सुधा राजे का लेख -""दासता बनाम संस्कृति"" (भाग 3)

तीज कोई अकेले
पत्नियों का त्यौहार नहीं है ।
आप कभी पश्चिमी उप्र में आकर देखें
""भाई और भतीजे पिता ""अपनी दूर
पास रहतीं बेटियों बुआओं पोतियों के
घर जाते है 'और
वहाँ ""सिंधारा या सिंझारा देकर
आते हैं ।ये होता है कपङे
चूङियाँ मेंहदी और घेवर कुछ रुपये ।
अब
इसमें गुलामी खोजने से पहले सोशल
स्ट्रक्चर को देखना पङेगा ।
कृषि और कलाकारी प्रधान देश
का मुख्य आय स्रोत कृषि और हर
रिश्ते के पुरुष पर
डाली गयी ""स्त्रियों की जिम्मेदारी ""
आज धारा 125के तहत भरण पोषण
का दावा करने
वाली किसी भी उपेक्षित
स्त्री को ये
दावा ""दासता नहीं हक नजर
आता है?
जबकि दासता वहीं है जहाँ कोई
देना ही नहीं चाहता और हाथ
फैलाना पङता है ।
पिता जिस तरह पुत्र को देता है
बङा भाई छोटे भाई को देता है ।
बाबा पोते को देता है ।
चाचा भतीजे को देता है ।
इसी तरह
मनीषियों में हर ऋतु के हिसाब से
स्त्रियों के उल्लास के लिये तीज
त्यौहार के बहाने रचे ।
अब तीज पर क्या करतीं हैं
स्त्रियाँ??
खूब सजती है
ये सजावट के पैसे कौन देता है?
पिता पति बाबा और भाई,,,,,,
नये कपङे नये गहने नयी मेंहदी उबटन
श्रंगार
और बङे मंदिर या बाग पार्क
या कहीं खुली जगह में झुंड में
इकट्ठी होकर झूलना
गीत गाना और पूजा करके परिवार के
लिये मंगल कामना करना ।
क्या
किटी पार्टी मनोरंजन
का बहाना है? तीज नही??
क्या ब्यूटी पार्लर
खुशी का बहाना है घर के उबटन
मेंहदी सजावट नहीं??
वाटर पार्क और सिनेमाघर सुख
देता है पिकनिक भी ।
तो क्या
बाग बगीचे मंदिर में झूलना और
रस्सी कूदना नहीं??
क्लब और बार डिस्कोथेक और सङक पर
बारात और स्टेज शो में नाचना मन
बहलाता है ''
तीज पर घरों के बीच इकट्ठे होकर
नाचना दासता है??
ये पर्व बनाये ही इसलिये गये
कि पुरुष कर्त्तव्य के प्रति जागरुक
हों और हर तीज त्यौहार पर
पत्नी बहिन बेटी को कपङे गहने
रुपया और मेल जोल मेला झूला गीत
नाच की मोहलत दे सके ।
वरना तो पुरुष खेती और
मजदूरी व्यापार का बँधा
स्त्री
रसोई बच्चे और घर बार की बँधी ।
ये नीरसता टूट जाती है ।
चाव से जब सजकर
लङकियाँ सहेलियों के साथ
गाती खिलखिलाती है!!!
दासता?
गेट टुगेदर पार्टी नहीं?
दासता बर्थ डे पर केक कैंडिल और
हैप्पी बर्थ डे गाकर
ताली बजाना नहीं?????
दासता होटल में हनीमून मनाने
की होङ नहीं???
दासता न्यू ईयर पार्टी के नाम पर
हुङदंग मचाना नहीं ???
दासता शराब सिगरेट पीकर
अंग्रेजी गालियाँ बकना नहीं???
भारत माता ग्राम वासिनी ।
ग्रामीण
स्त्रियों की किटी पार्टी है तीज
गेट टुगैदर है वय सावित्री
गणगौर
न्यूईयर है
और
होली है ""रेन डांस "
ये त्यौहार मेले लाते है
दुख की धूल झङाते हैं ।
राखी बाँधकर भाई से डिजायनर कपङे
लेना दासता नहीं??
पिता के घर से बार बार रकम
उपहार और छठी दशटोन भात
की रकम उपहार लेना दासता नहीं??
सच कहे तो ये ""त्यौहार बहुत सोच
समझकर रखे गये है जो टूटते दरकते मन
को मन से जोङ देते है परिवार
की डोरियाँ नवीन करते है और
कर्त्तव्य बोध कराते है पुरुष
को कि स्त्रियों को उपहार
रुपया गहने जेवर और खेल कूद गीत
नाच का अवकाश भी चाहिये
सहेलियाँ भी और मायके जाना भी ।
अपनी कमाई का चौथा भाग घर
की स्त्रियों के गहने कपङों जेवर और
मनोरंजन पर खर्च करना तमाम
गृहसूत्रों में यूँ ही नहीं लिखा उनके
लिये दो दर्जन पर्व भी बनाये
ताकि कोई भूल न हो अगर दासता है
तो है अपनी संस्कृति में खोट और
विदेशी में अंधानुकरण करना ।
तीज त्यौहार तो उल्लास के लिये रचे
है मनाईये बढ़ चढ़कर ।
आज धारा 125के तहत भरण
पोषणका दावा करनेवाली किसी भी उपेक्षितस्त्री को येदावा ""दासता नहीं हक
नजरआता है?जबकि दासता वहीं है
जहाँ कोईदेना ही नहीं चाहता और
हाथ फैलाना पङता है ।
परंपरायें तो ठीक है """व्यक्तियों ने
विकृतियाँ बना ली है और हैलोबीन
क्रिसमस इफतार पर खुश होने वाले
""महान ""भी इनकी गहराई पर
कभी नहीं सोचत
©®सुधा राजे

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