अकविता :दहेज कभी पीछा नहीं छोङता
दहेज?
कभी भी भारतीय स्त्री का पीछा नहीं छोङता ।
लगभग हर विवाह का बहुत बङा खलनायक दहेज है ।क्योंकि जो जो दहेज नहीं ले
पाता या तो नालायक समझा जाता है या मूर्ख.
औऱ जो खुद त्याग देता है वह स्त्री "बेचारी "को बिना दहेज अपनाने का महान
श्रेय जरूर ले लेता है ।
हर कमी पर आ ही जाता है ज़ुबां पर ग़म न दहेज ही मिला न कोई अनोखा सुंदर
या कमाऊ सनम
यहाँ तक कि हर वह विवाह जिसे दम ठोंककर गर्व से पुरुष या स्त्री यदा कदा
""दहेज रहित ""विवाह घोषित करके वाहवाही पा लेते है चंद दिन चंद जगहों पर
।
यहाँ तक कि लगभग हर प्रेम विवाह भी जिसमें लङकी माँ पिता के घर को
त्यागकर खाली हाथ केवल पहने हुये कपङों में चली जाती है प्रेमविवाह करके
अपने प्रेमी पति के घर।
दहेज कभी पीछा नहीं छोङता भारतीय स्त्री का ।
याद करना तब जब विवाह के तुरंत बाद जुटे लोगों की भीङ सबसे पहले जानना
चाहती है ""मिला क्या क्या और नकदी रकम कितनी "
याद करना जब सबसे पहले दुल्हन की अगवानी को आयी बहिनें माँयें जेठानियाँ
ननदें पङौसिने और छोटे बङे कुटुंबी
खोजने लगते है नेग "दस्तूर की कीमत "शुल्क विवाह में शामिल होने का ।
कपङे
बर्तन
रुपया
गहने
फल मेवे मिठाईयाँ।
याद करना जब
जानबूझकर
परिजन लगा देतें हैं घर के सबसे पुराने कबाङ हो चुके कक्ष में दीमक लगे
पुराने पलंग पर सबसे पुराना अनुपयोगी बिस्तर
क्योंकि
दहेज
में आया ही नहीं पलंग और नेग के गद्दे चादर रजाई दुताई दरी तकिये परदे और
कमरे का फरनीचर ।
तब अचानक कमरे से फूल भी ग़ायब हो जाते है और ग़ायब हो जाते हैं दूध
बादाम के गिलास मिठाई की थाली और कोई नहीं रोकती देहरी को नेग के लिये ।
मिला ही क्या जो देगे ""बेचारे "
दहेज कभी पीछा नहीं छोङता ।
भारतीय दुलहन का ।
पहलौठे बच्चे का पालना नहीं लातीं बुआ और ना ही बाँसुरी सुनाने आते हैं
रिश्ते के चाचा ।
ना ही ननिहाल को भेजी जाती है गुङ सोंठ ना ही कुटुंब में बँटती है दूब औऱ वंदनवार ।
अचानक चरुआ गायब हो जाता है हरीरे की पतीली भी रीती रह जाती है और मैथी
बिसवार कम पङ जाते है पंसारी की दुकान पर ।
दहेज
कभी पीछा नहीं छोङता भारतीय पत्नी का ।
याद करना बार बार दाँत भीँचकर भुलाये गये उलाहने और कभी मँहगी साङी ना
खरीदने की मन ही मन ज़िद बचत की आदत और हक़ महसूस ना कर पाना किसी
फ़रमाईश पर । इंगित और कथित अमर्ष झुँझलाहट में ठुकराये गये विषाद औऱ
हर्ष.
ग़ायब होता जाता प्यार और याद रह जाता "पूँजी कम होने की वजह से पिछङता व्यापार "
घुमा फिराकर वही किस्सा,, ज़ायदाद में तुम्हारा भी तो है हिस्सा!!!
कभी नहीं छोङता पीछा दहेज भारतीय माता का
पहले ""भात मायरा चीकट तो लायें मायके वाले तब ही मुँह देखे बहू और जामाता का।
नहीं
माँगा नहीं लिया दहेज तो चढ़ाये जाते है हर रोज अहसान पहले पति परमेश्वर
फिर महामानव अवतारी भगवान ।
दहेज कभी पीछा नहीं छोङता भारतीय विवाहिता का ।
दहेज नहीं लायी इसीलिये हर गुण फीका और अवगुण तीखा रहा नवेली ब्याहता का
बंधुआ मजदूर बनकर रह जाती है बिना दहेज की ज़ोरू चाहे करे दफतर मिल चाहे
करे खेत डंगर गोरू।
©®सुधा राजे
कभी भी भारतीय स्त्री का पीछा नहीं छोङता ।
लगभग हर विवाह का बहुत बङा खलनायक दहेज है ।क्योंकि जो जो दहेज नहीं ले
पाता या तो नालायक समझा जाता है या मूर्ख.
