सुधा राजे का लेख - ""स्त्री और प्रेम विवाह""

"हमारा मकसद नफरत फैलाना नहीं वरन सच से सबको बावस्ता कराना है,
और सच जाने बिना बेकार की भावुक बातें किसी काम की नहीं ',
जैसे कोई मेहमान आता है और सब औपचारिकता वश कहते हैं कि इसे अपना ही
"घर समझें "
ये आपके ही बच्चे हैं
आप के लिये जान भी हाजिर है
आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ लाये, हम आपके दौलतखाने पर आयें जहेनसीब
जर्रानवाज़ी का शुक्रिया """"

किंतु
ऐसा है नहीं, '
न तो बिना रजिस्ट्री बैनामे के किसी का घर आपका हो सकता है, '
न बिना किसी गोदनामे या शरीर से जनम दिये किसी का बच्चा आपका बच्चा, '
ना ही बराबरी के लेन देन के किसी से आप कुछ ले सकते हैं ।


प्रेम
प्रेम
प्रेम
सब हर तरफ से बोल तो रहे हैं अफ़सोस ये है कि बङे बङे पुलिस ऑफिसर
पत्रकार राजनीतिक नेता और लेखक भी बोल रहे हैं ।

प्रेम
की सीमा नहीं जाति नहीं आयु नहीं मजहब नहीं भाषा नहीं,

वगैरह वगैरह वगैरह
किन्तु

ये सब मानने के बाद भी इस बात पर कोई बोलना समझना नहीं चाहता कि ',
पुरानी हिन्दी फिल्मों से अब तक ""नाचने गाने वाली बहिष्कृत मुसलिम औरतों
के सिवा ""जो इसलाम से बाकायदा ख़ारिज मानी जाती हैं क्योंकि
"नाचना गाना इसलाम में हराम माना जाता है "
और जो जो औरतें ऐसे व्यवसाय में आयीं पहले वे तवायफ़ परिवार से आयीं । ये
तवायफें वे बनायीं गयीं जो लूटी हुयीं औरतें थीं । कालान्तर में उनका एक
मुकाम बनता गया कला के नाम पर फिल्मों में ये तवायफें भी आने को तैयार
नहीं थी ।तब लङकों ने औरतों के रोल किये । बाद में फिल्म इंडस्ट्री की
अपनी ही दुनियाँ बन गयी किंतु यह एक अलग बात है कि लोग फिल्में देखते थे
।और यह दूसरी अलग बात है कि लोग फिल्मों में काम करने वाली लङकियों को
बदचलन आवारा वाहियात और कम्प्रोमाईज करने वाली औरतें समझते थे आज भी ग़ैर
फिल्मी परिवार के लङके बहुत कम मामलों में किसी फिल्मी लङकी से विवाह
करने को तैयार होते है, 'एक दो अपवाद के सिवा कदाचित ही कोई उदाहरण ऐसा
है जब दो फिल्मी हस्तियों की पहली ही शादी पहला ही अफेयर रहा और जीवन भर
निभ गया ।आज भी संपन्न और सक्षम होने पर भी फिल्मों में काम करने को
लङकियों को कोई माता पिता आसानी से तैयार नहीं होते ।
अतः उस पचास से सौ साल पुराने जमाने में तो फिल्मी औरत की शादी किसी गैर
फिल्मी परिवार में होना ही असंभव थी ।बल्कि ये भी कि खुद फिल्मी बेटे के
माँ बाप नहीं चाहते थे कि उनकी बहू अभिनेत्री हो
साथ साथ प्रेम अभिनय करते करते दो चार अफेयर होकर टूटने के बाद ही दो
फिल्मी व्यक्तियों की शादी हो पाती थी ।
वह शादी भी अकसर बहुत जल्दी तलाक और डिप्रेशन में बदल जाती ऱही ।

तो
ये रहा फिल्म अभिनेत्रियों का प्रेम विवाह, "
फिर ये सब कोई सामाजिक मुख्यधारा के लिये उदाहरणीय जोङे कैसे बन सकते हैं?

