Friday 31 May 2013

तंद्र पवन।

Sudha Raje
Sudha Raje
मंद्र मदिर तंद्र पवन गुनगुना रही ।
मत्त मधुर तप्त गगन को सुना रही।
भुवन मोहिनी सुरो पे धुन
बना रही ।
निशा किसे बुला रही ।
निशा किसे बुला रही ।
ये किसकी याद आ रही ।।
ये किसकी याद आ रही ।
पल्लवित सुमन सुवास से भरे भरे ।
उल्लसित ये द्रुम हुलास से हरे हरे ।
चंचरीक पुष्पराग तन झरे झरे
पुंडलीक मन नयन सपन डरे डरे ।
जिन्हें विभा रुला रही ।
जिन्हें विभा रूला रही ।
ये किसकी याद आ रही
ये किसकी याद आ रही ।
©®¶©®सुधा राजे ।
निष्पलक मृगांक देखता विभोर हो।
ज्यों पुलक विहंग वंशिका किशोर हो ।
परिश्रांत परिश्लेष पोर पोर हो ।
ध्रुव नक्षत्र ज्यों पलक की कोर कोर
हो ।
हृदय लता झुला रही।
हृदय लता झुला रही
ये किसकी याद आ रही ।
किसे निशा बुला रही
©®¶©®
सुधा राजे
मद्गलीन ज्योत्सना में शीत लीनता ।
दूर पंथ पार सरित् वन्हि क्षीणता।
बिंब सर हिमांशु तङित् की प्रवीणता।
तरू मधूक छाँव नृत्य मन नवीनता ।
मदन सुधा पिला रही ।
मदन सुधा पिला रही ।
ये किसकी याद आ रही ।
किसे निशा बुला रही
Sudha Raje
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Yesterday at 4:31pm

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