Thursday 4 December 2014

सुधा राजे का नजरिया:- जरा सा पेच।

जरा सा पेच
एक लङकी को हर जगह लोग छेङते हैं
कोहनी वक्ष पर मार कर चुभा देते हैं '
गंदे इशारे आँख से हाथ ले गाना और वाक्य
से करते हैं "
छूने चिपक कर बैठने कमर पेट पीठ सिर
कहीं भी हाथ पांव लगाने
की कुचेष्टा करते हैं
नींद या नशे का बहाना करके लद जाते हैं
सभा कचहरी बस रेल वायुयान तक में!!!!!!!!
लङकी वो जो बिना कुछ कहे या बस
जरा सा विरोध करके चुप रह जाती है
बवाल के डर से और आगे बढ़ जाती है तो वे
लोग दूसरी लङकी को शिकार बनाते हैं ।
और
पेंच
ये है कि ऐसा एक लङकी की जिंदगी में
एक दो चार बार नहीं ★
बार बार
हर जगह
हर दिन होता रहता है #
सतर्क और सावधान
लङकियों को ही रहना पङता है
सो जब
# कोई घूरता है 'वे निगाहें चुरातीं है
छूना चाहता है वे सिकुङ कर दूर हटतीं है
कोंचने से बचने के लिये किसी स्त्री के
बगल में और सहेली के साथ झुंड या कोने में
बैठती हैं ।
हम सब गंदे स्पर्शों से बचने के लिये डेनिम
के मोटे जैकेट पहनते थे और बैग में धातु
की स्लेट रखते थे 'डिवाईडर के तौर पर
'स्कूल कॉलेज या ट्रेन में दूसरी सवारी से
बचने को कोहनी बाहर की तरफ फिर बैग
और छतरी बीच में ''""""
पिनअप दुपट्टे और चौङे बेल्ट
भी इन्हीं सब का हिस्सा होते थे ।
फिर भी ''''घूरती आँखें कहकहे और गाने
जुमले '''''!!!!!
हर लङकी का पीछा करते रहते हैं
लगातार बार बार हर दिन '''''
अंतर बस इतना है कि जब तक सहन
किया जाता है ये सब जब तक
कि "अपहरण बलात्कार और
बदनामी की नौबत ना आ जाये """
कोई
बाप भाई अगर यह कहता है
कि उसकी बेटी घर से बाहर
आती जाती तो है लेकिन कोई कभी छेङ
नहीं सकता तो ''''या तो वह बंद
निजी वाहन में जाती होगी या बंदूकों के
साये में """""""
परंपरावादी
औरतें ही ऐसी लङकियों की सबसे अधिक
निंदा करती हैं और '''''कारण होता है
उनका पढ़ना '
उन लङकियों के कपङे
उन लङकियों का बिना बाप भाई के अकेले
आने जाने का साहस """""
आप को यकीन न हो तो ""कम
पढ़ी लिखी बुजुर्ग महिलाओं के सामने
""लङकियों का ज़िक्र करके देख
लीजिये!!!!!!!!!!
वे लङकों को कुछ
नहीं कहेंगी बल्कि लङकियों को अकेले आने
जाने से रोकने
जींस पेंट कमीज पहनने से रोकने
और ऊँची तालीम दिलाने से रोकने
की बात करेंगी
वे महिलायें "मोबाईल रखने का मतलब
""छिनाल होना ""समझा देगी 'उनके
हिसाब से लङकियों को मोबाईल केवल
"यारों को बुलाने के लिये चाहिये "
माँ बाप भाई बहिन के संपर्क में
रहना सुरक्षा हेतु पुकार
को भी मोबाईल होता है मुसीबत में मदद
देता है या जानकारी देकर पढ़ाई मे
सहायक है यह वे नहीं मानतीं """"
बहुत सी महिलाओं के आधुनिक लङकियों के
प्रति इस क्रूर रवैये की वजह है
उनकी अपनी जिंदगी '
जब उनकी छोटी आयु में
शादी हो गयी नाबालिग आयु में अनेक
बच्चों की माता और प्रौढ़ होने से पहले
दादी बन गयीं ।अब
पूरी जिंदगी तो गुजार दी मेहनत
सेवा और बंदिश में ।
वे संचार क्रांति के बाद का युग
नहीं समझती ।
वे लङकियों को ""कल्पना भी नहीं कर
सकतीं कि वे शादी किये
बिना अकेली नगर में
रहतीं पढ़ती या जॉब करती और लङकों के
छेङे जाने पर विरोध करतीं है ।
अगर सारा आयु हर लङकी हर छेङने वाले
को "ऐ काश!! कि धुनाई रख सके तो?????