बात
उन प्रेम विवाहों की कीजिये जो व्यक्ति का पहला इफेयर रहे और उसी पहले
अफेयर को पहली शादी में बदल कर पूरी जिन्दगी जिस हस्ती ने निभा दिया हो
और वहाँ लङकी मुसलिम हो और उस से शादी करने वाले ग़ैर मुसलिम लङके ने
मजहब ना बदला हो, ' बहुविवाह न किया हो??????????



जो फिल्मी अभिनेता या बहुत बङे अरबपति राजनेता या इंडस्ट्रियलिस्ट करते हैं ',
वह सब कभी भी आम मिडिल क्लास आदमी के जीवन में होना संभव नहीं बिना बङी
पारिवारिक टूट फूट और बगावत बरबादी के ।

आम आदमी मजहब तो दूर जाति भी दूसरी हो जाने पर मुसीबत में पङ जाता है ।
माँ बाप का जीना बिरादरी और पास पङौस वाले पूछ पूछ कर हराम कर देते हैं ।
आईन्दा अपनी ही बिरादरी में दूसरे बच्चों की शादी के लाले पङ पङ जाते हैं
और, 'हर निगाह मजाक बनाने लगती है ।

दूसरा मजहब अगर है तब तो निश्चित ही वह लङकी लौट कर कभी माँ बाप के घर आ
ही नहीं सकती ।
या देर सवेर ""ऑनर किलिंग ""की शिकार हो जायेगी ।

लङकी मुसलिम और लङका हिन्दू तो रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामला है प्रेम विवाह का
।और इस पर भी लङके ने मजहब नहीं बदला हो यह तो और भी रेयरेस्ट ऑफ
रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामला है ।

इतने पर अगर दोनों की शादी हो गयी तो कम से कम दस बीस सालों तक कुटुंब के
साथ खङे होना लगभग नामुमकिन ही समझिये ।

आप तब तक ऐसे उदाहरण खोजिये जिनमें लङका हिंदू ईसाई या पारसी सिख जैन
बौद्ध था,, '' और लङकी मुसलिम थी,, ''शादी बिना किसी बवाल के हो गयी और
परिवार दोनों ने बिना हील हुज्जत को दोनो को अपना लिया न तो लङको को
मुसलिम बनना पङा न तो लङकी को हिंदू बनाया गया, "????
अगर आम मध्यम वर्ग में ऐसा कोई जोङा है तो उसको सम्मान जरूर मिलना चाहिये
सार्वजनिक तौर पर और हम सब जानना चाहेगे कि क्या वे दोनों अपने बच्चों के
धर्म पर कोई निर्णय ले पाये?? जैसा कि पूरी दुनियाँ का नियम है कि पिता
की ही जाति और मजहब संतान को मिलता है तो क्या उस जोङे के बच्चे ""हिंदू
हैं????
और क्या उन पर कोई दवाब मजहबी ठेकेदारों ने नहीं डाला????? बहुत सम्मान
करना चाहिये उस जोङे के माता पिता ",,मायके सासरे वालों दोनों का,, ''


अगली किस्म है ""लङकी हिंदू और लङका मुसलिम, ',
निश्चित है कि हंगामाखेज वारदात है ।
लङकी किसी हालत में माँ बाप को राजी वयनहीं कर सकती,, ''जब दूसरी जाति
में शादी करने को दूसरे वर्ण में करने को तब जब गोत्र और सात नात कुटुंब
छोङकर ही शादी होनी नियम है तब ग़ैर हिंदू लङके से शादी को भूखों मरता
परिवार भी राजी खुशी तैयार हो ही नहीं सकता बिना किसी बङी धमकी और मजबूरी
के सौ में से एक दो अभिभावक होंगे जो लङकी के आत्महत्या कर लेने की धमकी
पर भी गैरहिंदू लङके से विवाह करने को सहर्ष राजी हो जाये!!!!!!

