चुपकॆ

ये किसने हाथ रख्खा है
उन्हीं दुखती रग़ों पर फिर,
छिपाये ज़ख़्म पहलू में चले आये थे हम
चुपके।


सँभाला किस तरह उस रेत को आँसू
से नम करके
सजावट कर सज़ा रख्खे गये सारे
सितम चुपके

मुझे रोका नहीं तूफ़ां ने सैलाबों ने
पर
रूक गये।
कोई पैरों में आ लिपटा था देखे
था सहम चुपके।।

कोई मरता तो मर जाये ये कह गये
धूप में साये ।
सुधा हमने
पुकारा था कभी जिनको सनम
चुपके ।

कोई लिख्खे तो क्या लिख्खे ।।
सुनाये तो सुनाये क्या।।
तबस्सुम जिसके होठों पे वो ग़म
रह गये वहम चुपकॆ
©® sudha raje

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