङ का बारिश
नहाने और गंगा बादल पहाङ के नृत्य का उ
यौवन पर रहता है तभी । मैदानों से तफर
शौकीन छुट्टी मनाने वाले हनीमून मनाने
पिकनिक मनाने और इश्क़ लङाने वाले जोङ
अलावा एडवेंचर और तीर्थ यात्रा का एक
चार काज वाले पर्यटन पर आ जाते हैं ।
दुधमुँहे बच्चे अशक्त जर्जर बूढे । मोटे
भारी भरकम लोग :और तब पहाङ पर एक
लाख यात्री का धमकता यातायात पहा
की शांति को भंग कर देता है ।
वाहनों लाउडस्पीकरों म्यूजिक सिस्टम
टीवी और बातों का शोर पहाङ में
कितना गूँजता है इसे सिर्फ
मूलनिवासी ही महसूस कर सकता है । शो
क्षरण बढ़ाता है ।
इन यात्रियों के खाने रूकने और ढोने में सह
कार्मिक और सुरक्षा तंत्र
का भी उतना ही भार बढ़ जाता है ।सीज
पश्चिमी यू पी का बहुत
बङा हिस्सा पहाङों पर रोजी कमाने चल
पङता है ।
इनके रुकने खाने और घूमने की वजह से अवैध
टेम्परेरी निर्माण और ट्रैकिंग होती है ।
खोदना और लकङी काटना जारी रहता है
नौकरशाह भ्रष्ट कमीशन खोर नेता मिल
घटिया सङकें पुल बनवाते रहते हैं ।
जब ये यात्री लौटते है तो पीछे छोङ जाते
कचरे का अंबार । मल और प्लास्टिक पॉल
पाउच सिरिंज गुटखा और सिरिंजें लेटेक्स औ
शराब की बोतलें दवाओं के रैपर पेस्ट क्री
की ट्यूबें ब्रश और टूटे जूते चप्पल और
टनों ऐसा कचरा जो खाद नहीं बनता न ग
। न ही बहता है ।
नदियों में पटक दिया जाता है सारा ।
पहाङ पर से बारिश में बहकर जब आता है
तो नदी को न केवल जहरीला बनाता वर
मार्ग भी रौंध कर प्रवाह का मार्ग बद
विवश करता है ।
नदियाँ बाढ़ से साफ करतीं हैं स्वयम् को ।
नदी में बाढ़ जरूरी है ।
लेकिन नदी का मार्ग मत रोको ।
जगह जगह
फैक्टरियाँ अलकनंदा भागीरथी रामगंगा
गंगा बाणगंगा मालन पिंडर सरयू
यमुना खो पीली तक ये
रिफाईनरियों का मैला नदियों में पटक
दिया जाता है ।
पहाङ का पानी तराई भांबर खादर को
करता है । क्योंकि ये पानी सहारनपुर ब
मुरादाबाद पंजाब हरियाणा तक पहुँचतो
धीमा होने से खङा ही रहता है महीनों त
भर जाने से ईख और धान की फसलें गल जात
मवेशी और खेत ही रोजी का मुख्य ज़रिया
मरने और खेत भरने से बरबाद किसान मजदू
कच्चे घरों को भी भरभराकर गिरता बेबस
देखते हैं । साल भर के लिये जमा अनाज और
अगली फसल का बीज सङ गल बह जाता है
फर्नीचर ईँधन प्राय जो कंडे उपले होते है
और अब फैक्टरियों के कब्जे के कारण फूस भी
दस सालों से नहीं मिलती ।
तो पलायन को विवश ये भाँबर तराई के ल
अपराध और खानाबदोश ज़िंदगी की और ध
जाते हैं ।
नहरों बैराजों डेम और बाँझ के पार्कों की
सफाई गाद और सिल्ट साफ करने का बजट
साल जनता के खून की कमाई से आता है लेक
कागज पर सब होता है । सिंचाई कॉलोन
मिलीवटी निर्माण
वाली पूरी कॉलोनी बिजनौर के खो बैरा
दस साल पहले बह गयी थी नाम निशान त
नहीं । हजारो हैक्टेयर उपजाऊ अव्वल भूम
रेत कंकङ पत्थर भर गया और दलदल बन गये
नहरों की सिल्ट साफ न होने से हर साल
दरजन पशु और मानव खप कर मर जाते हैं ।
खनन् माफिया मछली पलेज और सिघाङा आ