लङकी अकसर लगभग सब मामलों में चुपके से भाग जाती है घर से ',
भागते समय थोङा सा गहना कपङा और कुछ कागजात कुछ रुपये बस यही ले जा पाती है ।
अगर किसी बङे पद पर है स्वावलंबी है लङकी तब तो वह सिर उठाकर कह पाती है
वरना ऐसी शादी बरसों तक समाज से छिपाई ही जाती है ।

हंगामा तो जो होता है वह सारे गाँव कसबे नगर में फैलता ही है पहली
रिपोर्ट पुलिस में जाती है ""बहला फुसला कर लङकी भगा ले जाने की ""

और
अब जोङा छिपते छिपाते भागता रहता है परिजन और पुलिस खोजते रहते हैं ।

अगर हत्थे नहीं चढ़े तब तो नसीब वाले निकले किंतु शहर बदर या अज्ञात वास
तो पक्का ही पक्का ।

लङकी बुर्के में और लङके पर धर्म के ठेके दारों का दवाब ।
न कोर्ट मैरिज मान्य
न आर्य समाजी शादी ।
लङकी "क़ाफिर है "तुम मुसलमान हो जब तक लङकी इसलाम क़ुबूल नहीं कर लेती
है ये शादी नाज़ायज है ।
न तो लङके की मुहब्बत का रंग मज़हब से गाढ़ा होता है न लङकी की कुरबानी
की कोई क़ीमत ',

ऐसी लङकी जिसने इसलाम कुबूल नहीं किया हो, 'वह पर्सनल ला के तहत किसी
मुसलिम लङके की जायज बीबी नहीं है, और न ही उसके बच्चे अपने पिता की
जायदाद नाम और व्यवसाय के जायज वारिस ।

पितृसत्तात्मक विश्व है तो हिंदू मान्यता के अनुसार लङकी जिस जाति जिस
वंश जिस धर्म के पुरुष से दैहुक संबंध बना लेती है वही उसका पति होता है
चाहे उसने विधिवत विवाह किया हो या न किया हो ',प्रेम विवाह को गंधर्व
विवाह के रूप में मान्यता मिली हुयी है और लङकी घर से भागकर गयी, 'लङके
के सहर्ष दैहिक संबंध बनाने दिया अब हिंदू मान्यता के अनुसार वह पितृजाति
की नहीं रही पति की जाति ही उसकी जाति है पति का धर्म ही उसका धर्म है और
उसके बच्चे पति की जाति से पति के धर्म से जाने जायेंगे ।

हिंदू लङकी की वापसी संभव नहीं ।शास्त्र के अनुसार, 'संविधान के अनुसार
वह तलाक ले सकती है और तलाक के बाद वह पिता के घर लौट कर पिता की संपत्ति
की वारिस है ।

किंतु मुसलिम पर्सनल लॉ के अनुसार '"ये विवाह विवाह हुआ ही नहीं माना
जायेगा, क्योंकि लङकी ने इसलाम कुबूल नहीं किया है । अतः न तो वह लङकी न
उसके बच्चे पति और पिता की संपत्ति नाम व्यवसाय मजहब के माने जायेंगे न
हक दार हिस्सेदार और न ही वारिस होगे, '

जब लङकी ने इसलाम नहीं अपनाया तो विवाह हुआ ही नहीं और जब विवाह हुआ ही
नहीं तब ""तलाक ""भी किस बाद का???

