सुधा राजे का लेख :-
संवेदनशून्य समाज नैतिक और अनुशासित कैसे हो सकता है!!!!
जब एक व्यक्ति किसी कमज़ोर निरीह विवश पर कोई अत्याचार अन्याय या भेदभाव
बल धन या पद या समूह की शक्ति के दम पर थोपता है तो 'उसे जो सबसे पहला डर
होता है वह है ""सामाजिक निन्दा """
बदनामी
नककटई
और टोपी पगङी मूँछ
उखङना उछलना
ये मुहावरे नहीं 'सामाजिक 'बंधन का भय ही है ।
लोग 'यश चाहते हैं, रौबदाब सत्ता धन पद चाहते है रूप वैभव और समर्थक
चाहते हैं, 'किंतु क्यों?
सुखी तो अकेले रहकर भी हुआ जा सकता है न!!!!!
प्रतिष्ठा प्रसिद्धि नेकनामी और समाज में अमर हो जाने की चाहत ही
आदमी को ""लोकोपवाद ""से डराती है ।
।
पुलिस पकङ ले जाये किंतु किसी को कानों कान पता न चले तो आदमी ऊँची नाक
लगा कर कह दे वह तो पर्यटन पर गया था।
किंतु
जब सबके सामने ये प्रदर्शन हो जाये तो?
अधिकांश लोग डरते हैं बदनामी से ।
आज
ईश्वर का भय पहले जैसा नहीं है ।
आज
पाप करने से डर पहले जैसा नहीं है ।
आज बिरादरी से बहिष्कार कोई पहले जैसा हौआ नहीं ।
आज लोग नर्क की कल्पना से नहीं डरते ।
आज लोग "कर्त्तव्य "को अपनी नैतिक सामाजिक धार्मिक कानूनी ज़िम्मेदारी नहीं मानते ।
परिणाम?
आज हर तरफ एक अपराध ""सरेराह "
और
आँख बचाकर ',अपना क्या, 'कौन चक्कर में पङे, 'यार मैं ही क्यों ",,और भी
लोग हैं न वे जायें न, 'मुझे कहाँ समय, 'मुझपर जॉब रोजी परिवार का भार है
',मेरा परिवार पसंद नहीं करेगा ',तुझको पराई क्या पङी अपनी निबेङ
तू!!!!!!!
यही संवेदन हीनता और कंधे उचकाकर आगे बढ़ जाने की ""कायराना ""प्रवृत्ति, '
अधिकांश "पापों "अपराधों ''सामाजिक अन्यायों को बढ़ावा देती है ':
एक शराबी अपनी पत्नी को सङक पर पीट रहा था 'माँ चीखती रही बहू को बचाओ
किसी ने जब नहीं बचाया नाबालिग बेटी ने पितापर पत्थर फेंक दिया, शराबी
पिता जब बेटी को पीटने लगा तो छोटा भाई बहिन दोनों पिता के पैर जकङ कर
लोट गये ',बूढ़ी माँ ने छङी बजा दी ।शराबी आदमी आत्महत्या करने चल पङा
''मैं मरूँगा मैं अब नहीं जी सकता ### सब परिवार मेरे खिलाफ!!!! अब सब
पकङने लगे वह आगे सब पीछे यह जुलूस रात एक बजे कई साल पहले हमारे घर के
सामने से भी निकला ',फाटक खोलकर "डाँट लगायी
'संझै एक कंटर बरफ का पानी लाना तो
'
शराबी चौंका आपसे मतलब?
घरवाली गिङगिङायी जिज्जी बुरा न मानो, 'दिमाग फिर गया मेरा नसीब खोटा
',दो चार और दरवाजे खुले ',
हमने कहा
मर जाने दो इसे 'तेरा दूसरा ब्याह हो जायेगा, वैसे भी ये तो रोटी कपङा
दवाई खाना कुछ देता नहीं 'झिक झिक मिटेगी, तुम जवान हो 'कोई भी आराम से
कर लेगा दूसरी शादी 'बच्चे भी कमाते ही है कोई बोझ है तो ये "
शराबी निकम्मा " जो हर दिन कलह तमाशे करता है, 'कूदने दो इसे नद्दी में
मगरमच्छ का तो पेट भरे बीबी बच्चों माँ तो ये पेट भर नहीं सकता, 'नहीं तो
आती होगी गश्ती पुलिस "पटे फेरकर चौङा करदेगी '
धम्म से बीच सङक पर पसर गया शराबी '
मैं क्यों मरूँ?
मैं पीता हूँ तो अपनी कमाई 'और यो मेरी घरवाली मैं पीटूँ चाहे रुपया लूँ
"आप से मतलब???
मतलब तो है ',शोर मत कर नींद खराब मत कर घर जा और औंध जा खाट पर ',
जा रया जा रिया जा रिया '''
लोग देखते रहे और कुछ नहीं बोले ',
बाद में सबने एक हिकारत भरी "उँह ये तो इनका रोज का काम है कौन पङे चक्कर में!!!!!
ये अपराध
कुछ और भी हो सकता है
जगह और पीङित कोई और भी ',
अगर आप या आपके अपने हुये तो?
दूसरे भी कह देगें "कौन चक्कर "में पङे?????????
