सुधा राजे का लेख:- रजस्वला 'जननी या अपवित्रा???



स्त्री ::रजस्वला ',जननी या अपवित्रा?
"""""""""सुधा राजे "का लेख '
"""""
नारी हो, नर हो, किन्नर हो, मानव मात्र का शरीर, मज्जा अस्थि मांस वसा
रक्त नाङियाँ सब बिलकुल सब जिस मूल पदार्थ से निर्मित है वह है माता का
रजरक्त ',',और कैसी विडंबना आज भी गरीब के घर जब लङकी रजस्वला होती है तो
माता दादी ताई माथा ठोंक कर पछताती है ""हाय दईया अब तो 'कथरी, दुताई,
गुदङी, दरी, खोल, लिहाफ, थैले, पोंछे बिछौने को भी चींथङा नहीं बचेगा!!!
""
दुनिया रॉकेट साईंस की बात करे या बुलेट मेट्रो ट्रेन की, 'हम बात करना
चाहते हैं उस क्रूर सच की ',जिसमें आज इक्कीसवीं सदी तक म में भी
"स्त्रियाँ कमर में एक धज्जी बाँधकर, एक चिंथङे में कभी मैले रद्दी कपङे,
कभी बेकार पङी कतरन, कभी रद्दी अखबार कागज, कभी खराब पङी रुई, कभी सूखी
घास पत्ते राख और कभी, बेकार पङे स्पंज टाट जूट आदि को जाँघों के बीच
बाँध लेती हैं ताकि ',हर महीने होने वाला "रजस्राव का रक्त सोखा जा
सके!!!!!!!
हैं बेशक ढेर सारे ब्रांड बाजार में किंतु 'खरीदने की औकात? ""जिस देश के
माननीय, पच्चीस से पैंतीस रुपये दिहाङी कमाने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर
मानते हैं ',उस के परिवार की पाँच स्त्रियों के लिये पच्चीस पैड हर महीने
हर स्त्री मतलब एक सौ पच्चीस पैड औसत आठ सौ रुपये प्रतिमाह!!!!!!
कितने परिवारों के बजट में स्त्रियों के प्रतिमाह के सेनेटरी नैपकिन हैं?
दाङी ब्लेड हेयर कटिंग, दारू अंडा, सब संभव है, किंतु आज भी अनेक लङकियाँ
सिर्फ इसलिये घर से बाहर नहीं निकलती पाँच सात दिन क्योंकि सेनैटरी
नैपकिन नहीं और जो पैड वे बाँधकर समय काटतीं है उसको हर घंटे बदलना पङता
है और डंप करना पङता है ',। कई कई बार धो धो कर सुखा कर फिर फिर वही वही
चिंथङा बाँध लेती हैं और ये दो चार टुकङे कपङे के बार बार सैकङों बार धो
कर रख दिये और उपयोग किये जाते रहते हैं साल साल भर तक भी!!!!!!
स्कूल दूर हैं, 'नाव से जाना बस से ऑटो से रेलगाङी से बैलगाङी
भैंसाबुग्गी ताँगे से या कई जगह तो तैरकर जाना पङता है ',!!ऐसी हालत
में कोई कैसे जाये ',??ऊपर से चाहे चाय सब्जी पसीने या कपङे का रंग ही
लग गया हो 'दाग 'देखते ही अजीब सी नजरें, 'ग्लानि अपमान लज्जा और
शर्मिंदगी का बोध कराते शब्द हाव भाव?? जैसे जानबूझ कर फस स्त्री ने ये
दुर्दान्त अपराध कर डाला हो?? रजस्वला होना स्त्री का गुनाह है? तो
रजस्वला हुये बिना जननी कैसे मिलेगी मानव को?
ये भयंकर रिवाज आज तक जारी है कि अनेक समुदायों में रजस्वला स्त्री को घर
के कोने में दरी चटाई डालकर अकेला छोङ दिया जाता है ',कोई पुरुष परिजन
नहीं देख बोल सकता, वे रसोई में भंडार में पूजा में भोज की कतार में,
पवित्र आयोजन में, नहीं जा सकतीं ।अनेक लोग घर की लङकियों को रजस्वला
होने पर घेर बाङी या करीब के बगीचे खेत या पिछवाङे कहीं फूस के छप्पर में
पाँच सात दिन तक रखते है, 'नेपाल झारखंड उङीसा आदि कई जगह ऐसा है कि लङकी
रजस्वला होने पर मामा छप्पर बनाता है नातेदार चादर देते है और विवाह
प्रस्ताव चालू हो जाते हैं । बेहद पढ़े लिखे लोग तक अनेक रजस्वला स्त्री
के हाथ का छुआ भोजन नहीं करते ', किंतु उसे अवकाश देने की बजाय घर के
निम्नकोटि के समझे जाने वाले कार्यों पर लगा देते हैं । रजस्वला के रक्त
को लेकर तमाम जादू टोने टोटके किये जाते हैं ।और रजस्वला को भूत प्रेत
बाधा होने के डर से भयभीत कराया जाता है । ऐसा माहौल बना दिया गया है कि
रजस्वला होना गंदी बात घोर पाप गुनाह और बोलने बतियाने समझने समझाने नहीं
वरन छिः छिः कहकर दुत्कारे जाने वाली बात है ',। प्याज पर सरकार गिराने
और पेट्रोल पर जाम लगाने वाले क्रांतिकारी देश की लङकियाँ ",,सेनेटरी
नैपकिन अंडवीयर और टॉयलेट के अभाव में ''श्वेत प्रदर, ल्यूकोरिया,
अंडाशय, बच्चेदानी, फैलोपिन ट्यूब के कैंसर, खुजली, संक्रमण "गुप्तरोग,
और मौत तक का शिकार हो जाती है ",,बाँझ तक हो जाती है, 'कोई बोलना तक
नहीं चाहता!!!!! क्यों?? क्योंकि ये कोई जरूरी मुद्दा नही?? माता स्वस्थ
नहीं होगी तो स्वस्थ पीढ़ी के नर नारी होंगे कहाँ से? सरकार चाहे जो भी
दावे करे आँखों देखा सच यही है, 'कि बाढ़ पीङित शिविर में जब गाँव वालों
के बीच पुकारने पर भी कुछ बच्चियाँ स्त्रियाँ भोजन पैकेट लेने महीं आयीं
तब करीब जाकर पूछने पर कान में बम फटा "रुआँसी आवाज में वे बच्चियाँ पूछ
रहीं थी 'आंटी/ दीदी! कपङा है? जब डॉक्टर से पूछा तो लाचारी से हाथ खङे
कर दिये, 'कलेक्टर से पूछा एसडीएम से पूछा तो पता चला ""ये तो सोचा ही
नहीं?? क्यों नहीं सोचा साब!!!! लैपटॉप सोचा और सैनेटरी नैपकिन अंडरवीयर
टॉयलेट नहीं सोचा??? चादरें चंदा करके कैंप में भिजवाने के बाद आज तक
हृदय बेचैन है, 'इस देश में स्त्री देवी कामाख्या के रजस्राव को ताबीज
में धरने वाले लोग, लङकियों को आज तक नैपकिन मुहैया नहीं करा सके? जरूरी
नहीं कि ये ब्रांडेड हों, 'एन एस एस के गाँव सेवा के दौरान लङकियों को
देशी लँगोट पहनना और चौकोर रुमाल की तिकौनी बनाकर धुले साफ निःसंक्रमित
इस्तरी करे गये पुराने कपङे कतरन आदि से पैड बनाकर बाँधना सिखाया जो
'कमलाराजा हॉस्पिटल की
नर्सों से सीखा था । गाँव गाँव लघु कुटीर उद्योग की तरह सरल सस्ती तकनीक
से स्त्रियों के स्वयं सहायता समूहों, स्कूल, कॉलेज, आँगन बाङी, आशा,
प्रसूतिकेन्द्, और समाजसेवियों द्वारा हर स्त्री तक ये पैड नैपकिन
अंडरवीयर पहुँचाये जा सकते हैं । किंतु इसकी क्या गारंटी है कि पोषाहार
मनरेगा और चारा मिडडेमील की तरह घोटाला नहीं होगा?? भले ही रजिस्टर कुछ
बोलें अस्पताल के किंतु कुछ मँहगे प्राईवेट और महानगरीय अस्पतालों को
छोङकर, 'हर प्रसूति केन्द्र का यही आलम है कि, 'फिंगर चैकअप एक ही
दस्ताने से अनेक स्त्रियों का कर दिया जाता है ',गंदगी में प्रसव कराया
जाता है, और बोरी भरके कपङे ले जाने पङते हैं, 'आसन्न प्रसवा स्त्री को
जिनमें से भी आधे तो ',दाई रख लेती है स्ट्रेचर साफ करने के नाम पर ।
अकसर संक्रमण और समस्याये लेकर लौटतीं है स्त्रियाँ वहाँ से ।
जिस रज से मानव बना है उस रजस्वला से ऐसा भीषण बरताव??बाल विवाह की
कुप्रथा के पीछे भी यही सोच है कि लङकी रजस्वला होने लगे तो पिता को
प्रति वर्ष दौहित्रवध का पाप लगता है और कन्यादान का फल नहीं मिलता??
