सुधा राजे का लेख - एड्स का हौवा या फ्री सेक्स का बढ़ावा??
एड्स का हौआ?
या
फ्री सेक्स का बढ़ावा?
एक परिचित की बहिन को विवाह के तीन साल बाद ही सदा सदा के लिये घर लौटना पङा "
कारण, उसके शौहर का निजी ट्रक था जिसपर वह फल और ब्रुश आदि लेकर
उत्तराखंड से मुंबई तक का सफर करता था ।
साल के गिने चुने दिन घर रहता और उसी इक्का दुक्का छू छई में दो बच्चों
की माँ बन गयी वह ""सुहागिन बेवा "
फिर एक बार घर आकर बीमार पङने पर जाँच करायी तो पता चला "एड्स "हो चुका था ।
इसके बाद ज़ुल्म करने की इंतिहा हो गयी वह चाहता था कि बीबी उसकी है तो
हर हाल में उसका हक़ है वह मरेगा तो बीबी को जीवित रहकर क्या करना है ।
बंद कमरे के बलात्कार से बचने के लिये वह मजबूर होकर मायके लौट आयी और
बच्चों का बोझ उनके मामा पर पङ गया ।शौहर घर से फरार हो गया । मामा विवश
होकर मस्कट जाकर मजदूर बन गया और विवाह नहीं किया क्योंकि दीदी और उसके
दो बच्चों को पालना था या यूँ कहे वह बहिन को छोङ नहीं सकता था इसी वजह
से कोई लङकी वाला तैयार नहीं हुआ ।
उस मजबूर स्त्री का पति ट्रक बेचकर टैक्सी चलाने लगा और देहरादून में एक
किराये के कमरे पर जब मरने लगा तब खबर दी 'गुमशुदा शौहर एक दशक बाद मिला
और दो चार दिन में मर गया ।
क्या कहती है ये सत्यकथा?
आपने कभी
विज्ञापन गौर से देखे हैं?
#DrHarshvardhan
ने क्या ग़लत कहा है!!!!
(माफी बुजुर्गों से बेअदबी के लिये)
किंतु जब जब ये कंडोम के विज्ञापन आते हैं लगता है प्रचार किया जा रहा है
जमकर अय्याशी करो अब डरने की जरूरत नहीं क्योंकि कंडोम है तुम्हारे पास ।
और हर वक्त कंडोम रखो करीब क्योंकि रता नहीं कब कहीं भी लङकी मिल जाये और
कंडोम जेब में ना होने से हाथ से मौका निकल जाये ।लङकी जैसे हर तरफ रात
दिन सङक पहाङ समंदर कहीं भी मिल सकती है लेकिन कंडोम वक्त पर साथ नहीं तो
सुनहरा मौका गँवाना पङ सकता है ।""
ये सब अंतर्निहित संदेश है
हर विज्ञापन की भाषा कहती है कि जेब में कंडोम मतलब कोई परवाह नहीं ।
जमकर मस्ती करो लङकियाँ पटाओ और ऐश करो!!!!
जबकि
न तो पत्नी को पति और पति को पत्नी के प्रति हर हाल में वफ़ादार तन मन से
रहने का कोई संदेश है ।
न ही कोई संदेश है कि बच्चों में अंतर रखने के लिये ये एक सुरक्षित उपाय है ।
न ही यह संदेश है कि एड्स से बचना है तो चरितिरवान रहे एक पत्नीव्रत का
पालन करें अप्राकृतिक सेक्स ना करें और नशे ड्रग्स आदि से दूर रहें और
दूर रहे सङकछाप टैटू गोदने और नाक कान बिंधवाने वालों से ।
एक दूसरे के अंडरपेंट्स इस्तेमाल ना करें ना ही एक दूसरे के "लिप्सटिक
ट्वीजर प्लकर और सेफ्टीरेजर इस्तेमाल करें कंघी और नेलकटर भी निजी ही
रखें ।
कंडोम भले ही एक हद तक यौन संक्रमण से बचाता हो ।
किंतु बाजारू औरतों या पुरुष वेश्याओं का एड्स से बचाया जाना जरूरी नहीं
है क्या????????
