सुधा राजे की गजलें :- कुछ दर्द अकेले ही सहने पङते हैं।
Sudha Raje
कुछ दर्द अकेले ही सहने पङते हैं ऐ दिल!!!!!
सहने दे ।
मुश्क़िल है अंज़ुमन में आना ,अब,मुझे
अकेला रहने दे।
कुछ ग़म ख़ामोश पिये जाते हैं पीने दे औऱ्
ज़ीने दे ।
कुछ ज़ख़्म छिपाये जाते है,, ख़ुद चाक़
ग़रेबां सीने दे।
बेनुत्क़ तराने ऐसे कुछ बे साज़ बजाये जाते
हैं
कुछ अफ़साने चुपचाप दर्द, सह सह के
भुलाये जाते हैं ।
हर साज़ रहे आवाज़ रहे ।ख़ामोश!!!!न आँसू
बहने दे
।।।
कुछ दर्द अकेले ही सहने पङते हैं । ऐ
दिल!!!!!!
सहने दे ।
कुछ यादें होतीं ही हैं बस दफ़नाने और
भुलाने को ।
हर बार कोई कब होता है देकर आवाज़
बुलाने को ।
कुछ पाँव पंख घायल पागल बेमंज़िल मक़सद
चलते हैं ।
कुछ तारे चंदा सूरज हैं चुपचाप पिघल कर
जलते हैं ।
कुछ ज़ख़्म लगे नश्तरो-,नमक बे मरहम हर
ग़म
ढहने दे ।
कुछ दर्द अकेले ही सहने पङते हैं ।। ऐ
दिल!!!!!
सहने दे ।
©सुधा राजे ।।
Sudha Raje
©सुधा राजे ।
Sudha Raje
©®¶
उल्फत उल्फ़त छलक रही थी जिन
आँखों की झीलों में ।
उनके भरे समंदर जिनमें
वहशत वहशत रहती है ।
इक दीवाने आशिक़ ने इक रोज़
कहा था चुपके से ।
मेरे दोस्त तेरे दम से दम हरक़त हरकत
रहती है ।
हुये बहुत दिन शहर बदर
थीं मेरी नज़्मों यूँ शायर ।
इस पहलू में दिल के भीतर ग़ुरबत गुरबत
रहती है ।
काला जादू डाल के नीली आँखें साक़ित कर
गयी यूँ ।
दिल का हिमनद रहा आँख में फ़ुरक़त फ़ुरक़त
रहती है।
ग़म का सहरा दर्द की प्यासें ज़ख़म
वफ़ा के गाँव जले ।
क़ुरबानी के रोज़ से रिश्ते फुरसत फुरसत
रहती है ।
झीलों की घाटी में वादी के पीछे
दो कब्रें हैं ।
जबसे बनी मज़ारे घर घर बरक़त बरकत
रहती है।
दीवारे में जब से हमको चिन गये नाम
फरिश्ता है ।
वो अब जिनकी ज़ुबां ज़हर थी इमरत
इमरत रहती है ।
सुधा"ज़ुनूं से डर लगता है । अपने बाग़ीपन
से भी ।
दर्द ज़जीरे सब्ज़ा हर सू । नफ़रत नफ़रत
रहती है ।
©सुधा राजे
वो सूखी डाल पे
नन्ही हरी पत्ती लजायी
सी
।
जो देखा आपने हँसकर,
लगी फिर
मुँह दिखायी सी।
लगा फिर
आईना मुझको बुलाने अपने साये में,।
सुनी जब आपके होठों ग़ज़ल
मेरी बनायी सी ।
लगी वो फिर शक़ीला इक़ गुलाबी फूल
को तकने ।
शहाना शोख़ चश्मी से
झरा जैसे बधाई सी।
बजे हर तार दिल का आपकी आवाज़ सुनकर
यूँ ।।
नदी की धुन समंदर के हो सीने में समाई
सी।
न भूला दिल सरो-अंदाम
ज़लवा आपका पहला ।
ख़ुमारी फिर वही चेहरे पै सेहरे के सगाई
सी ।
हमारी उम्र फ़ानी ये दिलो ज़ां बस
निशानी है ।
हमारी रूह में ख़ुशबू मुहब्बत
की बनायी सी ।
सरकती रात की चादर वो ढलते लाज के
घूँघट।
हज़ीं वो ज़ां सितानी ज़ां पे बनती याद
आई सी।
असीरी उम्र भर की है
सुधा किश्वर क़फस नफ़सी।
क़यामत हो कि ज़न्नत आपके पहलू समाई
सी ।
©Sudha Raje
©®©SUDHA Raje
कुछ दर्द अकेले ही सहने पङते हैं ऐ दिल!!!!!
