सुधा राजे का " नजरिया" :- जरा सा पेच
जरा सा पेच
एक लङकी को हर जगह लोग छेङते हैं
कोहनी वक्ष पर मार कर चुभा देते हैं '
गंदे इशारे आँख से हाथ ले गाना और वाक्य से करते हैं "
छूने चिपक कर बैठने कमर पेट पीठ सिर कहीं भी हाथ पांव लगाने की कुचेष्टा करते हैं
नींद या नशे का बहाना करके लद जाते हैं
सभा कचहरी बस रेल वायुयान तक में!!!!!!!!
लङकी वो जो बिना कुछ कहे या बस जरा सा विरोध करके चुप रह जाती है बवाल के
डर से और आगे बढ़ जाती है तो वे लोग दूसरी लङकी को शिकार बनाते हैं ।
और
पेंच
ये है कि ऐसा एक लङकी की जिंदगी में
एक दो चार बार नहीं ★
बार बार
हर जगह
हर दिन होता रहता है #
सतर्क और सावधान लङकियों को ही रहना पङता है
सो जब
#कोई घूरता है 'वे निगाहें चुरातीं है
छूना चाहता है वे सिकुङ कर दूर हटतीं है
कोंचने से बचने के लिये किसी स्त्री के बगल में और सहेली के साथ झुंड या
कोने में बैठती हैं ।
हम सब गंदे स्पर्शों से बचने के लिये डेनिम के मोटे जैकेट पहनते थे और
बैग में धातु की स्लेट रखते थे 'डिवाईडर के तौर पर 'स्कूल कॉलेज या ट्रेन
में दूसरी सवारी से बचने को कोहनी बाहर की तरफ फिर बैग और छतरी बीच में
''""""
पिनअप दुपट्टे और चौङे बेल्ट भी इन्हीं सब का हिस्सा होते थे ।
फिर भी ''''घूरती आँखें कहकहे और गाने जुमले '''''!!!!!
हर लङकी का पीछा करते रहते हैं
लगातार बार बार हर दिन '''''
अंतर बस इतना है कि जब तक सहन किया जाता है ये सब जब तक कि "अपहरण
बलात्कार और बदनामी की नौबत ना आ जाये """
कोई
बाप भाई अगर यह कहता है कि उसकी बेटी घर से बाहर आती जाती तो है लेकिन
कोई कभी छेङ नहीं सकता तो ''''या तो वह बंद निजी वाहन में जाती होगी या
बंदूकों के साये में """""""
परंपरावादी
औरतें ही ऐसी लङकियों की सबसे अधिक निंदा करती हैं और '''''कारण होता है
उनका पढ़ना '
उन लङकियों के कपङे
उन लङकियों का बिना बाप भाई के अकेले आने जाने का साहस """""
आप को यकीन न हो तो ""कम पढ़ी लिखी बुजुर्ग महिलाओं के सामने ""लङकियों
का ज़िक्र करके देख लीजिये!!!!!!!!!!
वे लङकों को कुछ नहीं कहेंगी बल्कि लङकियों को अकेले आने जाने से रोकने
जींस पेंट कमीज पहनने से रोकने
और ऊँची तालीम दिलाने से रोकने की बात करेंगी
वे महिलायें "मोबाईल रखने का मतलब ""छिनाल होना ""समझा देगी 'उनके हिसाब
से लङकियों को मोबाईल केवल "यारों को बुलाने के लिये चाहिये "
माँ बाप भाई बहिन के संपर्क में रहना सुरक्षा हेतु पुकार को भी मोबाईल
होता है मुसीबत में मदद देता है या जानकारी देकर पढ़ाई मे सहायक है यह वे
नहीं मानतीं """"
बहुत सी महिलाओं के आधुनिक लङकियों के प्रति इस क्रूर रवैये की वजह है
उनकी अपनी जिंदगी '
जब उनकी छोटी आयु में शादी हो गयी नाबालिग आयु में अनेक बच्चों की माता
और प्रौढ़ होने से पहले दादी बन गयीं ।अब पूरी जिंदगी तो गुजार दी मेहनत
सेवा और बंदिश में ।
वे संचार क्रांति के बाद का युग नहीं समझती ।
वे लङकियों को ""कल्पना भी नहीं कर सकतीं कि वे शादी किये बिना अकेली नगर
में रहतीं पढ़ती या जॉब करती और लङकों के छेङे जाने पर विरोध करतीं है ।
अगर सारा आयु हर लङकी हर छेङने वाले को "ऐ काश!! कि धुनाई रख सके तो?????
ये कितनी बार होगा????
एक दो दस पाँच बीस पच्चीस??
प्रौढ़ महिलायें तक कोहनी बाजी और बैड टच की शिकार तो होती ही हैं
उन पर भी फिकरे कसे जाते हैं
ये और बात है कि आते जाते रोज उनको आदत हो जाती है दूरी रखकर निबटने और
डपटने की """""
अगर सब औरतें हर दिन हर घूरने फिकरे कसने और बैड टच करने वाले को ""धुन दें तो???
