सुधा राजे के गीत, गज़ल और मुक्तक।
गीत
1→प्रेम झंझावात् सा आया उङा कर ले
गया ।
इस जगत् की वाटिका में जो भी कुछ
निस्सार था ।
थे अपरिचित से कई नाते कई संबंध भी ।
तोङ डाले सूखते द्रुम व्यर्थ जो
विस्तार था ।
थी त्रिपथगा नेह की मन आत्मा तन
जीव जग ।
उत्तप्लवन में बह गया सब मैल
जो अधिभार था ।
आँसुओं ने धो दिये सारे कलुष हर
कामना ।
प्रेम डूबी सुक्ति मुक्ता शुद्ध
शुचि संसार था ।
खोये बिन पाता नहीं कोई यहाँ कुछ
भी सुधा ।
पा लिया सर्वस्व खोकर जो वही भव
सार था ।
©सुधा राजॆ
2→ मंद्र मदिर तंद्र पवन गुनगुना रही ।
मत्त मधुर तप्त गगन को सुना रही।
भुवन मोहिनी सुरो में धुन
सुना रही ।
निशा किसे बुला रही ।
निशा किसे बुला रही ।
ये किसकी याद आ रही ।।
पल्लवित सुमन सुवास से भरे भरे ।
उल्लसित ये द्रुम हुलास से हरे हरे ।
चंचरीक पुष्पराग तन झरे झरे
पुंडलीक मन नयन सपन भरे ।
जिन्हें विभा रुला रही
निष्पलक मृगांक देखता विभोर हो।
ज्यों पुलक विहंग वंशिका किशोर हो ।
परिश्रांत परिश्लेष पोर पोर हो ।
ध्रुव नक्षत्र ज्यों पलक पलक की कोर
कोर हो ।
हृदय लता झुला रही
किसे निशा बुला रही
©®¶©®
सुधा राजे
गज़ल
1→ पाँव खुद काट के दिये उसने
जैसे बैसाखियों के कहने पै ।।
चुन लिया दर्द का घना जंगल ।
जैसे आबादियों के कहने पै ।।
जो गिरा दें तो उठ नहीं पाते
साथ वो उनको ले चली आयी ।।
हर तरफ अज़नबी निग़ाहें थी ।
सख़्त बरबादियों के कहने पै ।
जल उठे जब जहेज़ के दोज़ख ।
सुर्ख जोङे बरीं के रोते थे ।
तख्ते शब आँसुओं की शहनाई
झूठ की शादियों के कहने पै
इक सहेली की याद यूँ आई
तू जो ज़िंदा है खुद उठा ख़ुद को ।
ग़ैर के दोश पर ज़नाजे सी ।।
क्यों सुधा हादियों के कहने पर ।
©सुधा राजे
Sudha Raje
'dtabjnr"
2.→ उसके चेहरे से कई दर्द अयां होते हैं।
कुछ भी कहता है कई राज़ बयां होते हैं
।
सख़्त लब हैं कि कोई नाम दफ़्न सीने में ।
चश्मे नम नीची नजर अश्क़ नुमां होते है
।
वो किसी को भी देखता ही नहीं अब
मुङके ।
ज़िस्म ढलते है मग़र इश्क़ जवां होते हैं
।
आसमां लेके मुठ्ठियों में फलक़ से आया ।
वर्ना धरती पै ऐसे शख़्स कहाँ होते हैं।
।
हम सितारों को भी दामन में भरे रोते हैं
।
थीं दुआ उसके लिये सर्फ़े रवां होते हैं ।
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सुधा राजे।
मुक्तक
1→ चाँदी की उस नदी में ,
वो बिंब चंद्रमा का ।
थे व्योम उर्वि सँग सँग
वो दिन था पूर्णिमा का ।
दो सिन्धुनील नैनों ने
मेरी ओर ताका ।।।।
थे बाहुपाश में ज्यों ।
नक्षत्र नभ के सारे ।
मंदाकिनी थी मन में ।
जिस दिन थे तुम हमारे
कोई यूँ न मन को हारे
जैसे धरा पै तारे ।।।
आकाशपुष्प संभव ।
उस दिन कहीं खिले थे ।
ज्योतिर्वलय कहीं पर ।
ब्रह्माण्ड में मिले थे ।।।।
सुरलोकचाप वर्णा
कंजों पै खग हिले थे ।
स्मित अधर किसी के।
विहँसे मुझे पुकारे ।।।।
कोई यूँ न को हारे ।।
जैसे धरा पै तारे ।
मंदाकिनी थी मन में
जिस दिन थे तुम हमारे ।
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SUDHA RAJE
BJNR''DTA
2→ तुम विरह का शोक मत
करना क्षमा करना मुझे ।
विश्व की है टेर आकुल गीत ये
गाना पङेगा ।
प्रिय!!!!!!
