सुधा राजे की रचनायें '''भूख "मुहब्बत ''और लङकियाँ
Sudha Raje
Sudha Raje
भूख जब हो गयी मुहब्बत से बङी ऐ
ज़िंदग़ी!!!!!!!
बेचकर जज़्बात लायी भात
मैं तेरे लिये
दिल से ज्यादा पेट में जब
आग हुयी ऐ बंदग़ी!!!!!!
ख्वाब
सी पिसता रही दिन
रात मैं तेरे लिये
बुतपरस्ती से
ख़ुदा मिलता न था ,रोज़े से भी
रोटियों लिखती रही सफ़हात मैं तेरे
लिये
टूटती रह गयी बदन
की ख्वाहिशें पर्दों में यूँ बिक
गयी थी रेत सी हर
रात मैं तेरे लिये
आग लग गयी जब मेरे
रिश्तों के पुल पर ,भीङ थी
तैरती मुर्दों पे थी हालात मैं तेरे लिये
गाँव में गुरबत के जब सैलाब आया दर्द का
छोङ गये सब हाथ
खाली हाथ मैं तेरे लिये
हुस्न के परतौ पे आशिक़ भूख का मारा हुआ
नाचती रह गयी सङक
अब्रात मैं तेरे लिये
बस ज़ने -फ़ासिद थी उल्फ़त पेट के इस दर्द
को
मौत लायी कोख पर ज्यूँ
लात मैं तेरे लिये
सब चले गये छोङकर कल तक
जो मेरे थे वली
कब्र या ससुराल औरत ज़ात मैं तेरे लिये
एक टूटा ये कटोरा ज़िस्म ,दीवारें क़बा
साँस माँगे भीख ज्यूँ ख़ैरात मैं तेरे लिये
चंद टुकङे काग़जों के कुछ निवाले अन्न के
चंद चिंथङे ये
सुधा "औक़ात मैं तेरे लिये
चाँद तारे फूल तितली इश्क़ और शहनाईयाँ
पेट भरने पर हुयी शुहरात मैं तेरे लिये
किस नदी की रूह
प्यासी हूँ मैं सबकी प्यास में
रेत पी गयी शायरी क़ल्मात मैं तेरे लिये
चंद गीली लकङियों पर
आखिरी कुछ रोटियाँ
जोहते बच्चे हुयी शह -मात मैं तेरे लिये
बाप था ज्यादा कि बेटा कौन
भूखा क्या पता
खा गयी चोरी से आलू
सात मैं तेरे लिये
आज तक तो रोज
मिलती रह गयी उम्मीद
सी
आयी ना खुशियों की वो बारात मैं तेरे
लिये
सब कुँवारे ख़्वाब पी गयी इक
ग़रीबी की हिना ।
तीसरी बीबी सुधा ग़ैरात मैं तेरे लिये
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यह रचना पूर्णतः मौलिक है अंश या पूर्ण
नकल आपराधिक मानी जायेगी all right
®©™
Sudha Raje
माचिसों में
तिलमिलाती आग सी ये लङकियाँ
माँओं के
ख्वाबों की खिङकी ताज
सी ये लङकियाँ
कालकोठी में
पङीं जो भी तमन्ना खौफ़
से
उस अज़ल का इक मुक्म्मिल राज़ सी ये
लङकियाँ
तोङकर डैने
गरूङिनी हंसिनी के
बालपन
हसरतें छू ती ख़ला परवाज़ सी ये लङकियाँ
घूँघटों हिज़्जाब में घुट गयीं जो चीखें हैं
दफ़न
वो उफ़ुक छूती हुयी आवाज़ सी ये लङकियाँ
ग़ुस्ले-आतश में
हुयी पाक़ीजगी के
इम्तिहाँ
इंतिहा उस दर्द के अंदाज़ सी ये लङकियाँ
आह में सुर घुट गये
रोटी पे मचली नज़्म के
तानपूरे औऱ् पखावज़
साज़ सी ये
लङकियाँ
अक्षरों चित्रों सुरों छैनी हथोङों की दफन
जंग खायी पेटियों पर
ग़ाज सी ये लङकियाँ
ग़ुमशुदा तनहाईयों में दोपहर की नींद सी
एक
बिछुङी सी सखी ग़ुलनाज़
सी ये लङकियाँ
दहशतों की बस्तियों में रतजगे परदेश के
पंछियों सँग भोर के आग़ाज सी ये लङकियाँ
वंशदीपक दे न पाने पर
हुयी ज़िल्लत लिये
कोख दुखते ज़ख़्म पर हिमताज़ सी ये
लङकियाँ
रूखसती के बाद से
हो गयी परायी धूल तक
गाँव से
लाती वो पाती बाज़
सी ये लङकियाँ
सब्र की शूली पे
जिंदा ठोंक
दी गयी हिम्मतें
बाईबिल
लिखती सुधा अल्फ़ाज
सी ये लङकियाँ
©®¶©®Sudha
Raje
Dta★Bjnr
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Sudha Raje
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भूख जब हो गयी मुहब्बत से बङी ऐ
ज़िंदग़ी!!!!!!!