कब तक सहमी अपमानित और ग्लानिग्रस्त रहेगी रजस्वलायें? आपकी अपनी बेटी,
माता बहिन भाभी,
कब तक????
आखिर कब तक??
©®सुधा राजे



On 9/4/14, Sudha Raje <sudha.raje7@gmail.com> wrote:
> attachments
> On Aug 23, 2014 2:20 PM, "Sudha Raje" <sudha.raje7@gmail.com> wrote:
>
>> attachments
>> On Aug 23, 2014 2:11 PM, "Sudha Raje" <sudha.raje7@gmail.com> wrote:
>>
>>> लेख : स्त्री : दीवारों में घुटतीं चीखें '★घरेलू हिंसा *
>>> (सुधा राजे)
>>> आये दिन किसी न किसी स्त्री के चेहरे पीठ पेट हाथ पाँव पसली पर चोटें और
>>> नीले काले लाल कत्थई निशान दिखते है, कलाईयों में धँस कर टूटी चूङियाँ
>>> खींच कर तोङे केश और बहुत हद से जब बढ़ गयी बात तो टाँकें पट्टी और
>>> फ्रेक्चर की मरम्मत ',पूछो तो वही पुराने जवाब
>>> —""चक्कर खाकर गिर गयी, —फिट आ गया, —सीढ़ियों से फिसल गयी, —गाय भैंस ने
>>> मार दिया,!!!!!!!!
>>> स्टोव फट गया, —गैस लीक हो गयी?,जलती ढिबरी गिर गयी,!!!!!
>>> भूरी को मदन ने दारू पीकर रोज पीटा और जब वह पैर पकङ कर रोकने लगी तो
>>> घासलेट डालकर जला दिया, किंतु भूरी कहती है, ढिबरी गिर गयी!!
>>> सबिया के ऊपर जलती दाल की पतीली ससुर ने डाल दी, लेकिन वह कहती है कुकर
>>> का सेफ्टी वाल्व बस्ट हो गया!!!
>>> नंदिनी का पति गे है और बच्चे आई वी एफ से हुये, वह रोज बेदर्दी से उसके
>>> रूप जवानी पर चिढ़कर भोग न पाने की वजह से पीटता है कि आ तेरी जवानी
>>> निकालूँ,लेकिन वह बहाने बनाती रहती है, बेध्यानी में पाँव फिसल गया!!!!
>>> उस अभागिन के तो गुप्तांग में मिरची और दारू की बोतल डंडा तक ठूँस कर
>>> पीटा गया, फिर भी वह, मर गयी ये लिखकर कि अपनी मौत की वह खुद जिम्मेदार
>>> है!!!
>>> लवली को उपलों के बिटौङे में धरकर जला दिया गया, क्योंकि वह प्रेम करने
>>> लगी थी किसी लङके से!!
>>> और खेत फूँक कर कह दिया गन्ने में जलमरी!
>>> विनीता ने पिटाई के डर से 'रामगंगा में छलांग लगा दी!!! क्योंकि वह लङका
>>> पैदा नहीं कर सकती थी ।
>>> लक्ष्मी के बेटी पर बेटी होती गयीं और तीन बेटियों के बाद चार बार भ्रूण
>>> हत्या करवाकर जब लङका हुआ तो बच्चेदानी के कैंसर से मर गयी!!!
>>> शिक्षा" नाम की ही शिक्षा है उसका पति इस कुढ़न में रोज पीटता है कि वह
>>> "साली की तरह स्मार्ट पढ़ी लिखी और सुंदर क्यों नहीं!!!
>>> 'सुमेधा' का दोष ये है कि वह पिता से हिस्सा लेकर क्यों नहीं आती ताकि वह
>>> पति के बिजनेस को पूँजी दे सके!!!
>>> ममता केवल इसलिये मार खाती है क्योंकि दहेज में सामान कम मिला और छटी
>>> दशटोन छूछक राखी तीज में मायके वाले सोना चांदी रुपया कपङा बरतन नहीं
>>> देते!!
>>> माँ बाप मर गये भाईयों के पास कोई पुश्तैनी जमीन नहीं!!
>>> सबीहा, को बेल्ट पङते हैं क्योंकि "ठंडी "औरत है और मदीहा को घसीट घसीट
>>> कर इसलिये पीटा जाता है कि पति खाङी देश में जमकर रुपया कमा रहा है जो
>>> पहले गरीब था अब ये रुपया ससुर सास ननद देवर जेठ को चाहिये!!!!
>>> गुनाह कोई हो, नाम कोई, बस स्त्री होना ही सबसे बङी भूल है उसकी, उस पर
>>> भी भारतीय स्त्री ।
>>> चीखती रोती मदद की गुहार लगाती औरत की मदद भी कोई नहीं करता क्योंकि ""यह
>>> उस पति का पारिवारिक मामला है ""कह कर सब तमाशा देखकर स्त्री को उपहास और
>>> पुरुष को ""महामर्द ""की नजर से देखने के आदी हो चुके है ।
>>> ग़जब तो ये है कि कभी खुद हिंसा की शिकार रह चुकी औरतें तक किसी स्त्री
>>> पर रहम करने की बजाय पैरवी करने लगती है? मारो और मारो कि सारी अकङ निकल
>>> जाये, बहुत जुबान चलाती है, मार नहीं खायेगी? हिजङा है साला, लल्लू है
>>> साला, नपुंसक है साला, जोरू का गुलाम है पिंधोला है,!!!! क्यों? क्योंकि
>>> एक औरत की बोलती बंद नहीं कर पा रहा है? दबकर नहीं रहती? मर्दमार लुगाई
>>> है?