रोज कहाँ कहाँ कितनी घटनायें होगी??
तो "आज ये कौन सा तर्क है कि अमुक लङकी ने पहले भी एक को "पीटा????
पूछो जरा दिल पर हाथ रखकर हर लङकी से
कि कितनो को पीटा या फटकारा या डपटा या ""बचकर भागी या सिकुङ कर बैठी!!!!!!
अगर लङकी को परेळान किया जाये और वह चुपचाप सहकर सिकुङ जाये तो ठीक "
चर्चा तक नहीं होता "???
कि अरे आज बङी बुरी बात हुयी वहाँ एक चौराहे पर कुछ लफंगों ने लङकियों को
"छेङा??????
मगर '
ये जरूर 'दर्द का विषय है कि हाय हाय लङकियाँ "लङकों को पीट गयीं??
जब लङके लङकियों को तंग कर परेशान करते हैं कि विवश डरकर पढ़ना तक छोङ
देती हैं अनेक लङकियाँ तब कैरियर खराब नहीं होता??
जब छेङछाङ के डर से लङकियों की शादी कर दी जाती है तब
""एक प्रतिभाशाली लङकी का कैरियर बरबाद नहीं होता????
तब ये "ब्रैनवाश्ड ""बुजुर्ग स्त्रियाँ नैतिक दैत्य बनकर लङकी का ब्याह
कर दो की रट लगाकर माँ बाप का जीना हराम कर देती हैं और बेमेल बेप्रेम की
बेवक्त शादियाँ करके कैद कर दी जाती है हजारों लङकियाँ "
ऐसे हर गली हर रेलगाङी हर बस हर दफ्तर हर सभा में यत्र तत्र मौजूद
""लङकियों को फिकरे टोंचने बैड टच और टँगङी कोहनी चिकोटी 'बकौटा भरने
वाले """
तब कब ऐसा होता है कि ""दस नैतिक दैत्यानियाँ और नैतिक दानव उठकर छेङने
वालों की """लात जूतम पैजार करके "
गारंटी बने कि ""लङकियो डरो मत दो चार नैतिक ""रक्षक हर जगह तैनात है????
बङी तकलीफ होती है लङकियाँ बिगङने पर लेकिन एक दो मामले भी ऐसे नहीं
"""कि पाँच बुजुर्ग औरतें कभी "छेङछाङ करने वालों के खिलाफ थाने जाकर शपथ
पत्र दें???? या कि चप्पलें बजा दें बदतमीज छिछोरों पर दस बीस
महामानव????
चिंतन जारी है """
किसे डराया जा रहा है??
और क्यों??
©®सुधा राजे
एक लङकी को हर जगह लोग छेङते हैं
कोहनी वक्ष पर मार कर चुभा देते हैं '
गंदे इशारे आँख से हाथ ले गाना और वाक्य से करते हैं "
छूने चिपक कर बैठने कमर पेट पीठ सिर कहीं भी हाथ पांव लगाने की कुचेष्टा करते हैं
नींद या नशे का बहाना करके लद जाते हैं
सभा कचहरी बस रेल वायुयान तक में!!!!!!!!
लङकी वो जो बिना कुछ कहे या बस जरा सा विरोध करके चुप रह जाती है बवाल के
डर से और आगे बढ़ जाती है तो वे लोग दूसरी लङकी को शिकार बनाते हैं ।
और
पेंच
ये है कि ऐसा एक लङकी की जिंदगी में
एक दो चार बार नहीं ★
बार बार
हर जगह
हर दिन होता रहता है #
सतर्क और सावधान लङकियों को ही रहना पङता है
सो जब
#कोई घूरता है 'वे निगाहें चुरातीं है
छूना चाहता है वे सिकुङ कर दूर हटतीं है
कोंचने से बचने के लिये किसी स्त्री के बगल में और सहेली के साथ झुंड या
कोने में बैठती हैं ।
हम सब गंदे स्पर्शों से बचने के लिये डेनिम के मोटे जैकेट पहनते थे और
बैग में धातु की स्लेट रखते थे 'डिवाईडर के तौर पर 'स्कूल कॉलेज या ट्रेन
में दूसरी सवारी से बचने को कोहनी बाहर की तरफ फिर बैग और छतरी बीच में
''""""
पिनअप दुपट्टे और चौङे बेल्ट भी इन्हीं सब का हिस्सा होते थे ।
फिर भी ''''घूरती आँखें कहकहे और गाने जुमले '''''!!!!!
हर लङकी का पीछा करते रहते हैं
लगातार बार बार हर दिन '''''
अंतर बस इतना है कि जब तक सहन किया जाता है ये सब जब तक कि "अपहरण
बलात्कार और बदनामी की नौबत ना आ जाये """
कोई
बाप भाई अगर यह कहता है कि उसकी बेटी घर से बाहर आती जाती तो है लेकिन
कोई कभी छेङ नहीं सकता तो ''''या तो वह बंद निजी वाहन में जाती होगी या
बंदूकों के साये में """""""
परंपरावादी
औरतें ही ऐसी लङकियों की सबसे अधिक निंदा करती हैं और '''''कारण होता है
उनका पढ़ना '
उन लङकियों के कपङे
उन लङकियों का बिना बाप भाई के अकेले आने जाने का साहस """""
आप को यकीन न हो तो ""कम पढ़ी लिखी बुजुर्ग महिलाओं के सामने ""लङकियों
का ज़िक्र करके देख लीजिये!!!!!!!!!!