ये कितनी बार होगा????
एक दो दस पाँच बीस पच्चीस??
प्रौढ़ महिलायें तक कोहनी बाजी और
बैड टच की शिकार तो होती ही हैं
उन पर भी फिकरे कसे जाते हैं
ये और बात है कि आते जाते रोज
उनको आदत हो जाती है दूरी रखकर
निबटने और डपटने की """""
अगर सब औरतें हर दिन हर घूरने फिकरे
कसने और बैड टच करने वाले को ""धुन दें
तो???
रोज कहाँ कहाँ कितनी घटनायें होगी??
तो "आज ये कौन सा तर्क है कि अमुक
लङकी ने पहले भी एक को "पीटा????
पूछो जरा दिल पर हाथ रखकर हर
लङकी से
कि कितनो को पीटा या फटकारा या डपटा या ""बचकर
भागी या सिकुङ कर बैठी!!!!!!
अगर लङकी को परेळान किया जाये और
वह चुपचाप सहकर सिकुङ जाये तो ठीक "
चर्चा तक नहीं होता "???
कि अरे आज बङी बुरी बात हुयी वहाँ एक
चौराहे पर कुछ लफंगों ने
लङकियों को "छेङा??????
मगर '
ये जरूर 'दर्द का विषय है कि हाय हाय
लङकियाँ "लङकों को पीट गयीं??
जब लङके लङकियों को तंग कर परेशान
करते हैं कि विवश डरकर पढ़ना तक छोङ
देती हैं अनेक लङकियाँ तब कैरियर खराब
नहीं होता??
जब छेङछाङ के डर से
लङकियों की शादी कर दी जाती है तब
""एक प्रतिभाशाली लङकी का कैरियर
बरबाद नहीं होता????
तब ये "ब्रैनवाश्ड ""बुजुर्ग
स्त्रियाँ नैतिक दैत्य बनकर
लङकी का ब्याह कर दो की रट लगाकर
माँ बाप का जीना हराम कर देती हैं और
बेमेल बेप्रेम की बेवक्त शादियाँ करके कैद
कर दी जाती है हजारों लङकियाँ "
ऐसे हर गली हर रेलगाङी हर बस हर
दफ्तर हर सभा में यत्र तत्र मौजूद
""लङकियों को फिकरे टोंचने बैड टच और
टँगङी कोहनी चिकोटी 'बकौटा भरने
वाले """
तब कब ऐसा होता है कि ""दस नैतिक
दैत्यानियाँ और नैतिक दानव उठकर छेङने
वालों की """लात जूतम पैजार करके "
गारंटी बने कि ""लङकियो डरो मत
दो चार नैतिक ""रक्षक हर जगह तैनात
है????
बङी तकलीफ होती है लङकियाँ बिगङने
पर लेकिन एक दो मामले भी ऐसे
नहीं """कि पाँच बुजुर्ग औरतें
कभी "छेङछाङ करने वालों के खिलाफ
थाने जाकर शपथ पत्र दें????
या कि चप्पलें बजा दें बदतमीज
छिछोरों पर दस बीस महामानव????
चिंतन जारी है """
किसे डराया जा रहा है??
और क्यों??
हम सबने कभी न कभी ये घूरती आँखें
महसूस की हैं ।अभी कुछ ही महीनों पहले
की घटना है कि एक लंबी मॉडल
जैसी देह की लङकी 'सुभारती मेरठ से
हमारे साथ ऑटो में बैठी रेलवे स्टेशन के
लिये और ऑटो ड्राईवर ने
उसको जानबूझ कर नोंच लिया ठीक
पसलियों पर 'लङकी भभक
ही तो पङी और ड्राईवर प्रौढ़ होकर
भी ढिठाई पर 'सब मजे लेकर पूछने लगे
क्या हुआ!!!लङकी बताये तो कुछ
नहीं किंतु हमने कहा कॉलर पकङ बुड्ढे
का और
'लगा 'ऑटो वाला भागा खाली ऑटो लेकर
""""लोग आपस में बतियाने लगे "कपङे
तो देखो छोरियों के 'जबकि उस
लङकी ने पैन्ट कमीज काफी ढीली और
मफलर पहन
रखा था ''साङी वालियों से अधिक
ढँकी थी वह ''''हमने उसको शाबास
कहा और कुछ
चेतावनियाँ भी """"मेडिकल आने
वाली मरीज मजदूर महिलाओं की नजर
में लङकी की गलती थी,,,, जबकि वह
लङकी मेडिक या इंजीनियरिंग
की छात्रा थी 'परदेश में होस्टल में
रहकर पढ़ती है '''''अगर कोई
सवारी वीडियो बनाती तो??