क्या एड्स संक्रमित वेश्या के साथ बिना यौन संबंध के अन्य प्रकार से किसी
इंन्फेक्शन से एड्स नहीं हो सकता?
शरीर का कोई भी इंटरनल इश्यूज एड्स संक्रमण कर सकता है यहाँ तक कि मासिक
श्राव । दूध की बूँदे । मुँह के छाले मसूङों से रक्तश्राव और कटे फटे
होठों से एक ही सुई से ड्रग्स लेने से और अप्राकृति यौनाचार से!!!!!!
क्या केवल एक कंडोम का जमकर विक्रय करके लोगों के दिमाग में यह बात नहीं
ठूँस ठूँस भर दी गयी है कि कंडोम इस्तेमाल करो और जमकर सेक्स करो अब तो
एड्स से डरने की कोई जरूरत ही नहीं!!!!
हमने अनेक वर्षों तक बोल्ड विवरण देकर स्कूलों कॉलेजों में जाकर समझाया
कि एड्स क्यों कब कैसै हो सकता है और क्या क्या बचाव है ।
आज दुख होता है जब एड्स रोगी की मौत की घटना दबा दी जाती है ।
कंडोम है ना एड्स नहीं हो सकता क्या यही कहना नहीं चाहता विज्ञापन मीडिया????
भारतीय संस्कृति का आदर्श पत्नी के प्रति वफादारी है ।
तवायफ प्रथा मुगलकाल की देन है तब भी वे अकसर "गाने बजाने से मनोरंजन करतीं थीं "
वेश्यागामी को नर्कगामी कहा गया है ।
और
देवदासी प्रथा का अर्थ केवल बाद में बिगङा तब भी यह एक प्रथा थी जिसकी
पत्नी मर गयी जो कुरूप और अन्य कारणों से विवाह नहीं कर सका वही अकसर
कोठों पर जाता था ।
परिवार के प्रति वफादारी ही सब तरह से संस्कृति में प्रधान रहती थी ।
लोग नाच गाना जरूर देखते किंतु दैहिक संबंध बनाने वाले को """बुरा ही कहा
जाता रहा ""बुजुर्ग और महिलायें अंकुश रखते कि कोई चरित्रहीन न हो जाये ।
आज??
कुंमार बेटे को बाप कंडोम थमाता है??
तो
कुँवारी लङकियों को कहो कि माँओं से बर्थ कंट्रोल ऐर कंट्रासेप्टिव पिल्स
दिया करें!!!!!!!!!
क्योंकि
ये हर जगह मौजूद बिछने को तैयार लङकियाँ का जन्नत और इंद्रलोक से बरसेंगी???
हर वह व्यक्ति जो स्वयं रो समाज के प्रति जरा भी जिम्मेदार समझता है हम
चाहते हैं कि अब वक्त है उठकर बात करे पहल करे हर जगह बस ट्रेन स्कूल
चौराहे पर "
पच्चीस साल ब्रह्मचर्य का कठोरता से पालन करो और विवाह करके अपनी पत्नी
के प्रति वफादार रहो और दो संतान के बाद पुरुष नसबंदी करवा लो ।
पचास के बाद पुनः कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करो और अपनी सारी योग्यतायें
समाज सेवा पर लगा दो ।
पचहत्तर के बाद अपनी समस्त संकलित वस्तुयें जरूरत के सामानों के सिवा
संतानों में बाँट दो और अपने ज्ञान को संसार के उद्धार हेतु लगा दो ।
बिना आत्मसंयम के विष्टा खाने वाले जीव और मानव में कोई अंतर नहीं ।
संस्कृति बचाईये
हर समस्या का समाधान यहीं मिलेगा ।
copy right ©®सुधा राजे
यह लेखमाला विभिन्न पत्रिकाओं में जारी है क्रमशः
--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117
या
फ्री सेक्स का बढ़ावा?