लिये अवैध रूप से ये तटपट्टियाँ लोगों को
रूप से लाभ लेकर दे दी जाती है । करोङो
मस्टर रोल में भरने के बावज़ूद आज तक बिज
खो बैराज का ना तो पुल चौङीकरण हुआ
नहीं रेलिंग सुधरी न ही नया पुल पैदल और
की सुविधा हो सकी हर बाढ़ में चार पाँच
सो गाँव बिना बिजली के और शेष भारत से
से कटे रहते हैं
वे जो लाभ कमाते हैं उनको पहाङ या तरा
खादर भाँबर के दर्द से कोई वास्ता नहीं
राहत बचाव के नाम पर किसी नदी तट के
नगरपालिका में मानसून के पहले नावें तक
नहीं रहतीं । बाढ़ में आसपास के
अपराधी गिरोह और सक्रिय हो जाते हैं
राहत कार्यों में
नौकरशाहों की कोठियाँ महानगरों में फ
खङी हो जातीं है ।
पहाङ ने अभी तो सिर्फ पीठ हिलायी है
कहीं अनदेखी की तो बिजनौर सहारनपुर
दिल्ली ज्यादा दूर नहीं ।
बाढ़ में जब लोग भागते
मरते घर टूटते हैं तो । मौकापरस्त
वहीं पर पहुँच जाते हैं । और ट्यूब से
रातों को सुरक्षित दूरी तक जान
जोखिम में डालकर भी लाशों पर से गहने
उतारते । गाङियों के सामान चुराते ।
घरों के भीतर से माल असबाब भरते ।
पहाङ से नीचे पानी की रफ्तार कम
होकर पानी खङा रहता है कई दिनों तक
गाँव बस्तियों घरो में तब पशु चोर
माफिया भी जिंदा या मुरदा मवेशी पर
टूट पङते हैं एक मवेशी का चमङा तीन
हजार से ऊपर का बिकता है । ये
स्थानीय लोग नहीं बल्कि मुहाज़िर और
निकटवर्ती इलाकों के गिरोह होते हैं
बाढ इनको ज़श्न बनकर आती है।
पहाङ तराई भांबर और खादर में
नदियों का जाल है ।
अलकनंदा
भागीरथी
मंदाकिनी
यमुना
गंगा
लक्षमण गंगा
पिण्डर
खो
रामगंगा
और इनसे निकलीं हजारों नहरें ।
नहरों पर डैम
बैराज
और पुल
पुल और बैराज के आसपास हर साल पंक और
रेत जमा होकर हज़ारों हैक्टेयर
भूमि तटवर्ती गर्मियों में निकल आती है

जहाँ
खिंचाई विभाग ""नामक सफेद हाथी पले
रहते हैं ।
ये हाथी इन मकानों में नहीं रहते अक्सर
किराये दार रहते हैं इनमें और
कोठियाँ होतीं हैं महानगरों में ।
ये तटवर्ती जमीनें पॉलेज यानि तरबूज
खरबूज करेले परवल तोरई लौकी कुँदरू और
मक्का ज्वार की फसल बोने के लिये अवैध
कमीशन लेकर स्थानीय लोगों को बोने
फसल उगाने दे दीं जाती हैं ।।हर नदी के
किनारे अवैध रेत खनन
माफिया भी लगा रहता है खिंचाई
विभाग । को यही रेत सिल्ट गाद और
फाटकों की रंग पुताई सफाई वृक्षारोपण
पार्क सुंदरी करण को जमकर बजट
मिलता है ।
ये पार्क बैराज जुये और असामाजिक लेनदेन
के काम भी बहुधा आते हैं । इनपर अवैध
मछली पकङन भी होता है । किनारे के
दलदलों में सिंघाङे के अंधे की रेवङी वाले
उत्पाद भी होते है ।
पटेरी घास कास का जंगल
खङा हो जाता है
तो गत्ता फैक्टरियाँ सब ढो जातीं हैं ।
गरीब और उसके ढोरों को विगत सात
वरषों से फूस का छप्पर भी नसीब
नहीं पॉलिथीन डालने लगे ।
क्योंकि
पूँजीपतियों ने गत्ते
की फैक्टरियाँ लगा कर सब खीच
डालना शुरू कर दिया फूस जो अब तक हर
घर का ओसारा था अब केवल धनिक
ढाबों की भद्रदुनियाँ की ऐशगाह रह गये

तो सिल्ट क्यों साफ करें???