मुझे जाना पङेगा ।।।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा ।।।
रूप रस लावण्य यौवन देह कुंतल मधु अधर
।
सुप्त श्लथ सुत संग श्यामल सौम्य लोचन
स्वप्न भर ।
कंचुकी पट मन सरकता क्षीण
ओढ़ाना पङेगा ।।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा
प्रिय!!!
मुझे जाना पङेगा ।
©सुधा राजे
हूँ व्यथित संकल्प कातर देह प्रण
अभ्यर्थना।
तव चरण नत माथ भावी वेदना तव
यातना ।
यातना ।
देवि!!!! हे हृदयेश्वरी ।
पिय मोह झुठलाना पङेगा
प्रिय!!!!!
मुझे जाना पङेगा ।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा
आह !!! जाता हूँ पलटता टूटता मन भग्न
खंडित ।
शोक वारिद् तप्त पय बिनु मीन भव हित
आत्मदंडित ।
वक्ष खण्डित ये व्यथा हृद् चीर सह
जाना पङेगा
सह जाना पङेगा ।
प्रिय!!!!!
मुझे जाना पङेगा ।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा
©सुधा राजे
जा रहा हूँ चोर्यकर्मी प्रेमभीरू प्रिय
विदा
अब रहा अवशेष कंटकपथ चलूँ प्रण
संविदा ।
मात्र
अपराधी तुम्हारा ही नहीं पितु, पुत्र
का ।
बाल यौवन जीर्ण वय हे देवि
समझाना पङेगा ।
प्रिय मुझे जाना पङेगा
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा ।
©सुधा राजे
नाम से सिद्धार्थ मैं दिक्हीन सत पथ पर
चला ।
जन्म यौवन मृत्यु जीवन ईश
अंशी क्यों भला ।
खोज में चिर शांति तप की हूँ तो जल
जाना पङेगा
प्रिय!!
मुझे जाना पङेगा
प्रिय!!!
मुझे जाना पङेगा
©®सुधा राजे।
1→प्रेम झंझावात् सा आया उङा कर ले
गया ।
इस जगत् की वाटिका में जो भी कुछ
निस्सार था ।
थे अपरिचित से कई नाते कई संबंध भी ।
तोङ डाले सूखते द्रुम व्यर्थ जो
विस्तार था ।
थी त्रिपथगा नेह की मन आत्मा तन
जीव जग ।
उत्तप्लवन में बह गया सब मैल
जो अधिभार था ।
आँसुओं ने धो दिये सारे कलुष हर
कामना ।
प्रेम डूबी सुक्ति मुक्ता शुद्ध
शुचि संसार था ।
खोये बिन पाता नहीं कोई यहाँ कुछ
भी सुधा ।
पा लिया सर्वस्व खोकर जो वही भव
सार था ।
©सुधा राजॆ
2→ मंद्र मदिर तंद्र पवन गुनगुना रही ।
मत्त मधुर तप्त गगन को सुना रही।
भुवन मोहिनी सुरो में धुन
सुना रही ।
निशा किसे बुला रही ।
निशा किसे बुला रही ।
ये किसकी याद आ रही ।।
पल्लवित सुमन सुवास से भरे भरे ।
उल्लसित ये द्रुम हुलास से हरे हरे ।
चंचरीक पुष्पराग तन झरे झरे
पुंडलीक मन नयन सपन भरे ।
जिन्हें विभा रुला रही
निष्पलक मृगांक देखता विभोर हो।
ज्यों पुलक विहंग वंशिका किशोर हो ।
परिश्रांत परिश्लेष पोर पोर हो ।
ध्रुव नक्षत्र ज्यों पलक पलक की कोर
कोर हो ।
हृदय लता झुला रही
किसे निशा बुला रही
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सुधा राजे
गज़ल
1→ पाँव खुद काट के दिये उसने
जैसे बैसाखियों के कहने पै ।।
चुन लिया दर्द का घना जंगल ।
जैसे आबादियों के कहने पै ।।
जो गिरा दें तो उठ नहीं पाते
साथ वो उनको ले चली आयी ।।
हर तरफ अज़नबी निग़ाहें थी ।
सख़्त बरबादियों के कहने पै ।
जल उठे जब जहेज़ के दोज़ख ।
सुर्ख जोङे बरीं के रोते थे ।
तख्ते शब आँसुओं की शहनाई