>>> ये हिंसा पालने से पहले से ही प्ाती है जब, लङकी अवांछित और लङका मनौती
>>> का जीव, 'ये लङके बचपन से ही बहिन निम्नकोटि का जीव है यह अचेतन अहसास
>>> पालकर बढ़े होते हैं । हनीमून के नशे के बाद, केवल घरेलू सेविका रह जाती
>>> है स्त्री,!! पुरुष को आदत है बचपन से बहिन भाभी माँ दादी से सेवायें
>>> लेते रहने की, 'पत्नी उन सबकी सेवाओं का बदला नहीं चुकाती तो "मार खायेगी
>>> "विरोध करेगी तो मार खायेगी, पत्नी का बाप दुनियाँ का सबसे घृणित जीव
>>> क्योंकि बेटी पैदा की है तो नदी की तरह लगातार धनापूर्ति क्यों नहीं
>>> करता??? और बीबी मायके वालों को गाली मजाक व्यंग्य के बहाने मनोबलात्कार
>>> का शिकार बनाना पति का हक??? "साला गाली है ससुरा गाली है और रिश्ते में
>>> तो हम तुम्हारे बाप लगते है गाली है, मजाक में भी "नानी मरती है "दादी
>>> नहीं । लोग परस्त्री माताजी कह सकते हैं किंतु परपुरुष को "पिताजी "नहीं
>>> ।
>>> घरेलू हिंसा के बीज दबे हैं इन सब सोशल प्रैक्टिस के पुराने रोग में ।
>>> भारतीय स्त्री सास ससुर देवर जेठ की हिंसा के विरोध में तो यदा कदा बोल
>>> लेती है किंतु महानगर की कुछ स्वावलंबी उच्च शिक्षिताओं को छोङ दें तो,
>>> कसबों नगरों गाँवों की स्त्रियाँ पति के विरोध में कभी खङी नहीं हो पातीं
>>> । चाहे वह पूरा राक्षस हो रोज बलात्कार करता हो, या नामर्द हो, या कभी
>>> प्रेम न कर सका परस्त्रीगामी!!!! हो, या चाहे बाँझ का कलंक लङकी ढो रही
>>> हो जबकि शुक्राणु पुरुष में न हो।
>>>
>>> घरेलू हिंसा कानून काफी नहीं सामाजिक अभ्यास में ढल चुकीं बर्बरतायें हर
>>> स्तर पर रोकनी होंगी,
>>> क्या आप तैयार है?????????
>>> ©®सुधा राजे
>>>
>>> On 8/18/14, Sudha Raje <sudha.raje7@gmail.com> wrote:
>>> > स्त्री और समाज।
>>> > लेख ::सुधा राजे
>>> > ***********
>>> > चार साल की एक बच्ची 'गाजियाबाद के
>>> > निर्माणाधीन मकान के तहखाने में चार
>>> > हिंस्र नरपशुओं द्वारा सामूहिक बलात्कार के
>>> > बाद गुप्तांग में प्लास्टिक
>>> > की बोतल ठूँस कर मरने छोङ दी जाती है, '
>>> > एक बच्ची स्कूल के बाथरूम में रेप करके छोङ
>>> > दी जाती है,गोवा
>>> > एक बच्ची को स्कूल बस ड्राईवर बस में रेप
>>> > करके फेंक देता है,मुंबई
>>> > एक बच्ची गैंग रेप के बाद झाङियों में
>>> > बिजनौर,
>>> > एक बच्ची सगे नाना द्वारा बलात्कार करके
>>> > मार डाली जाती है, भोपाल,
>>> > एक बच्ची माता पिता बूढ़े शेख को बेच देते हैं
>>> > निक़ाह के नाम पर वह खुद
>>> > को बलात्कार से बचाने के लिये कमरे में बंद कर
>>> > लेती है 'यूएई,
>>> > एक बच्ची की बहिन गैंग रेप से तंग आकर मर
>>> > जाती है और छोटी लङकी स्कूल से
>>> > घर जाने के नाम पर थरथराकर रोने लगती है
>>> > क्योंकि चाचा भाई पिता और उनके
>>> > दोस्त उसको रेप करते है!!!!!!!!!!!
>>> > """"""""किसी भी अखबार का स्थानीय
>>> > पृष्ठ ऐसी ही लोमहर्षक खूरेंज कहानियों
>>> > ने रँगा पुता मिलता है ।फिर भी रह जाती है
>>> > उन लाखों अभागिनों की कहानियाँ
>>> > जिनको खिलाने घुमाने पालने पोसने वाले हाथ
>>> > चाचा बाबा नाना मामा ताऊ फूफा
>>> > मौसा कजिन और तो और बङे भाई तक बचपन में
>>> > ही हवस का शिकार बना डालते
>>> > हैं!!!!
>>> > ये कहानियाँ कभी बाहर नहीं निकलतीं दम
>>> > घोंटने वाली हालत हो चुकी है समाज की ।
>>> > संस्कृति और सभ्यता की दुहाई देने वालों को ये
>>> > बातें अच्छी नहीं लगतीं
>>> > उठानी, किंतु इन को चुप रह कर
>>> > टाला नहीं जा सकता ।
>>> > क्यों, क्यों, क्यों आखिर क्यों, बच्चियों में
>>> > वासना और यौन संतुष्टि
>>> > खोजने लगे है 'हिंस्र नरपशु????
>>> > केवल एक ग्रास एक निवाला हवस
>>> > का पूरा करने का यौनआहार भर रह जाती है
>>> > किसी
>>> > के जिगर प्राण आत्मा का टुकङा लङकी?
>>> > केवल एक बार की यौन भूख को मिटाने
>>> > का सेक्स टॉय????
>>> > कैसी मानसिकता से गुजर रहे लोग होते हैं वे
>>> > जिनको मासूम अबोध नन्ही बच्ची
>>> > पर प्यार दुलार नहीं आता वरन, उसके जिस्म
>>> > में एक मात्र अंग एक "मादा
>>> > "दिखती है सारा शरीर नजर से गायब रहकर
>>> > वे उसको, भोग कर मार डालते
>>> > हैं!!!!!!
>>> > ऐसा तो पशु भी नहीं करते? ऋतुकाल और
>>> > यौवन के बिना किसी मादा को पशु भी
>>> > नहीं लुभाते!!
>>> > क्या है वह "कमजोर कङी जो एक पिता और
>>> > पिता तुल्य शिक्षक संरक्षक परिजन के
>>> > दिल दिमाग पर से
>>> > "नैतिकता "का सारा खोल तोङ डालती है ।
>>> > उसके संस्कार उसका
>>> > नाता मानवता रिश्ता अपराध बोध
>>> > कानूनी सजा सामाजिक बदनामी पाप और
>>> > ईश्वरीय
>>> > दंड तक का भय उसको नहीं रोक पाता?????
>>> > मतलब "वासना "सिर चढ़कर पागल कर
>>> > रही है ऐसे लोगों को और हम उम्र युवा
>>> > स्त्री पर हाथ डालने से अधिक कहीं आसान
>>> > लक्ष्य हो रही है मासूम अबोध
>>> > बच्चियाँ??
>>> > जो न तो गंदे स्पर्श का अर्थ समझ पाती हैं
>>> > और न ही टॉफी चॉकलेट खिलौना
>>> > प्रसाद दुलार आशीर्वाद को देने वाले के पीछे
>>> > छिपी भयानक वासना को, ।
>>> > ये किसी समाज के नैतिक खात्मे का लक्षण है
>>> > जब बच्चे बच्चे न रहकर लिंग
>>> > भेद के आधार पर नर या मादा कहकर अलग कर
>>> > दिये जायें ।
>>> > कोई समझे उस भयानक यातनादायी सोच
>>> > को जब एक माँ बच्ची को जन्म देने के
>>> > बाद, हर समय ये खयाल रखने लगे
>>> > कि कहीं पिता उसे एकांत में गोद न उठा सके?
>>> > कपङे न बदलवा सके,? अब इस सबको सोचने से
>>> > कैसे रोका जा सकता है?
