शराफत
अमन को पूजने वाले
शरीफ़ों का वतन है ये।
शराफ़त किसको कहते हैं ये
हिंदुस्तां बताता है।
जो पकङा जाये
वो पापी बचा जो
वो विधाता है।
ग़ुनहग़र जो सज़ा पाये बचे
ज़ीता कहाता है।
सुधा क़ानून के डर से
नहीं बनते कई
क़ातिल।
कहीं क़ानून ही क़ातिल
बचाता है बनाता है।
जो करना चाहते तो हैं
मगर कुछ
कर नहीं पाते।
वही इन कायरों और
पापियों के जन्मदाता हैं।
,जिसे कानून
की बारीकियाँ आ
गयीँ वो क़ारिन्दा ।
किसी को भून खाता है,
किसी का घर
गिराता है।
शराफत लफ़्ज
ही मानी नहीं
रखता
हकीक़त़ में ।
शहर का हर मवाली अब
शरीफों में ही आता है।
लपेटे चादरें या हो सरे रह
बे क़फन परदा।
य़े औरत का बदन दीवार
पहने भी चिढ़ाता।है।
वो जो लगते मसीहा जब
अनाथों को दवा देते ।
शिफ़ा क़ुदरत के नुत्फ़े
वो यतीमों को ज़िलाता है ।
बहुत ज़िच होके लिखती हूँ
लिखा जाता कहाँ सच सच।
वरक़ पै आग सी फैली हरफ़
जलता जलाता है।
दुआयें सब ख़तम हो गयीं ।
बची हैं बद्दुआयें बस ।
क़यामत क्यों नहीं आती ।
ख़ुदा भी ख़ौफ़ खाता है।
मेरे सिर से लहू बहता है ,
पसली जख़्म से घायल ।
कि साँसें ली नहीं जातीं,
ये दिल क्यूँ गुनगुनाता है ।
कोई उम्मीद अब बाक़ी नहीं है इस
सियासत से ।
ये घर में साँप का बिल है ।
जो धोख़े से चबाता है।
©सुधा राजे
©®Sudha Raje
Yesterday at
8:26pm ·
शरीफ़ों का वतन है ये।
शराफ़त किसको कहते हैं ये
हिंदुस्तां बताता है।
जो पकङा जाये
वो पापी बचा जो
वो विधाता है।
ग़ुनहग़र जो सज़ा पाये बचे
ज़ीता कहाता है।
सुधा क़ानून के डर से
नहीं बनते कई
क़ातिल।
कहीं क़ानून ही क़ातिल
बचाता है बनाता है।
जो करना चाहते तो हैं
मगर कुछ
कर नहीं पाते।
वही इन कायरों और
पापियों के जन्मदाता हैं।
,जिसे कानून
की बारीकियाँ आ
गयीँ वो क़ारिन्दा ।
किसी को भून खाता है,
किसी का घर
गिराता है।
शराफत लफ़्ज
ही मानी नहीं
रखता
हकीक़त़ में ।
शहर का हर मवाली अब
शरीफों में ही आता है।
लपेटे चादरें या हो सरे रह
बे क़फन परदा।
य़े औरत का बदन दीवार
पहने भी चिढ़ाता।है।
वो जो लगते मसीहा जब
अनाथों को दवा देते ।
शिफ़ा क़ुदरत के नुत्फ़े
वो यतीमों को ज़िलाता है ।
बहुत ज़िच होके लिखती हूँ
लिखा जाता कहाँ सच सच।
वरक़ पै आग सी फैली हरफ़
जलता जलाता है।
दुआयें सब ख़तम हो गयीं ।
बची हैं बद्दुआयें बस ।
क़यामत क्यों नहीं आती ।
ख़ुदा भी ख़ौफ़ खाता है।
मेरे सिर से लहू बहता है ,
पसली जख़्म से घायल ।
कि साँसें ली नहीं जातीं,
ये दिल क्यूँ गुनगुनाता है ।
कोई उम्मीद अब बाक़ी नहीं है इस
सियासत से ।
ये घर में साँप का बिल है ।
जो धोख़े से चबाता है।
©सुधा राजे
©®Sudha Raje
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