नदी नहर जब बारिश आती है तो अपने
कैनल से बाहर बहने लगती है ।
मवेशी जो रोजी का जरिया हैं पजिहार
कछवार जो रोजी देते है बह जाते हैं
किसी को समझ में आया हमने क्या कहा??
इन होटलों की तीर्थ पर जरूरत
क्या थी???? तीर्थ तो ""वीत
रागियों के लिये है!!!!!!!
देखा है वहाँ तफ़रीह छुट्टी मनाने और
जवान जोङे इश्क़ फ़रमाने जाते हैं ।।
क्या चारधाम का अर्थ शराब मांस
मदिरा हनीमून और बाजारीकरण है????
तो ये तो पहाङ ने सिर्फ पीठ
हिलायी है थोङी सी बस!!!!
अगर शिव का त्रिनेत्र खुला तो????
मौसम विभाग ने ""एलबम वार्निंग""
दी थी ।फिर प्रांतीय सरकार ने बयान
दिया ऐसी चेतावनी तो मौसम विभाग
देता ही रहता है ।।।एलबम वार्निंग
मतलब भीषण चेतावनी ।।
आज फिर मौसम विभाग ने चेतावनी दी है
कि 21-28 जून तक मौसम दुबारा भयंकर
रूप ले सकता है ।।
अब
सहारनपुर के गाँवो तक यमुना में लाशें
बहकर आ रही हैं ।
ग्रामीण उनके किनारे लगने पर वापस
बहा दे रहे हैं ।
सङते मानव
उजडे गाँव??????
किसके लिये?? कैसे विकास
जब
पहाङ को पारिस्थितकीय तंत्र ने
खतरनाक ज़ोन में पहले ही घोषित
किया रखा है????
फिर पहाङ खोदे क्यों ।
ये कमीशन खोरी के मिलावटी निर्माण
किनके हितपोषण को बनाये????
अगर पहाङ के बाँधों को कुछ
हो गया तो?????? न दिल्ली रहेगी न
दौलताबाद मत छेङो ये
देवभूमि चारधाम सिर्फ
वानप्रस्थियों की साधना के है हरे रहने
दो पहाङ ताकि हरा रहे देश
पहाङ खादर भांबर तराई सब जूझ रहे हैं
जलप्रलय और भूस्खलन के दुष्परिणाम ।
सवाल है
कि दो चार नेता मरने पर राज्यीय शोक
घोषित कर दिया जाता है
आज लाखों लोग बेघर सदा को गरीब और
अनाथ हो गये पहाङ बरबाद हो गया ।
अब भी ""कपकोट''और बागेश्वर में लघु
विद्युत परियोजना चल रही है
मलबा खोद खोद कर ।सरयू नदी में
पटका जा रहा है । ये नदी के मार्ग जब
अवरूद्ध होंगे तो वह
मनुष्य के मार्ग पर चलकर सब
बहा देगी ।।
टिंमबर माफिया
भू माफिया
होटल माफिया
ट्रैवल टूरिज्म का ऐशगाह बना देना ।
नदियों नहरों की सिल्ट ।सफाई
का पैसा कागज पर काम दिखाकर हङप
कर डालना ।पुलो सङकों की ठेकेदारी के
भ्रष्टाचार
नदियों के किनारे बहुमंजिले निर्माण ।
पहाङ को खोद डाला!!!!!
क्या ये शोक का विषय नही!!!!!!!
तब भी आई पी पर
चर्चा फिल्मी उद्घाटन!!!!
ज़श्न?????