>>> > लोग स्त्रियों के पहनावे और बाहर निकलने
>>> > को या जींस स्कर्ट बिकनी मोबाईल
>>> > डीप गले और स्लीव लेस को खूब कोसते हैं, मान
>>> > भी लें तो भी,
>>> > जीरो वर्ष से पंद्रह साल तक
>>> > की लङकी को किस अपराध में ये सब
>>> > सहना पङा?
>>> > उसमें न तो कोई यौवन न कोई यौन व्यवहार
>>> > न कोई पुरुषों को लुभाने दिखाने
>>> > लायक संचेतना?
>>> > जाहिर है
>>> > ये सब बहाने है । इन घिनौने अपराधों की जङें
>>> > छिपी है क्रूर मानसिकता में
>>> > जहाँ अमूमन तीसरे चौथे हर पुरुष
>>> > को लङका होने भर से वरीयता प्राप्त हो
>>> > जाती है और उस लङका होने भर से
>>> > नैतिकता उसकी जिम्मेदारी नहीं रह जाती
>>> > ।वह बचपन में ही भाभियों और
>>> > सहपाठी लङकियों को मजाक मजाक में छेङने
>>> > को
>>> > स्वतंत्र है ।
>>> > और किशोर होने तक
>>> > उसको जता बता दिया जाता है
>>> > कि लङकियाँ केवल लङकों के
>>> > यौन सुख और घरेलू सेवा के लिये ही बनी है ।
>>> > युवा होते होते उसको यौन संबंध बनाने
>>> > की पूरी आजादी मिल जाती है । वह अगर
>>> > लङकी छेङता पाया जाये, या किसी स्त्री से
>>> > सेक्स कर ले यह खबर घर वालों को
>>> > पता चल जाये तो कहीं तूफान नहीं आ जाता,
>>> > न कोई "नाक कटती है " न पगङी
>>> > उछलती है न चादर मैली होती है ।न सतीत्व
>>> > खंडित होता है ।
>>> > जबकि लङकी के केवल प्रेम या प्रेम तो दूर
>>> > लङकों से बोलचाल दोस्ती होने पर
>>> > तक आज भी अधिकांश की नाक कट जाती है।
>>> > हद से गुजर चुकी है स्त्रियों पर हिंसा
>>> > लेख का संबंध किसी एक व्यक्ति एक
>>> > स्थान या घटना से
>>> > नहीं बल्कि सदियों पुरानी सङी गली सोच
>>> > से है । और सोच तो बदलनी ही पङेगी ।
>>> > अब तक अगर सोच नहीं बदली तो वजह वे
>>> > उदासीन लोग भी हैं जो सोचते हैं उँह
>>> > मुझे क्या!! लङकी जिसकी वो जाने किंतु खुद
>>> > पर बीते तो
>>> > बिलबिलाते हैं ।
>>> > मुजफ्फर नगर दंगा हिंदू मुसलिम
>>> > नहीं था
>>> > एक ग्रुप के
>>> > आवारा लङकों का लङकियों से
>>> > बदत्तमीजी करना था जिसे कोई हक
>>> > नहीं था पढ़ने जाती लङकी को छेङने
>>> > का ।
>>> > दामिनी का और मुंबई की पत्रकार
>>> > बैंगलोर की कानून की छात्रा का रेप
>>> > कोई एक
>>> > अचानक घटा अपराध नहीं था ।
>>> > ऐसे कामपिपासु बहुत से हैं छिपे जगह
>>> > ब जगह जो नजर के सामने हैं
>>> > तो पहचाने
>>> > नहीं जाते ।
>>> > किंतु
>>> > ये क्यों ऐसा करते हैं??
>>> > वजह है मर्दवादी सोच
>>> > ये सदियों से चला आ रहा रिवाज
>>> > कि हर जगह औरत को खुद
>>> > को बचाना है और कोई
>>> > भी कहीं भी उसको मौका लगा तो छू
>>> > देगा भँभोङ देगा छेङ देगा ।
>>> > बलात्कार अचानक नहीं होते ।
>>> > एक
>>> > विचारधारा से ग्रस्त रहता है मनुष्य
>>> > जो समाज में रह रही है सदियों से कि
>>> > पुरुष
>>> > को किसी की लङकी को सीटी बजाने
>>> > आँख मिचकाने और इशारे करने गाने
>>> > पवाङे गाने और छू देने और
>>> > पीछा करने का हक है ।
>>> > यही
>>> > विचार जो भरा रहता है समाज के हर
>>> > अपराध के लिये ज़िम्मेदार है ।
>>> > आदमी रात को सङक पर ड्राईव कर
>>> > सकता है औरत नहीं
>>> > आदमी एडल्ट मूवी देखने
>>> > जा सकता है बालिग लङकी नहीं ।
>>> > आदमी घर से बाहर तक
>>> > किसी भी लङकी को अपने इरादे
>>> > जता सकता है लङकी नहीं ।
>>> > आदमी शराब पी सकता है हुल्लङ
>>> > पार्टी नाच गाना कुछ भी कर
>>> > सकता है औरत नहीं ।
>>> > अब
>>> > जबकि औरतें बाहर आ जा रही है और
>>> > रात दिन हर जगह मौजूद है तो
>>> > इसी
>>> > मर्दवादी मानसिकता से ग्रस्त लोग
>>> > केवल औरतों को रोकने की बात करते
>>> > हैं ।
>>> > जाने दो न????
>>> > चलने दो पार्क सिनेमा थियेटर
>>> > ऑफिस दफतर रेलवे स्टेशन बस
>>> > स्टॉप ।
>>> > कुछ साल पहले आनंद विहार बस
>>> > स्टॉप पर एक परिवार के साथ
>>> > रूकी स्त्री का
>>> > रेप हुआ था क्योंकि लोंग रूट की बस
>>> > चूक जाने से बीच यात्रा में रुकने की
>>> > नौबत आ गयी ।ट्रेन में हजारो केस
>>> > हो चुके ।
>>> > ये सब क्राईम नहीं हैं
>>> > एक
>>> > सोच है एक विचार है
>>> > एक मानसिकता है जो
>>> > समाज की ठेठ कट्टरवादी मर्दवाद
>>> > से ग्रस्त है जिसमें औरत मतलब
>>> > एक समय का भोजन
>>> > बस
>>> > और उसके साथ नाता रिश्ता कुछ
>>> > नहीं ।
>>> > मुसीबत हैं अच्छे पुरुष
>>> > वे
>>> > जो स्त्री के रक्षक और पहरेदार
>>> > और समर्थक हैं ।
>>> > ये अच्छे पुरुष भी इसी समाज का अंग
>>> > हैं और इनकी वजह से ही कन्फ्यूजन
>>> > फैलता है ।
>>> > अगर सब के सब खराब हों औरते
>>> > खत्म हो जायें ।
>>> > और दुनियाँ का झंझट ही निबट जाये
>>> > ।
>>> > और
>>> > गजब ये कि इन
>>> > अच्छों को अच्छी पवित्र औरते
>>> > चाहियें और वे जूझ रहे हैं
>>> > खराब पुरुषों से कि बचाना है समाज
>>> > परिवार और जोङे ।प्रेम
>>> > की अवधारणा और
>>> > प्रकृति ।
>>> > किंतु
>>> > बहुतायत पुरुष के दिमाग
>>> > का भारतीयकरण हो चुका ।
>>> > उदाहरण कि मध्य प्रदेश के एक
>>> > प्लांटेशन पार्क में स्वीडन
>>> > का साईक्लिस्ट
>>> > जोङा आकर टेंट लगाकर प्रकृति के
>>> > मनोरम जगह पर रहने की सोचता है ।
>>> > और प्रौढ़ स्त्री का गैंग रेप
>>> > हो जाता है । सब वनवासी अनपढ़
>>> > कंजर शराब
>>> > उतारने वाले लोग!!!!!
