सुधा राजे का एक विचार- ""हिंदू धर्म निर्मित विकसित धर्म हैं।""

Sudha Raje
हम अगर अपना धर्म नहीं बदलना चाहते
तो केवल इसलिये क्योंकि हम
"""इसी धर्म में राम को कृष्ण
को रामायण को गीता को वेद को और
पुराणों को सब देवी देवताओं
को """""""गरिया सकते हैं ',खुले आम साधु
संत महंत की आलोचना कर सकते हैं, हम
मजबूर नहीं मंदिर जाने को ",न विवश है
धार्मिक अनिवार्य टैक्स चुकाने को ",,न
मजबूर किसी फास्ट या रोजे को न तीर्थ
स्नान की बंदिश!!
हम पर कोई मजबूरी नहीं कि मंत्र
रटो पाठ करो उपवास करो या मंदिर
जाओ या तीर्थ जाओ ',ये सब
मजबूरी नहीं ",,हमारा नाम
किसी मंदिर के रजिस्टर में
लिखा हो या न हो हमारे
बच्चों को अपने धर्म के लिये
""खतना ""बपतिस्मा क्राईस्टेनिंग
""जरूरी नहीं ',कोई गुरूदीक्षा ",जनेऊ
कलावा चोटी तिलक, 'टोपी बुरका,
'क्रॉस लटकाना जरूरी नहीं ',न रंग
डालने से मेरा धर्म खंडित होता है न
किसी का भी माँस खाने से ',मेरे धर्म
की अनिवार्यता जुङी है ',यहाँ तक गाय
सुअर तक का माँस खा जाने वाले तक
का धर्म कहीं नहीं चला जाता ',न
तो नेल पॉलिश हटाये
बिना पूजा करनी गुनाह है :न
ही कोहनी कलाई कनपटी भवें कपङे से ढँके
बिना पूजा करना गुनाह मैं
किसी भी वस्त्र में पूजा कर सकती हूँ और
मेरी पूजा का तरीका मेरे भाई से अलग
नहीं कि ',वह तो मंदिर जाये मैं घर में
पूजा करूँ??न यूँ कि मेरे झुकने में चूहा भी न
निकले इतना झुकना है सिजदे को ',और न
भाई को यूँ फर्क से कि बकरी निकल जाये
झुकने पर इस तरह अंतर है, 'मेरे लिये कोई
मजबूरी नहीं मेरा धर्म मुझे
नयी ""किताब लिखने की इजाजत देता है
""और मैं दम रखती हूँ ज्ञान
का तो शंकराचार्य की तरह नये सिद्धांत
बना सकती हूँ ",मुझ पर
किसी पुजारी मौलवी पादरी की हुकूमत
धमकी नहीं '
©®sudha raje

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