एक परिचित की बहिन को विवाह के तीन साल बाद ही सदा सदा के लिये घर लौटना पङा "
कारण, उसके शौहर का निजी ट्रक था जिसपर वह फल और ब्रुश आदि लेकर
उत्तराखंड से मुंबई तक का सफर करता था ।
साल के गिने चुने दिन घर रहता और उसी इक्का दुक्का छू छई में दो बच्चों
की माँ बन गयी वह ""सुहागिन बेवा "
फिर एक बार घर आकर बीमार पङने पर जाँच करायी तो पता चला "एड्स "हो चुका था ।
इसके बाद ज़ुल्म करने की इंतिहा हो गयी वह चाहता था कि बीबी उसकी है तो
हर हाल में उसका हक़ है वह मरेगा तो बीबी को जीवित रहकर क्या करना है ।
बंद कमरे के बलात्कार से बचने के लिये वह मजबूर होकर मायके लौट आयी और
बच्चों का बोझ उनके मामा पर पङ गया ।शौहर घर से फरार हो गया । मामा विवश
होकर मस्कट जाकर मजदूर बन गया और विवाह नहीं किया क्योंकि दीदी और उसके
दो बच्चों को पालना था या यूँ कहे वह बहिन को छोङ नहीं सकता था इसी वजह
से कोई लङकी वाला तैयार नहीं हुआ ।
उस मजबूर स्त्री का पति ट्रक बेचकर टैक्सी चलाने लगा और देहरादून में एक
किराये के कमरे पर जब मरने लगा तब खबर दी 'गुमशुदा शौहर एक दशक बाद मिला
और दो चार दिन में मर गया ।
क्या कहती है ये सत्यकथा?
आपने कभी
विज्ञापन गौर से देखे हैं?
#DrHarshvardhan
ने क्या ग़लत कहा है!!!!
(माफी बुजुर्गों से बेअदबी के लिये)
किंतु जब जब ये कंडोम के विज्ञापन आते हैं लगता है प्रचार किया जा रहा है
जमकर अय्याशी करो अब डरने की जरूरत नहीं क्योंकि कंडोम है तुम्हारे पास ।
और हर वक्त कंडोम रखो करीब क्योंकि रता नहीं कब कहीं भी लङकी मिल जाये और
कंडोम जेब में ना होने से हाथ से मौका निकल जाये ।लङकी जैसे हर तरफ रात
दिन सङक पहाङ समंदर कहीं भी मिल सकती है लेकिन कंडोम वक्त पर साथ नहीं तो
सुनहरा मौका गँवाना पङ सकता है ।""
ये सब अंतर्निहित संदेश है
हर विज्ञापन की भाषा कहती है कि जेब में कंडोम मतलब कोई परवाह नहीं ।
जमकर मस्ती करो लङकियाँ पटाओ और ऐश करो!!!!
जबकि
न तो पत्नी को पति और पति को पत्नी के प्रति हर हाल में वफ़ादार तन मन से
रहने का कोई संदेश है ।
न ही कोई संदेश है कि बच्चों में अंतर रखने के लिये ये एक सुरक्षित उपाय है ।
न ही यह संदेश है कि एड्स से बचना है तो चरितिरवान रहे एक पत्नीव्रत का
पालन करें अप्राकृतिक सेक्स ना करें और नशे ड्रग्स आदि से दूर रहें और
दूर रहे सङकछाप टैटू गोदने और नाक कान बिंधवाने वालों से ।
एक दूसरे के अंडरपेंट्स इस्तेमाल ना करें ना ही एक दूसरे के "लिप्सटिक
ट्वीजर प्लकर और सेफ्टीरेजर इस्तेमाल करें कंघी और नेलकटर भी निजी ही
रखें ।
कंडोम भले ही एक हद तक यौन संक्रमण से बचाता हो ।
किंतु बाजारू औरतों या पुरुष वेश्याओं का एड्स से बचाया जाना जरूरी नहीं
है क्या????????