>>> > जरा सोचो
>>> > कि क्या भारतीय दंपत्ति पर्यटन पर
>>> > जाते समय बांगलादेश के किसी जंगल
>>> > पार्क
>>> > में टेंट लगाकर रूकते????????
>>> > नहीं रुकते!!!!
>>> > कभी नहीं!!!!
>>> > वजह?
>>> > क्योंकि भारतीय स्त्री को पता है
>>> > कि किसी अकेली जगह एक पुरुष के
>>> > सहारे
>>> > नहीं रुका जा सकता । और जान माल
>>> > से अधिक स्त्री के शरीर पर
>>> > आक्रमण की ही
>>> > आशंका संभावना डर ज्यादा है ।
>>> > लेकिन
>>> > स्वीडन में ऐसा डर नहीं था
>>> > लोग
>>> > नदी पहाङ जंगल कहीं भी पिकनिक
>>> > मनाने रूक जाते हैं ।
>>> > ये सबकी सोच नहीं ।
>>> > लेकिन सब चीखने लगे
>>> > दंपत्ति की गलती है कि सुनसान
>>> > जगह जंगल में क्यों टेंट लगाया???
>>> > वे लोग जंगल ही तो देखने आये
>>> > थे????
>>> > जब एक
>>> > पर्यटक से ऐसा बरताव होता है
>>> > तो क्या उम्मीद है
>>> > कि किसी वनवासी या गरीब
>>> > मामूली लङकी के साथ
>>> > किसी भी अकेली जगह क्या बरताव
>>> > होता है ।
>>> > राजधानी हो या कश्मीर
>>> > भारतीय
>>> > स्त्री कहीं भी अकेली सुरक्षित
>>> > नहीं और एक दो पुरुष के साथ भी
>>> > सुरक्षित नहीं परिचित देखकर ढाढस
>>> > बँधता है किंतु डर बराबर रहता है ।
>>> > क्या किसी सज्जन पुरुष को यह
>>> > अच्छा लगता है कि एक परिचित
>>> > लङकी पूछे कि
>>> > ""कहीं आप अकेला पाकर रेप
>>> > तो नहीं करोगे ""
>>> > नहीं लगेगा अच्छा लेकिन एक
>>> > अघोषित शक हर स्त्री लगभग सब
>>> > पुरुषो पर करने
>>> > को विवश है ।
>>> > आज माता अपनी बेटी को परिजनों के
>>> > बीच अकेली नहीं छोङती जब
>>> > कि बुआ दादी
>>> > ताई चाची घर पर ना हो ।
>>> > और यही हाल पिता का है वह सगे
>>> > भाई जीजा साढू किसी के घर
>>> > मेहमानी तक को
>>> > लङकियाँ भेजने से हिचकता है ।
>>> > बहुत
>>> > परीक्षा मन ही मन लङकी माँ बाप
>>> > और अभिभावक करते है कि वहाँ कौन
>>> > कौन है ।
>>> > और कितनी लङकियाँ है ।
>>> > लोग कैसे है
>>> > लङकी को खतरा तो नहीं तब
>>> > लङकी को होस्टल मेहमानी वगैरह
>>> > भेज पाते है ।
>>> > ये
>>> > औक़ात है बहुतायत पुरुष समाज की ।
>>> > वजह वही विचारधारा ।
>>> > विदेशों में लङकियाँ बीच पर लेटी है
>>> > तैर रही है और क्लबों में नाच रही है
>>> > और कार ड्राईव करके रात
>>> > को यात्रा कर रही है ।
>>> > चूम कर गले भी लग जाती है
>>> > परिचितोॆ के
>>> > लेकिन
>>> > बलात्कार का डर नहीं लगता
>>> > घुटनो तक की स्कर्ट और बिना बाँह
>>> > की मिडी पहन रखी है मगर
>>> > बलात्कार का डर
>>> > नहीं लगता ।
>>> > शराब पीकर गाती नाचती है लेकिन
>>> > बलात्कार का डर नहीं लगता ।
>>> > और
>>> > अगर वहाँ कोई किसी स्त्री को कुछ
>>> > प्रपोज करना चाहता है तो ये
>>> > स्त्री की
>>> > चॉयस है कि वह स्वीकारे
>>> > या अस्वीकार कर दे ।
>>> > भारतीय सहन ही नही करते!!!!
>>> > अस्वीकृति का प्रतिशोध तेजाब और
>>> > रेप से लेते हैं!!!!
>>> > और तमाम इलज़ाम अंततः औरत के
>>> > सिर पर
>>> > कि नैतिकता का ठेका तो औरत
>>> > का है?
>>> > मर्दवादी लोग
>>> > समझे न समझे मगर सामंजस्य
>>> > वादी समझने लगे है और अब ये
>>> > मिटाना चाहते हैं ।
>>> > किंतु अफसोस कि आज भी बहुत
>>> > सारी स्त्रियाँ मर्दवादी सोच बदलने
>>> > की बजाय
>>> > खुद को ""नारी वादी "नही हूँ ये ।
>>> > साबित
>>> > करने के चक्कर में अंधाधुन्ध
>>> > ऐसी विचारधारा हटाने की बजाय
>>> > कुरेदकर
>>> > पहाङ काटना चाहती है औरतों पर
>>> > ही प्रतिबंध की पक्षधर है ।
>>> > जबकि कटु सत्य है ये कि वे खुद
>>> > कभी न कभी दहशत में रही है ।
>>> > स्त्री की समस्याओं का अंत है हर
>>> > जगह हर समय ढेर सारी स्त्रियाँ जैसे
>>> > रेलवे स्टेशन बस स्ट़ॉप होटल स्कूल
>>> > कॉलेज अस्पताल सङके दुकाने
>>> > गलियाँ
>>> > दफतर संसद राजभवन और घर ।।।।
>>> > विचार पर प्रहार करो घटना पर
>>> > हमारा कोई प्रहार बदलाव
>>> > नहीं ला सकता ।
>>> > सोच बदलो रिवाज़ बदलो ।और जीने
>>> > दो स्त्री को जीने दो ।
>>> > कि सोचो एक तरफ हिंस्रऔर
>>> > दूसरी तरफ एक अजनबी पुरुष
>>> > स्त्री किससे ज्यादा डरे?
>>> > ©®सुधा राजे
>>> >
>>> > On 8/9/14, Sudha Raje <sudha.raje7@gmail.com> wrote:
>>> >> नमन, सादर
>>> >> लेख श्रंखला बद्ध हैं और क्रमशः करके आप चाहें तो लगातार "क्रमशः "चलता
>>> >> रह सकता है ।
>>> >>
>>> >> कुछ दूसरे सीरीज जो बच्चों पर है वे दूसरे अखबार चला रहे हैं ।
>>> >>
>>> >>
>>> >> आगे जो भी लेख भेजेंगे उसकी शब्द संख्या 700/800ॆतक
>>> >>
>>> >> कर दी जायेगी
>>> >>
>>> >> ,'
>>> >> चित्र
>>> >> हमारे कॉपी राईट के स्वयं की फोटोग्राफी के भी हैं
>>> >>
>>> >> और
>>> >>
>>> >> गूगल से भी "जरूर "
>>> >>
>>> >> आज या कल भेजते हैं ।
>>> >>
>>> >> नमन
>>> >>
>>> >> परिचय
>>> >>
>>> >> नाम-सुधा राजे
>>> >> पता - बिजनौर, उ.प्र
>>> >> जन्मस्थान- दतिया, म.प्र.
>>> >> शिक्षा- एम.ए. एल.एल. बी
>>> >> एम.जे.एम.सी. एम.टी.
