सुधा राजे की रचनायें -"रात गये"
Sudha Raje
Sudha Raje
पत्थर चाकू लेकर सोये
गाँव शहर से परे हुये
रात पहरूये बरगद रोये अनहोनी से डरे
हुये
कब्रिस्तान और शमशानों
की सीमायें जूझ पङीं
कुछ घायल ,बेहोश ,तङपते
और गिरे कुछ मरे हुये
रात-रात भर समझाती नथ-
पायल ,वो बस धोखा है
ख़त चुपके से लिखे फ़गुनिया जब -जब सावन
हरे हुये
फुलझङियाँ बोयीं हाथों पर
बंदूकों की फसल हुयी
जंगल में जो लाल कुञ्ज थे
आज खेत हैं चरे हुये
बारीकी से नक्क़ाशी कर बूढ़े 'नाबीने
'लिख गये
पढ़ कर कुछ हैरान मुसाफिर रोते आँखे भरे
हुये
हिलकी भर कर मिलन
रो पङा
सूखी आँख विदायी थी
वचन हमेशा शूली रखे
चला कंठ दिल भरे हुये
ज्यों ज्यों दर्द खरोंचे
मेरी कालकोठरी पागल सा
मेरे गीत जले कुंदन से
सुधा "हरे और खरे हुये
©®¶¶©®¶SudhaRaje
Sudha Raje
Sudha Raje
पढ़ना सुनना आता हो तो पत्थर पत्थर
बोलेगा
जर्रा जर्रा,पत्ता पत्ता अफसानों पे
रो लेगा
वीरानों से आबादी तक
लहू पसीना महका है
शर्मनाक़ से दर्दनाक़ नमनाक़ राज़
वो खोलेगा हौलनाक़ कुछ हुये हादसे लिखे
खंडहर छाती पे
नाखूनों से खुरच
लिखा जो, इल्म शराफ़त तोलेगा कुएँ
बावड़ी तालाबों
झीलों नदियों के घाट तहें खोल रहे हैं
ग़ैबी किस्से पढ़ के लहू भी खौलेगा आसमान
के तले जहाँ तक
उफ़ुक ज़मी मस्कन से घर कब्रिस्तानों से
श्मशानों क्या क्या लिखा टटोलेगा चेहर
रिसाला
नज़र नज़र सौ सौ नज़्में हर्फ़ हर्फ़
किस्सा सदियों का वरक़
वरक़ नम हो लेगा
हवा ग़ुजरती हूक तराने अफ़साने
गाती सुन तो
"सुधा" थरथराता है दिल
भी ख़ूनी क़लम
भिगो लेगा
©सुधा राजे
रात गये .
Sudha Raje
जाने किससे मिलने आतीं ' सर्द हवायें
रात गये
बस्ती से आतीं हैं सिसकती दर्द कराहें
रात गये
दूर पहाङों के दामन में छिपकर सूरज
रो देता
वादी में जलतीं जब दहशतग़र्द निग़ाहें
रात गये
चाँद को लिख्खे चिट्ठी
ठंडी झील बरफ के
शोलों पे
ख़ामोशी से कोहरे की
फैली जब बाँहे रात गये
परबत के नीचे तराई में हरियाली चादर
रो दी
फूलों कलियों की गूँजी
जब गुमसुम आहें रात गये
कितने आदमखोर मुसाफिर रस्ते से गुजरे
होंगे
मंज़िल तक जाने से डर गयीं लंबी राहें
रात गये
पेङ तबस्सुम नोंच के खा गये नाजुक
नन्ही बेलों के
धरती रोती शबनम भरके
मौत की चाहें रात गये
प्यार वफ़ा के गाँव में अमराई
पर लटकी लाशें थीं
सुधा" मुहब्बत छोङ के चल
दी
पीपल छाँहे रात गये
©®¶©®¶SudhaRaje
Sudha Raje
पत्थर चाकू लेकर सोये
गाँव शहर से परे हुये
रात पहरूये बरगद रोये अनहोनी से डरे
हुये
कब्रिस्तान और शमशानों
की सीमायें जूझ पङीं
कुछ घायल ,बेहोश ,तङपते
और गिरे कुछ मरे हुये
रात-रात भर समझाती नथ-
पायल ,वो बस धोखा है
ख़त चुपके से लिखे फ़गुनिया जब -जब सावन
हरे हुये
फुलझङियाँ बोयीं हाथों पर
बंदूकों की फसल हुयी
जंगल में जो लाल कुञ्ज थे
आज खेत हैं चरे हुये
बारीकी से नक्क़ाशी कर बूढ़े 'नाबीने
'लिख गये
पढ़ कर कुछ हैरान मुसाफिर रोते आँखे भरे
हुये
हिलकी भर कर मिलन
रो पङा
सूखी आँख विदायी थी
वचन हमेशा शूली रखे
चला कंठ दिल भरे हुये
ज्यों ज्यों दर्द खरोंचे
मेरी कालकोठरी पागल सा
मेरे गीत जले कुंदन से
सुधा "हरे और खरे हुये
©®¶¶©®¶SudhaRaje
Sudha Raje
Sudha Raje
पढ़ना सुनना आता हो तो पत्थर पत्थर
बोलेगा
जर्रा जर्रा,पत्ता पत्ता अफसानों पे
रो लेगा
वीरानों से आबादी तक
लहू पसीना महका है
शर्मनाक़ से दर्दनाक़ नमनाक़ राज़
वो खोलेगा हौलनाक़ कुछ हुये हादसे लिखे
खंडहर छाती पे
नाखूनों से खुरच
लिखा जो, इल्म शराफ़त तोलेगा कुएँ
बावड़ी तालाबों
झीलों नदियों के घाट तहें खोल रहे हैं
ग़ैबी किस्से पढ़ के लहू भी खौलेगा आसमान
के तले जहाँ तक
उफ़ुक ज़मी मस्कन से घर कब्रिस्तानों से
श्मशानों क्या क्या लिखा टटोलेगा चेहर
रिसाला
नज़र नज़र सौ सौ नज़्में हर्फ़ हर्फ़
किस्सा सदियों का वरक़
वरक़ नम हो लेगा
हवा ग़ुजरती हूक तराने अफ़साने
गाती सुन तो
"सुधा" थरथराता है दिल
भी ख़ूनी क़लम
भिगो लेगा
©सुधा राजे
रात गये .
Sudha Raje
जाने किससे मिलने आतीं ' सर्द हवायें
रात गये
बस्ती से आतीं हैं सिसकती दर्द कराहें
रात गये
दूर पहाङों के दामन में छिपकर सूरज
रो देता
वादी में जलतीं जब दहशतग़र्द निग़ाहें
रात गये
चाँद को लिख्खे चिट्ठी
ठंडी झील बरफ के
शोलों पे
ख़ामोशी से कोहरे की
फैली जब बाँहे रात गये
परबत के नीचे तराई में हरियाली चादर
रो दी
फूलों कलियों की गूँजी
जब गुमसुम आहें रात गये
कितने आदमखोर मुसाफिर रस्ते से गुजरे
होंगे
मंज़िल तक जाने से डर गयीं लंबी राहें
रात गये
पेङ तबस्सुम नोंच के खा गये नाजुक
नन्ही बेलों के
धरती रोती शबनम भरके
मौत की चाहें रात गये
प्यार वफ़ा के गाँव में अमराई
पर लटकी लाशें थीं
सुधा" मुहब्बत छोङ के चल
दी
पीपल छाँहे रात गये
©®¶©®¶SudhaRaje
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