ये सब एक नाजायाज जिस्मानी ताल्लुकात से अधिक कोई मान्यता नहीं रखते ।

और जहाँ किसी भी पुरुष स्त्री के कैसे भी शारीरिक संबंध से सिवा कोख
किराये पर लेकर,, आई वी एफ "
के लिखत पढ़त के ",,

हर बच्चा पिता की संपत्ति का हिस्सेदार औऱ वारिस है ।

चाहे उस जोङे ने विवाह किया हो या नहीं ।

किंतु
पर्सनल लॉ और जम्मू कश्मीर राज्य पर ये कानून लागू नहीं होते ।
तब

इस तरह उस हिंदू लङके की संपत्ति में वह मुसलिम लङकी वारिस हो जाती है जो
हिंदू लङके से शादी करके अपना मज़हब नहीं बदलती जबकि भ्रम यही है कि
हिंदू की पत्नी हिंदू बच्चे हिंदू जाति पिता की पति की जाति ।

नहीं
होश खोलने वाली बात है कि, 'मुसलिम लङकी का विवाह नहीं हुआ माना जायेगा
और लङके से उसके संबंध नाजायज जिस्मानी ताल्लुकात माने जायेगे संतान लङके
की रहेगी लेकिन लङकी कुँवारी समान ऐसे विवाह से मुक्त है और जब चाहे अपने
मजहब में लौट सकती है "बिना तलाक लिये वह अविवाहित की तरह किसी मुसलिम
लङके से कभी भी निकाह कर सकती है यह पर्सनल ला की व्यवस्था है ।

इसे व्यापक तौर पर समझने समझाने की जरूरत है, क्योंकि 'अरबपति फिल्मस्टार
और बङे पद सत्ता वालों को वैश्विक दमखम सुरक्षा हासिल होने से फर्क नहीं
पङता ।

किंतु आम मिडिल क्लास परिवार को तबाही बरबादी और बदनामी परिवार की टूटन
कुनबे से बहिष्कार का फर्क पङता है ।

जो भावुकतावश कर ली गयी शादी को एक दशक तक भी टिकने नहीं देता और
आत्महत्या "ऑनरकिलिंग, दंगा बवाल और जोङे का तलाक ही परिणाम रह जाता बाद
में ऐसे लङके लङकी की दूसरी शादी के भी लाले पङ जाते हैं और उनके बच्चों
की शादी भी पिता माता की बिरादरी में होना बेहद मुश्किल हो जाता है जिसका
असर कई पीढ़ियें तक चलता रहता है ।

अब?
कहने का मतलब ये कि भावुक जोश न दिखाये न लफ्फाजी की शायरी पर मर मिटे ।

सबसे पहले ""मुसलिम पर्सनल ला के तहत मुसलिम विवाह "वारिस "जायदाद "जायज
नाजायज औलाद 'तलाक और तलाक के बाद के हक "


पढ़ लें ।

तब ये मन जब बना लें कि मुसलिम बनना है, ""तभी किसी मुसलिम लङके या लङकी
से शादी करें ।

वरना जजबातों पर काबू रखें संयम से रहे और समाज के समरस शांत जीवन
हिंसामुक्त वातावरण के लिये चुपचाप ऐसे प्रेम को भूल कर दिल ही दिल में
शहीद की तरह कुरबान कर दें अपने प्यार को, '

ताकि सब जगह अमन हो दंगे न हो सङके जाम न हो आप के भावुक बेवकूफ प्यार का
प्रतिशोध दूसरे निर्दोषों को न चुकाना पङे ।

समझे? /समझीं?
या तो मुसलिम बन जाओ राजी खुशी और निकाह कर के चैन से जिओ जीने दो!!!
या
भूल जाओ प्रेम और शादी और शहर को जलने से बचा लेने की कुरबानी शहादत देकर
चुप रहो ',।
जब तक
कि
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होकर कोर्ट मैरिज को सब धर्मों के प्रेम विवाह
में मान्यता अबाध नहीं मिल जाती, मौलिक अधिकार नहीं बन जाता प्रेम विवाह
तब तक ",
परसनल ला पढ़े समझे बिना शादी जैसी हिमाकत न करें
©®सुधा राजे

--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
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Mobile- 9358874117

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