>>> >> सम्प्रति- एडवोकेट, जर्नलिस्ट पब्लिक ओरेटर 'सोशल एक्टिविस्ट
>>> >> आशु कवि 'लेखक' विचारक '
>>> >>
>>> >> एक उपन्यास,
>>> >> सहस्त्राधिक कवितायें, निबंध कहानियाँ कुछ नाटक एवं आलेख विविध पत्र
>>> >> पत्रिकाओं में प्रकाशित, कुछ का अवैतनिक संपादन,
>>> >>
>>> >> On 8/9/14, Singh Omprakash <singhomprakash15@gmail.com> wrote:
>>> >>> बहुत अच्छा। बस कालम के लिहाज से थोड़ा सा बड़ा है। अगली किश्त में
>>> >>> २-३००
>>> >>> शब्द
>>> >>> छोटे कर दीजियेगा। इसके साथ एक चित्र भी देना चाहते हैं। गूगल से आप
>>> चुन
>>> >>> देंगी , कैप्शन भी दे देंगी तो इस कॉलम से पूरी तरह जुड़ा होगा। अपना
>>> >>> भी
>>> >>> चित्र
>>> >>> और संक्षिप्त परिचय दे देंगी तो उपयोगी होगा। इसे स्त्री\वैचारिकी
>>> शीर्षक
>>> >>> देते हैं। या कॉलम का जो नाम आप देने चाहें बता दें। समय हर पंद्रह
>>> >>> दिन
>>> >>> में
>>> >>> एक रखते हैं। महीने में दो। घटनाक्रम से जुड़े हुए।
>>> >>> मुंबई में पत्रकारिता को फिर से रास्ते पर लाना चाहता हूँ , इसलिए यह
>>> सारी
>>> >>> मशक्कत। पहला स्तम्भ बुधवार २० अगस्त को छाप रहे हैं। उस समय हमारा
>>> विशेष
>>> >>> महोत्सव है।
>>> >>> बहुत बहुत आभार। प्रणाम।
>>> >>>
>>> >>>
>>> >>> 2014-08-08 12:09 GMT+05:30 Sudha Raje <sudha.raje7@gmail.com>:
>>> >>>
>>> >>>> तलाक के बाद
>>> >>>> मारी मारी फिरती औरतें??? पति मरने
>>> >>>> के बाद मारी मारी फिरती औरते??
>>> >>>> पिता के पास धन न होने से
>>> >>>> कुँवारी बङी उमर तक बैठी लङकियाँ??
>>> >>>> और योग्य होकर भी दहेज कम होने से
>>> >>>> निकम्मे और खराब मेल के लङकों को ब्याह
>>> >>>> दी गयीं लङकियाँ "धक्के मार कर घर से
>>> >>>> निकाली गयीं माँयें और बीबियाँ??????
>>> >>>> इसी एशिया और भारत के तीन टुकङों में
>>> >>>> सबसे अधिक है????
>>> >>>> क्योंकि इनका निजी घर इनके नाम
>>> >>>> नही और कमाई का निजी निरंतर
>>> >>>> जरिया नहीं
>>> >>>> और जो बाँझ औरतें है?? वे कसाई
>>> >>>> की गौयें?क्योंकि हर बात पेरेंटिंग के नाम पर
>>> >>>> स्त्री पर थोप दी जाती है
>>> >>>> कि माता अगर घर पर रहकर घर
>>> >>>> की सेवा करेगी तो बच्चों को हर वक्त
>>> >>>> ममता की
>>> >>>> छांव मिलेगी ?तो जिनके बच्चे किसी कारण से
>>> >>>> नहीं हो सकते वे औरतें? अपनी
>>> >>>> मरज़ी बच्चा गोद नहीं ले
>>> >>>> सकतीं क्योंकि पति को अपने ही बीज से
>>> >>>> पैदा बच्चा
>>> >>>> चाहिये और ग़ैर के बीज के पेङ
>>> >>>> को अपनी संपत्ति का वारिस बनाना ग़वारा
>>> >>>> नहीं । तब? परिणाम स्वरूप भयंकर मानसिक
>>> >>>> टॉर्चर समाज भी करता है और परिवार
>>> >>>> भी बहुत कम पुरुष स्त्री के बाँझ होने पर
>>> >>>> बच्चा गोद लेते हैं अकसर बच्चा
>>> >>>> गोद तब लिया जाता है जब कमी प्रजनन
>>> >>>> बीजों की पुरुष में निकल जाती है ।
>>> >>>> इसके विपरीत जो स्त्रियाँ स्वावलंबी हैं वे
>>> >>>> यदि चाहें तो स्वस्थ होने पर
>>> >>>> भी अपना बच्चा जन्म देने के बज़ाय समाज हित
>>> >>>> में अनाथ बच्चों को भी गोद ले
>>> >>>> सकती है ।
>>> >>>> बच्चों को हर तरह से ""पढ़ा लिखा कर
>>> >>>> योग्य बनाने को करोङो रुपया चाहिये
>>> >>>> """"कितने पुरुष अकेले ये बोझ उठा पाते
>>> >>>> है?एक लेडी डॉक्टर लेडी नर्स
>>> >>>> लेडी टीचर लेडी पुलिस
>>> >>>> """कैसी मिलेगी '''घरेलू गृहिणियों को?
>>> >>>> यदि लङकियाँ किसी न किसी परिवार से
>>> >>>> जॉब करने नहीं निकलेगीं तो कहाँ से
>>> >>>> आयेंगी लेडी गायनोकोलोजिस्ट और
>>> >>>> स्त्री शिक्षक स्त्री पुलिस स्त्री नर्स?
>>> >>>> व्यवहार में यही साबित हुआ है
>>> >>>> कि डॉक्टर टीचर नर्स प्रोफेसर
>>> >>>> वैज्ञानिक माता के बेटे बेटियाँ ""अधिक
>>> >>>> योग्य सुखी और जिम्मेदार नागरिक बनतेआये है
>>> >>>> """"बजाय पूर्ण कालीन पति और
>>> >>>> मायके पर निर्भर गृहिणी के ।क्योंकि एक
>>> >>>> माता जो मेहनत हुनर या शिक्षा और
>>> >>>> तकनीक के बल पर जब पैसा रुपया कमाती है
>>> >>>> तो बच्चों को बचपन से ही माता के
>>> >>>> संरक्षण में अपने निजी कार्य स्वयं करने और
>>> >>>> अधिकांश घरेलू कार्यों में
>>> >>>> आत्मनिर्भर रहने की आदत पङ जाती है । वह
>>> >>>> पैसे रुपये कमाने खर्चने और
>>> >>>> बचाने के सब तरीके समझने लगता है ।
>>> >>>> जबकि जिनकी माता पूर्ण कालीन गृहिणी
>>> >>>> है वे बच्चे बहुत बङी आयु तक न तो भोजन
>>> >>>> पकाना सीख पाते हैं न परोसकर खाना
>>> >>>> और कपङे धोना स्वयं पहनना समय का पालन
>>> >>>> करना और सारी चीज़ें सही जगह रखना
>>> >>>> और अपने जूठे बर्तन सिंक पर
>>> >>>> रखना कूङा डस्टबिन में डालना तक
>>> >>>> जरूरी नहीं
>>> >>>> समझते ।
>>> >>>> आप किसी छोटे नगर कसबे गाँव या महानगर
>>> >>>> के आम साधारण परिवारों में जाकर
>>> >>>> देखें, बङे बङे किशोर और युवा बेटे माता के
>>> >>>> सामने कपङों का ढेर लगाकर हर
>>> >>>> समय कुछ न कुछ हुकुम झाङते मिलेंगे ।माँ न
>>> >>>> हुयी हर वक्त चलता मुफ्त का
>>> >>>> रोबोट हो गयी!!!