©®सुधा राजे
जब एक व्यक्ति किसी कमज़ोर निरीह विवश पर कोई अत्याचार अन्याय या भेदभाव
बल धन या पद या समूह की शक्ति के दम पर थोपता है तो 'उसे जो सबसे पहला डर
होता है वह है ""सामाजिक निन्दा """
बदनामी
नककटई
और टोपी पगङी मूँछ
उखङना उछलना
ये मुहावरे नहीं 'सामाजिक 'बंधन का भय ही है ।
लोग 'यश चाहते हैं, रौबदाब सत्ता धन पद चाहते है रूप वैभव और समर्थक
चाहते हैं, 'किंतु क्यों?
सुखी तो अकेले रहकर भी हुआ जा सकता है न!!!!!
प्रतिष्ठा प्रसिद्धि नेकनामी और समाज में अमर हो जाने की चाहत ही
आदमी को ""लोकोपवाद ""से डराती है ।
।
पुलिस पकङ ले जाये किंतु किसी को कानों कान पता न चले तो आदमी ऊँची नाक
लगा कर कह दे वह तो पर्यटन पर गया था।
किंतु
जब सबके सामने ये प्रदर्शन हो जाये तो?
अधिकांश लोग डरते हैं बदनामी से ।
आज
ईश्वर का भय पहले जैसा नहीं है ।
आज
पाप करने से डर पहले जैसा नहीं है ।
आज बिरादरी से बहिष्कार कोई पहले जैसा हौआ नहीं ।
आज लोग नर्क की कल्पना से नहीं डरते ।
आज लोग "कर्त्तव्य "को अपनी नैतिक सामाजिक धार्मिक कानूनी ज़िम्मेदारी नहीं मानते ।
परिणाम?
आज हर तरफ एक अपराध ""सरेराह "
और
आँख बचाकर ',अपना क्या, 'कौन चक्कर में पङे, 'यार मैं ही क्यों ",,और भी
लोग हैं न वे जायें न, 'मुझे कहाँ समय, 'मुझपर जॉब रोजी परिवार का भार है
',मेरा परिवार पसंद नहीं करेगा ',तुझको पराई क्या पङी अपनी निबेङ
तू!!!!!!!
यही संवेदन हीनता और कंधे उचकाकर आगे बढ़ जाने की ""कायराना ""प्रवृत्ति, '
अधिकांश "पापों "अपराधों ''सामाजिक अन्यायों को बढ़ावा देती है ':
एक शराबी अपनी पत्नी को सङक पर पीट रहा था 'माँ चीखती रही बहू को बचाओ
किसी ने जब नहीं बचाया नाबालिग बेटी ने पितापर पत्थर फेंक दिया, शराबी
पिता जब बेटी को पीटने लगा तो छोटा भाई बहिन दोनों पिता के पैर जकङ कर
लोट गये ',बूढ़ी माँ ने छङी बजा दी ।शराबी आदमी आत्महत्या करने चल पङा
''मैं मरूँगा मैं अब नहीं जी सकता ### सब परिवार मेरे खिलाफ!!!! अब सब
पकङने लगे वह आगे सब पीछे यह जुलूस रात एक बजे कई साल पहले हमारे घर के
सामने से भी निकला ',फाटक खोलकर "डाँट लगायी
'संझै एक कंटर बरफ का पानी लाना तो
'
शराबी चौंका आपसे मतलब?
घरवाली गिङगिङायी जिज्जी बुरा न मानो, 'दिमाग फिर गया मेरा नसीब खोटा
',दो चार और दरवाजे खुले ',
हमने कहा
मर जाने दो इसे 'तेरा दूसरा ब्याह हो जायेगा, वैसे भी ये तो रोटी कपङा
दवाई खाना कुछ देता नहीं 'झिक झिक मिटेगी, तुम जवान हो 'कोई भी आराम से
कर लेगा दूसरी शादी 'बच्चे भी कमाते ही है कोई बोझ है तो ये "
शराबी निकम्मा " जो हर दिन कलह तमाशे करता है, 'कूदने दो इसे नद्दी में
मगरमच्छ का तो पेट भरे बीबी बच्चों माँ तो ये पेट भर नहीं सकता, 'नहीं तो
आती होगी गश्ती पुलिस "पटे फेरकर चौङा करदेगी '
धम्म से बीच सङक पर पसर गया शराबी '
मैं क्यों मरूँ?
मैं पीता हूँ तो अपनी कमाई 'और यो मेरी घरवाली मैं पीटूँ चाहे रुपया लूँ
"आप से मतलब???
मतलब तो है ',शोर मत कर नींद खराब मत कर घर जा और औंध जा खाट पर ',
जा रया जा रिया जा रिया '''
लोग देखते रहे और कुछ नहीं बोले ',
बाद में सबने एक हिकारत भरी "उँह ये तो इनका रोज का काम है कौन पङे चक्कर में!!!!!
ये अपराध
कुछ और भी हो सकता है
जगह और पीङित कोई और भी ',
अगर आप या आपके अपने हुये तो?
दूसरे भी कह देगें "कौन चक्कर "में पङे?????????
©®सुधा राजे
क्या बात वाह!
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