Wednesday 17 September 2014

सुधा राजे का कविता :-- घर में जाले कैसे हैं

काश किसी ने समझा होता
घर में जाले कैसे हैं?
चूङी वाले नरम हाथ में खंज़र भाले कैसे
हैं?
"सुधा" सहारा बनते बनते बोझ बन
गये सब नाते '
सीने में डर कैसे कैसे
मुँह पर ताले कैसे है?
©®सुधा राजो।


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