झूठ की शादियों के कहने पै
इक सहेली की याद यूँ आई
तू जो ज़िंदा है खुद उठा ख़ुद को ।
ग़ैर के दोश पर ज़नाजे सी ।।
क्यों सुधा हादियों के कहने पर ।
©सुधा राजे
Sudha Raje
'dtabjnr"
2.→ उसके चेहरे से कई दर्द अयां होते हैं।
कुछ भी कहता है कई राज़ बयां होते हैं
।
सख़्त लब हैं कि कोई नाम दफ़्न सीने में ।
चश्मे नम नीची नजर अश्क़ नुमां होते है
।
वो किसी को भी देखता ही नहीं अब
मुङके ।
ज़िस्म ढलते है मग़र इश्क़ जवां होते हैं
।
आसमां लेके मुठ्ठियों में फलक़ से आया ।
वर्ना धरती पै ऐसे शख़्स कहाँ होते हैं।
।
हम सितारों को भी दामन में भरे रोते हैं
।
थीं दुआ उसके लिये सर्फ़े रवां होते हैं ।
©®¶©®¶Copy right
सुधा राजे।
मुक्तक
1→ चाँदी की उस नदी में ,
वो बिंब चंद्रमा का ।
थे व्योम उर्वि सँग सँग
वो दिन था पूर्णिमा का ।
दो सिन्धुनील नैनों ने
मेरी ओर ताका ।।।।
थे बाहुपाश में ज्यों ।
नक्षत्र नभ के सारे ।
मंदाकिनी थी मन में ।
जिस दिन थे तुम हमारे
कोई यूँ न मन को हारे
जैसे धरा पै तारे ।।।
आकाशपुष्प संभव ।
उस दिन कहीं खिले थे ।
ज्योतिर्वलय कहीं पर ।
ब्रह्माण्ड में मिले थे ।।।।
सुरलोकचाप वर्णा
कंजों पै खग हिले थे ।
स्मित अधर किसी के।
विहँसे मुझे पुकारे ।।।।
कोई यूँ न को हारे ।।
जैसे धरा पै तारे ।
मंदाकिनी थी मन में
जिस दिन थे तुम हमारे ।
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BJNR''DTA
2→ तुम विरह का शोक मत
करना क्षमा करना मुझे ।
विश्व की है टेर आकुल गीत ये
गाना पङेगा ।
प्रिय!!!!!!
मुझे जाना पङेगा ।।।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा ।।।
रूप रस लावण्य यौवन देह कुंतल मधु अधर
।
सुप्त श्लथ सुत संग श्यामल सौम्य लोचन
स्वप्न भर ।
कंचुकी पट मन सरकता क्षीण
ओढ़ाना पङेगा ।।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा
प्रिय!!!
मुझे जाना पङेगा ।
©सुधा राजे
हूँ व्यथित संकल्प कातर देह प्रण
अभ्यर्थना।
तव चरण नत माथ भावी वेदना तव
यातना ।
यातना ।
देवि!!!! हे हृदयेश्वरी ।
पिय मोह झुठलाना पङेगा
प्रिय!!!!!
मुझे जाना पङेगा ।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा
आह !!! जाता हूँ पलटता टूटता मन भग्न
खंडित ।
शोक वारिद् तप्त पय बिनु मीन भव हित
आत्मदंडित ।
वक्ष खण्डित ये व्यथा हृद् चीर सह
जाना पङेगा
सह जाना पङेगा ।
प्रिय!!!!!
मुझे जाना पङेगा ।
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा
©सुधा राजे
जा रहा हूँ चोर्यकर्मी प्रेमभीरू प्रिय
विदा
अब रहा अवशेष कंटकपथ चलूँ प्रण
संविदा ।
मात्र
अपराधी तुम्हारा ही नहीं पितु, पुत्र
का ।
बाल यौवन जीर्ण वय हे देवि
समझाना पङेगा ।
प्रिय मुझे जाना पङेगा
प्रिय!!!!
मुझे जाना पङेगा ।
©सुधा राजे
नाम से सिद्धार्थ मैं दिक्हीन सत पथ पर
चला ।
जन्म यौवन मृत्यु जीवन ईश
अंशी क्यों भला ।
खोज में चिर शांति तप की हूँ तो जल
जाना पङेगा
प्रिय!!
मुझे जाना पङेगा
प्रिय!!!
मुझे जाना पङेगा
©®सुधा राजे।
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