ऑटो वाले का लायसेंस चला जाता न!!!!
बेशक "पोर्न की हर हाथ में उपलब्धि ने
लङकों को ""सेक्स
कीङा ""बना डाला है और हर वक्त
भङके यौनपिपासु कीङे की भावना से
भरे रहते है अधिकतर पोर्न दर्शक ।
सवाल ये है कि """"छेङछाङ में पिटने
या जेल जाने वाले लङके को बचाने
"""जिस तरह गवाह बनकर औरतें
या आदमी खङे हो हो जाते हैं
""""""क्या कभी ऐसा भी हुआ
कि ""लङकी चुपचाप चली गयी हो और
बस ड्राईवर या कंडक्टर
या सवारियों की औरतें आदमी """पहल
से स्वेच्छा से उतर कर
थाना कचहरी जायें और
दोषी लङकों को पहचान कर
गवाही दें?????
अकसर रोज अपडाऊन करने वाली टीचर
वकील क्लर्क प्रोफेसर नर्स महिलायें
खूब ट्रैण्ड हो जातीं हैं कि """कंधे पर
झुकर सोने लगते हैं लोग
"""खिङकी खोलने के बहाने झुकते है
जानबूझ कर बगल में बैठे हों तो लगातार
हाथ पांव चलाते हैं और बस में मोबाईल
पर भद्दे गाने बजाते हैं """"चुपचाप
लङकियों की वीडियो या तसवीर खींच
लेते हैं """""अब लङकियाँ अगर
''''''ऐसा करने लगीं है तो???
सिखाया किसने कि "सुबूत
रखो "वरना क्या पता कल
क्या कहानी गढ़ दें?
आप "कभी स्कूल जाती बस पर गौर करें
''स्कूली लङकियों को भी सिकुङकर
बैठना पङता है कुछ लङके अगर जानबूझ
कर हरकतें कर रहे हैं तो कंडक्टर
ड्राईवर 'अनदेखी तब तक करते हैं जब
तक कि पेरेन्ट्स से लङकी शिकायत न करे
""""दो बस बदलने के बाद 'लङकी और
भी तो है
आपकी ही लङकी का झगङा क्यों??
सवाल उठा दिया जाता है """"कौन
समझाये कि वे विवश लङकियाँ सह
लेतीं है ये सोचकर कि "पापा नाराज
होकर कहीं पढ़ना न छुङा दें??
जिस देश में एक
यूनिवर्सिटी का वी सी ""लायब्रेरी जाना बंद
करवा देता लङकियों का """कि लङके
पीछे आयेंगे तो भीङ होगी??
वहाँ ऐसी लङकी ही सुहाती है जो आँसू
बहाती दुपट्टा सँभालती घर जा दुबकें।
ये बिडंबना नहीं तो और क्या है
कि """लङकों की बदतमीजी नहीं रोक
पाने वाला कायर समाज
"""लङकियों के जींस मोबाईल और
कॉलेज ट्यूशन जाने पर रोक लगाता है??
खासकर हरियाणा पंजाब
यूपी बिहार???? और '''''फिर ये
गारंटी भी नहीं लेता कि साङी सलवार
कमीज बुरका घूँघट में """लङकी जान
माल आबरू से सुरक्षित रहेगी????

कितने ही कॉलेज """लङकियों के पैंट
पहनने को दोषी मानने लगे हैं
""""गजब??? क्या गांव की परदानशीन
औरतें सपरक्षित हैं??? आज की खबर है
कि कटिहार की बारह तेरह साल
की कक्षा छह की लङकी """यौन शोषण
से गर्भवती????
