माँ से सुनी कहानी ।
एक गाँव में सात लकङहारे नौजवान अपने
पिता के साथ रहते थे ।
सब कहते लङके का ब्याह कर लो घर बस
जाये किंतु कोई लङकी न देता ।
एक बिना माँ की बेटी को सौतेली माँ ने
दहेज बचाने के फेर में ब्याह दिया ।नाम
था करमजली ।सौतेली माँ रात दिन
काम कराती बे कदरी से रखती ।
लङकी ने आके देखा आठ चूल्हे एक कतार से
बरामदे में बने हैं आठ मिटकङाहे रखे हैं ।
शाम को सब आये और चने लगे भूनने आठ
चूल्हों पर सेर सेर भर चना भून कर सब
अपनी अपनी खाट पर खाने लगे नमक
मिर्च से बङे लङके को पीछे
की कोठरी मिली ।वह सोचने लगा अब
बीबी को भी रोज बाँटना पङेगा ।
दूसरी शाम सब आये तो देखा सब चूल्हे
गायब पूरा घर लीप पोत कर साफ है और
एक अहाता कच्ची दीवार का तैयार
जहाँ मिट्टी के बरतनों में शीतल जल
रखा है ।
बङे नाराज हुये सब कि ये क्या किया!!!!!
भूख से हालत खराब और अब एक चूल्हे पर
आठ किलो चने कैसे कब तक भुनेगे??
बहू बोली लाओ सब मुझे दो तुम सब तब
तक मट्ठा पिओ और हाथ मुँह धो लो ।
पङौस से लायी हूँ ।
बहू पङौस में गयी पाँच किलो चने देकर
आटा बदल लायी और दो किलो चने देकर
दाल मसाले आलू नमक ।एक सेर चने
पीसकर बेसन बना लायी।
जब तक सब हाथ मुँह धोकर बैठे सबको आठ
आठ रोटी और दाल के साथ आलू
का भुर्ता भी मिल गया ।
दो दो रोटी सुबह जंगल जाते हुये
भी थमायी तो सब चकित
कहाँ तो सारे चने फाँकने के बाद भी भूख
लगती रहती थी कहाँ पेट भर खाने के
बाद भी दोबारा रोटी चटनी प्याज
मिल गये ।
बहू ने कहा अब से सब लोग दस दस
लकङी घर के वास्ते भी लाना ।
शाम को रोटी तैयार थी और दाल के
साथ चटनी और कढी भी।
सब चकित अभी एक दिन की कमाई
दो दिन कैसे चल गयी!!
बहू सब लकङी मिलाकर पङौस में देकर
कुछ और सामान लायी गुङ तेल घी और
दीपक ।
रोज एक गट्ठर अधिक आता और बहू
सामान लाती कभी बरतन कभी कपङे ।
घर के अहाते में साग सब्जियाँ बो दी और
पङौस में पीसने फटकने के काम से कुछ पैसे
बचा लिये ।
बहू ने कहा केवल चने क्यों लाते हो?
लङके बोले कि दाम ले लो या अनाज
मरजी है सो हम चने ले लेते हैं कि और
क्या करेगे ।
बहू ने आगे से
चने की बजाय बदल बदल कर अनाज
लकङी के बदले लाने को कहा तो चावल
सूजी मैदा चीनी दाले मटर भी आने लगे ।
ससुर को दुकान खुलवा दी ।
और
देवरों को लकङी के हल पहिये औजार
बनाने के काम पर लगा दिया। बरामदे
के आगे मिट्टी से सब की मदद से आँगन और
आठ कमरे बना लिये ।
दो साल बीतते एक खेत ले लिया और चार
गाय भैंस ।पति दूध दही का कारोबार
करने लगा ।
और छोटों की एक एक करके नयी दुकाने
बन गयीं ।
जब उसके अपने बच्चे बढ़े हुये तो गाँव के
अमीरों में गिनती होने लगी ।
देवरों की बहुयें पढ़ी लिखी आयीं और एक
स्कूल खोल लिया ।
सब उसे अब बहूलक्ष्मी कहते और ।
घऱ के देवर लक्ष्मी भाभी ।
सौतेली माँ ने सुना तो जल
गयी कि करमजली जाने क्या जादू
जानती है ।
(प्रस्तुति सुधा राजे)
माँ से सुनी कहानी बचपन में ।
जो कभी नहीं भूली ।
पिता के साथ रहते थे ।
सब कहते लङके का ब्याह कर लो घर बस
जाये किंतु कोई लङकी न देता ।
एक बिना माँ की बेटी को सौतेली माँ ने
दहेज बचाने के फेर में ब्याह दिया ।नाम
था करमजली ।सौतेली माँ रात दिन
काम कराती बे कदरी से रखती ।
लङकी ने आके देखा आठ चूल्हे एक कतार से
बरामदे में बने हैं आठ मिटकङाहे रखे हैं ।
शाम को सब आये और चने लगे भूनने आठ
चूल्हों पर सेर सेर भर चना भून कर सब
अपनी अपनी खाट पर खाने लगे नमक
मिर्च से बङे लङके को पीछे
की कोठरी मिली ।वह सोचने लगा अब
बीबी को भी रोज बाँटना पङेगा ।
दूसरी शाम सब आये तो देखा सब चूल्हे
गायब पूरा घर लीप पोत कर साफ है और
एक अहाता कच्ची दीवार का तैयार
जहाँ मिट्टी के बरतनों में शीतल जल
रखा है ।
बङे नाराज हुये सब कि ये क्या किया!!!!!
