सुधा राजे की व्यंग्य रचना --- "म्हारे डिग्गे की मुहब्बत।"
"स्वीट हार्ट आई लव यू डार्लिंग"!!!
सुनकर बङी चहक लहक के साथ इतराने
लगी नई मेम साब।
और चट से बोल बङी ""मी टू लव यू हनी!! "
परंतु
वहीं पोंछा लगाती फूलमती की समझ में
नहीं आया ये सब क्या है ।
इतना तो वह भी जानती है पढ़े लिखे
घरों में बीस बरस से काम जो करती है
कि क्या है इन ज़ुमलों का मतलब लेकिन
मतलब तो नहीं समझ में आया मतलब के
पीछे के मतलब का ।
अभी कुछ ही महीनों पहले
की ही तो बात है ।
!!!!!!
छोटे साब के लिये रोज रिश्ते आते और
बङी मेम बङे साब तसवीरें छोटे साब
को दिखाते ।
जब दरजन भर तसवीरों में से कोई
तसवीर पसंद आती तो लङकी वालों के
घर सूचना भेज दी जाती । लङकी के
पिता भाई चाचा मामा आते और
लंबी बातचीत के बाद दहेज पर
मामला अटकने पर हताश होकर
शर्मिन्दा लौट जाते ।
फिर नयी तसवीरे नये विवरण
नयी मुलाकातें चलने लगतीं ।
कभी कभी बात लङकी देखने तक
जा पहुँचती ।
किसी होटल मंदिर पार्क या घर में
छोटे साब कभी छोटी बहिन
कभी दोस्तों के साथ लङकी देखने पहुँच जाते लङकी वालों का जमकर
खर्चा करवाते फिर घर आकर एक फोन कर देतीं बङी मेम साब कि लङकी पसंद नहीं आई ।
बस इसी तरह सैकङा भर
लङकियाँ गयीं दो तीन साल में ठुकराई।
पिछले साल बात सगाई तक
जा पहुँची और तमाम तोहफे ले देकर
अँगूठियाँ भी पहन लीं लङके वाले
तो हमेशा ही लेते हैं सो हजारों के
तोहफों से बिन मौसम दीवाली कर ली।
फिर कुछ दिन घूमे फिरे बतियाये और एक शाम लङकी को कार के मॉडल पर
मना कर आये।
ये शादी भी लाखों की नहीं करोङों की बैठी।
तभी तो नई मेम साब अभी तक नखरों में
ऐंठी ।
माना कि हनीमून भी हो लिया और मन
गयी सुहागरात ।
लेकिन पचास लाख बीस तौला और
बीएम डब्ल्यू से शादी करने
वाला लङका कैसे कह सकता है
किसी लङकी से प्रेम होने की बात!!!!!!!
और कैसे कोई लङकी मान सकती है उस दैहिक उपभोग के रिश्ते को प्यार जब
यही वाक्य किसी लङके ने पहले
भी किसी लङकी से दुहराया हो बार
बार!!!!!
कैसे कह सकती है खरीदे हुये बिस्तर के
स्थायी सेवक गुलाम को कोई
लङकी कि है प्रेम जबकि ये
सारा रिश्ता तो है
नीलामी की ऊँची बोली का ।
पैसा सोना मशीनों के लिये मोल तोल
करके लङकी का दैहिक सहभागी बनने
को तैयार होने
वाला लङका तो स्थायी लुटेरा है
परंपराओं की ठिठोली का।
सोचती है फूलमती छोटी मेम के शौहर से
तो कई गुना ज्यादा प्यार करता है
डोंगरदास उसको सोलह
की थी तभी भगा लाया और हर सुख दुख में निभाया ।
कभी कभी कच्ची पीके खूब रोता है
कहता है फूलो तुझे रानी बनाके
रखता जो में सेठ होता ।
सोचती है फूलमती "यो रूपयों की हुंडी "
से ज्यादा "म्हारे डिग्गे को मिझसे मुहब्बत हती। "
©®सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.p.