सवाल ये है ही नहीं अब कि "रोहतक
बस में क्या हुआ "सवाल है कि जब "लङके
रेप करके लङकियों के वीडियो बनाकर
ब्लैक मेल करते हैं और आत्महत्या करतीं हैं
लङकियाँ तब एक समाज
की कुंभकरणी नींद
क्यों नहीं टूटती????????तब ये
दादी नानी लङकों पर लगाम
क्यों नहीं लगातीं???????हरियाणा बस
में जो 'साबित हो कि लङकियों ने
लङको को मारा पीटा तो 'उनपर
मुकदमा चलेगा गुंडागीरी और चोट
पहुँचाने का "किंतु जिस तरह से ""एक
दम ये प्रचार किया जा रहा है
कि """लङकियाँ जींस न पहने मोबाईल
न रखे और क्यों वीडियो बनायी ""उस
को "क्यों "बल देकर ये
हौवा बढ़ाया जा रहा है
ताकि "लङकियों के प्रति मनोबल टूटें
और "छेङछाङ पर भी कल कोई हिम्मत न
करे??
जब "लङके महिला सीट से उठते
ही नहीं जब लङके गंदे गीत बजाते हैं जब
लङके 'भीङ में हाथ टलाते है """तब
दादी नानी अम्माँयें क्यों नहीं गवाह
बनती??? और क्यों नहीं इतना प्रबल
विरोध होता? जब
लङकियों की फोटो कोरल ड्रा और
फोटोशाप से बिगाङ कर ब्लैक मेल किये
जाते हैं तब समाज सङक पर उतर कर
क्यों नहीं एक दम """बंद कराता "ये
हमले!!!!!!!!!!

जब एक लङका ये कहता है कि """ये
तो "ऐसी ही लङकियाँ है
"""तो ऐसी ही लङकियाँ?? मायने
कहाँ तक जाता है?? रही बात तीन
लङके!!!!!!!!!!! दो लङकियाँ???????? और
फिर भी पिटते रहे????? जब तक नैतिक
कमजोरी न हो "लङके मार नहीं खाते ।
हम कोई दावा नहीं करते
कि "लङकियों को छेङा गया """""किंतु
इतना जरूर है कि जिस तरीके से फटाफट
गवाह और लङकियों के घर पहचान
की कुख्याति की जा रही है और
पिछला एक वीडियो भी सामने आ
गया कि एक लङका और वे पीट चुकी है
""""तो कोई तर्क
नहीं बनता क्योंकि ""हर दिन
यात्रा में जाते आम आदमी को पता है
रोज एक न एक ""लफंगा हर बस रेल भीङ
में मिल ही जाता है """"छूने
की कुचेष्टा ''साबित करना असंभव है
'''क्या दिखता है कोंचना या आँख
दबाना या किस उछालना?
सोचें तो """""हर रोज
हजारों लङकिया हाईस्कूल तक आते आते
बिठा दी जाती है घर केवल
"""""छेङछाङ की हरकतों के डर से??????
कितनी लङकियों को झूठे फोन कॉल
डराकर घर में बंद करा देते हैं?? कितने
माँ बाप ""अपडाऊन यात्रा के डर से
कैरियर रोक देते हैं
हजारों लङकियों का????? कब ऐसा हुआ
कि ड्राईवर ने बस थाने ले
जा खङी की हो कि "लो साब ये
छेङछाङ कर्ता अपराधी???

अब सच जो भी हो """"""असंभव ही है
सामने आना """"क्योंकि लङकों के पिटने
की तो वीडियो है """किंतु उससे पहले
क्या हुआ ये कौन गारंटी ले? चूंकि तीन
लङकों के कैरियर का सवाल है तो ""
नातेदार ही नहीं """स्त्रियों पर
तालिबानीकरण के समर्थक भी टूट पङे
हैं """""परंतु काश ये सब बहादुर
"""समाज से सदा को छेङखानी बंद
कराने को ऐसे ही बिलबिलाते तो ""ये
सब आक्रामक लङकियाँ न बनती।
हरियाणा वह प्रांत है जहाँ सबसे कम
स्त्री पुरुष अनुपात है """""जहाँ भ्रूण
कन्या वध सबसे अधिक हुये पाये गये
""जहाँ खाप पंचायतें सर्वाधिक हिंसक
हैं """जहाँ तालिबानी फरमान लागू है
""""वहाँ जींस पहनना ही गुनाह है
"""आँखें तरेरे बिना कोई
जींसवाली लङकी देखता ही कब है?
