Monday 17 June 2013

केवल एक खबर है साहब।

Sudha Raje
आना जाना अनजाने का केवल
एक खबर है साहब।।

कौन किसी के दर्द पे
रोया ऐसा मेरा शहर है
साहब।।

रोज किसी की चिता से
जिनकी रोजी रोटी चलती हो।।

कत्ले-आम' पे 'गिरती 'लाशें
त्यौहारी मंज़र है
साहिब।।

कल फुटपाथ बाँह में भरकर सोता था नभ
ओढ़ के जो।।

वो अनाथ मंटुआ शहर का दादा भाई क़हर
है साहिब।।

बस्ती में क्यों आग लगी थी जाँच
कमेटी बैठी है।।


झुग्गी बस्ती पर बिल्डर की ठेकेदार
नज़र है साहिब।।


कब्रिस्तान बहाना भर था असल बात
मतगणना है।।


राजनीति का ठेठ पहाङा बहुसंख्यक बंजर
है साहिब।।

नील लगे लकदक कुरते पर लाल
दाग थे धोये गये ।।


लालढाँग दरभा दिल्ली तक चूङी की झर
झर है साहिब।।

बहुत
चीखती हुयी आवाज़ों की मुखिया थी हरप्यारी।।

कई महिने से हुयी लापता
मरद हुआ बेघर है साहिब।।

भुने हुये काजू पिश्ते में
मुर्गी तंदूरी भी थी।।


शपथपत्र पर दस्तखतों पे लहू हिना खंज़र
है साहिब
copy right ®¶©®¶
सुधा राजे ।
Sudha Raje..........

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