9358874117
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
सुनकर बङी चहक लहक के साथ इतराने
लगी नई मेम साब।
और चट से बोल बङी ""मी टू लव यू हनी!! "
परंतु
वहीं पोंछा लगाती फूलमती की समझ में
नहीं आया ये सब क्या है ।
इतना तो वह भी जानती है पढ़े लिखे
घरों में बीस बरस से काम जो करती है
कि क्या है इन ज़ुमलों का मतलब लेकिन
मतलब तो नहीं समझ में आया मतलब के
पीछे के मतलब का ।
अभी कुछ ही महीनों पहले
की ही तो बात है ।
!!!!!!
छोटे साब के लिये रोज रिश्ते आते और
बङी मेम बङे साब तसवीरें छोटे साब
को दिखाते ।
जब दरजन भर तसवीरों में से कोई
तसवीर पसंद आती तो लङकी वालों के
घर सूचना भेज दी जाती । लङकी के
पिता भाई चाचा मामा आते और
लंबी बातचीत के बाद दहेज पर
मामला अटकने पर हताश होकर
शर्मिन्दा लौट जाते ।
फिर नयी तसवीरे नये विवरण
नयी मुलाकातें चलने लगतीं ।
कभी कभी बात लङकी देखने तक
जा पहुँचती ।
किसी होटल मंदिर पार्क या घर में
छोटे साब कभी छोटी बहिन
कभी दोस्तों के साथ लङकी देखने पहुँच जाते लङकी वालों का जमकर
खर्चा करवाते फिर घर आकर एक फोन कर देतीं बङी मेम साब कि लङकी पसंद नहीं आई ।
बस इसी तरह सैकङा भर
लङकियाँ गयीं दो तीन साल में ठुकराई।
पिछले साल बात सगाई तक
जा पहुँची और तमाम तोहफे ले देकर
अँगूठियाँ भी पहन लीं लङके वाले
तो हमेशा ही लेते हैं सो हजारों के
तोहफों से बिन मौसम दीवाली कर ली।
फिर कुछ दिन घूमे फिरे बतियाये और एक शाम लङकी को कार के मॉडल पर
मना कर आये।
ये शादी भी लाखों की नहीं करोङों की बैठी।
तभी तो नई मेम साब अभी तक नखरों में
ऐंठी ।
माना कि हनीमून भी हो लिया और मन
गयी सुहागरात ।
लेकिन पचास लाख बीस तौला और
बीएम डब्ल्यू से शादी करने
वाला लङका कैसे कह सकता है
किसी लङकी से प्रेम होने की बात!!!!!!!
और कैसे कोई लङकी मान सकती है उस दैहिक उपभोग के रिश्ते को प्यार जब
यही वाक्य किसी लङके ने पहले
भी किसी लङकी से दुहराया हो बार
बार!!!!!
कैसे कह सकती है खरीदे हुये बिस्तर के
स्थायी सेवक गुलाम को कोई
लङकी कि है प्रेम जबकि ये
सारा रिश्ता तो है
नीलामी की ऊँची बोली का ।
पैसा सोना मशीनों के लिये मोल तोल
करके लङकी का दैहिक सहभागी बनने
को तैयार होने
वाला लङका तो स्थायी लुटेरा है
परंपराओं की ठिठोली का।
सोचती है फूलमती छोटी मेम के शौहर से
तो कई गुना ज्यादा प्यार करता है
डोंगरदास उसको सोलह
की थी तभी भगा लाया और हर सुख दुख में निभाया ।
कभी कभी कच्ची पीके खूब रोता है
कहता है फूलो तुझे रानी बनाके
रखता जो में सेठ होता ।
सोचती है फूलमती "यो रूपयों की हुंडी "
से ज्यादा "म्हारे डिग्गे को मिझसे मुहब्बत हती। "
©®सुधा राजे
511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.p.
9358874117
sudha.raje7@gmail.com
यह रचना पूर्णतः मौलिक है।
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