सुधियों के बिखरे पन्ने- एक थी सुधा---- रेवाराम की राखी।
जीवन के कितने ही दर्द और
कितनी ही खुशियाँ ', साझी की
आज
याद आई एक अनजान भाई की ',
रेवाराम रेवाङी
पाली राजस्थान
जब हम बच्चे ही रहे होंगे
ऊँट भेङ लेकर हजारों संख्या के
जानवरों का पङाव "गोराघाट
सबरेंज पर डालकर पङे "
रेवाङी
और राखी का दिन
पिताजी के फॉरेस्ट बंगले पर उस दिन
अनेक लकङहारे परिवार आते और
लङकियाँ कतार से राखी बाँधती
परमिट लैटर
लेने आया "रेवाराम "
पिताजी के सामने भावुक हो गया ।
आज "राखा है "अपना "बार "याद आ
रहा है ।
सबका परिवार साथ है मेरी कोई
बहिन नहीं । आपतो सैकङों के भाई
हो साब ।
दारू
पीकर चढ़ गयी और रेवाराम रोने
लगा,
कलाई पकङ कर आज तो "राखा बंधन "
कोई अभागे को नहीं रहता '
पिताजी भावुक हो गये और बोले देख
अगले साल मेरा रिटायरमेंट है और तुम
जब आओगे हम लोग यहाँ नहीं मिलेगे ।
रेवाराम जिद पर अङ गया और घर आ
गया ।
हमने डरते डरते राखी बाँध दी ।
बङी बङी मूँछे
सतरंगी पगङी अँगरखा धोती तलवार
फेंटा बिलकुल किसी ऐतिहासिक
कहानी का पात्र, ऊँट पर आया ।
भीमकाय शरीर औऱ ग़जब
का आत्माभिमान नैतिकता ।
राखी बँधाकर रो पङा ।सिर पर
हाथ रखा
कुछ मुट्ठी भर रुपये
हमारी छोटी सी हथेली पर रख दिये
।
सारा डर जाता रहा
दादा "
कह कर हम भी रो पङे ।
""एक ऊँट का बच्चा हमारे 'दहेज 'के
वास्ते देकर
रेवा दादा लौट गये ।
कई साल राखी डाक से
जाती रही टूटी फूटी प्राचीन
हिंदी का पोस्ट कार्ड हर साल
आता रहा फिर एक साल
राखी थी और हम चौंक गये ।
रेवादादा!!!!
काफिला तो दूर है परंतु राखाबंधन है
तो मैं दो सौ मील ऊँट से आया ।
राखी फिर बाँधी।
ये अक्षरशः सच है ' रेवा दादा कई साल
फिर नहीं आये ', जब आये तो हम कॉलेज
पढ़ने लगे """"ऊँट बाग के रखवाले
की लापरवाही से मर गया '
तो पता चलते ही दूसरा लाकर बाँध
दिया छह माह का बच्चा ।
रेवा दादा को समझाना मुश्किल
की "बाई सा ऊँट पर कैसे चढ़ेगी और
क्या करेगी " वह तो बस जब आते
खा पीकर सो जाते और जाते तो खूब रोते
''दारू पीकर भी कभी नहीं महसूस हुआ
कि 'डर लगता है 'इतने सारे रुपये
बिना गिने हमारी हथेली पर रख देते
कि बढ़िया कपङे आ जाते ', हमारे बराबर
की उनकी बेटी थी '। फिर सब बिछुङ गये
' यादें रह गयीं।
©®सुधा राजे
--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117
कितनी ही खुशियाँ ', साझी की
आज
याद आई एक अनजान भाई की ',
रेवाराम रेवाङी
पाली राजस्थान
जब हम बच्चे ही रहे होंगे
ऊँट भेङ लेकर हजारों संख्या के
जानवरों का पङाव "गोराघाट
सबरेंज पर डालकर पङे "
रेवाङी
और राखी का दिन
पिताजी के फॉरेस्ट बंगले पर उस दिन
अनेक लकङहारे परिवार आते और
लङकियाँ कतार से राखी बाँधती
परमिट लैटर
लेने आया "रेवाराम "
पिताजी के सामने भावुक हो गया ।
आज "राखा है "अपना "बार "याद आ
रहा है ।
सबका परिवार साथ है मेरी कोई
बहिन नहीं । आपतो सैकङों के भाई
हो साब ।
दारू
पीकर चढ़ गयी और रेवाराम रोने
लगा,
कलाई पकङ कर आज तो "राखा बंधन "
कोई अभागे को नहीं रहता '
पिताजी भावुक हो गये और बोले देख
अगले साल मेरा रिटायरमेंट है और तुम
जब आओगे हम लोग यहाँ नहीं मिलेगे ।
रेवाराम जिद पर अङ गया और घर आ
गया ।
हमने डरते डरते राखी बाँध दी ।
बङी बङी मूँछे
सतरंगी पगङी अँगरखा धोती तलवार
फेंटा बिलकुल किसी ऐतिहासिक
कहानी का पात्र, ऊँट पर आया ।
भीमकाय शरीर औऱ ग़जब
का आत्माभिमान नैतिकता ।
राखी बँधाकर रो पङा ।सिर पर
हाथ रखा
कुछ मुट्ठी भर रुपये
हमारी छोटी सी हथेली पर रख दिये
।
सारा डर जाता रहा
दादा "
कह कर हम भी रो पङे ।
""एक ऊँट का बच्चा हमारे 'दहेज 'के
वास्ते देकर
रेवा दादा लौट गये ।
कई साल राखी डाक से
जाती रही टूटी फूटी प्राचीन
हिंदी का पोस्ट कार्ड हर साल
आता रहा फिर एक साल
राखी थी और हम चौंक गये ।
रेवादादा!!!!
काफिला तो दूर है परंतु राखाबंधन है
तो मैं दो सौ मील ऊँट से आया ।
राखी फिर बाँधी।
ये अक्षरशः सच है ' रेवा दादा कई साल
फिर नहीं आये ', जब आये तो हम कॉलेज
पढ़ने लगे """"ऊँट बाग के रखवाले
की लापरवाही से मर गया '
तो पता चलते ही दूसरा लाकर बाँध
दिया छह माह का बच्चा ।
रेवा दादा को समझाना मुश्किल
की "बाई सा ऊँट पर कैसे चढ़ेगी और
क्या करेगी " वह तो बस जब आते
खा पीकर सो जाते और जाते तो खूब रोते
''दारू पीकर भी कभी नहीं महसूस हुआ
कि 'डर लगता है 'इतने सारे रुपये
बिना गिने हमारी हथेली पर रख देते
कि बढ़िया कपङे आ जाते ', हमारे बराबर
की उनकी बेटी थी '। फिर सब बिछुङ गये
' यादें रह गयीं।
©®सुधा राजे
--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117
waah!
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