सेना का एक एक जवान
सौ सौ कामचोरों से ज्यादा कीमती है ।
वे सब वहाँ मौत हथेली पर लिये जूझ रहे है
।पानी चाँदी के भाव बिक रहा है ।
कपङा चाहिये
खाना चाहिये
चादरें भेजो
हर घर से पाँच चादरें और पाँच
आदमी की एक हफ्ते की खुराक़ जमा करके
भेजो सेना और अधिकृत कैंप तक
राष्ट्रीय दुख किसे कहते हैं????
वहाँ एक तिहाई मुस्लिम भी है
पश्चिमी यू पी के दुकानदार कारीगर
ड्राईवर छात्र ।
सिख भी हैं
और ईसाई भी
ये किसी दल
मज़हब
या इलाके का मामला नहीं है
लोगो का साल भर का जमा राशन जीवन
भर की पूँजी बह गयी परिजन मर गये और
दिशाज्ञान जीने की इच्छा मर रही है
आशायें
ये मसला है राष्ट्र को एक तत्पर देश
घोषित करने का ।
लोग रो रहे है आप ज़ाम जलसे कैसे
लगा सकते है
उत्तराखण्ड संकट को राष्ट्रीय संकट
घोषित कीजिये।
आपको कैसे बतायें बाढ़ क्या है ।। अनाज
जो सालभर कोठियों में मिट्टी और टीन
में बोरियों में भरकर ऱखा जाता है सङकर
फूलकर टंकियाँ फट जातीं है और अगले साल
तक न बीज बचता है न खाना!!!! वहीं साल
भर उपले पाथती कंडे लकङी जुटातीं औरतें
। पति ससुर जेठ बेटा कहीं परप्रान्त में
नौकरी पर है या दुकान पर ।
सारा ईधन गलकर बह गया । पहाङ पर
आज भी एक रजाई की सरदी है । हम लोग
जो जरा सा नीचे हैं आज भी रात दस बजे
बाद खुले में नहीं सो सकते ठंड लगती है ।
एक महीने बाद बरफ जमनी शुरू
हो जाती है रजाईयाँ स्वेटर जो पाँच
पाँच साल चलते सब गल सङ बह गये ।
मकान फट गये जो जीवन भर के तिनके थे
बह गये । बेटी का दहेज बेटे की किताबें
कागज पहचान पत्र????? क्या क्या???
कई गाँव जहाँ क्यारियाँ खेत और बाग थे
वहाँ रेत कंकङ पत्थर बोल्डर भर गये ।।।
गाँव का नक्शा ही खत्म।
पहाङ पर फँसे लोगों की जितनी चिंता है
उससे ज्यादा तराई पहाङ भांबर और
खादर के बरबाद लोगों की कब
होगी???????
दिल्ली का पानी आया चला जायेगा ।।
लेकिन धनवानों का सैर गाह पहाङ अगर
तबाह हुआ है तो क्या खाँयेगे सब????
तराई भाँबर खादर पहाङ के लोग?????
हमने देखी और भुगती है तबाही ।।।बह
गये गेंहू ।।सङ गये फरनीचर।।गल गये
इलेक्ट्रॉनिक्स।।खङे रहने से पानी में हुये
घाव और ढह गये मकान मर गये
मवेशी सङती लाशें खेतों में
सङी हरियाली और बची भर गयी रेत
कंकङ ईँधन खत्म औरते प्रसव पीरियड्स
दर्द बच्चे भूख चोर लुटेरे भीगे बदन बुखार
और बाद में महामारी । राहत???
हुँहहहह शासक वर्ग के कारिन्दे,??? अब
देखना सब नहीं तो बहुत से
इसी का मस्टर रोल भरकर कैसे
मालामाल!!!! फिर
बाढ़ के साथ मुँह बाये खङी है
समस्या ।।पीने का पानी ।।खाना ।।
अपनों के बिछोङे।।संपर्क खत्म।।भीगते
रहने से बीमारी संक्रमण ।।।सुरक्षित
छत।।दवाईयाँ ।।
अधिकांश पुल और इमारतें धराशाली जल
में प्यासे लोग

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