>>> >>>> कभी पढ़ाई के बहाने कभी खेल के बहाने
>>> >>>> कभी मूड के बहाने घर में काम काज
>>> >>>> में वे बच्चे अकसर काम में हाथ नहीं बँटाते
>>> >>>> जिनकी मातायें पूर्णकालीन
>>> >>>> गृहिणी हैं ।उनको लगता है
>>> >>>> माँ करती ही क्या है । चूँकि चॉकलेट
>>> >>>> टॉफी कपङे
>>> >>>> खिलौने और सब चीजें मनोरंजन और खाने पीने
>>> >>>> की "पिता की कमाई "से आतीं हैं
>>> >>>> तो सीधा असर यही पङता है कि बच्चे
>>> >>>> पापा की चमचागीरी पर उतर आते हैं ।
>>> >>>> पापा घुम्मी कराने ले जाते हैं माँ घर में
>>> >>>> सङती रहती है । पापा खुश तो हर
>>> >>>> फरमाईश पूरी और मम्मी? अब ये
>>> >>>> तो खाना पकाने साफ सफाई करने की मशीन है
>>> >>>> ।
>>> >>>> ज्यों ज्यों बङे होते जाते हैं परिवार में
>>> >>>> "अधूरी पढ़ाई छोङकर पूर्णकालीन
>>> >>>> गृहिणी बनने वाली माता की अनसुनी होने
>>> >>>> लगती है ।सीधी सीधी बात सात साल के
>>> >>>> बाद हर दिन बच्चा सीखता है
>>> >>>> कि खुशियाँ आतीं हैं पैसे रुपये से और पैसा
>>> >>>> रुपया लाते हैं पापा । तो घर का मालिक
>>> >>>> पापा हैं और हुकूमत उसकी जिसकी
>>> >>>> कमाई ।
>>> >>>> जबकि जिन घरों में माता भी कमाती हैं
>>> >>>> वहाँ पिता का व्यवहार माता के प्रति
>>> >>>> कम मालिकाना कम हुकूमती कम क्रूर होता है
>>> >>>> और बराबरी जैसी स्थिति घरेलू
>>> >>>> खर्चे उठाने में होने की वजह से
>>> >>>> बच्चा माँ पिता दोनों के साथ लगभग समान
>>> >>>> बरताव करता है पति भी स्त्री से हर बात
>>> >>>> पर राय मशविरा करना जरूरी समझता
>>> >>>> है ।
>>> >>>> घर में रुपया पैसा ज्यादा आता है तो स्कूल
>>> >>>> बढ़िया हो जाता है । खाने की
>>> >>>> थाली में व्यञ्जन भरे भरे हो जाते हैं और नहाने
>>> >>>> धोने पहनने देखने सोने और
>>> >>>> घूमने फिरने को अधिक संसाधन होते हैं ।बच्चे
>>> >>>> को अनुशासित दिनचर्या मिलती
>>> >>>> है और ""तरस ''कर नहीं रह जाना पङता ।
>>> >>>> क्रूरता कम होती है माता पर तो ऐसा
>>> >>>> बच्चा ""स्त्रियों का सम्मान
>>> >>>> करना सीखता है ।
>>> >>>> ये सही है कि बच्चे को स्कूल के समय के
>>> >>>> अलावा हर समय अभिभावक चाहिये ।
>>> >>>> किंतु ये भी सही है कि कोरी ममता से कुछ
>>> >>>> भविष्य बनता नहीं है बच्चे । चरा
>>> >>>> चरा कर साँड बना डालने से कुछ हल नहीं है
>>> >>>> जीवन को आगे विकसित उन्नत और
>>> >>>> सभ्य समाज की प्रतियोगिता में
>>> >>>> ""अच्छा स्कूल अच्छे कपङे अच्छा भोजन
>>> >>>> बढ़िया टॉनिक फल सब्जी दाल साबुन शेंपू
>>> >>>> बिस्तर मकान जमीन बैंक बैलेंस और
>>> >>>> बढ़िया व्यवसायिक शिक्षा चाहिये ।
>>> >>>> ये
>>> >>>> सब आता है रुपये पैसे से । कितने पिता हैं
>>> >>>> जिनके अकेले के बूते की बात है
>>> >>>> ज़माने के हिसाब से एक घर पढ़ाई दवाई कपङे
>>> >>>> बिजली कूलर गीजर पानी
>>> >>>> सबमर्सिबल एयर कंडीशनर आलमारी डायनिंग
>>> >>>> टेबल बिस्तर और मोटी फीस चुकाकर
>>> >>>> जॉब दिलाने की दम रखते हैं?
>>> >>>> अकसर सात साल तक आते आते बच्चे की जरूरतें
>>> >>>> ही विवश करतीं हैं स्त्री को
>>> >>>> छोङी गयी पढ़ाई और जॉब फिर से शुरू करने के
>>> >>>> लिये ।
>>> >>>> मँहगाई तो है ही कमर तोङ बच्चे बङे होते
>>> >>>> जाने के साथ साथ "निरर्थक बचा
>>> >>>> समय भी चारदीवारी में बंद बँधा जीवन
>>> >>>> भी काटने लगता है । और एक एक करके
>>> >>>> सब अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं
>>> >>>> । कौन फिर वह एक एक रात
>>> >>>> गिनता है जब माता देर से सोयी और
>>> >>>> जल्दी जागी?
>>> >>>> जब पत्नी दिन भर कुछ न कुछ काम हाथ में
>>> >>>> लिये कोल्हू के बैल सी पूरे घर
>>> >>>> में मँडराती रही?