वे लङकों को कुछ नहीं कहेंगी बल्कि लङकियों को अकेले आने जाने से रोकने
जींस पेंट कमीज पहनने से रोकने
और ऊँची तालीम दिलाने से रोकने की बात करेंगी
वे महिलायें "मोबाईल रखने का मतलब ""छिनाल होना ""समझा देगी 'उनके हिसाब
से लङकियों को मोबाईल केवल "यारों को बुलाने के लिये चाहिये "
माँ बाप भाई बहिन के संपर्क में रहना सुरक्षा हेतु पुकार को भी मोबाईल
होता है मुसीबत में मदद देता है या जानकारी देकर पढ़ाई मे सहायक है यह वे
नहीं मानतीं """"
बहुत सी महिलाओं के आधुनिक लङकियों के प्रति इस क्रूर रवैये की वजह है
उनकी अपनी जिंदगी '
जब उनकी छोटी आयु में शादी हो गयी नाबालिग आयु में अनेक बच्चों की माता
और प्रौढ़ होने से पहले दादी बन गयीं ।अब पूरी जिंदगी तो गुजार दी मेहनत
सेवा और बंदिश में ।
वे संचार क्रांति के बाद का युग नहीं समझती ।
वे लङकियों को ""कल्पना भी नहीं कर सकतीं कि वे शादी किये बिना अकेली नगर
में रहतीं पढ़ती या जॉब करती और लङकों के छेङे जाने पर विरोध करतीं है ।
अगर सारा आयु हर लङकी हर छेङने वाले को "ऐ काश!! कि धुनाई रख सके तो?????
ये कितनी बार होगा????
एक दो दस पाँच बीस पच्चीस??
प्रौढ़ महिलायें तक कोहनी बाजी और बैड टच की शिकार तो होती ही हैं
उन पर भी फिकरे कसे जाते हैं
ये और बात है कि आते जाते रोज उनको आदत हो जाती है दूरी रखकर निबटने और
डपटने की """""
अगर सब औरतें हर दिन हर घूरने फिकरे कसने और बैड टच करने वाले को ""धुन दें तो???
रोज कहाँ कहाँ कितनी घटनायें होगी??
तो "आज ये कौन सा तर्क है कि अमुक लङकी ने पहले भी एक को "पीटा????
पूछो जरा दिल पर हाथ रखकर हर लङकी से
कि कितनो को पीटा या फटकारा या डपटा या ""बचकर भागी या सिकुङ कर बैठी!!!!!!
अगर लङकी को परेळान किया जाये और वह चुपचाप सहकर सिकुङ जाये तो ठीक "
चर्चा तक नहीं होता "???
कि अरे आज बङी बुरी बात हुयी वहाँ एक चौराहे पर कुछ लफंगों ने लङकियों को
"छेङा??????
मगर '
ये जरूर 'दर्द का विषय है कि हाय हाय लङकियाँ "लङकों को पीट गयीं??
जब लङके लङकियों को तंग कर परेशान करते हैं कि विवश डरकर पढ़ना तक छोङ
देती हैं अनेक लङकियाँ तब कैरियर खराब नहीं होता??
जब छेङछाङ के डर से लङकियों की शादी कर दी जाती है तब
""एक प्रतिभाशाली लङकी का कैरियर बरबाद नहीं होता????
तब ये "ब्रैनवाश्ड ""बुजुर्ग स्त्रियाँ नैतिक दैत्य बनकर लङकी का ब्याह
कर दो की रट लगाकर माँ बाप का जीना हराम कर देती हैं और बेमेल बेप्रेम की
बेवक्त शादियाँ करके कैद कर दी जाती है हजारों लङकियाँ "
ऐसे हर गली हर रेलगाङी हर बस हर दफ्तर हर सभा में यत्र तत्र मौजूद
""लङकियों को फिकरे टोंचने बैड टच और टँगङी कोहनी चिकोटी 'बकौटा भरने
वाले """
तब कब ऐसा होता है कि ""दस नैतिक दैत्यानियाँ और नैतिक दानव उठकर छेङने
वालों की """लात जूतम पैजार करके "
गारंटी बने कि ""लङकियो डरो मत दो चार नैतिक ""रक्षक हर जगह तैनात है????
बङी तकलीफ होती है लङकियाँ बिगङने पर लेकिन एक दो मामले भी ऐसे नहीं
"""कि पाँच बुजुर्ग औरतें कभी "छेङछाङ करने वालों के खिलाफ थाने जाकर शपथ
पत्र दें???? या कि चप्पलें बजा दें बदतमीज छिछोरों पर दस बीस
महामानव????
चिंतन जारी है """
किसे डराया जा रहा है??
और क्यों??
©®सुधा राजे
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