बिलकुल """"कम
पढ़ी लिखी दादी नानी "पोता चाहती है
और """आज इसीलिये बहू मोल लानी पङ
रही है अनेक "सासों को "उनको "नई
बहुयें और लङकियाँ पसंद नहीं

और यही ""ब्रैनवाश्ड
स्त्रियाँ """स्त्री शिक्षा की दुश्मन
हैं """लङकों की गलतियों पर
परदा डावती है और बहू पर जुल्म
करती है और बेटी को जॉब नहीं करने
देती """"हालात बदल रहे है धीरे धीरे
""

अनेक पिता अपनी बेटियों की पढ़ाई
लिखाई के लिये
"""अपनी बेटी की माँ से झगङते रहे हैं
जबकि माँ चाहती रही लङकी पढ़ाई
छोङ गोबर पाथे रोटी बेले """"अनेक
लोगों ने बेटियों के हित में प्रांत
ही छोङ दिया।
गलत हाथ गंदी आवाजें गंदे इशारे
फब्तियाँ और घिनौने दबाब स्पर्श और
गीत '
कोई देखता नहीं होगा क्या "????बस रेल
मेट्रो, ऑटो टैम्पो 'स्टेशन, बाजार
हस्पताल 'स्कूल कॉलेज, ऑफिस गली सङक
मुहल्ले ट्यूशन कक्षा ''
'
'????
क्यों नहीं एक माहौल बनता कि अश्लील
फिकरे गीत टच और इशारे करने वाले
तत्काल वहीं दबोच लें आस पास के लोग
कि """पकङो मारो ये है वह
लफंगा जानवर इसकी वजह से शरीफ लङके
भी शक के और शरीफ लङकियाँ डर के
कारण परेशान रहते है """"!!!!!!!
पकङो पकङो मारो मारो
चोर चोर चोर
की आवाज तो अकसर झुंड लगाकर लगाते हैं
व्यापारी दुकानदार पङौसी????
तब
क्या ""वीर विहीन मही मैं जानी????
फिर क्यों बिलबिलाते हैं तथाकथित
'सौन्दर्य के पुजारी कि अब
लङकियाँ "मर्दों की तरह होने लगीं?
क्यों न हों जब "मर्द स्त्रैण होने लगे!!!!!!
सुंदर नाजुक और कीमती चीजें तभी रह
सकती हैं जब 'लोग भले ईमानदार और
स्वच्छ मन तन वाले हों,
क्या हर लङकी 'किसी बाप भाई
की बेटी बहिन नहीं???
तो ऐसा क्यों कि अजनबी लङकी के साथ
कोई "छेङछाङ बदतमीजी 'समाज के हर
मानव का मामला नहीं???
क्या हम भारतीय इसी कारण बदनाम
नहीं???
क्यों नहीं बङी आयु की औरतें तब बढ़कर
झुंड बुलाकर पहचान कर ""लफंगों को पीट
डालतीं जब कोई
लफंगा किसी स्कूली छात्रा हो बच्ची को "बैड
टच या बैड कम्पलीमेन्ट देता है!!!!!
रहा सवाल कपङे?
तो "सबसे अधिक बुरा व्यवहार सलवार
कमीज और साङी वालियाँ ही झेलतीं आ
रही हैं और लोग बुरके में भी घूरते हैं और
मौका मिले तो टच भी करते है "
यह भी समाज की अजीब मानसिकता है
कि बाजार में बैठकर "सबकुछ बेचता है "?
और घर में बैठकर बुराई करता है?
"जो लङकी 'लङकों से झगङा करे वह
"बदचलन? और जो चुपचाप 'छेङसहकर घर
बैठे वह "सुशीला?
जींस मोबाईल और पढ़ने पर पाबंदी?
अरे डूब मरो कायरो तुम सब कभी ''समाज
में शराब गुटखा दहेज सिगरेट
गाँजा तंबाकू ड्रग्स कन्यावध और छेङछाङ
पर पाबंदी लगाने के नाम पर?
""""""""मरदानगी मर जाती है?
भूल गये यही देश था जहाँ मुँह अँधेरे औरतें
शौच को खेत जातीं कुंयें ताल नदी पर
नहाती रहीं पनघट पर
पानी भरती रहीं?
ये दादी नानी अम्मायें '''घर के
दारूबाजों के आगे भीगी बिल्ली? और
लङकियों पर 'दबादब भौंकना?
जिस तरह एक पुरुष की गवाही पर एक
पुरुष को फाँसी चढ़ती थी गुलाम भारत
उसी तरह आधे गुलाम रह गये भारत में
एक "औरत की भौंक भौंक टेंटें पर
हजारों लङकियों के खिलाफ 'फरमान
जारी होते है कैरियर और विवाह
बरबाद होते है "
©®सुधा राजे।


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