सहने दे ।
मुश्क़िल है अंज़ुमन में आना ,अब,मुझे
अकेला रहने दे।
कुछ ग़म ख़ामोश पिये जाते हैं पीने दे औऱ्
ज़ीने दे ।
कुछ ज़ख़्म छिपाये जाते है,, ख़ुद चाक़
ग़रेबां सीने दे।
बेनुत्क़ तराने ऐसे कुछ बे साज़ बजाये जाते
हैं
कुछ अफ़साने चुपचाप दर्द, सह सह के
भुलाये जाते हैं ।
हर साज़ रहे आवाज़ रहे ।ख़ामोश!!!!न आँसू
बहने दे
।।।
कुछ दर्द अकेले ही सहने पङते हैं । ऐ
दिल!!!!!!
सहने दे ।
कुछ यादें होतीं ही हैं बस दफ़नाने और
भुलाने को ।
हर बार कोई कब होता है देकर आवाज़
बुलाने को ।
कुछ पाँव पंख घायल पागल बेमंज़िल मक़सद
चलते हैं ।
कुछ तारे चंदा सूरज हैं चुपचाप पिघल कर
जलते हैं ।
कुछ ज़ख़्म लगे नश्तरो-,नमक बे मरहम हर
ग़म
ढहने दे ।
कुछ दर्द अकेले ही सहने पङते हैं ।। ऐ
दिल!!!!!
सहने दे ।
©सुधा राजे ।।
Sudha Raje
©सुधा राजे ।
Sudha Raje
©®¶
उल्फत उल्फ़त छलक रही थी जिन
आँखों की झीलों में ।
उनके भरे समंदर जिनमें
वहशत वहशत रहती है ।
इक दीवाने आशिक़ ने इक रोज़
कहा था चुपके से ।
मेरे दोस्त तेरे दम से दम हरक़त हरकत
रहती है ।
हुये बहुत दिन शहर बदर
थीं मेरी नज़्मों यूँ शायर ।
इस पहलू में दिल के भीतर ग़ुरबत गुरबत
रहती है ।
काला जादू डाल के नीली आँखें साक़ित कर
गयी यूँ ।
दिल का हिमनद रहा आँख में फ़ुरक़त फ़ुरक़त
रहती है।
ग़म का सहरा दर्द की प्यासें ज़ख़म
वफ़ा के गाँव जले ।
क़ुरबानी के रोज़ से रिश्ते फुरसत फुरसत
रहती है ।
झीलों की घाटी में वादी के पीछे
दो कब्रें हैं ।
जबसे बनी मज़ारे घर घर बरक़त बरकत
रहती है।
दीवारे में जब से हमको चिन गये नाम
फरिश्ता है ।
वो अब जिनकी ज़ुबां ज़हर थी इमरत
इमरत रहती है ।
सुधा"ज़ुनूं से डर लगता है । अपने बाग़ीपन
से भी ।
दर्द ज़जीरे सब्ज़ा हर सू । नफ़रत नफ़रत
रहती है ।
©सुधा राजे
वो सूखी डाल पे
नन्ही हरी पत्ती लजायी
सी
।
जो देखा आपने हँसकर,
लगी फिर
मुँह दिखायी सी।
लगा फिर
आईना मुझको बुलाने अपने साये में,।
सुनी जब आपके होठों ग़ज़ल
मेरी बनायी सी ।
लगी वो फिर शक़ीला इक़ गुलाबी फूल
को तकने ।
शहाना शोख़ चश्मी से
झरा जैसे बधाई सी।
बजे हर तार दिल का आपकी आवाज़ सुनकर
यूँ ।।
नदी की धुन समंदर के हो सीने में समाई
सी।
न भूला दिल सरो-अंदाम
ज़लवा आपका पहला ।
ख़ुमारी फिर वही चेहरे पै सेहरे के सगाई
सी ।
हमारी उम्र फ़ानी ये दिलो ज़ां बस
निशानी है ।
हमारी रूह में ख़ुशबू मुहब्बत
की बनायी सी ।
सरकती रात की चादर वो ढलते लाज के
घूँघट।
हज़ीं वो ज़ां सितानी ज़ां पे बनती याद
आई सी।
असीरी उम्र भर की है
सुधा किश्वर क़फस नफ़सी।
क़यामत हो कि ज़न्नत आपके पहलू समाई
सी ।
©Sudha Raje
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