औऱ जो खुद त्याग देता है वह स्त्री "बेचारी "को बिना दहेज अपनाने का महान
श्रेय जरूर ले लेता है ।
हर कमी पर आ ही जाता है ज़ुबां पर ग़म न दहेज ही मिला न कोई अनोखा सुंदर
या कमाऊ सनम
यहाँ तक कि हर वह विवाह जिसे दम ठोंककर गर्व से पुरुष या स्त्री यदा कदा
""दहेज रहित ""विवाह घोषित करके वाहवाही पा लेते है चंद दिन चंद जगहों पर
।
यहाँ तक कि लगभग हर प्रेम विवाह भी जिसमें लङकी माँ पिता के घर को
त्यागकर खाली हाथ केवल पहने हुये कपङों में चली जाती है प्रेमविवाह करके
अपने प्रेमी पति के घर।
दहेज कभी पीछा नहीं छोङता भारतीय स्त्री का ।
याद करना तब जब विवाह के तुरंत बाद जुटे लोगों की भीङ सबसे पहले जानना
चाहती है ""मिला क्या क्या और नकदी रकम कितनी "
याद करना जब सबसे पहले दुल्हन की अगवानी को आयी बहिनें माँयें जेठानियाँ
ननदें पङौसिने और छोटे बङे कुटुंबी
खोजने लगते है नेग "दस्तूर की कीमत "शुल्क विवाह में शामिल होने का ।
कपङे
बर्तन
रुपया
गहने
फल मेवे मिठाईयाँ।
याद करना जब
जानबूझकर
परिजन लगा देतें हैं घर के सबसे पुराने कबाङ हो चुके कक्ष में दीमक लगे
पुराने पलंग पर सबसे पुराना अनुपयोगी बिस्तर
क्योंकि
दहेज
में आया ही नहीं पलंग और नेग के गद्दे चादर रजाई दुताई दरी तकिये परदे और
कमरे का फरनीचर ।
तब अचानक कमरे से फूल भी ग़ायब हो जाते है और ग़ायब हो जाते हैं दूध
बादाम के गिलास मिठाई की थाली और कोई नहीं रोकती देहरी को नेग के लिये ।
मिला ही क्या जो देगे ""बेचारे "
दहेज कभी पीछा नहीं छोङता ।
भारतीय दुलहन का ।
पहलौठे बच्चे का पालना नहीं लातीं बुआ और ना ही बाँसुरी सुनाने आते हैं
रिश्ते के चाचा ।
ना ही ननिहाल को भेजी जाती है गुङ सोंठ ना ही कुटुंब में बँटती है दूब औऱ वंदनवार ।
अचानक चरुआ गायब हो जाता है हरीरे की पतीली भी रीती रह जाती है और मैथी
बिसवार कम पङ जाते है पंसारी की दुकान पर ।
दहेज
कभी पीछा नहीं छोङता भारतीय पत्नी का ।
याद करना बार बार दाँत भीँचकर भुलाये गये उलाहने और कभी मँहगी साङी ना
खरीदने की मन ही मन ज़िद बचत की आदत और हक़ महसूस ना कर पाना किसी
फ़रमाईश पर । इंगित और कथित अमर्ष झुँझलाहट में ठुकराये गये विषाद औऱ
हर्ष.
ग़ायब होता जाता प्यार और याद रह जाता "पूँजी कम होने की वजह से पिछङता व्यापार "
घुमा फिराकर वही किस्सा,, ज़ायदाद में तुम्हारा भी तो है हिस्सा!!!
कभी नहीं छोङता पीछा दहेज भारतीय माता का
पहले ""भात मायरा चीकट तो लायें मायके वाले तब ही मुँह देखे बहू और जामाता का।
नहीं
माँगा नहीं लिया दहेज तो चढ़ाये जाते है हर रोज अहसान पहले पति परमेश्वर
फिर महामानव अवतारी भगवान ।
दहेज कभी पीछा नहीं छोङता भारतीय विवाहिता का ।
दहेज नहीं लायी इसीलिये हर गुण फीका और अवगुण तीखा रहा नवेली ब्याहता का
बंधुआ मजदूर बनकर रह जाती है बिना दहेज की ज़ोरू चाहे करे दफतर मिल चाहे
करे खेत डंगर गोरू।
©®सुधा राजे
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