क्या एड्स संक्रमित वेश्या के साथ बिना यौन संबंध के अन्य प्रकार से किसी
इंन्फेक्शन से एड्स नहीं हो सकता?
शरीर का कोई भी इंटरनल इश्यूज एड्स संक्रमण कर सकता है यहाँ तक कि मासिक
श्राव । दूध की बूँदे । मुँह के छाले मसूङों से रक्तश्राव और कटे फटे
होठों से एक ही सुई से ड्रग्स लेने से और अप्राकृति यौनाचार से!!!!!!
क्या केवल एक कंडोम का जमकर विक्रय करके लोगों के दिमाग में यह बात नहीं
ठूँस ठूँस भर दी गयी है कि कंडोम इस्तेमाल करो और जमकर सेक्स करो अब तो
एड्स से डरने की कोई जरूरत ही नहीं!!!!
हमने अनेक वर्षों तक बोल्ड विवरण देकर स्कूलों कॉलेजों में जाकर समझाया
कि एड्स क्यों कब कैसै हो सकता है और क्या क्या बचाव है ।
आज दुख होता है जब एड्स रोगी की मौत की घटना दबा दी जाती है ।
कंडोम है ना एड्स नहीं हो सकता क्या यही कहना नहीं चाहता विज्ञापन मीडिया????
भारतीय संस्कृति का आदर्श पत्नी के प्रति वफादारी है ।
तवायफ प्रथा मुगलकाल की देन है तब भी वे अकसर "गाने बजाने से मनोरंजन करतीं थीं "
वेश्यागामी को नर्कगामी कहा गया है ।
और
देवदासी प्रथा का अर्थ केवल बाद में बिगङा तब भी यह एक प्रथा थी जिसकी
पत्नी मर गयी जो कुरूप और अन्य कारणों से विवाह नहीं कर सका वही अकसर
कोठों पर जाता था ।
परिवार के प्रति वफादारी ही सब तरह से संस्कृति में प्रधान रहती थी ।
लोग नाच गाना जरूर देखते किंतु दैहिक संबंध बनाने वाले को """बुरा ही कहा
जाता रहा ""बुजुर्ग और महिलायें अंकुश रखते कि कोई चरित्रहीन न हो जाये ।
आज??
कुंमार बेटे को बाप कंडोम थमाता है??
तो
कुँवारी लङकियों को कहो कि माँओं से बर्थ कंट्रोल ऐर कंट्रासेप्टिव पिल्स
दिया करें!!!!!!!!!
क्योंकि
ये हर जगह मौजूद बिछने को तैयार लङकियाँ का जन्नत और इंद्रलोक से बरसेंगी???
हर वह व्यक्ति जो स्वयं रो समाज के प्रति जरा भी जिम्मेदार समझता है हम
चाहते हैं कि अब वक्त है उठकर बात करे पहल करे हर जगह बस ट्रेन स्कूल
चौराहे पर "
पच्चीस साल ब्रह्मचर्य का कठोरता से पालन करो और विवाह करके अपनी पत्नी
के प्रति वफादार रहो और दो संतान के बाद पुरुष नसबंदी करवा लो ।
पचास के बाद पुनः कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करो और अपनी सारी योग्यतायें
समाज सेवा पर लगा दो ।
पचहत्तर के बाद अपनी समस्त संकलित वस्तुयें जरूरत के सामानों के सिवा
संतानों में बाँट दो और अपने ज्ञान को संसार के उद्धार हेतु लगा दो ।
बिना आत्मसंयम के विष्टा खाने वाले जीव और मानव में कोई अंतर नहीं ।
संस्कृति बचाईये
हर समस्या का समाधान यहीं मिलेगा ।
copy right ©®सुधा राजे
यह लेखमाला विभिन्न पत्रिकाओं में जारी है क्रमशः
--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
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