बेचकर जज़्बात लायी भात
मैं तेरे लिये
दिल से ज्यादा पेट में जब
आग हुयी ऐ बंदग़ी!!!!!!
ख्वाब
सी पिसता रही दिन
रात मैं तेरे लिये
बुतपरस्ती से
ख़ुदा मिलता न था ,रोज़े से भी
रोटियों लिखती रही सफ़हात मैं तेरे
लिये
टूटती रह गयी बदन
की ख्वाहिशें पर्दों में यूँ बिक
गयी थी रेत सी हर
रात मैं तेरे लिये
आग लग गयी जब मेरे
रिश्तों के पुल पर ,भीङ थी
तैरती मुर्दों पे थी हालात मैं तेरे लिये
गाँव में गुरबत के जब सैलाब आया दर्द का
छोङ गये सब हाथ
खाली हाथ मैं तेरे लिये
हुस्न के परतौ पे आशिक़ भूख का मारा हुआ
नाचती रह गयी सङक
अब्रात मैं तेरे लिये
बस ज़ने -फ़ासिद थी उल्फ़त पेट के इस दर्द
को
मौत लायी कोख पर ज्यूँ
लात मैं तेरे लिये
सब चले गये छोङकर कल तक
जो मेरे थे वली
कब्र या ससुराल औरत ज़ात मैं तेरे लिये
एक टूटा ये कटोरा ज़िस्म ,दीवारें क़बा
साँस माँगे भीख ज्यूँ ख़ैरात मैं तेरे लिये
चंद टुकङे काग़जों के कुछ निवाले अन्न के
चंद चिंथङे ये
सुधा "औक़ात मैं तेरे लिये
चाँद तारे फूल तितली इश्क़ और शहनाईयाँ
पेट भरने पर हुयी शुहरात मैं तेरे लिये
किस नदी की रूह
प्यासी हूँ मैं सबकी प्यास में
रेत पी गयी शायरी क़ल्मात मैं तेरे लिये
चंद गीली लकङियों पर
आखिरी कुछ रोटियाँ
जोहते बच्चे हुयी शह -मात मैं तेरे लिये
बाप था ज्यादा कि बेटा कौन
भूखा क्या पता
खा गयी चोरी से आलू
सात मैं तेरे लिये
आज तक तो रोज
मिलती रह गयी उम्मीद
सी
आयी ना खुशियों की वो बारात मैं तेरे
लिये
सब कुँवारे ख़्वाब पी गयी इक
ग़रीबी की हिना ।
तीसरी बीबी सुधा ग़ैरात मैं तेरे लिये
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यह रचना पूर्णतः मौलिक है अंश या पूर्ण
नकल आपराधिक मानी जायेगी all right
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माचिसों में
तिलमिलाती आग सी ये लङकियाँ
माँओं के
ख्वाबों की खिङकी ताज
सी ये लङकियाँ
कालकोठी में
पङीं जो भी तमन्ना खौफ़
से
उस अज़ल का इक मुक्म्मिल राज़ सी ये
लङकियाँ
तोङकर डैने
गरूङिनी हंसिनी के
बालपन
हसरतें छू ती ख़ला परवाज़ सी ये लङकियाँ
घूँघटों हिज़्जाब में घुट गयीं जो चीखें हैं
दफ़न
वो उफ़ुक छूती हुयी आवाज़ सी ये लङकियाँ
ग़ुस्ले-आतश में
हुयी पाक़ीजगी के
इम्तिहाँ
इंतिहा उस दर्द के अंदाज़ सी ये लङकियाँ
आह में सुर घुट गये
रोटी पे मचली नज़्म के
तानपूरे औऱ् पखावज़
साज़ सी ये
लङकियाँ
अक्षरों चित्रों सुरों छैनी हथोङों की दफन
जंग खायी पेटियों पर
ग़ाज सी ये लङकियाँ
ग़ुमशुदा तनहाईयों में दोपहर की नींद सी
एक
बिछुङी सी सखी ग़ुलनाज़
सी ये लङकियाँ
दहशतों की बस्तियों में रतजगे परदेश के
पंछियों सँग भोर के आग़ाज सी ये लङकियाँ
वंशदीपक दे न पाने पर
हुयी ज़िल्लत लिये
कोख दुखते ज़ख़्म पर हिमताज़ सी ये
लङकियाँ
रूखसती के बाद से
हो गयी परायी धूल तक
गाँव से
लाती वो पाती बाज़
सी ये लङकियाँ
सब्र की शूली पे
जिंदा ठोंक
दी गयी हिम्मतें
बाईबिल
लिखती सुधा अल्फ़ाज
सी ये लङकियाँ
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