भूख से हालत खराब और अब एक चूल्हे पर
आठ किलो चने कैसे कब तक भुनेगे??
बहू बोली लाओ सब मुझे दो तुम सब तब
तक मट्ठा पिओ और हाथ मुँह धो लो ।
पङौस से लायी हूँ ।
बहू पङौस में गयी पाँच किलो चने देकर
आटा बदल लायी और दो किलो चने देकर
दाल मसाले आलू नमक ।एक सेर चने
पीसकर बेसन बना लायी।
जब तक सब हाथ मुँह धोकर बैठे सबको आठ
आठ रोटी और दाल के साथ आलू
का भुर्ता भी मिल गया ।
दो दो रोटी सुबह जंगल जाते हुये
भी थमायी तो सब चकित
कहाँ तो सारे चने फाँकने के बाद भी भूख
लगती रहती थी कहाँ पेट भर खाने के
बाद भी दोबारा रोटी चटनी प्याज
मिल गये ।
बहू ने कहा अब से सब लोग दस दस
लकङी घर के वास्ते भी लाना ।
शाम को रोटी तैयार थी और दाल के
साथ चटनी और कढी भी।
सब चकित अभी एक दिन की कमाई
दो दिन कैसे चल गयी!!
बहू सब लकङी मिलाकर पङौस में देकर
कुछ और सामान लायी गुङ तेल घी और
दीपक ।
रोज एक गट्ठर अधिक आता और बहू
सामान लाती कभी बरतन कभी कपङे ।
घर के अहाते में साग सब्जियाँ बो दी और
पङौस में पीसने फटकने के काम से कुछ पैसे
बचा लिये ।
बहू ने कहा केवल चने क्यों लाते हो?
लङके बोले कि दाम ले लो या अनाज
मरजी है सो हम चने ले लेते हैं कि और
क्या करेगे ।
बहू ने आगे से
चने की बजाय बदल बदल कर अनाज
लकङी के बदले लाने को कहा तो चावल
सूजी मैदा चीनी दाले मटर भी आने लगे ।
ससुर को दुकान खुलवा दी ।
और
देवरों को लकङी के हल पहिये औजार
बनाने के काम पर लगा दिया। बरामदे
के आगे मिट्टी से सब की मदद से आँगन और
आठ कमरे बना लिये ।
दो साल बीतते एक खेत ले लिया और चार
गाय भैंस ।पति दूध दही का कारोबार
करने लगा ।
और छोटों की एक एक करके नयी दुकाने
बन गयीं ।
जब उसके अपने बच्चे बढ़े हुये तो गाँव के
अमीरों में गिनती होने लगी ।
देवरों की बहुयें पढ़ी लिखी आयीं और एक
स्कूल खोल लिया ।
सब उसे अब बहूलक्ष्मी कहते और ।
घऱ के देवर लक्ष्मी भाभी ।
सौतेली माँ ने सुना तो जल
गयी कि करमजली जाने क्या जादू
जानती है ।
(प्रस्तुति सुधा राजे)
माँ से सुनी कहानी बचपन में ।
जो कभी नहीं भूली ।
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