>>> >>>> देह कमजोर और किसी न किसी व्याधि से
>>> >>>> ग्रस्त हो जाती है शरीर बेडौल हो
>>> >>>> जाता है क्योंकि बंद दीवारों से
>>> >>>> आधी सदी बाहर नहीं निकली स्त्री फिर
>>> >>>> बाहर
>>> >>>> जाने का शौक और आत्मविश्वास ही खो देती है
>>> >>>> ।
>>> >>>> इसके विपरीत
>>> >>>> जो स्त्रियाँ किसी न किसी जॉब में
>>> >>>> लगी रहती हैं वे अपनी कमाई का कुछ न
>>> >>>> कुछ हिस्सा खुद पर भी खर्च करने से स्वस्थ
>>> >>>> ऱहती है और प्रतिदिन ठीक से सज
>>> >>>> सँवर कर काम काज करने जाने
>>> >>>> की दिनचर्या से चुस्त दुरुस्त भी रहतीं है ।
>>> >>>> और बाहरी समाज से
>>> >>>> मिलना जुलना एकरसता और तनाव
>>> >>>> को तोङता रहता है । अच्छे
>>> >>>> कपङे पहनने और नियमित दिनचर्या के अनुसार
>>> >>>> अनुशासित रहने से वे देर तक
>>> >>>> युवा रहती हैं और खुश भी
>>> >>>> हर मामूली सी चीज के लिये पति से
>>> >>>> रुपया माँगने को मजबूर स्त्रियाँ अधिकतर
>>> >>>> मन मारकर जीना सीखती रहती है दमन
>>> >>>> ही आदत हो जाती है । या तो फिर झूठ
>>> >>>> बोलकर रुपया बचाती है निजी खर्च के लिये
>>> >>>> । और तब भी कुछ पसंद का खाना
>>> >>>> पहनना उनको अपने ऊपर फिजूल
>>> >>>> खर्ची लगता है । बहुत अमीर पति नहीं है तब
>>> >>>> तो
>>> >>>> कलह की जङ ही बन जाता है
>>> >>>> बीबी का कपङा गहना मेकअप और कुछ अलग
>>> >>>> सा खा लेना
>>> >>>> और किसी बहिन भांजे भतीजे
>>> >>>> माता पिता सहेली को कोई ""उपहार
>>> >>>> देना तो सपना
>>> >>>> ही रह जाता है "
>>> >>>> ज्यों ज्यों बच्चे युवा होकर अपने कैरियर
>>> >>>> विवाह और परिवार बसाते जाते हैं
>>> >>>> स्त्री ""बेकार ""पङी ट्राईसाईकिल
>>> >>>> पालना वॉकर की तरह की याद बनकर रह
>>> >>>> जाती
>>> >>>> है ।
>>> >>>> जबकि आत्मनिर्भऱ स्त्री का सबसे
>>> >>>> बढ़िया समय ही पचास साल की आयु के बाद
>>> >>>> प्रारंभ होता है वह पर्याप्त सामाजिक
>>> >>>> हैसियत धन और अनुभव जुटा लेने के
>>> >>>> बाद ''स्वावलंबी बच्चों को ताने देने डिस्टर्ब
>>> >>>> करने के बजाय अपनी फिटनेस
>>> >>>> हॉबीज समाज सुधार के कार्य आध्यात्म और वे
>>> >>>> सब शौक पूरे करने पर जुट जाती
>>> >>>> है जो वक्त न मिलने के कारण विवाह के बाद
>>> >>>> से बीस साल बंद रह गये ।
>>> >>>> माता की ममता दूध कोख का तो कर्ज़
>>> >>>> रहता ही है सब पर किंतु वह माता "सुपर
>>> >>>> मॉम "साबित होकर हमेशा अपनी संतान के
>>> >>>> जीवन में आदर पाती है जो उसको आगे
>>> >>>> बढ़ाने में अपनी कमाई का पैसा भी लगाती है
>>> >>>> ।
>>> >>>> ऐसी कोई भी साजिश जो औरतों पर
>>> >>>> थोपती हो """स्वयं को केवल
>>> >>>> सेविका दासी और बच्चे पैदा करने
>>> >>>> की मशीन होना """""समय
>>> >>>> का पहिया उलटा घुमाने की साजिश है
>>> >>>> """बौखलाया तो गोरों का समाज
>>> >>>> भी था जब कालों ने
>>> >>>> दासता छोङी थी आज सब बराबरी से
>>> >>>> रहते हैं """पुरुषों को भी घर में झाङू
>>> >>>> पोंछा बरतन कपङे रोटी टॉयलेट कच्छे
>>> >>>> बनियान बराबरी से हाथ बँटाकर
>>> >>>> बिना लज्जित हुये करना सीखना जब तक
>>> >>>> नहीं आयेगा """"ये
>>> >>>> जाती सत्ता बौखलाती रहेगी """दलित
>>> >>>> सेवक न मिलने पर सामंतो की तरह
>>> >>>> ये ""महिलायें तय
>>> >>>> करेंगी उनको क्या करना है ''''ये तय करेगे
>>> >>>> काले लोग उनको क्या करना है ""ये तय
>>> >>>> करेगे दलित उनको क्या करना है """
>>> >>>> माँ विधवा है बूढ़ी है लाचार है और
>>> >>>> बेटा परदेश लेकर
>>> >>>> चला गया फैमिली """"बेटी पढ़ी लिखी है
>>> >>>> या अनपढ़ है लेकिन गृहिणी रह गयी
>>> >>>> वह बिलखती है रोती है तङपती है किंतु
>>> >>>> माँ को दवाई कपङे और अपने साथ रखकर
>>> >>>> सेवा नहीं दे सकती????? क्यों जँवाई
>>> >>>> भी तो बेटा है??? जब बहू ससुर सास की
>>> >>>> सेविका है तो??? लेकिन
>>> >>>> ऐसी हजारों बेटियाँ आज है
>>> >>>> जो बिना नजर पर लज्जित होने का बोध
>>> >>>> कराये माँ बाप को ""सहारा सेवा दे
>>> >>>> रही हैं ।और ये केवल
>>> >>>> वही बेटियाँ जिनको उनके माँ बाप ने या खुद
>>> >>>> उन्होने
>>> >>>> संघर्ष करके पढ़ा और कला या शिक्षा के दम
>>> >>>> पर आत्मनिर्भर हैं ।
>>> >>>> ऐसी बेटियाँ पिता माता को मुखाग्नि भी दे
>>> >>>> रहीं हैं और पुत्र से अधिक सेवा
>>> >>>> भी कर रहीं हैं बहू
>>> >>>> या जामाता तो पराया जाया है किंतु
>>> >>>> बेटी और बेटा तो
>>> >>>> अपनी ही संतान है । फिर वह बेटी ही विवश
>>> >>>> रह जाती है जो पूर्ण कालीन
>>> >>>> गृहपरिचारिका बन कर रह जाती है इससे
>>> >>>> भी अधिक बजाय माँ बाप का बुढ़ापे का
>>> >>>> सहारा बनने के ऐसी बेटी के घर भात
>>> >>>> छटी छूछक और तीज चौथ के सिमदारे भेंटे
>>> >>>> भेजने को बूढ़े माँ बाप की पेंशन पर भी लूट
>>> >>>> पाट रहती है ।
>>> >>>> क्या वीभत्स चित्र है
>>> >>>> कि युवा बेटी को विधुर बूढ़ा बाप
>>> >>>> या बूढ़ी माता
>>> >>>> पेशन से कटौती करके त्यौहारी भेजती है!!!
>>> >>>> """विधवा स्त्री तलाकशुदा स्त्री और
>>> >>>> विकलांग पति की स्त्री और बाँझ
>>> >>>> स्त्री और तेजाब जली स्त्री को केवल एक
>>> >>>> सहारा"निजी कमाई " जिसने बेटी ब्याहने में
>>> >>>> सब
>>> >>>> लुटा दिया उनको?केवल जँवाई का इंतिज़ार
>>> >>>> की कब बुढ़िया मर जाये तो कब घर
>>> >>>> जमीन बेच कर अपने वैभव में समाहित कर लें ??
>>> >>>> अगर ""परंपरा से पुरुषों ने स्त्रियों पर
>>> >>>> जुल्म नहीं किये होते ""विधवाओं
>>> >>>> को अभागन न
>>> >>>> माना होता विवाहिता को ठुकराया न
>>> >>>> होता ""निःपुत्र सास ससुर
>>> >>>> की सेवा की होती ""अपनी कमाई पर
>>> >>>> स्त्री का हक समझा होता """"तो ये
>>> >>>> नौबत
>>> >>>> ही नहीं आती कि बिलखती स्त्री ''यौवन
>>> >>>> गँवाकर प्रौढ़ावस्था में कमाई के नाम पर
>>> >>>> सताई जाती और विवश होकर
>>> >>>> अगली पीढ़ी पहले ही अपने भविष्य
>>> >>>> को अपने हाथ में ऱखने निकल पङती????
>>> >>>> एक ठोस संदेश
>>> >>>> भी सदियों की दासता की आदत
>>> >>>> छोङो और घर बाहर बराबर काम
>>> >>>> करो ''पेरेंटिंग दोनो की जिम्मेदारी है
>>> >>>> ''नौ महीने पेट में रखकर माँ तो फिर
>>> >>>> भी अधिक करती ही है वह कमाऊ
>>> >>>> गृहिणी है या घर रहती है उसके
>>> >>>> "आर्थिक हक "तय करने वाला कोई
>>> >>>> दूसरा क्यों? वह अपना हित अपने स्वभाव के
>>> >>>> हिसाब से तय करे।
>>> >>>>
>>> >>>> --
>>> >>>> Sudha Raje
>>> >>>> Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
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